गणित के सुपरहीरोज
दरवाजा बंद होते ही ब्लैकबोर्ड ने राहत की सांस ली। मैथ्स की टीचर चली गई थीं। वह जब भी क्लास में आती थीं, मैथ्स का हौव्वा खड़ा कर देती थीं। सवाल पूछते ही सारे बच्चों का दिमाग गिनगिनाने लगता था और क्लास का इंटेलिजेंट से इंटेलिजेंट बच्चा भी उनसे डांट खा जाता था।
तो फिर बेचारे ब्लैक बोर्ड पर लिखे हुए सारे अंक और सिंबल्स कैसे कुछ बोलते। जहां लिख दिया, वहीं खड़े के खड़े रह जाते डर के मारे। कई बार तो गुणा और भाग जैसे सिंबल्स डांट सुनते-सुनते सो भी गए। बगल में बैठे ‘बराबर’ के सिंबल ने जब उनके खर्राटे सुने, तो उन्हें झिंझोड़ कर जगाया था। खैर, अब तो दरवाजा बंद हो गया था। बच्चे भी खुश और सारे अंक और सिंबल्स भी खुश। हल्ला-गुल्ला पूरे क्लास में ही नहीं, ब्लैकबोर्ड पर लिखी अंकों की दुनिया में भी मच गया था कि अचानक स्कूल के बाहर किसी धमाके की आवाज सुनाई दी। बच्चे चिल्ला रहे थे कि स्कूल में आतंकवादी घुस आए हैं। वे बम फेंक रहे हैं। घटाने ने झांककर देखा, तो चिल्ला उठा, ‘अरे यह बम तो अपना जीरो है।’
‘अरे, यह जीरो नहीं है। यह उसकी शेप जैसा है। जीरो तो हमारा हीरो है।’ एक नंबर जोर से चिल्लाया। अब यह बात तो किसी से छिपी नहीं थी कि जीरो का नंबर एक से भी पहले आता है। उस पर वह अखंड संख्या माना जाता है और एकमात्र ऐसा नैचुरल नंबर भी, जो पॉजिटिव नहीं होता। अगर किसी चीज में कुछ ना हो, तो बस जीरो कह दो, सब समझ आ जाता है। फिर चाहे अकल की बात हो या कि पैसे की। जीरो का मतलब ही हुआ कि वहां गिनने लायक कुछ नहीं है। फिर चाहे वह अकेले गिना जाए या कि किसी आंकड़े के बीच में आए। टीचर भी क्लास में सबको ज्यादा से ज्यादा जीरो बांटती रहती थीं। जीरो की खासियत यही थी कि उसका जादू बच्चों पर बड़ी जल्दी चल जाता था। इसीलिए बुद्धिमान से बुद्धिमान बच्चा भी उसके संपर्क में आते ही अकल से खाली हो जाता।
गुणा-भाग गए जाग
ये सब और धमाके सुनकर गुणा भाग भी जाग गए। गुणा और भाग दरअसल बड़े अच्छे दोस्त हैं। गुणा जैसे ही किसी के साथ खड़ा हो जाता है, वह चीज कई गुना होने लगती। वहीं भाग जब आता, तो किसी भी चीज को बांटना आसान हो जाता। गुणा भाग को अपनी इस शक्ति का गुमान नहीं था। वे तो हर वक्त बस सोते रहते थे। गुणा-भाग ने देखा कि बाहर कुछ बंदूकधारी स्कूल में घुसने की कोशिश कर रहे थे। अब क्या करें? गुणा को चिंता भी कई गुना सताने लगी। वहीं भाग वहां से भागने के मौके ढूंढने लगा। दोनों ने जोड़-घटाने की ओर देखा।
जोड़-घटाने ने बनाया प्लान
जोड़-घटाने काफी चुस्त-दुरुस्त रहते थे। उनके दादाजी थे मि. हिसाब। लोगों को अकसर उनकी जरूरत पड़ती ही रहती थी। कभी घर में सामान घट जाता, तो कभी सारे सामान में एक और जुड़ जाता। बच्चों की सेहत कभी घट जाती, तो कभी लंबाई बढ़ जाती। उनका काम लगातार चलता रहता था। जोड़ ने घटाने को ओर देखा और कहा कि बच्चों को बाहर निकालना होगा। इसके लिए आतंकवादियों को रोकना होगा। लेकिन उन्हें रोकेगा कौन?
