Aaghaat - 51 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 51

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आघात - 51

आघात

डॉ. कविता त्यागी

51

दरोगा ने पूजा को विश्वास दिलाया कि शीघ्र ही वास्तविक हत्यारा उनकी गिरफ्त में आ जाएगा, तब उसके बेटों को मुक्त कर दिया जाएगा ! पूजा ने दरोगा से निवेदन किया कि वह अपने बेटे के उस मित्र से भी पूछताछ करने के लिए उनके साथ चलना चाहती है, जिसको उसने अपनी घड़ी दी थी । दरोगा ने पूजा का निवेदन स्वीकार कर लिया और तुरन्त सुधांशु के मित्र से पूछताछ करने के लिए चल दिये ।

सुधांशु के मित्र ने दरोगा की पूछताछ में पहले तो यही कहा कि घड़ी उसके बैग से चोरी हो गयी थी । लेकिन, जब दरोगा ने अरेस्ट करके अपराधी को मार-मार कर सत्य उगलवाने का अपना अभ्यास उसको बताया, तब उसने स्वीकार किया कि सुधांशु की घड़ी के बदले में उसको पाँच हजार रुपये का प्रस्ताव मिला था । पाँच हजार रुपये के लालच में ही उसने सुधांशु से घड़ी माँगी थी ।

पाँच हजार रुपयों का प्रस्ताव देने वाले व्यक्ति के विषय में पूछने पर उसने बताया कि वह एक महिला थी, जिसका नाम और पता वह नहीं जानता है । महिला की कद काठी, रूपाकृति के विषय में उस लड़के ने जो कुछ बताया, वह लगभग ऐसा ही था, जैसाकि मोबाइल के दुकानदार ने बताया था । उससे पूजा को विश्वास हो गया कि रणवीर की हत्या का कुचक्र वाणी के मस्तिष्क की उपज था । अपना विश्वास उसने तुरन्त ही दरोगा के समक्ष प्रकट भी कर दिया । दरोगा को भी अब विश्वास होने लगा था कि रणवीर की हत्या के दोषी उसके-बेटे प्रियांश और सुधांशु नहीं हैं, कोई अन्य व्यक्ति है । उसी व्यक्ति ने रणवीर की हत्या करके उसके बेटों को फँसाने का कुचक्र रचा है । अपने विश्वास के आधर पर दरोगा ने पूजा को पुनः आश्वस्त किया कि शीघ्र ही उसके दोनों बेटों को मुक्त कर दिया जाएगा ।

आश्वासन पाकर पूजा उस समय घर लौट आयी, परन्तु घर आकर भी उसकी व्याकुलता कम नहीं हो सकी । एक ओर उसे अपने बेटों की चिन्ता थी, दूसरी ओर, रणवीर के वास्तविक हत्यारों का पता लगाने की चुनौती पूजा को निरन्तर बेचैन कर रही थी । सारी रात पूजा ने घर में बेचैन रहकर ही काटी ।

अगले दिन प्रातः शीघ्र उठकर पूजा थाने में पहुँच गयी और दरोगा से भेंट की। इस बार की भेंट में पूजा ने अनुभव किया कि उसके प्रति दरोगा के व्यवहार में नम्रता और सम्मान का भाव आ गया है । दरोगा ने पूजा को सम्मानपूर्वक घर जाने के लिए कहते हुए उसे विश्वास दिलाया कि शाम तक रणवीर का हत्यारा उनकी पकड़ में आ जाएगा, क्योंकि अपनी जाँच में वे सबूतों के साथ हत्यारे के बहुत निकट पहुँच चुके हैं । पूजा ने आश्चर्य से दरोगा की ओर देखा कि इतने कम समय में यह कैसे सम्भव हुआ ? पूजा की दृष्टि का आशय समझकर दरोगा ने कहा -

‘‘बहन जी, ऐसे चालाक अपराधियों को पकड़ने के लिए हमें भी अपनी चाल तेज करनी पड़ती है ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, आपके पति की हत्या के पीछे उसकी प्रेमिका का ही हाथ है । हमें पता चला है कि वाणी आपके पति रणवीर की सम्पत्ति हथियाने की योजना बना रही थी और इसी चक्कर में उसने....!’’

‘‘भाई साहब, आप मान चुके हैं कि मेरे बच्चे निर्दोष हैं ! अब उन्हें छोड़ दीजिए ! मैं आपसे विनती करती हूँ !’’

