kanta in Hindi Moral Stories by मालिनी गौतम books and stories PDF | कांता

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कांता

कांता

लगातार दो लेक्चर लेने के बाद प्राजक्ता ने अपने ऑफिस की कुर्सी पर बैठते ही पानी की बॉटल मुँह से लगाई और एक ही साँस में गट-गट आधे से अधिक पानी पी गई । आँखें बंद करके उसने वहीं बैठे-बैठे हाथ-पैर कुछ फैलाये और एक गहरी साँस ली । कई जरूरी कामों की एक लिस्ट उसकी बंद आँखों के सामने से रील की तरह निकल गई । उसने फ़ट से आँखें खोली और सोचा......स्टाफ़ रूम में चाय बन गई होगी, पहले चाय पीकर आती हूँ, फिर एक-एक करके लिस्ट के काम निपटाती हूँ । लंबी-सी लॉबी के एक सिरे पर स्टाफ रूम था और दूसरे सिरे पर सी डब्ल्यू डी सी (C W D C) की ऑफिस थी । प्राजक्ता सी डब्ल्यू डी सी की कॉर्डिनेटर थी और इसलिए ही उसे कॉलेज में अलग से यह ऑफिस दी गई थी । उसे इस बात का बेहद सुकून था कि, इस ऑफिस के कारण वह चैन से अपना काम कर पाती थी । लेक्चर लेने के बाद बचे हुए समय में यहाँ बैठकर बहुत कुछ लिखना-पढ़ना संभव होता था । अन्यथा स्टाफ रूम में तो हर वक्त किसी न किसी बात को लेकर चर्चा, ऊँची आवाज़ में बातचीत, किसी के मोबाइल पर गाने, किसी की फोन पर बातचीत, विद्यार्थियों का आना-जाना, सबके खुले हुए नाश्ते के डिब्बे, हा हा- हू हू......यानी कुल मिलाकर टाइम पास चलता रहता था ।
चाय पीने के बाद प्राजक्ता वापिस अपने चैम्बर में आई और दो-चार दिन पहले संपन्न हुए सी डब्ल्यू डी सी के ओरिएंटेशन प्रोग्राम के फोटो, रिपोर्ट वगैरह फाइल करने लगी । अभी कुछ दिन पहले ही तो उसने महाविद्यालय की सभी लड़कियों, ख़ासकर प्रथम वर्ष की लड़कियों की, हॉल में एक बैठक बुलाई थी । उन्हें सी डब्ल्यू डी सी के बारे में बताया और उन्हें समझाया कि न्यायालय के आदेश से महाविद्यालय में इस कॉलेजिएट वूमन डेवलोपमेंट सेल की स्थापना की गई है और इसका उद्देश्य कॉलेज में तुम सब बच्चियों के लिए एक सुरक्षित और निडर वातावरण निर्मित करना है । अगर कैम्पस मे किसी भी तरह की छेड़खानी या ज्यादती तुम्हारे साथ हो, तो तुम तुरंत मेरे ऑफिस में आकर मुझसे बात करना । कॉलेज के प्रिंसिपल सर तो सी डब्ल्यू डी सी की ओरिएंटेशन मीटिंग को लेकर इतने उत्साह से भरे हुए थे कि अपने संक्षिप्त उद्बोधन में बच्चियों को कॉलेज कैम्पस के बाहर भी कोई असुविधा होने पर मदद और संरक्षण का आश्वासन दे बैठे । मीटिंग की बात याद करते-करते प्राजक्ता के होठों पर मुस्कराहट तैर गई । अच्छा लगता था उसे इस छोटे- से कस्बे के महाविद्यालय में, लड़कियों को उनके हक और अधिकारों के प्रति सचेत और जागृत करना । अपनी मासूम, भोली और नादान-सी दिखाई देने वाली विद्यार्थिनीयों को वह हर बात कई-कई बार समझाती और तब तक समझाती रहती जब तक लड़कियाँ सिर न हिलाने लगें ।
अचानक प्राजक्ता को लगा, कि ऑफिस के बाहर दरवाज़े पर कोई झाँका और फिर दीवार की ओट में हो गया । वह कुछ देर एकटक उस दिशा में देखती रही, लेकिन वहाँ कोई नहीं था । उसने सिर झटक कर मीटिंग के कागज़ फाइल करने शुरु किए और तभी उसे फिर से किसी की उपस्थिति का अहसास हुआ । प्राजक्ता ने ज़ोर से आवाज़ लगाई-
“कौन है वहाँ?....अंदर आओ।“
मध्यम कद-काठी की, एक साँवली-सी लड़की, डरी-सहमी-सी दरवाज़े पर ठिठक गयी ।
“वहाँ क्यों खड़ी हो? क्यों कब से झाँक-झाँक कर देख रही हो ? कोई काम है क्या ? “
