Deh ki Dahleez par - 19 in Hindi Moral Stories by Kavita Verma books and stories PDF | देह की दहलीज पर - 19

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देह की दहलीज पर - 19

साझा उपन्यास

देह की दहलीज पर

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ

कविता वर्मा

वंदना वाजपेयी

रीता गुप्ता

वंदना गुप्ता

मानसी वर्मा

कथाकड़ी 19

कथाकड़ी 19 अब तक आपने पढ़ा :- मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? वह फैंटसी में किसी के साथ अपने मन की बैचेनी दूर करने की कोशिश करती है। उस फैंटसी में वह सुयोग को पाती है। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है। एक अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है एक शाम उसकी मुलाकात शालिनी से होती है जो सामने वाले फ्लैट में रहती है। उनकी मुलाकातें बढ़ती जाती हैं और उन्हें एक दूसरे का साथ अच्छा लगता है। वरुण भी शालिनी के साथ बातचीत करता है। वहीं नीलम मीनोपॉज के लक्षणों से परेशान है। नीलम के ऑपरेशन की खबर से राकेश चिंता में आ जाता है वह अपने जीवन में नीलम की उपस्थिति शिद्दत से महसूस करता है जिसे हॉस्पिटल में कामिनी भी महसूस करती है और मुकुल के साथ खुद के संबंधों पर विचार करती है। अरोरा अंकल के बीमार पढ़ने से कामिनी मुकुल की उसके जीवन में अहमियत पर विचार करती है। अरोरा अंकल सुयोग को जीवन में समझौते का महत्त्व समझाते हैं और सुयोग इस पर विचार करते व्यस्त हो जाता है। शालिनी सुयोग की व्यस्तता समझती है और तरुण और सुयोग के बीच खुद को असमंजस में पाती है।

अब आगे

इंसान जन्म के साथ ही अनेक रिश्तों में बंध जाता है। रिश्तों का यह बंधन कभी खुशी देता है, कभी गम, किन्तु उनके साथ ही लड़ते-झगड़ते, मिलते-बिछुड़ते और हँसते-खिलखिलाते ज़िंदगी का सफर चलता है। सभी रिश्तों का बंधन चांस की बात है, बस पति-पत्नी का रिश्ता ही चॉइस से बनता है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो ज़िंदगी के हर उतार चढ़ाव को आसानी से पार कर लेता है, बशर्ते कि एक दूसरे का हाथ थामे रहे। जितना सरल होता है, उतना ही उलझा हुआ भी, किन्तु सबसे खूबसूरत रिश्ता है ये...!
कामिनी ने रिश्तों के एक नए पहलू को समझा था... राकेश नीलम हो या अरोरा अंकल आंटी दोनों जोड़े एक दूसरे के प्रति कितने समर्पित हैं। नीलम हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर घर आ चुकी थी। राकेश और अरोरा आंटी को तीमारदारी में लगे देख कामिनी को सुकून का अहसास होता। सही मायनों में जीवनसाथी का मतलब यही तो है, कि एक दूसरे की हर परेशानी को समझ कर सहयोग करना, दाम्पत्य जीवन की साझी परेशानियों के इतर भी खुलकर बात करना। कामिनी और मुकुल हमेशा ही पति पत्नी होकर भी अच्छे दोस्त रहे हैं। अब ऐसा क्यों हो रहा है? कामिनी अक्सर सोचती कि छः बाई छः की नितांत अपनी परिधि में दुनिया जहान की सारी समस्याओं का हल मिल जाता है, किन्तु यहाँ उपजी समस्या का हल ढूँढने कहाँ जाएं?