कहते-कहते पूजा ने उस दरोगा के समक्ष हाथ जोड़ दिये । पूजा की प्रार्थना से अभिभूत होकर दरोगा की कर्तव्यपरायणता ने करवट ली और तत्काल उसने एक सिपाही को प्रियांश और सुधांशु को छोड़ने का आदेश दे दिया ।

अपने बेटों को थाने से छुड़ाकर पूजा ने राहत की साँस ली और उन्हें लेकर घर आयी । तीनों माँ-बेटों को भूख लगी थी । पिछले कई दिन से उन्हें अपनी भूख-प्यास का आभास न रह गया था । चित्रा बुआ ने अति शीघ्रता से भोजन तैयार किया और बच्चों को खिलाया । तत्पश्चात् पूजा ने और चित्रा ने भोजन ग्रहण किया । भोजन करते हुए पूजा ने बुआ को बताया कि रणवीर की हत्या वाणी ने करायी है ! शीघ्र ही पुलिस इस हत्या में उसकी संलिप्तता के साक्ष्य भी ढूँढ लेगी ।

खाना खाकर दोनों बच्चे सो गये । परन्तु, पिछली रात-भर जागने के बावजूद पूजा की आँखों में नींद नहीं थी । जब तक उसके पति की हत्या करके उसी के बच्चों को हत्या करने के आरोप में फँसाने वाला जघन्य अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर निडर होकर जीवन का आनन्द ले रहा था, तब तक पूजा के हृदय में चैन और आँखों में नींद आना संभव नहीं था । उधर, बच्चों के सकुशल घर लौट आने तथा हत्यारे का सुराग मिल जाने से बुआ भी राहत का अनुभव कर रही थी और अब अपने घर वापिस लौट जाना चाहती थी । बुआ ने संकोच करते-करते अस्पष्ट शब्दों में अपनी यह इच्छा पूजा के समक्ष प्रकट की, तो पूजा ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में जाने की सहमति देते हुए उनका शत-शत आभार प्रकट किया कि सदैव ही विपत्ति के समय वे उसका अवलम्ब बनी हैं, जिसके धन्यवाद के लिए शब्द अपर्याप्त पड़ जाते हैं ।

बुआ को विदा करने के पश्चात् पूजा ने अपने बच्चों पर दृष्टिपात किया । दोनों बेटे सो रहे थे और स्वप्नलोक में विचरण कर रहे थे । अपने बच्चों के निकट बैठकर पूजा अपना समय व्यतीत करने लगी । आज अपने दोनों बच्चों को घर में सोते हुए देखकर सन्तोष और प्रसन्नता के अतिरिक्त पूजा के पास ऐसे अनेक विषय थे, जिन पर उसका मनःमस्तिष्क बार-बार जाकर ठहर रहा था । बार-बार उसका मनःमस्तिष्क वाणी, वाणी द्वारा सृजित रणवीर की हत्या के षड़यन्त्र, रणवीर के साथ अपने विवाह, विवाह से पहले रणवीर का व्यवहार और विवाह के पश्चात् दाम्पत्य-सम्बन्ध में आयी कटुता का विश्लेषण कर रहा था । उसके मस्तिष्क में इन सभी कड़ियों को मिलाकर एक लम्बी शृंखला अनायास ही बनने लगी थी ।

अपने और रणवीर के अतीत का विश्लेषण करके आज अनायास ही उन घटनाओं को परस्पर जोड़कर उसने एक अनकही कहानी सृजित कर दी थी, जो उसके स्वयं के जीवन का कटु यथार्थ बयां कर रही थी । अपनी कहानी के यथार्थ में डूबती-उतराती पूजा कब नींद में डूब गयी उसको पता भी न चला । जब उसकी नींद टूटी, तब तक रात हो चुकी थी । नींद टूटते ही उसके मन में आया, तुरन्त पुलिस से रणवीर के हत्यारे के विषय में ज्ञात करें कि पुलिस अपने जाँच-कार्य में कहाँ तक सफलता प्राप्त कर चुकी है ? किन्तु, रात के अंधेरे ने उसकी क्रियाशीलता को विराम दे दिया और वह सुबह होने की प्रतीक्षा में शान्त होकर पुनः बिस्तर पर लेट गयी ।

अगले दिन पूजा ने यथाशीघ्र थाने में जाकर जानकारी प्राप्त की, तो दरोगा से उसको ज्ञात हुआ कि हत्या से एक दिन पूर्व रणवीर ने अपनी सारी सम्पत्ति की वसियत वाणी के नाम लिखी थी । इस आधर पर रणवीर की हत्या का सन्देह वाणी पर ही किया जा रहा है ! परन्तु, अभी तक उसको अरेस्ट नहीं किया जा सका है ! शायद वाणी को स्वयं पर पुलिस के सन्देह की भनक लग गयी थी, इसलिए वह अपने घर पर ताला डालकर फरार हो चुकी है । पुलिस उसकी खोज में भटक रही है ।

पुलिस वाणी पर केवल सन्देह कर रही थी, किन्तु पूजा को पूर्ण विश्वास था कि रणवीर की हत्या वाणी ने ही करायी है । उसके विश्वास में ऐसी शक्ति थी, ऐसा आवेश था कि वह अनायास ही चीख उठी -

‘‘दरोगा साहब ! यह औरत, औरत नहीं डायन है, जो हँसते-खेलते परिवारों को उजाड़ती फिरती है । पहले इसने अपनी ही मौसेरी बहन की सम्पत्ति हड़पने के लिए उसके पति के साथ विवाह करके उसके बसे-बसाये घर में आग लगायी थी ! अब सम्पत्ति के लालच में मेरे पति की हत्या करके मुझे बर्बाद कर दिया ! दरोगा साहब, इसे छोड़ना मत ! इसके किये का दण्ड इसको जरूर देना !’’