आंटी बीजगणित की एंट्री
बोर्ड के कोने में बड़े ब्रैकेट की आड़ में बैठी बीजगणित आंटी ने रेखागणित का हाथ पकड़ा और उतर आईं मैदान में। गोल-मटोल आंटी के साथ बहुत सारे अक्षर भी थे। सब अपनी जगह जोश से उछल रहे थे। बीजगणित आंटी जोश में चिल्लाईं, ‘भाइयों, वैसे तो हमें आज तक माइनस और माइनस का प्लस करना ही सिखाया गया है, लेकिन आज हमने आतंकवादियों के प्लस और प्लस को माइनस में ना बदल दिया, तो हमारा नाम भी बीजगणित नहीं।’ वहीं खड़ी अंकगणित ने भिन्न और प्रतिशत के सिंबल्स से सीधे डंडे निकाल कर हथियार की तरह उठा लिए।
ज्योमेट्री ने किया कमाल
उधर ये सब भाषणबाजी चल रही थी कि आतंकवादी स्कूल के गलियारे तक पहुंच गए थे। अब ज्योमेट्री आंटी यानी कि रेखागणित ने मोर्चा संभाला। उन्होंने गुणा-भाग, जोड़-घटाने को मदद लाने के लिए कहा और यह भी कि तब तक वह आतंकवादियों को रोके हुए हैं। उन्होंने गलियारे के मुख्य दरवाजे पर फटाक से एक विशाल सर्कल बना दिया। आतंकवादियों ने दरवाजा तोड़कर कदम सर्कल में ही रखे। वे दंग रह गए। मन में सोचा, ‘हम तो सोच रहे थे कि यहां लंबा गलियारा मिलेगा। ये कौन सी जगह आ गए?’ अब वे उस सर्कल से बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगे। लेकिन बार-बार जहां से चलें, वहीं पहुंच जाते थे। सर्कल होता ही ऐसा है। उसकी दीवार तोड़कर जैसे ही बाहर आए, रेखागणित आंटी ने एक बड़ा सा त्रिकोण पिरामिड खड़ा कर दिया। उसकी सीधी ढाल पर चढ़ना बड़ा मुश्किल था। लेकिन आतंकवादी उस पर भी चले आ रहे थे, तो उन्हें षट्कोण में फंसा दिया। जब वे उसमें भी नहीं रुके, तो उन्हें खूब सारी आड़ी-तिरछी रेखाओं से घेर दिया। अब वे उसमें रास्ता ढूंढ रहे थे।
जोड़ ने जमकर तोड़ा
आतंकवादी अब उन रेखाओं से बाहर निकलने लगे थे। ऐसे में सबसे पहले तो माइनस उनके सामने कूद पड़ा। वह जिस भी आतंकवादी के सामने पड़ता, उसके पास से कोई न कोई हथियार माइनस होने लगा। उनके पावर में भी कमी आने लगी। जोड़ उन सबके पीछे पहुंच गया और आंखें बंद करके अपनी जोड़ने की शक्ति को याद किया। बस देखते ही देखते सारे आतंकवादियों को एक जगह लाकर जमा कर दिया। सारे आतंकवादी जुड़े हुए थे। वे छूटने को छटपटा रहे थे, लेकिन अंकगणित आंटी ने अपने साथ लाए डंडे दोनों को पकड़ा दिए। फिर क्या था, घटाना और जोड़ ने आतंकवादियों को जमकर तोड़ा।
भाग ने किया बंटाधार
पिटाई के दौरान ही न जाने कहां से भाग दहशतगर्दों के कब्जे में आ गया। फिर क्या था, सारे आतंकवादियों ने जोड़ की शक्ति का जाल तोड़ दिया और विभाजित हो गए। लेकिन भाग का एक फायदा यह हुआ कि उनमें एकता न रही, वे अलग-अलग सोचने लगे। कोई सोच रहा था कि किस मुसीबत में फंस गए, तो कोई सोच रहा था कि वह बच्चों को मारकर गलत कर रहा है। उनकी एकता की शक्ति को भाग ने अलग-अलग बांटकर छोटा कर दिया था। उधर फिर गड़बड़ हो गई। एक आतंकवादी के कब्जे में जीरो ना जाने कहां से आ गया। अब जीरो का साथ मिलते ही नौ आतंकवादी नब्बे में बदल गए। यह सब देखकर तीनों आटिंयों ने तो अपना माथा ही पीट लिया। जोड़-घटाने भागे और जीरो को छुड़ाया और अपनी तरफ ले आए। फिर क्या आतंवादियों की बुद्धि होने लगी जीरो।
गुणा लाया टेबल की सीढ़ी
अब जल्दी से गुणा भागा क्लास के अंदर। उसने एक से लेकर नौ तक के टेबल्स दीवार पर फटाफट लिखे। वह पीछे हटा, तो वे सारे पहाड़े पिरामिड की सीढ़ी जैसे बन गए। गुणा ने फटाफट उन्हें क्लास के रोशनदानों के नीचे लगाया और बच्चों को उन पर चढ़ाकर बाहर सुरक्षित निकाल दिया।
हमको लगे प्यारी मैथ्स
उधर आर्मी पहुंच चुकी थी। गुणा का साथ पाकर सैनिक एक से दो, दो से चार और चार से आठ होते चले गए। फिर आतंकवादी कहां बचने वाले थे। सब पकड़े गए। सैनिक स्कूल से बाहर आए, तो किसी के कंधे पर एक बैठा, तो किसी के कंधे पर दो, किसी की पॉकेट से आठ झांक रहा था, तो किसी की बेल्ट से लटका था जीरो। सब बच्चों को सही सलामत देखने बाहर आए थे। बच्चे ताली बजाने लगे। सबने सोचा कि ये तालियां आर्मी के लिए हैं। लेकिन बच्चे तो अपने मैथ्स क्लास के दोस्तों के बारे में सोच रहे थे। बच्चे दूसरे दिन मैथ्स क्लास में आने को बेताब थे। हर बच्चा मैथ्स के उस ग्रुप बहादुर ग्रुप का दोस्त होना चाह रहा था।