कामिनी कॉलेज में बैठी इन्हीं विचारों में लीन थी। आजकल कैम्पस में भी उसका मन नहीं लगता क्योंकि उसकी सखी नीलम अभी मेडिकल लीव पर है।
"किन विचारों में गुम हो मैडम जी? क्या मैं आपका समय ले सकती हूँ?" जैन मैडम को एक फ़ाइल के साथ अपने केबिन में देख कामिनी को आश्चर्य हुआ। "हाँजी मैडम आइए, कुछ खास नहीं, आप बैठिए और ये फ़ाइल...?"
"इसे देख लो एक बार... यह केस फिर खुल सकता है।" बैठते हुए जैन मैडम ने फ़ाइल उसकी टेबल पर खोलकर रख दी।
"ये तो उस छात्रा की फ़ाइल है, जो अपने बॉय फ्रेंड के साथ कॉलेज कैम्प से चली गई थी। उसके पेरेंट्स ने शिकायत की थी, फिर हमारी कमेटी ने ही जाँच कर प्रकरण निबटाया था।" कामिनी की यादों का एक झरोखा और खुल गया... "हमने दोनों को समझा कर वापिस घर भिजवाया था और बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए मामला अपने स्तर पर ही सुलझा लिया था।"
"हाँ वही, और अब लेटेस्ट अपडेट यह है कि इन दोनों का किस करते हुए एक वीडियो वायरल हुआ है..."
"क्या......? आजकल के बच्चे भी वेस्टर्न कल्चर को अपना कर मॉरल वैल्यूज भूल रहे हैं, सेक्स इनके लिए टैबू नहीं रहा अब, कैंपस में ही कितने जोड़े खुलेआम प्रेम प्रदर्शन करते रहते हैं, मैंने टोका भी था तो मेरी गाड़ी का टायर पंक्चर कर दिया था। हम और आप क्या कर सकते हैं?" कामिनी के चेहरे पर उद्विग्नता के भाव देखकर मैडम ने फ़ाइल बन्द करते हुए कहा.... "ये है हमारी नई पीढ़ी, बेशर्म और वक़्त से आगे चलने वाली.... फ़ाइल पढ़ लेना, मामला बढ़ा तो हमें तैयार रहना होगा।"
"अब सेक्स एजुकेशन कंपल्सरी कर देना चाहिए, आजकल तकनीकी क्रांति से दुनिया मुट्ठी में है, मोबाइल हो या माउस, एक क्लिक पर सब कुछ खुला हुआ, इसीलिए बच्चे भी बिगड़ रहे हैं और..."
"और... बड़े भी... है न?" मैडम ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.. "इनका फंडा है कि भूख लगने पर खाना न मिले तो नाश्ता तो कर लें... हँ..."
"और क्या, हमारे जमाने में प्यार मन की भूख मिटाता था और आज की पीढ़ी के लिए तन की भूख मिटाने का जरिया है..." कहने के साथ ही कामिनी चौंक गई कि मैडम ने तो शादी ही नहीं की, फिर भूख और नाश्ते की बात.... कहीं ये भी...?? दूसरे ही पल उसे खुद का ख्याल आ गया, वह खुद भी तो एक संतुष्ट ज़िंदगी के बाद भी अतृप्ति के जिस दौर से गुजर रही है, क्या वह सही है? शायद यह भी मेनोपॉज की वजह से हो, और मैडम भी तो महिला होने के नाते मेनोपॉज की अवस्था से गुजरी होंगी। मैडम ने शायद कामिनी का मन पढ़ लिया और बोली... "तुम शायद सोच रही हो कि मैंने शादी नहीं की तो सेक्स की बात खुलकर कैसे कर रही हूँ..? मैं भी एक महिला हूँ और तमाम शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों को महसूस करती हूँ। इन्द्रिय निग्रह भी एक तपस्या है। शरीर विज्ञान के अनुसार हमारी सोच शरीर को प्रभावित करती है। सब हार्मोन्स का खेल है। मेरी सोच उस दिशा में जाती ही नहीं, शुरू से अध्यात्म की ओर झुकाव रहा। इसलिए नाश्ते और खाने का ख्याल ही नहीं आया कभी... अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीने की चाहत थी, मुझे देखकर लोगों को तकलीफ होती है तो ये उनकी प्रॉब्लम है, मेरी नहीं, मुझे क्या पता नहीं कि लोग मेरी पीठ पीछे मेरे लिए क्या बोलते हैं?"
तभी नीलम का कॉल आया..."घर होते हुए जाना.."
मैडम की बातों से प्रभावित होते हुए कामिनी ने उनसे विदा ली।