लड़की चुपचाप खड़ी रही ।
“अरे बोलती क्यों नहीं ? कोई काम है क्या? काम हो तो अंदर आकर बात करो।“ प्राजक्ता ज़ोर से चिल्लाई ।
लड़की धीरे-धीरे कदमों से रूम के अंदर आकर प्राजक्ता की टेबल के पास खड़ी हो गई ।
प्राजक्ता ने नज़र ऊँची करते हुए पूछा -
“हूँ...क्या नाम है?”
लड़की चुप रही ।
“अरे पहले बताओ क्या नाम है तुम्हारा? कौन से सेमिस्टर में पढ़ती हो? “
लड़की होठों ही होठों में बोली- “कांता...सेम एक”
“ठीक...नया एडमिशन है । हाँ तो बोलो ..क्या काम है ?“
“मैडम...वो... आपसे एक बात कहनी थी ।“
“ हाँ तो बोलो न भाई...कब से तो पूछ रही हूँ ...कि क्या काम है? “
“मैडम...मेरी वो...बारहवीं की मार्कशीट नयी निकलवानी है...तो वो निकल जायेगी क्या?”
“क्यों....क्या हुआ तुम्हारी मार्कशीट को ? ओरिजनल कहाँ गई?
“वो मैडम ....वो...”
“ क्या वो..वो....? अरे बोलती क्यों नहीं? कहाँ गयी मार्कशीट? ..खो गई? ..फ़ट गई? सँभाल के नहीं रखी थी ?” हे भगवान पता नहीं क्या होगा तुम आजकल के लड़के-लड़कियों का....किसी चीज़ की कोई कीमत ही नहीं है तुम लोगों के लिए ... इतना बोलते-बोलते प्राजक्ता ने अपनी आँखें उस लड़की के चेहरे पर टिका दीं ।
साँवले और भोले चेहरे वाली वह लड़की ऐसे चुपचाप खड़ी थी कि प्राजक्ता को लगा कि अगर मक्खी भी इसके चेहरे पर आकर बैठ गई तो यह उसे उड़ा नहीं सकेगी ।
“अरे कुछ बोलती क्यों नहीं? और बारहवीं की मार्कशीट क्या मैं बनाती हूँ? जाओ, अपनी स्कूल में जाओ.....और वहीं पूछ लेना कि बनती है या नहीं । मुझे नहीं पता इस बारे में । जाओ चलो...काम करने दो... “
“मैडम...वो आपने पिछले हफ़्ते मीटिंग में कहा था न कि हमे कोई परेशानी होगी तो आप मदद करेंगी।“
प्राजक्ता चश्मे के ऊपर से लड़की को घूरते हुए बोली-
“हाँ कहा था! तो क्या मार्कशीट नयी निकलवाने में मदद करूँ? हे भगवान ! क्या लड़की है !“
“नहीं मैडम....वो मेरी मार्कशीट एक लड़के ने ले ली है ....अब वापिस नहीं दे रहा । रुँआसी कांता बड़ी मुश्किल से अटकते-अटकते बोली ।
प्राजक्ता चौंक गई....हैं ! एक लड़के ने ले ली ? किस लड़के ने ले ली ? क्यों ले ली ? क्यों दी तुमने ? नाम क्या है लड़के का ? अपनी कॉलेज में पढ़ता है क्या ?”
प्रश्नों की इस बाढ़ से हकबकाई कांता पागलों की तरह प्राजक्ता को देखती रही ।
प्राजक्ता को दया आ गई उस लड़की की इस निरीह अवस्था पर । वो प्यार से बोली -
“देखो बेटा, अगर तुम मुझे पूरी बात नहीं बताओगी तो मैं कैसे मदद करूँगी तुम्हारी? कौन है वह लड़का?”
कांता ने धीरे से कहा- “म्हारा बनेवी”( मेरा बहनोई)
अब प्राजक्ता और भी हैरान थी ...”हैं! तेरे जीजा ने क्यों ले ली तेरी मार्कशीट?”
कांता सुबक-सुबक कर रोने लगी-
”मैडम...यह कहकर माँगी थी कि तेरे लिए किसी नौकरी का फॉर्म भरना है...और अब वापिस ही नहीं दे रहा है ।”
प्राजक्ता ने पूछा...”क्यों? क्यों नहीं दे रहा है वापिस?”
“मैडम मेरे को धमकी देता है कि आगे नहीं पढ़ने दूँगा तुझे”
प्राजक्ता को गुस्सा आने लगा..
”अरे! ये क्या बेहूदगी है ! और वह होता कौन है तुझे आगे पढ़ने से रोकने वाला और मार्कशीट नहीं देने वाला । रो क्यों रही है? बहादुर बन......और तू इतना परेशान क्यों हो रही है...भाड़ में जाने दे .......हम तेरी नई मार्कशीट निकलवा लेंग़े ।डालने दे अचार उस मार्कशीट का तेरे बहनोई को ।“

