Aouraten roti nahi - 8 in Hindi Women Focused by Jayanti Ranganathan books and stories PDF | औरतें रोती नहीं - 8

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औरतें रोती नहीं - 8

औरतें रोती नहीं

जयंती रंगनाथन

Chapter 8

कंप्यूटर के स्क्रीन पर उभर आया है एक शख्स

पद्मजा रेड्डी: 2000

यह मेरी जिंदगी का सबसे मुश्किल वक्त है- पद्मजा ने अपनी डायरी में अंग्रेजी में लिखा। मैं बहुत नाखुश हूं। मेरे सभी निर्णय गलत साबित हो रहे हैं। कुछ भी सही नहीं हो रहा। मैंने कभी नानागारू से यह बात नहीं कही, कहूंगी तो उन्हें दुख ही होगा। पर एक बात तो कहना चाहती हूं- मैंने बहुत दुख दिया है आपको। कभी आपकी बात नहीं मानी। आपको हमेशा बुरा कहा। आपने कोशिश की एक अच्छा पिता बनने की। मुझे सही सलाह देने की। पर कोई बात नहीं।

मैं यह सब कहकर आपको दुख नहीं पहुंचाना चाहती। मैं उम्र के जिस दौर में खड़ी थी, मेरे दिमाग में बस एक ही खब्त सवार था- बगावत... बगावत। सिस्टम से लड़ना है। कैसे, नहीं जानती थी।

इसलिए आज भोग रही हूं अपने किए को। वाकई हम जो करते हैं, उसे भोगते भी हैं। बीच का कोई रास्ता नहीं होता। बचकर भागना चाहो, तो भी अतीत आपका पीछा नहीं छोड़ता।

मेरी प्रिय डायरी, मुझे यह भी लिख लेने दो कि आज 25 मार्च को मैंने अपनी जिंदगी के 25 साल पूरे कर लिए हैं। मैं एक खालिस एरियन हूं। खूब जिद्दी, किंचित कन्फ्यूज्ड और बेहद पॉजिटिव। मैं ऐसे उदास और अपने पर तरस खाते हुए बहुत दिनों तक नहीं बैठी रहूंगी। कुछ न कुछ जरूर करूंगी।

पर हां, आज अपने जन्मदिन पर मेरा मन कर रहा है कि खूब रोऊं। कोई साथ नहीं है मेरे। कोलकाता की इस भीड़-भाड़ वाली गली में एक भी चेहरा ऐसा नहीं, जिससे मैं अपना दुख बांट सकूं। सुबह पिशू मोशाय का फोन था। उन्हें नहीं पता था कि मेरा जिन्मदिन है। उन्होंने तो बस यह बताने के लिए फोन किया था कि मैक ने तलाक के कागजात भेजदिए हैं। मैंने कुछ नहीं कहा। मैं कहने लायक बची ही नहीं। मैक को तलाक की दहलीज पर मैंने ही धकेला। सालभर पहले इन्हीं दिनों मैंने चाकू से वार किया था उस पर। शायद यह बात ममा को पता थी। पर उन्होंने भी तो कई बार आपसे मार-पीट की है। नानागारू, जो आपके साथ हुआ, वही मेरे साथ हो रहा है। हम दोनों को सही जीवनसाथी नहीं मिले।

मैक को लेकर आप गलत नहीं थे नाना। आपको पता नहीं कि उसकी जिंदगी मेरी जिंदगी से कितनी अलग है। उसे एक औरत से बंधकर रहना नहीं आता। मैं उसके लिए नाकाफी थी। मैक के साथ रहकर लग रहा है कि मैं आपको अच्छी तरह जानने लगी हूं। आप भी मेरी तरह बहुत अकेले हैं नाना...

मुझे लगता है कि आपको दोबारा शादी कर लेनी चाहिए। मजाक नहीं कर रही। हो सके तो एक दिन आपके पास आऊंगी और आपको कन्विंस करूंगी। पर हो... मुझसे अब शादी के लिए मत कहिए। मैं इसके लिए बनी ही नहीं...