नीलम की स्थिति काफी बेहतर लगी। उसकी बातों में राकेश के प्रति कृतज्ञता, प्यार और परवाह सब कुछ उमड़ता हुआ सा बहता जा रहा था। शब्दों की इस सरिता में नीलम के कुछ दिनों पहले कहे गए शब्द कहीं खो गए थे। कामिनी फिर सोच की दुनिया में पहुँच गई... 'होता है कभी कभी ऐसा भी, अपनों के सामने ही तो मन के उद्गार फूटते हैं, एक फेज आता है और चला जाता है। हम वही रहते हैं और प्यार भी वही रहता है, बस हमें जताना नहीं आता।'
"ओए कहाँ भटक रहा है आपका मन, ह्म्म्म मैं तो बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ, अब महीने के उन दिनों की चिक्कलस से छुटकारा मिल जाएगा।" नीलम खुशी से चहकी...
"और हाँ फिर आप राकेश भाईसाहब के प्यार की बहती गंगा में रोज़ ही हाथ धो लिया करेंगी।"
"चल हट तुझे इसके अलावा कुछ सूझता भी है?"
"शायद.... अच्छा सुन आज कॉलेज में जैन मैडम ने काफी ज्ञान बढ़ा दिया मेरा.... हम लोग कुकिंग सीखकर और प्रैक्टिस के बाद भी स्वादिष्ट गुलाब जामुन नहीं बना पाए और उन्होंने तो बिना सीखे ही चाशनी से सराबोर कर दिया।"
"अच्छा तो इसीलिए आप इतनी मीठी बातें कर रहीं हैं, वैसे क्या ज्ञान पेल दिया उन्होंने आज?"
"शादी का लड्डू खाए बिना ही उसका स्वाद बता दिया..." कामिनी ने हँसते हुए कहा।
"मतलब ...?"
"मतलब ये कि शादी और सेक्स को लेकर उनके विचार सुलझे हुए हैं। लाइफ स्टाइल और हार्मोन्स सेक्स लाइफ के मुख्य संचालक हैं और..... हमारी सोच के मुताबिक ही शरीर में रासायनिक बदलाव होते हैं... ब्लाह ब्लाह ब्लाह..."
"अच्छा और क्या कहा उन्होंने..?"
"और यही कि स्वादिष्ट खाना देखकर भूख बढ़ती है, किन्तु जिनका व्रत सच्चा है, वे कंट्रोल करना जानते हैं और जो मजबूरी में फाके करते हैं, वे येन केन प्रकारेण जो मिले उससे पेट भरते हैं या फिर कुंठित हो जाते हैं।"
"ये सही बात है, दिल, दिमाग और देह तीनों का संतुलन सही होना चाहिए.."
"और तुझे याद है न वह स्टूडेंट्स का जाँच प्रकरण... वह फिर से उछला है और इस बार...." कामिनी ने वह घटना बताते हुए चिन्ता जाहिर की और आगे कहा कि "अब पोर्न साइट्स पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है, वरना हमारे समाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण कोई नहीं रोक सकता।"
"ह्म्म्म सही कहा तूने, इन दिनों राकेश और मेरी सभी पहलुओं पर खुलकर बात हुई है। डॉक्टर ने शारीरिक और मानसिक स्तर पर इस उम्र में होने वाले बदलाव के बारे में विस्तार से समझाया है और सबसे अहम बात जिसके लिए मैंने तुझे फोन कर बुलाया है वह यह है कि जैसे हम महिलाओं में मासिक धर्म की शुरुआत और रजोनिवृत्ति के समय परिवर्तन होते हैं, वैसे ही इन दोनों अवस्थाओं में पुरुष भी मानसिक और शारीरिक यंत्रणा के दौर से गुजरते हैं। हम तो सबकी सहानुभूति पा लेते हैं, किन्तु बेचारे पुरुष अपनी व्यथा खुलकर कह भी नहीं पाते क्योंकि उनकी परवरिश ऐसी होती है कि उनकी कोमल भावनाओं और संवेदनशीलता को पौरुषीय कमजोरी कहा जाता है। वे अपनी समस्याओं को दरकिनार करते हुए खुलकर बात भी नहीं कर पाते, सोच कितनी तकलीफ झेलते होंगे।" नीलम ने कामिनी के चेहरे पर गहरी और अर्थपूर्ण नज़रों से देखते हुए कहा।
कामिनी उसका इशारा समझ गई... "तेरे कहने का मतलब यह है कि जैसी हमारी समस्या है वैसी ही राकेश जी और मुकुल की भी हो सकती है।

"एकदम सही बात."..

