Jai Hind ki Sena - 8 in Hindi Moral Stories by Mahendra Bhishma books and stories PDF | जय हिन्द की सेना - 8

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जय हिन्द की सेना - 8

जय हिन्द की सेना

महेन्द्र भीष्म

आठ

आठ दिसम्बर की प्रातः, आज पिछले दिनों की अपेक्षा कम कोहरा था। ओस की बूँदें धरती पर कालीन—सी बिछी हरी घास पर पड़ रही सूर्य की स्वर्णिम किरणों से मोतियों की भाँति चमक रही थीं। भारतीय सेना के जवानों के मुँह से निकलती भाप ठंडक की अधिकता प्रकट कर रही थी। प्रकृति से जुड़ा व्यक्ति जब प्रकृति के विमुख जाता है, प्रकृति के सर्वमान्य तथ्या को झुठलाता है, तब उसकी स्थिति हास्यास्पद हो जाती है और जो प्रकृति के साथ सामंजस्य अपनाते हुए अपने कायोर्ं के प्रति रत रहते हैं, वही सफल हो पाते हैं। इसी प्रकार मानव द्वारा रचित सर्वहित मान्यताओं के विरुद्ध जब व्यक्ति जाता है, तब उसका विनाश होना सर्वथा निश्चित हो जाता है। पश्चिमी पाकिस्तान की फौज ने प्रकृति व समाज के सर्वमान्य विधान के प्रतिकूल अपना दृष्टिकोण बनाये रखा, फलस्वरूप उनका सैन्य अभियान जो भौगोलिक और राजनैतिक दृष्टि से पूरी तरह से निर्बल था, उनके सैनिकों के मनोबल को तोड़ने के लिए पर्याप्त रहा।

पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के अधिकांश सैनिकों ने स्थानीय रजाकारों की मदद से अपनी संकीर्ण धार्मिक भावनाओं को हिन्दू बंगालियों के क़त्लेआम से खूब भुनाया और इसी के साथ मानव स्वभाव के अंतर्गत प्रकृति के नियमों के विरुद्ध, समाज द्वारा प्रतिपादित परम्पराओं के विरुद्ध अपनी क्षणिक दैहिक तृप्ति की प्राप्ति अबोध बंगाली—बालाओं, नवयौवना किशोरी छात्राओं तक से बलात्कार कर यौन कुंठाओं से ग्रसित हो वासना पूर्ति कर मानवता को कलुषित किया।

यही कारण थे कि वे अपने बनाये जाल में बुरी तरह से फँसते जा रहे

थे, तेजी से पराजित होते जा रहे थे। ईश्वरीय और मानवीय प्रकोप दोनों

पश्चिमी पाकिस्तानियों को इस समय झेलना पड़ रहा था। व्यक्ति क्षणिक सुख की प्राप्ति जब नियमों के विरुद्ध प्राप्त करने की चेष्टा करता है या येन—केन— प्रकारेण प्राप्त कर लेता है, तब उसे इस किए का इतना कठोर फल मिलता है कि उसे पश्चाताप करने का भी समय नहीं मिल पाता और जो पश्चिमी पाकिस्तानी फौज में सच्चरित्र निष्ठावान्‌ सैनिक थे, वे भी अपने साथियों केे पाप में मौन सहभागी होने के कारण निर्दोष गेहूँ में घुन की भाँति पिसने पर मजबूर हुए।

प्रातः का नाश्ता लेने के बाद भारतीय सेना के जवान परेड ग्राउण्ड पर इकट्ठे हुए।

सभी कल के विजयी अभियान से उत्साहित थे। सभी का मनोबल ऊँचा

कम्पनी कमाण्डर मेजर पाण्डेय ने एक दृष्टि परेड ग्राउण्ड में फेंक परेड समाप्ति का संकेत अपने अधीनस्थ को दिया। परेड समापन की औपचारिकताएं सूबेदार बाना सिंह ने पूरी की। संंक्षिप्त बैठक में अलग से मंत्रणा के लिए समस्त कमीशन अधिकारी मेजर पाण्डेय के साथ—साथ चल रहे थे। ।

इस लघु समूह से लेफ़्िटनेंट बलवीर व भानु एकदम हटकर शांत चल रहे थे।

था।

बहुत कुछ कर गुज़रने के लिए उनकी भुजाएँ फड़क रही थीं।

तीन लगातार सीटियों के संकेत ने सभी को समेटकर कतारबद्ध परेड

ग्राउण्ड में खड़ा कर दिया।

औपचारिकताओं की पूर्णता के बाद मेजर पाण्डेय ने ऊँची आवाज़ में सभी को सम्बोधित किया '‘महान भारत वर्ष के देशभक्त वीर सैनिकों! हम आज दोपहर के भोजन के बाद एक बजे पुनः अपने विजय अभियान पर खुलना से प्रस्थान करेंगे। हमारी गौरवशाली सेना का एक प्लाटून कैप्टन सुलेमान के नेतृत्व में यहीं खुलना शहर में नगरीय सुरक्षा व्यवस्था हेतु रुक जायेगा। इन सैनिकों की सूची थोड़ी देर में घोषित कर दी जायेगी। आज दोपहर बारह बजे तक एक पूरी कम्पनी हमारे साथ आकर मिल जायेगी। ठीक एक बजे ट्रकों

द्वारा हम खुलना से प्रस्थान करेंगे और उत्तर दिशा की ओर पद्‌मा नदी के दक्षिणी तट पर कल प्रातः तक पहुँच जायेंगे। वहाँ से पूर्वी पाकिस्तान की राजधानी ढाका सिर्फ पचास किलोमीटर की दूरी पर है। पद्‌मा नदी के तट पर कल हम सभी स्नान करेंगे,..... कोई शक।'' मेजर पाण्डेय सैन्य प्रणाली के अंतर्गत अपने वक्तव्य की समाप्ति पर तेज स्वर में बोले।

कुछ पल मैदान में शांति छायी रही।

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