पद्मजा इसके बाद खूब रोई। सुबह से कुछ खाया न था। रात नींद नहीं आई थी। देर तक वह ठंडी कॉफी में रम डालकर पीती रही थी। इतना पीने के बाद भी उसे नशा नहीं हुआ। इस बात पर भी झल्लाहट हुई। सुबह सिर एकदम भारी था। कल से यही सोच रही थी पद्मजा- ये तो वो जिंदगी नहीं, जिसकी उसने तमन्ना की थी।

बालमोहन रेड्डी और मोधुमिता घोषाल की इकलौती बेटी पद्मजा को किस बात की कमी थी? पिताजी का अपना व्यवसाय, मां गायिका। पिताजी और मां में जमीन-आसमान का अंतर था। दिखने, बोलने और स्वाभाव में। मां अनिंद्य सुंदरी। खूब गोरी, गोल चेहरा, पक्की बंगालन की तरह लहराते, घुंघराले काले बाल, गदबदी देह। आंखें ऐसी कि आदमी चकरघिन्न खा जाए। बड़ी, गहरी और सजग। भरे-भरे होंठ, रसीले। बिल्कुल छोटे खरगोश के से कान। और उनमें झिलमिलाती हीरे की बुंदियां। मोधुमिता जितनी सुंदर थी, उतनी ही घुन्नी थी। अहंकारी और आलसी। बहुत सालों बाद किशोरी पद्मजा ने नानागारू को दो पैग ह्विस्की के बाद अपने मित्र से कहते सुना था, ‘नेवर मैरी ए बांग्ला ब्यूटी। दे आर डेंजरस विष कन्याज...’

बालमोहन आंध्र के एक ब्राह्मण परिवार से थे। विशाखापट्टनम में पहले-बढ़े। इंजीनियरिंग करने जाधबपुर पहुंचे, तो वहीं एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में मोधुमिता को स्टेज पर गाते सुन लिया और सिर से पांव तक फिदा हो गए। इक्कीस साल के बालमोहन का कद लंबा था। चेहरा काला और शरीर दुबाला। काले चेहरे पर घनी काली मूंछें। उनके पसंदीदा अभिनेता नागार्जुन की तरह। आवाज भारी थी। बोलते कम थे। लेकिन जब बोलते, तब सामने वाला सुनता रह जाता। एकदम टॉप के स्टूडेंट।

बिना सोचे-समझे बालमोहन मोधुमिता के पीछे पड़ गए। लड़की की मां सयानी थी। पढ़ा-लिखा दामाद उन्हें रुच गया। उनके परिवार में पीढ़ियों से घर के मर्द मास्टरी से आगे नहीं बढ़ पाए थे। बालमोहन की विद्वता की वे यूं कायल हुईं कि बेटी पर एक तरह से दबाव ही डाल दिया कि वह शादी कर ले। काला हुआ तो क्या हुआ? बंगाली लड़के कौन पंजाबियों की तरह गोरे-चिट्टे होते हैं। उनका तर्क था- आदमी हमेशा कुरूप होना चाहिए। तभी बीवी को सिर-माथे पर बिठाकर रखता है।

लेकिन बालमोहन को पहचानने में उन्होंने गलती की। वे उन आदमियों में से नहीं थे, जो सुंदर बीवी के रूप तले अपना व्यक्तित्व खो देते हैं। बालमोहन के लिए मोधुमिता हमसफर थी, लेकिन जिंदगी नहीं। उन्हें कभी यह मंजूर नहीं हुआ कि बीवी उन पर हुक्म चलाए। लेकिन मोधुमिता को जब गुस्सा आता तो हाथ की चीजें उठाकर अपने पति पर दे मारती। बालमोहन का उसे संगीत सम्मेलनों में जाने से रोकना, घर पर अड्डा जमाने से इंकार करना बहुत बड़ा अपराध लगता था।

लेकिन पति ने शादी के बाद अपना कैरियर संवार लिया, मगर उसकी जिस कला पर रीझकर शादी की, उसे दबाने का उन्हें क्या हक था?

शुरुआती सालों में ही पद्मजा हो गई। बालमोहन इतने व्यस्त रहने लगे कि बेटी पूरी तरह मां की छत्रछाया में पलने लगी। दादी घर आतीं, तो शिकायत करतीं कि पद्मा तेलुगु नहीं बोलती, सिर्फ बांग्ला या अंग्रेजी बोलती है। पद्मा अपनी दादी से झगड़ती, ‘अव्वा, मुझे नहीं बोलनी तेलुगु। तुम मुझसे बात करने के लिए अंग्रेजी क्यों नहीं सीख लेतीं?’