"मैं मुकुल के साथ आऊँगी, तब हम इन पहलुओं पर चर्चा करेंगे, शायद उसे भी व्यवहार थेरैपी की जरूरत हो... काफी देर हो गई, मैं चलती हूँ अब, तू अपना ध्यान रखना... बाई.."

कामिनी एक नई दृष्टि लेकर लौटी थी। उसकी सोच का आयाम विस्तृत हो गया और उसे इसका भान हुआ जब देरी की वजह से सुयोग से मुलाकात हो गई।
"हेलो सुयोग, हाऊ यु डूइंग?"
"हाय दीदी..आई एम फाइन, आज आपको देर हो गई?" सुयोग के सम्बोधन में उसे अपनत्व लगा। आज कोई सम्मोहन नहीं, वरन एक स्नेह का भाव जागृत हुआ। घर पहुँची तब तक मुकुल भी आ चुका था।
कुक खाना बना चुकी थी फिर भी आज उसने बच्चों की पसन्द की डिश बनाई। डाइनिंग टेबल पर फूलों की महक और मधुर संगीत के साथ मद्धिम रोशनी में डिनर का आनन्द लिया। बहुत दिनों बाद घर की पुरानी हँसी लौटती सी लगी।

कामिनी शॉवर लेकर आई, तब हल्की बारिश शुरू हो गई थी। बालकनी में मुकुल को देखकर वह भी वहीं चेयर पर बैठ गई। आज फिर से पुरानी खुशबू उसके तन मन में एक नई उमंग जगा रही थी। उसने हौले से मुकुल का हाथ पकड़कर उसकी आँखों में झाँका... आज वहाँ प्यार दिखा, उपेक्षा नहीं।
"सुनिए, उस दिन गुस्से में मैंने बहुत कुछ बोल दिया था, मुझे माफ़ कर दीजिए।"
प्रत्युत्तर में मुकुल के होठों का स्पर्श अपनी हथेलियों पर पाकर वह अंतर तक एक मीठी पुलक से भर उठी... सिर्फ भावों को महसूस करते हुए वे दोनों एक दूसरे के मन को छूते हुए बहुत देर तक प्यार की रिम झिम में भीगते रहे। कभी कभी शब्द से अधिक भावों का महत्व होता है और तन के मिलन से अधिक मुखर मन का मिलन होता है, इसे आज दोनों महसूस कर रहे थे।
"बहुत रात हो गई, अब चलें..?" मुकुल ने कहा। उसे एकदम से याद आ गया था कि डॉ प्रकाश की दवाई आज उसने नहीं खाई।
कामिनी ने नींद की आगोश में जाते हुए मुकुल को एक दवाई खाते हुए देखा। वह फिर चिंतित हो गई कि कहीं मुकुल स्लीपिंग पिल्स तो नहीं ले रहा। आज फिर वह जागती रही, किन्तु वजह बदल गई थी। जब उसे इत्मीनान हो गया कि मुकुल सो चुका है, उसने उठकर ड्रॉअर में से दवाई का पत्ता निकाला और उसका पिक ले लिया।
अगले दिन कॉलेज पहुँचकर कामिनी ने सबसे पहले उस दवाई को गूगल किया। लिखा था... टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन पुरुष यौन लक्षणों के विकास को बढ़ाता है और इसका संबंध यौन क्रियाकलापों, रक्त संचरण और मांसपेशियों के परिमाण के साथ साथ एकाग्रता, मूड और स्मृति से भी होता है। एकाएक ही मुकुल के बदलते व्यवहार का कारण स्पष्ट हो गया। उसे खुद पर क्रोध भी आया। 'मतलब नीलम और मुकुल की समस्या समान है और राकेश और मेरी एक जैसी... राकेश ने जहाँ नीलम को समझकर उसका साथ दिया, वहीं मैंने मुकुल की समस्या समझने के स्थान पर खुद को एक फैंटेसी में खो जाने दिया। इस समय मुकुल को मेरे सपोर्ट की जरूरत है...' उसका कॉलेज में मन नहीं लगा। तबियत का हवाला देकर वह हाफ सी एल लेकर घर लौट आई।