"बहन जी, आप चिन्ता मत करो ! उसके किये की सजा उसको जरूर मिलेगी ! पुलिस उसे जल्दी ही ढूँढ लेगी । आप अपने घर जाओ और अपने बच्चों को सम्हालो !’’

दरोगा के समक्ष पूजा में अचानक, अज्ञात स्रोत से जो शक्ति आ गयी थी, धीरे-धीरे उस शक्ति का स्रोत सूखने लगा और उसकी शक्ति क्षीण होने लगी। कुछ ही क्षणों में उसकी इतनी शक्ति क्षीण हो गयी कि उसमें अपने बल पर खड़े होकर चलने की शक्ति भी शेष नहीं बची थी, इसलिए वह धम्म से धरती पर बैठ गयी । अब उसकी आँखों आँसुओं की धारा बह रही थी । ऐसा प्रतीत होता था कि आँखों के रास्ते आँसुओं के रूप में उसकी शेष शक्ति पिघल-पिघल कर शरीर से निकल रही थी । कुछ देर तक वहाँ बैठने के पश्चात् पूजा उठी और लुटी-पिटी-सी धीमी गति से अपने घर की ओर चल पड़ी ।

थाने से घर की ओर चलते हुए पूजा के हृदय में अनेकशः भाव उभर रहे थे । उसके हृदय में रणवीर के अभाव की अनुभूति से विषाद, वाणी के नाम पर अपनी सम्पत्ति वसियत करने की मूर्खता को लेकर रणवीर के प्रति कोध तथा आश्चर्य कि ऐसा मूर्खतापूर्ण कार्य उसने कैसे कर दिया तथा वाणी के प्रति क्रोध का भाव उत्पन्न होकर निरन्तर उसको व्याकुल कर रहा था । अपने भावों में डूबकर अपने घर की ओर वह यन्त्रवत चलती हुई कब अपने गंतव्य स्थान तक पहुँच गयी, उसको पता ही नहीं चला ।

पूजा ने घर में प्रवेश किया, तो दोनों बेटों को अपनी माँ की प्रतीक्षा में व्याकुल पाया । उनकी वास्तविक व्याकुलता का कारण माँ भली-भाँति जानती थी । उसने पूछे बिना ही उन्हें बताया कि उनके पिता की हत्या वाणी ने करायी है, क्योंकि वह जो कुछ रणवीर से चाहती थी, उस सबको पाने के पश्चात् उसे यह भय था कि जीवित रहने पर रणवीर का मन बदल सकता है और वह अपनी ‘सम्पत्ति की वसियत’ में परिवर्तन कर सकता है ! ‘सम्पत्ति की वसियत’ शब्द सुनते ही पूजा के दोनों बेटे चौंक पड़े - ‘‘वसियत ?’’

‘‘हाँ बेटे ! पुलिस की जाँच से पता चला है कि अपनी हत्या से एक दिन पहले तुम्हारे पापा ने अपनी सम्पत्ति वाणी के नाम पर वसियत कर दी थी !’’

‘‘मम्मी जी, आप चिन्ता मत कीजिए ! हमारी योग्यता और कर्मठता के लिए सम्पत्ति अर्जित करना कोई कठिन काम नहीं है, पर अपने पूर्वजों की धरोहर की रक्षा करना हमारा दायित्व है, इसलिए हम वाणी को पापा की हत्या का दण्ड भी दिलाएँगे और अपने पूर्वजों की सम्पत्ति भी वापिस लेंगे !’’ प्रियांश और सुधांशु ने दृढ़तापूर्वक कहा ।

अपनी माँ की चिन्ता और तनाव का भार अपने कंधें पर लेकर पूजा के दोनों बेटे घर से निकल पड़े । माँ को दिये वचन को पूरा करने के लिए दौनों भाई प्रतिदिन कानून का सहयोग ले रहे थे और यथावश्यक सहयोग दे रहे थे । आठ दिन तक वे दोनों कभी पुलिस के साथ और कभी स्वयं वाणी की खोज में भटकते फिरते रहे, किन्तु सफलता नहीं मिल सकी । नवें दिन शाम को घर पर लौटकर पूजा को उसके दोनों बेटों ने बताया कि वाणी को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है ! कल उसको कोर्ट में पेश किया जाएगा ! अपने बेटों से वाणी की गिरफ्तारी की सूचना पाकर पूजा को अत्यधिक शान्ति की अनुभूति हुई । उसकी मुखमुद्रा पर सन्तोष का भाव प्रकाशित होने लगा । एक लम्बी राहत भरी साँस लेकर उसने दोनां बेटों के सिर पर हाथ फेरा और फिर दोनों को अपने सीने से लगाकर कहा -

‘‘भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है ! देखना, मेरा मन कह रहा है, शीघ्र ही तुम्हारा हक तुम्हें वापिस मिल जाएगा !’’

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com