Ludo Part 2 Final Part in Hindi Short Stories by Abhishek books and stories PDF | Ludo Part 2 (Final Part)

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Ludo Part 2 (Final Part)

"अरे क्या हो गया ?" अभिजीत की चीख सुन घबराते हुए विनायक बाबू ने पूछा |

"बाबा मैं जीत गया ! सामने वाले की 3 गोटियां पक गयी थीं, सिर्फ एक बची थी | और मेरी 3 बची थीं, उनमे से भी 2 तो घर से निकली भी नहीं थीं | फिर भी अंत में मैं जीत गया |" अभिजीत ने खुश होते हुए कहा |

अभिजीत की चीख सुन कर घबराये विनायक बाबू ने पहले तो पूरी बात जानने के बाद सुकून की सांस ली | जी में आया कि इतनी सी बात पर इतना जोर से चिल्लाने के लिए एक फटकार लगा ही दें पोते को, लेकिन फिर चुप ही रहे | टीवी बंद कर अभिजीत से पूछा, "तुम लूडो खेल रहे थे तबसे ?"

"हाँ |"

"फ़ोन में ?"

"बाबा ! आजकल कैलकुलेटर, घड़ी, टॉर्च, कैमरा, लूडो सब फ़ोन में ही होते हैं |"

विनायक बाबू कैलकुलेटर, घड़ी से ले कर टॉर्च, कैमरा तक के फ़ोन में होने वाली बात से तो परिचित थे, लेकिन फ़ोन में लूडो होने की बात उन्होंने अभी पहली बार सुनी थी |

"दिखाओ जरा फ़ोन वाला लूडो कैसा होता है |" विनायक बाबू ने उत्सुक होते हुए अभिजीत से कहा |

जब अभिजीत ने उन्हें दिखा समझा कर साथ खेलने के लिए कहा तब विनायक बाबू मान तो गए, लेकिन 2-3 दफा ही अपनी बारी खेलने के बाद चिढ़ गए |

"इसमें कैसे मजा आएगा ! इतनी छोटी सी स्क्रीन है | पहली गोटी निकलने से पहले 3 बार खेलने को भी नहीं मिलता | गोटियां भी निकलने पर अपने आप ही बढ़ने लगती हैं |" विनायक बाबू ने खीझते हुए कहा |

"अच्छी बात हुई ना कि अपने आप चलती हैं गोटियां | इससे कोई चीटिंग भी नहीं होती |" अभिजीत ने समझाया |

"बिना बेईमानी के खेला जाने वाला लूडो लूडो नहीं होता |" विनायक बाबू ने लूडो के इस नए अनसुने नियम से पर्दाफ़ाश करते हुए कहा | "और बिना छक्का फेंके लूडो का क्या मजा है !"

इतना कहकर विनायक बाबू सोफे से उठ अपने कमरे में बिस्तर पर जा कर लेट गए |

लेटे-लेटे विनायक बाबू पुरानी बातों और यादों के समंदर में ना जाने कब उतर गए | जब अभिजीत अपने माता-पिता के साथ गुरुग्राम चला आया था और विनायक बाबू पहली बार सबसे मिलने वहाँ गए थे तो पोते के लिए उस वक़्त गाँव में मिला सबसे बड़ा लूडो बोर्ड तोहफे के रूप में ले गए थे | गाँव में दोनों दादा-पोता हर दिन 2-3 राउंड लूडो तो खेल ही लिया करते थे | यही सोचकर वो अपने साथ ये तोहफा पोते के लिए ले गए थे कि एक बार फिर दोनों अपना प्रिय खेल खेल सकेंगे | लेकिन 10 वर्ष के गाँव के अभिजीत और 13 वर्ष के शहर के अभिजीत में बहुत फर्क आ चुका था | विनायक बाबू को शायद पता नहीं था की शहरों में बच्चे जल्दी बड़े होते हैं | अभिजीत अब लूडो या प्लेइंग कार्ड्स मिलने पर खुश हो जाने वाला छोटा बच्चा नहीं था | जिस पोते ने 13 साल की उम्र में अपने दादा के लूडो देने पर यह कर हँस दिया था कि वो अब कोई बच्चा नहीं है जो लूडो खेले, आज वही पोता 21 वर्ष की उम्र में रोज अपने हम-उम्र दोस्तों के साथ घंटों लूडो खेल रहा था |

बचपन में बच्चे अपने माँ-बाप से क़रीब और दादा-दादी से बेहद क़रीब होते हैं | लेकिन बड़े होने के साथ धीरे-धीरे वो माँ-बाप से दूर और दादा-दादी से बहुत दूर होते चले जाते हैं | वो नए दोस्तों, फिल्मों और गैजेट्स में अपनी अलग दुनिया बसाने लगते हैं, जबकि दादा-दादी अब भी उन्हीं में अपनी वही पुरानी दुनिया तलाश रहे होते हैं | उनके लिए बच्चे हमेशा वही बच्चे रह जाते हैं जो उनके चम्पक-नंदन लाने पर घंटे भर के भीतर उसका एक-एक पन्ना चाट जाते थे | उन्हें एहसास ही नहीं होता कि कब उनके लाये चम्पक-नंदन बिना पढ़े ही कबाड़ी के पास पहुंचने लगते हैं ! हर दादा पोते का रिश्ता चम्पक लाल और टप्पू की तरह नहीं रह पाता |

विनायक बाबू इसी सब सोच में थे कि अभिजीत की एक आवाज़ ने उन्हें यादों के समंदर में डूबने से बचाया |

"बाबा ?" अभिजीत ने कमरे के दरवाजे के पास से आवाज़ दी |

"हाँ ? आ जाओ अंदर |" विनायक बाबू ने बिस्तर पर से उठते हुए कहा |

अभिजीत ने अंदर आते ही विनायक बाबू का वही 8 साल पहले लाया हुआ पुराना लूडो उनके सामने रख दिया | लूडो इतना बड़ा कि उसमे 4 मोबाइल स्क्रीन्स समा जायें | सामने कवर पर एक पेड़ से लटकते हुए ४ बंदरों का कार्टून बना था, और ऊपर लिखा था 'मंकी लूडो' | गाँव घरों में मिलने वाले लूडो और माचिस की डिब्बियों पर लिखे बे सिर-पैर के नामों का कोई तुक नहीं होता |

"ये अभी तक है तुम्हारे पास ?" बरसों पुराना अपना लाया तोहफा पोते की हाथ में अचानक देख विनायक बाबू ने आश्चर्य-चकित होते हुए पूछा |

"माँ ने संभाल कर रखा हुआ था | आजतक एक बार भी खेला नहीं इसपर | डिब्बे में गोटियां और डाइस सब वैसे ही पड़े हुए हैं |" अभिजीत ने कहा |

"क्या कहते हो फिर ? आज शुभारम्भ कर दें इसका आज ?"

"अगर आप तैयार हैं तो मैं भी तैयार हूँ |"

"सोच लो | मैं तो बेईमानी करूँगा |"

"बिना बेईमानी का लूडो भी कोई लूडो है !" अभिजीत ने हँसते हुए कहा |

जंग शुरू होने वाली थी | योद्धा गोटियां लड़ने को तैयार थीं | सेनापति दादा-पोता भी मुस्तैद थे | विनायक बाबू ने पहली चाल में ही 6 उलट दिया | इतने सालों बाद आज भी वो पहली बाजी में 6 लाने का हुनर नहीं भूले थे | लूडो बोर्ड के ऊपर एक कोने में विनायक बाबू के अक्षरों में लिखा था: 'बेटे अभिजीत को सप्रेम भेंट- विनायक" |