दिनभर एक ऊहापोह में गुजर कर उसने एक प्लान तय कर लिया था। मुकुल के आने से पहले ही उसने माँजी के लिए दलिया बना दिया और बच्चों को बता दिया कि वह आज पापा के साथ नीलम के यहाँ जाएगी तो वे कुक से अपनी पसंद का कुछ बनवा लें। मुकुल आया तब तक वह तैयार हो चुकी थी। मुकुल जब दिनभर की थकान को उतार कर फ्रेश हुआ तब कॉफी सिप करते हुए कामिनी बोली... "आज राकेश भाईसाहब का फोन आया था, नीलम बेडरेस्ट करते हुए मोनोटोनस फील कर रही है, तो आज हमारा डिनर उनके यहाँ है।"
मुकुल भी तैयार हो गया। कल से कामिनी के बदले रूप से वह खुश था और इन सुकून के पलों को सहेजना चाहता था।

"आप इतने दिनों से मेरी तीमारदारी में लगे हैं, यदि आज पार्टी का मूड हो, तो मैं मना नहीं करूँगी।" नीलम ने कहा तो राकेश ने बॉटल खोलते हुए पूछा... "क्या ख्याल है मुकुल..? हो जाए एक एक पैग..."
मुकुल ने कामिनी की मौन स्वीकृति पाकर सहमति दे दी।
"अजी इनकी बीमारी में हमने एक बात समझ ली कि दाम्पत्य जीवन में कभी दिल प्रधान तो कभी देह प्रधान, किन्तु दिमाग दोनों को कंट्रोल करता है और यह दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता है।" राकेश ने बात शुरू की।
"सही कहा, तभी तो सात जन्मों का बंधन कहते हैं इसे..." मुकुल बोला।
"तुम्हें पता है महिलाएं एक ही पति सात जन्मों तक क्यों चाहती हैं..? नीलम ने पूछा तो मुकुल और राकेश के चेहरे पर प्रश्नचिन्ह देखकर कामिनी बोली... "क्योंकि एक जन्म में ठोंक पीटकर सुधारा है, अगले जन्म में फिर क्यों मेहनत करना..." सभी खिलखिला पड़े। माहौल एकदम हल्का हो गया था।
"अच्छा आप लोग ड्रिंक ले रहे हैं, तब तक मैं डिनर की तैयारी करती हूँ, नीलम तुम रेस्ट कर लो थोड़ा, तुमने कुक को इंस्ट्रक्शन देने में काफी एनर्जी खर्च की होगी आज.."

प्लान के मुताबिक उन दोनों को ड्रॉइंग हॉल में अकेला छोड़ नीलम और कामिनी अंदर आ गईं।

"यू नो मुकुल मैं नीलम की हालत से काफी परेशान था। एक तरफ मेरी बढ़ती यौनेच्छा और दूसरी तरफ उसका फ्रीजिड बिहेवियर... वो तो भला हो कि हम सही समय पर डॉक्टर के पास पहुँच गए। ऐसी हालत में मैंने मेरे साथ के बहुत से जोड़ों को तनाव में देखा है।"
"अच्छा... सेक्स ज़िंदगी में बहुत कुछ है, लेकिन सब कुछ नहीं..." मुकुल भी खुलने लगा।
"सही कहा दोस्त, लेकिन सी सा देखा है तुमने, वह बैलेंस जरूरी है सेक्स लाइफ में... नीलम के डॉक्टर ने हमारी काउंसलिंग की थी। उसने बताया कि पुरुषों में भी मनोवैज्ञानिक, व्यवहारिक और शारीरिक परिवर्तन आते हैं। इस उम्र में महिलाओं में मेनोपॉज़ होता है, वहीं पुरुषों में यह अवस्था मेल मेनोपॉज़ या एंड्रोपॉज कहलाती है। यदि हम समझदारी से काम लें तो इस अवस्था को आसानी से पार किया जा सकता है।"
"सही कह रहे हो यार, दरअसल हमारी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था ही ऐसी है कि पुरुषों की इस समस्या को कोई नोटिस ही नहीं करता है, इसीलिए युवावस्था के ढलान पर कुछ पुरुष अतिकामुकता के शिकार हो जाते हैं तो कुछ यौन अक्षमता या कामेच्छा की कमी से पीड़ित हो अपनी पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाते। इन सब विकृतियों के चलते ही कुछ कुंठाएँ जन्म लेती हैं और पारिवारिक ताना बाना एक खिंचाव के कारण छिन्न भिन्न होने लगता है। पढ़े लिखे लोग ही नहीं समझते, तो अशिक्षितों के बारे में तो कहना ही क्या...?"
"दोस्त! दरअसल ये स्थितियाँ मध्यमवर्ग को ही प्रभावित करती हैं। उच्च वर्ग में वाइफ स्वैपिंग और निम्नवर्ग में अवैध सम्बन्धों का महत्वपूर्ण कारण यही है। इस सम्बंध में जागरूकता और यौन शिक्षा की आवश्यकता समयानुसार है। इन विषयों को टैबू न रखकर एक सही रूप में विमर्श का मुद्दा बनाना चाहिए।"