वैसे एक बात बता कांता ...तेरे घर में तेरे जीजाजी की चलती है क्या? तेरे लिए नौकरी वो क्यों ढूँढ रहा है?
कांता बोली- “नहीं मैडम वो बात नहीं। वो मुझे धमकी देता है कि वो मेरी बहन को सब बता देगा ।
प्राजक्ता की आँखें चौड़ी हो गईं....क्या बता देगा?
कांता चुप खड़ी रही......
प्राजक्ता का माथा ठनका- “हे भगवान! कुछ ऐसा-वैसा तो नहीं चल रहा इन जीजा-साली के बीच।
“लड़की ठीक से बता, बात क्या है? कोई ऐसी-वैसी हरकत करता है वो तेरे साथ या सिर्फ़ धमकाता है । छेड़ता है, परेशान करता है?”
कांता रोते-रोते बोली-
“मैडम बहला-फ़ुसला कर मीठी-मीठी बातें करता था पहले......फिर धीरे-धीरे जबरदस्ती करने लगा । अब जहाँ भी मौका मिले ..घर में...बाहर....खेत में ...छोड़ता नहीं है । मेरी मार्कशीट रख ली और कहता है कि अगर “ना” कहेगी तो आगे पढ़ने नहीं दूँगा...तेरी बहन को बता दूँगा हमारे बारे में ।“
ओ त्तेरी!! प्राजक्ता का मुँह खुला का खुला रह गया । गुजरात के इस सुदूर आदिवासी कस्बे में आने के बाद उसने कॉलेज में और कॉलेज के बाहर भी आदिवासी लड़के-लड़कियों को उन्मुक्त रूप से एक-दूसरे के साथ बात करते देखा था । अपनी साथी अध्यापिकाओं और अड़ौस-पड़ौस में कई बार औरतों के मुँह से सुना भी था...
“हम लोग इन्हें आदिवासी समझते हैं ......पर ये लोग तो हम लोगों से बहुत फॉरवर्ड होते हैं कई मामलो में ...”
वैसे अपनी इस नयी-नयी नौकरी में यहाँ आकर प्राजक्ता ने जितना जाना-समझा वह यही था कि स्त्री-पुरुष का साथ होना इनके समाज में कोई टैबू नहीं है और तथाकथित सभ्य समाज में जिन संबंधों को लेकर हाहाकार मच जाता है, वह भी इनके लिए सामान्य हैं ।
प्राजक्ता ने कांता से पूछा-
“कांता, बुरा मत मानना बेटा...पर तुम लोगों में तो यह सब बहुत सामान्य है न...मतलब.....देखो बेटा गलत मत समझना मुझे....लेकिन शादी के पहले भी ये रिश्ते तुम्हारे यहाँ तो......”
कांता बोली- “हाँ मैडम...हमारे यहाँ चलता है यह सब....आपसी सहमति से। लेकिन मैडम मुझे नहीं पसंद है यह सब । मैडम आप ही तो कहती हैं न कि हम अपनी देह के मालिक हैं । मैडम.....मैं लिखना-पढ़ना चाहती हूँ । आगे बढ़ना चाहती हूँ...अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ...अपने निर्णय खुद लेना चाहती हूँ। आप प्लीज़ मुझे इस झंझट में से निकाल लीजिए ।
प्राजक्ता समझ गई थी कि उसके सामने कांता के रूप में वह लड़की खड़ी है जो अपने अस्तित्व को लेकर सजग है, सभान है । जो एक बनी-बनाई लीक पर नहीं बल्कि अपने खुद के बनाये रास्ते पर चलना चाहती है । उसके समाज ने उसे जो आजादी दी है उसका उपयोग वह अपनी प्रगति और उन्नति के लिए करना चाहती है । वह अपनी देह पर अपने हक़ को समझती है और अपनी मर्जी के विरुद्ध उस पर किसी का हक स्वीकार नहीं कर सकेगी ।

