Grandmother in flood in Hindi Children Stories by Anil jaiswal books and stories PDF | बाढ़ और दादी

Featured Books
  • ओ मेरे हमसफर - 12

    (रिया अपनी बहन प्रिया को उसका प्रेम—कुणाल—देने के लिए त्याग...

  • Chetak: The King's Shadow - 1

    अरावली की पहाड़ियों पर वह सुबह कुछ अलग थी। हलकी गुलाबी धूप ध...

  • त्रिशा... - 8

    "अच्छा????" मैनें उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा। "हां तो अब ब...

  • Kurbaan Hua - Chapter 42

    खोई हुई संजना और लवली के खयालसंजना के अचानक गायब हो जाने से...

  • श्री गुरु नानक देव जी - 7

    इस यात्रा का पहला पड़ाव उन्होंने सैदपुर, जिसे अब ऐमनाबाद कहा...

Categories
Share

बाढ़ और दादी



अनिल जायसवाल

"बागमती में पानी उफान मार रहा है। कभी भी किनारा तोड़कर पानी गांव में घुस आएगा। सरकार ने चेतावनी जारी की है। हमें सुबह तक गांव खाली करना है। सब तैयार रहना।" बुधिया चिल्लाते हुए गांव में घूम रहा था।
धनिया सोच में पड़ गई। उसका घर किनारे से ज्यादा दूर नहीं था। घर में एक पोता गोनू के सिवा कोई न था। वह दूसरे गांव में सब्जियां बेचने गया हुआ था। शाम तक लौट आता था। परंतु आज शाम से रात हो गई थी, वह न लौटा था। बिना गोनू के गांव छोड़ने की बात से ही धनिया घबराने लगी।
धनिया जानती थी, बाढ़ और विनाश एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पंद्रह साल पहले की बाढ़ की याद आते ही वह कांप उठी। उस रात वह अपने परिवार के साथ सोई हुई थी। नन्हा गोनू उसके साथ सोया था। रात को अचानक नदी का तटबंध टूट गया था। पानी हरहराते हुए गांव में घुस आया था। रात के अंधेरे में कौन कहां बहा, पता नहीं चला। धनिया ने गोनू को एक पल के लिए खुद से अलग नहीं किया। एक लकड़ी का खंभा बहते हुए उसके हाथ आ गया था और उसके लिए डूबते को तिनके का सहारा बन गया था। बाद में सरकारी टीम ने उन दोनों को बचा लिया था। पर बेटा-बहू और पति का कुछ पता न चला।
'नहीं-नहीं, मैं गोनू के बिना कहीं नहीं जाऊंगी। वह मुझे कहां ढूंढेगा?' धनिया बड़बड़ाई।
उसने झोंपड़ी में घुसकर दरवाजा बंद कर लिया। एक पोटली में परिवार के फोटो, कुछ पैसे और खाने का सूखा सामान बांधा और पोते का इंतज़ार करने लगी।
रात गहराती गई, पर गोनू नहीं लौटा। अचानक आधी रात को शोर मचा, "अरे हो, नदी का किनारा टूट गया है, सब टीले की तरफ भागो। जान बचाओ।"
धनिया ने भी हल्ला गुल्ला सुना। डर लगा, फिर उसे अनसुना कर आंख बंद कर ली। उसके बाद हमेशा की तरह मुसीबत से बचाने के लिए भगवान से गुहार करने लगी। कुछ लोगों ने चलने के लिए धनिया को पुकारा भी, पर वह कैसे सुनती, उसका तो रोम-रोम ईश्वर को पुकारने में लगा था।
धीरे-धीरे शोरगुल कम होता गया और सन्नाटे में पानी का कोलाहल बढ़ने लगा। थोड़ी देर में पानी सारी बाधाओं को तोड़कर धनिया के घर में घुस आया। डर लगा, पर पोते के प्रेम को बाढ़ का पानी हरा न पाया।