बात करते हुए वे तीन पैग खत्म कर चुके थे। उनकी बातों के टुकड़े हवा में तैरकर नीलम और कामिनी तक पहुँच रहे थे। कामिनी आश्वस्त थी कि राकेश की बातों से मुकुल की भी काउन्सलिंग हुई है। अब वे दोनों इस मुद्दे पर खुल कर बात करेंगे और इस समस्या को सुलझा लेंगे।

"चलिए अब खाना खा लीजिए..." कामिनी की आवाज़ पर वे दोनों डाइनिंग टेबल पर आ गए।

आज कामिनी बहुत खुश थी। उसके जीवन में एक बेहद प्यार करने वाला पति और एक सच्ची सहेली थी, जिन्होंने उसे एक अंधेरी खोह में गिरने से बचा लिया था। गलती उसकी भी नहीं थी, वह भी तो बीमार थी, समय रहते वह समझ गई थी। घर वापसी में मुकुल ने कार में एक रोमांटिक गाना लगा दिया था।
आज उनका बैडरूम भी इतने दिनों से झेल रहे तनाव से मुक्त था।
"सुनो! आज वही नीली नाइटी पहनना।" मुकुल की फरमाइश थी। कामिनी नवविवाहिता की तरह अपने में सिमटती सी मुकुल के पास लेटी, उसके बाँहों के घेरे में खुद को महफूज पाकर उसके नाईट सूट के बटनों से खेल रही थी। आज एक प्रेमी जोड़ा पहली रात की तरह गुदगुदी अनुभव करते हुए एक दूसरे का हाथ थामे और मन को सहलाते हुए संतुष्टि के भाव से नींद के आगोश में डूब रहा था। उन्हें प्यार का सही अर्थ समझ कर इंतज़ार करना आ गया था।

क्रमशः

डॉ वन्दना गुप्ता

drvg1964@gmail.com

निवास- उज्जैन (मध्यप्रदेश)

शिक्षा- एम. एससी., एम. फिल., पीएच. डी. (गणित) सम्प्रति- प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष

विधा- कविता, लेख, लघुकथा, कहानी, उपन्यास

प्रकाशन- काव्य संग्रह 'खुद की तलाश में', कथा संग्रह 'बर्फ में दबी आग', साझा लघुकथा संकलन 'समय की दस्तक'।

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक प्रतिष्ठित समाचारपत्रों, पत्रिकाओं, वेब पत्रिकाओं में कविता, लघुकथा, कहानी एवं लेख प्रकाशित।

ऑनलाइन पोर्टल मातृभारती पर अनेक कहानियाँ एवं एक उपन्यास 'कभी अलविदा न कहना' प्रकाशित।

पुरस्कार और सम्मान- अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रतियोगिता 2016 में प्रथम पुरस्कार, अखिल भारतीय साहित्य सारथी सम्मान 2018, मातृभाषा उन्नयन सम्मान 2019, अंतरा शब्दशक्ति सम्मान 2019, लघुकथा श्री सम्मान 2019, 'रत्नावली के रत्न' सम्मान - 8 मार्च 2020