प्राजक्ता ने पूछा- “ठीक है। तुमने अपने माँ-बाप को बताया इस बारे में ?
कांता नीची नज़रें किए बोली-
“हाँ इशारा तो किया था...”
’फिर?”
“उन्होनें बहुत ध्यान नहीं दिया इस बात पर”
“अरे क्यों ?”
मैडम, माँ ने कहा – “ चाले हवे बद्धू.... मूँगी मर.....लगन थई जशे तारु थोड़ाकज समयमां .....हवे पेलाने ना पाड़ीश तो तारी बेनने हेरान करशे..” ( सब चलता है.....चुप रह.....कुछ समय में ही तेरी शादी हो जायेगी....अगर उसको ना कहेगी तो वो तेरी बहन को परेशान करेगा )

मैडम मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूँ । माँ-बाप ध्यान नहीं दे रहे हैं । उनके लिए यह सामान्य है । बहन का घर बचाना ज्यादा जरूरी है उनके लिए । मैं अपनी बहन को बताऊँगी, तो झग़ड़ा होगा उन दोनों के बीच में । मैं भी यह नहीं चाहती, आखिर बड़ी बहन है मेरी । लेकिन मैडम मैं इस दलदल में नहीं फ़ँसना चाहती। मैडम उस दिन आपने कहा था न कि ऐसी कोई परेशानी हो तो हम आपको बताएँ....तो मुझे लगा कि आप ही मुझे इस फंदे में से बाहर निकाल सकती हैं “
“आप ही कुछ करो मैडम जी मेरे लिए- कांता फूट फूटकर रोने लगी।
प्राजक्ता ने उसे चुप करवाया और बोली- “रो मत, देखो मुझे ज़रा प्रिंसिपल सर से बात करने दो । यह तुम्हारे घर का मैटर है । हम तो कॉलेज कैम्पस में होने वाली घटनाओं के लिए ही जवाबदार हैं । “
“नहीं मैडम ...प्लीज़...प्रिंसिपल सर ने कहा था उस दिन कि कॉलेज के बाहर की भी कोई समस्या हो तो बताना “
“ अच्छ-अच्छा ठीक है, अभी तुम घर जाओ । हो सके तो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ चली जाओ या यहीं हॉस्टेल में अपनी किसी सहेली के पास रुक जाओ, ताकि तुम्हारा जीजा तुम्हें परेशान न कर सके । मैं देखती हूँ कि क्या किया जा सकत है ।