धनिया चारपाई पर बैठी राम नाम जपती रही। पौ फटने तक बाढ़ के पानी ने पूरे गांव को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। थक हारकर धनिया ने आखें खोलीं। पूरा घर पानी से भर चुका था। कांपते हुआ धनिया ने जमीन पर पैर रखा। पानी को हेलते हुए वह दरवाजा खोलकर बाहर आई।
अब धनिया सिर से पैर तक कांप उठी। उसे लगा, जैसे वह बीच समुंदर में खड़ी है। चारों ओर अथाह पानी। तभी धनिया को लगा, पानी बढ़ रहा है।
"लगता है, किनारा पूरी तरह टूट गया है। हे भगवान, मेरे गोनू की रक्षा करना।" बड़बड़ाते हुए धनिया अपने आंगन में लगे पेड़ के पास पहुंची। और कोई चारा न देखकर, वह पेड़ पर चढ़ गई। अपनी जान से ज्यादा उसे गोनू की फिक्र सता रही थी।
देखते-देखते पानी इतना बढ़ गया कि लग रहा था धनिया अब पेड़ पर टंगी है। चारों ओर कोई नहीं दिख रहा था और पानी बढ़ता ही जा रहा था। 'अब रामजी जे पास जाने का वक्त आ गया।' सोचते हुए धनिया की आंखों में आंसू आ गए। मरने से ज्यादा उसे अब भी पोते की फिक्र सता रही थी।
'हे भगवान, मेरे गोनू की रक्षा करना, चाहे मेरी जान ले लो।' रोते-रोते धनिया बड़बड़ाने लगी। तभी उसे दूर कोलाहल सुनाई दिया। एक नाव उसी की तरफ आ रही थी। अब यह फिर डूबते को तिनके का सहारा जैसा ही था। फिर भी धनिया ने उससे मुंह फेर लिया। वह बड़बड़ाई, "बिना गोनू के मैं कहीं न जाऊंगी।"
पर नाव धनिया की तरफ ही आती गई और उसके पास आकर रुक गई। धनिया ने उस पर ध्यान नहीं दिया।
तभी उसे जानी-पहचानी आवाज सुनाई दी, "दादी, ओ दादी।"
धनिया ने हड़बड़ाकर आंखे खोलीं। देखा, बचाव दल के साथ उसका गोनू था, जो उसे पुकार रहा था। पोते को देखते ही धनिया का चेहरा खिल उठा। दो लोगों ने सहारा देकर किसी तरह धनिया को पेड़ से उतारकर नाव में बैठाया। पोते को गले लगाकर धनिया रो पड़ी।
"दादी, औरों की तरह तुम टीले की ओर क्यों नहीं गईं? तुम्हें कुछ हो जाता तो?'' गोनू शिकायती लहजे में बोला।
"मैं यहां से जाती, तो तू मुझे कहां ढूंढ़ता? एक बार सबको खो चुकी हूं। अब तुझे नहीं खो सकती।" कहते हुए धनिया फफककर रो पड़ी।
"वो तो ठीक है दादी। पर तुम्हें कुछ हो जाता तो? वो तो शुक्र है, गांव वालों ने बताया कि तुम घर से नहीं निकलीं। फिर बचाव दल से प्रार्थना कर मैं उन्हें यहां लाया।" गोनू बोले जा रहा था।
"पगले, मेरे साथ तेरे दादा, बाबा , भगवान और तू था, मुझे कैसे कुछ हो सकता था?" धनिया पहली बार मुस्कराई।
"यहां दादा, बाबा और भगवान क्या कर लेते, अगर मैं न आता तो?" गोनू ने उलाहना दिया।
"अरे भगवान ने ही तो तुझे भेजा है।"
"और बाबा तथा दादा जी ने क्या किया?" गोनू मुस्कराया।
जिस पेड़ पर बैठकर मैं तेरी राह ताक रही थी, वो तेरे दादा ने लगाया था और तेरे बाबा और मां ने उसकी देखभाल की थी। याद रखना, किसी को भी तुम प्यार दोगे, तो वह प्यार तुम्हें वह समय पर वापस जरूर लौटाएगा।"
13.8.20