कद-काठी में अपने बाप पर जा रही थी पद्मजा। वही बालमोहन का लंबा कद। हल्के भूरे बाल। रंग पिता से थोड़ा बेहतर। लेकिन मां के रंग से मिलाओ, तो एकदम स्याह। बारह साल की पद्मजा ने एक बार अपनी मां से भड़ककर कहा था, ‘‘तुमने इतने काले आदमी से शादी क्यों की? तुम्हें कोई गोरा आदमी नहीं मिला क्या? तुम तो इतनी गोरी हो और मैं? आई हेट माय कॉम्पलेक्शन।’’

पद्मजा हर तरह से विद्रोही बच्चा थी। बालमोहन जब लंबे दौरों से घर लौटते, तो पाते कि बेटी पहले से अधिक नकचढ़ी और जिद्दी हो गई है। किसी का सम्मान नहीं करती, मनमुताबिक काम न होने पर आसमान सिर पर उठा लेती है। वही करती है, जिसके लिए उसे मना किया जाता है। उसी बरस बालमोहन और मोधुमिता के बीच इतनी अनबन हुई कि मोधुमिता बेटी को उठाकर कोलकाता चली गई, वो भी पति को बिन बताए।

बालमोहन ने कोर्ट में केस कर दिया। लगभग चार साल बाल बालमोहन को तलाक मिला और बेटी की कस्टडी भी। पद्मजा तब सत्रह की हो चुकी थी। बारहवीं कर चुकी थी। मां के साथ रहते-रहते ऊब चुकी थी। उम्र के उस पड़ाव पर वह नित नए प्रयोगों से गुजर रही थी। उसके लंबे बालों वाले वयस्क मित्र मोधुमिता को किरकिरी लगते। बिल्कुल बित्ते भर की स्कर्ट पहन पद्मजा कभी किसी लड़के के गले में बांहें डाल झूल जाती, तो किसी की गोद में टप से बैठ जाती।

रात देर-देर तक वह घर से गायब रहती। मोधुमिता के कुछ कहने से पहले वह अपना पक्ष रख देती, ‘‘तुम्हीं ने चाहा था मैं म्यूजिक सीखूं। अब कुछ कर रही हूं, तो भी तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा। ज्यादा चींची करोगी तो मैं घर छोड़कर भाग जाऊंगी। आई हैव अ रिच फादर हू केन सपोर्ट मी वेरी वेल। वैसे भी मैं तुम्हारे खर्चे पर नहीं पल रही। वे तगड़ा सम भेजते हैं तुम्हें। तुम उसमें से फिफ्टी परसेंट भी मुझ पर खर्च नहीं करतीं। आई नो... उसी पैसे से नानी और मामा का घर चलता है। जब मैं चुप रहती हूं, तो तुम क्यों मेरा मुंह खुलवाना चाहती हो? जस्ट फॉरगेट इट मदर।’’

मोधुमिता आगबबूला होती। पद्मजा को संभालना कहीं से उसके बस में नहीं रह गया था। आग का गोला थी किशोरी। हाथ लगाओ तो अपना ही हाथ जल जाता था। मां और भाई की तो हिम्मत ही नहीं थी कि पद्मजा से बात भी करें। वो तो उन्हें देखते ही मुंह फेर कर निकल जाती।

इन दिनों मोधुमिता को अपने दोनों निर्णयों पर जमकर पछतावा हो रहा था- बालमोहन से शादी और पद्मजा को अपने साथ लाना। उसे मिला क्या? एक जिद्दी, अहंकारी किशोरी की परवरिश करना हथेली पर सरसों उगाने जैसा ही तो है। पता नहीं क्या है उसके मन में? बहुत सुना था कि तलाकशुदा परिवारों में बच्चे बिगड़ जाते हैं, मानसिक रोगी हो जाते हैं। यहां तो यह प्रत्यक्ष देख रही थी।

बहुत मुश्किल से एक दिन घेर पाई बेटी को। तली हुई रोहू मछली से भरी प्लेट उठा वह रस लेकर खाने जा रही थी कि मोधुमिता ने उसे घेर लिया। हरे और सफेद रंग की चौड़े पाड़ की ढाकाई साड़ी में मोधुमिता रोज की अपेक्षा गरिमामय लग रही थी। पिछले कुछ सालों से वह बालों को ऊपर उठाकर गोल जूड़ा बनाने लगी थी। माथे पर सिंदूर की अठन्नी बिंदी। हाथ में शाखापोला, कान में सोने की छोटी सी बाली। पहले सिंदूर लगाती थी, अब नहीं लगाती।

लौटकर आने के बाद बहुत खुश कभी नहीं रही मोधुमिता। लगा कि बहुत कुछ खो दिया है। न पहली सी आवाज रही, न उत्साह। घर पर ही बच्चों को रवींद्र संगीत सिखाती थी। कभी-कभार बाहर गाने का न्योता मिलता। पर पैसे इतने कम कि मजा नहीं आता। कहां तो पहले एकाध बांग्ला फिल्मों में भी प्लेबैक दिया था। सोचा था एक दिन टॉप की गायिका बनेगी, इच्छाएं...। इच्छाएं पानी हो गईं। यह सच था कि बालमोहन महीने-दो महीने में बेटी के खर्चे-पानी के लिए बीसेक हजार रुपए भेज देते थे। इसी से ठीक-ठाक जिंदगी जी पा रही थी। यह भी अंदेशा था मोधुमिता को कि जिस दिन बेटी की कस्टडी पिता को मिलेगी, वो यह पैसे भेजना छोड़ देंगे।