प्राजक्ता ने बड़े उत्साह से सी डब्ल्यू डी सी का कार्यभार सँभाला था, यह सोचकर कि लड़कियों के लिए एक स्वस्थ और निडर वातावरण निर्मित हो सके कॉलेज में । लेकिन पहली ही मीटिंग के बाद पहला ही केस इतना जटिल और पेचीदा, गले पड़ेगा यह नहीं सोचा था उसने ।
प्राजक्ता ने अपनी एक सीनियर कुलीग को सारी बाते बताईं । वे भी एक बार बोल उठीं “ अरे उसके घर का मैटर है, तुम क्यों अपने माथे ले रही हो”
लेकिन प्राजक्ता का मन नहीं माना। वह बोली – “मैडम एक बार सर से बात कर लेते हैं न ! मीटिंग़ में हमारी इतनी बड़ी-बड़ी बातें और आश्वासन सुनकर ही तो आखिर हमारे पास आई है यह लड़की ।”
प्राजक्ता और सीनियर प्रोफेसर सोनाली महालै दोनों ने प्रिंसिपल को पूरी बात बताई । वे भी पहले तो सुनते ही सकते में आ गये । फिर बोले, लेकिन मैडम यह तो उनके घर का मैटर है ।
प्राजक्ता ने कहा – “हाँ सर, लेकिन उस दिन आपने ही तो उत्साह में आकर कहा था कि तुम सब मेरी बच्चियाँ हो । यहाँ क्या....अगर कॉलेज के बाहर भी कोई तुम्हें परेशान करे तो बताना । हम तुम्हारी मदद करेंगे...तुम्हारी समस्या का यथासंभव निवारण करेंगे । “
प्रिंसिपल सर का चेहरा उतर गया । वे बोले –“ ठीक है, उससे कहिए कि अपने माँ-बाप को कॉलेज में लेकर आये । और आप सबसे पहले उससे एक लिखित अर्जी ले लीजिए इस संदर्भ में ।
दूसरे दिन प्राजक्ता ने प्रिंसिपल के चैम्बर में ही कांता को बुलाकर कहा - “ कांता एक बार फिर अच्छे से सोच लो । हमने तो अपना मन बना लिया है तुम्हारे लिए लड़ने का । अब तुम पीछे तो नहीं हटोगी न ? लिखित अर्जी देने को तैयार हो? कोई भी एक्शन लेने से पहले तुम्हारी लिखित अर्जी आवश्यक है । सी डब्ल्यू डी सी के नियम बहुत सख्त हैं । न्यायालय ने इसे बहुत अधिकार दिए हैं । दोषी पाए गए व्यक्ति को सीधे बिन-जमानती कैद में डाला जा सकता है और एक लाख रुपये तक का जुर्माना भी होगा । तुम्हारे अपने ही लोग हैं सब । हम पहले तो उन्हें समझायेंगे ...लेकिन अगर फिर भी वे न समझे तो उन्हें सजा भुगतते देख सकोगी ? कांता ने सिर हिलाकर सहमति दी और विगतवार एक अर्जी प्रिंसिपल और सी डब्ल्यू डी सी के लिए लिख कर दे दी ।
अर्जी पढ़ते-पढ़ते प्राजक्ता ने कहा- “अब तुम कल अपने माँ-बाप को लेकर आना “
“लेकिन मैडम मेरे माँ-बापू तो अनपढ़ हैं । ख़ेत-मज़दूरी से ही फुर्सत नहीं मिलती उन्हें । मैं कितना भी कहूँ, लेकिन वे मेरे साथ कॉलेज नहीं आयेंगे ।“
प्राजक्ता बोली- “ ठीक है, तो कौन है तुम्हारे परिवार में ऐसा व्यक्ति, जो पढ़ा-लिखा है और कॉलेज आ सकता है ? जिसे यह सब बातें बताई जा सकें । “
“मैडम मेरे चाचा हैं। इसी कॉलेज में पढ़ते थे । नौकरी भी करते हैं ।“
प्रिंसिपल के चेहरे पर चमक आ गई -
“अरे वाह! अपनी ही कॉलेज का विद्यार्थी है । तब तो बात आसानी से समझाई जा सकेगी और मैटर अधिक उलझेगा भी नहीं ।“
प्राजक्ता बोली- “ठीक है, तुम कल अपने चाचा को लेकर आओ । बोलना, प्रिंसिपल सर ने बुलाया है, कुछ जरूरी काम है उन्हें । बस इतना ही बोलना ।
दूसरे दिन ग्यारह बजे के आस-पास प्रिंसिपल सर के सामने कांता का चाचा खड़ा हुआ था ।
“नमस्कार सर ! नमस्कार मैडम ! क्या हुआ सर? मैं आपका ही विद्यार्थी हूँ महेश । आठ साल पहले यहीं पढ़ता था । कैसे याद किया सर आज मुझे ? “

प्राजक्ता बोली – “ महेश भाई...बात तो हम कांता के माँ-बाप से करना चाहते थे, लेकिन वे इस बात को समझते नहीं इसलिए आपको बुलाया ।
कांता ने हमे एक लिखित अर्जी दी है, पहले आप इसे पढ़ लीजिए ताकि पूरी बात आपकी समझ में आ सके । “

अर्जी पढ़ते-पढ़ते कांता के चाचा के चेहरे का रंग बदलता रहा, भाव आते-जाते रहे....कभी हल्के..कभी गहरे...कभी माथे पर रेखाएँ ।
”मैडम ये अर्जी कांता ने लिखी है? “
“हाँ भाई , उसी ने लिखी है । और जब लिख ही दी है तो हम मजबूर हैं कार्यवाही करने के लिए”
“मैडम...लेकिन मुझे तो इस बारे में कुछ भी नहीं पता । इस लड़की ने मुझे कभी बताया ही नहीं “
प्राजक्ता बोली – “लेकिन आपके भाई-भाभी को तो बताया है न इसने । उन्होंने तो इसे ही चुप रहने को कहा । आपको बताती तो आप कुछ करते क्या?
“ हाँ मैडम क्यों नहीं । गलत है यह तो “
“तो ठीक है। अगर आप मानते हैं कि यह गलत हो रहा है तो मदद कीजिए अपनी भतीजी की । अपने दामाद से मिलिये और उसे समझाइये । उसे बताइए इस अर्जी के बारे में, और एक बात मैं आपको स्पष्ट बता दूँ कि सी डब्ल्यू डी सी नामक इस संस्था को न्यायालय ने जो सत्ता दी है, वह कुछ कम नहीं है । सिर्फ़ इस अर्जी की बिला पर उसे बिन जमानती जेल हो सकती है और कम से कम एक लाख रुपए का ज़ुर्माना भी ।“
“मैडम ये कौन सी संस्था है । हम यहाँ पढ़ते थे तब तो नहीं थी ।“
“ हाँ तब नहीं थी । राजस्थान में भँवरी देवी कांड होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हर कॉलेज में इस सेल का गठन किया गया है ताकि उस जगह काम करने वाली लड़कियों और स्त्रियों को एक सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जा सके । और मेरा यह फर्ज़ बनता है कि मैं अपनी बच्चियों के हक की लड़ाई लड़ूँ ।
“महेश भाई...एक या दो दिन से अधिक का वक्त नहीं है आपके पास। कांता बहुत मानसिक तनाव की स्थिति से गुज़र रही है । हम उसे यहीं हॉस्टेल में रखेंगे दो-तीन दिन । आप अपने दामाद से बात कीजिए और उसे यहाँ लेकर आइये । अन्यथा हमें इस अर्जी के आधार पर आगे की कार्यवाही शुरु करनी पड़ेगी । “
महेश भाई दूसरे ही दिन कांता के जीजाजी को अपने साथ लेकर आए ।
प्राजक्ता का मन तो हुआ कि सबके सामने ही दो चाँटे रसीद कर दे उसके गाल पर। लेकिन खुद को ज़ब्त किए बैठी रही ।
कांता के जीजाजी ने प्रिंसिपल से कहा-
“ बहुत बड़ी गलती हो गई साहब । अब कभी उसे परेशान नहीं करूँगा “
प्राजक्ता गुस्से में बोली – “लिखकर दो यही बात कि अब तुम आँख उठाकर भी नहीं देखोगे उसकी तरफ़ , और लाओ वापिस करो उसकी मार्कशीट । ख़बरदार जो अब कभी उसके आसपास भी फ़टके या उसे परेशान किया तो महेश भाई बता ही चुके होंगे तुम्हें, कि तुम्हारी क्या दशा होगी ।

कांता का बहनोई माफ़ीनामा लिखकर ऑफिस से बाहर निकल गया ।

प्राजक्ता ने महेश से कहा – “भाई आप पढ़े-लिखे हैं, नौकरी करते हैं । आपके समाज की बच्चियाँ भी अब पढ़ रही हैं, और वे अगर अपने सम्मान, अपने अस्तित्व और अपनी अस्मिता को लेकर सजग हैं तो सदियों से चले आ रहे सामाजिक रिवाज़ों के नाम पर उन्हें दबाना ठीक बात नहीं । उन्हें मुक्त होकर खिलने दीजिए, पल्ल्वित होने दीजिए, अपनी खुशबू बिखेरने दीजिए.....अपने रास्ते स्वयं चुनने दीजिए ।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान कांता प्राजक्ता के ऑफिस में बैठी रही । प्राजक्ता ने जब अपने ऑफिस में आकर कांता के सिर पर धीरे से चपत लगाते हुए कहा-
“ ले लड़की तेरी मार्कशीट...और अब किसी पर भरोसा करके दे मत देना“, तो कांता हर्ष-मिश्रित आँसुओं के साथ प्राजक्ता के पैरों में झुक गई । प्राजक्ता ने उसे उठाकर गले से लगा लिया
“खूब पढो-लिखो बेटा...खूब ऊँची उडान भरो...सारा आकाश तुम्हारा है ।”
कांता के जाने के बाद प्राजक्ता ने कुर्सी पर टिक कर पैर फैलाए....हाथ खींचे और आँखें बंद करके गहरी साँस ली । फिर आँखें खोलकर भुनभुनाई -
” ये प्रिंसिपल सर भी न.....जरा ज्यादा ही उत्साह में आ जाते हैं ....अगली मीटिंग में उन्हें पहले से ही कह देना होगा कि हम सिर्फ कॉलेज कैम्पस की घटनाओं की ही जिम्मेदारी लेते हैं ....
और इतना बोलते-बोलते वो खुद ही खिलखिलाकर हँस पड़ी....पूरा कमरा उजास से भर उठा ....।


मालिनी गौतम