मां को असमय अपने पास देख पद्मजा विचलित हुई। मोधुमिता ने कुछ कहा नहीं, बल्कि उसके पास बैठकर उसके बालों में हाथ फेरने लगी। दो मिनट बाद ही पद्मजा झल्ला गई, ‘‘ओ मो... कम टू द पॉइंट। क्या चाहिए साफ बोलो?’’

मोधुमिता रुआंसी हो गई, ‘‘पोद्मा, की होश्चे? क्या एक मां अपनी बेटी को प्यार नहीं कर सकती?’’

पद्मजा ने आश्चर्य से मां की तरफ देखा। वाकई वो तो इमोशनल हो गई है। उसने अपनी आवाज को भरसक मुलायम रखते हुए कहा, ‘‘देखो मो, न कभी तुमने टिपिकल मां वाला रोल निभाया है न मैंने टिपिकल बेटी वाला। ये कभी-कभी तुम जो प्यार करती हो न, उससे लगता है नाटक कर रही हो। एनी वे... आज मैंने ऐसा किया क्या, जिससे तुम्हें प्यार आ रहा है मुझ पर। सच बात तो यह है कि कल रात भी मैं दो बजे घर लौटी थी और मुझे मोटरसाइकिल पर छोड़ने आया था वही टकलू सेनगुप्ता, जो तुम्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।’’

मोधुमिता रुकी। बेटी ने साफ-साफ बात छेड़ ही दी है, तो कहने में कोई हर्ज नहीं।

‘‘पोद्मा, चेली, आई एम वरीड अबाउट यू... तुम बच्ची नहीं रहीं। यू आर ए ग्रोनअप गर्ल। दस दिन बाद यू विल बी सेवेंटीन। कई दिनों से सोच रही थी कि तुमसे खुलकर बात करूं। तुम ये जो लड़कों के साथ दिन-रात घूमती हो, तुम्हें पता है इसके कॉनसीक्वेंस क्या हो सकते हैं? मैं यह नहीं कहती कि तुम गलत कर सकती हो... बट यू नो, औरत का जिस्म होता ही ऐसा है। एक गलत कदम और....’’

‘‘क्या गलत कदम मॉम? साफ बोलो... आर यू टॉकिंग अबाउट सेक्स?’’ पद्मजा ने साफ पूछ लिया।

मोधुमिता बेटी की शक्ल देखने लगी।

‘‘ओह ममा, डोंट प्रिटेंड टु बी सेंट। तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं सब जानती हूं। ऐनी वे वाट इज देअर इन सेक्स? इट्स जस्ट ए टिश्यू। वाइ मेक इट एन इश्यू? मुझे सब पता है... मैं प्रिकॉशन्स भी जानती हूं। डोंट वरी...’’

मछली का एक कौर मुंह में टप से रखते हुए चलला पद्मजा ने अपनी मां के कंधे पर हाथ रखकर चुहलबाजी के अंदाज में कहा, ‘‘मेरी चिंता छोड़ा ममा, अपनी करो। तुम जो इतने दिनों से पापा से अलग रह रही हो, हाउ डू यू मैनेज? इजन्ट सेक्स एज इंपॉर्टेंट इट युअर एज टू? ऐसे क्या देख रही हो मेरी तरफ? मैं इक्कीसवीं सदी की लड़की हूं। इट्स नाइन्टीन नाइंटी टू ममा, अपनी सोच बदलो। हमारी पीढ़ी हिप्पोक्रेट नहीं है तुम लोगों की तरह। हम जो सोचते हैं वही करते हैं, तुम लोगों की तरह नहीं कि दिल में कुछ और जुबान पर कुछ और। मेरी चिंता छोड़ दो।’’

अचानक पद्मजा ने एक और अस्त्र छोड़ा, ‘‘मैंने पापा से बात कर ली है। वे मुझे स्टडी के लिए विदेश भेजने को तैयार हैं। डोंट माइंड मॉम... हमारी जनरेशन तरक्की के लिए कभी-कभी मतलबी भी हो जाती है। पर जब मैं कमाना शुरू करूंगी न, तो आपका ख्याल जरूर रखूंगी। मुझे लगता है, जिंदगी में आपने भी काफी कुछ खोया है।’’ एक सांस में अपनी बात कह हांफने लगी पद्मजा।

क्रमश..