Deh ki Dahleez par - 16 in Hindi Moral Stories by Kavita Verma books and stories PDF | देह की दहलीज पर - 16

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देह की दहलीज पर - 16

साझा उपन्यास

देह की दहलीज पर

संपादक कविता वर्मा

लेखिकाएँ

कविता वर्मा

वंदना वाजपेयी

रीता गुप्ता

वंदना गुप्ता

मानसी वर्मा

कथा कड़ी 16

अब तक आपने पढ़ा :- मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? वहीं नीलम मीनोपॉज के लक्षणों से परेशान है। एक अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है वह समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ ऐसा क्या हो रहा है ? सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है एक शाम उसकी मुलाकात शालिनी से होती है जो सामने वाले फ्लैट में रहती है। कामिनी का मुकुल को लेकर शक गहरा होता जाता है रात में मुकुल अकेले में अपनी अक्षमता को लेकर चिंतित होता है समाधान सामने होते हुए भी आसान नहीं है। अरोरा आंटी की कहानी सुन कामिनी सोच में डूब जाती है तभी उसकी मुलाकात सुयोग से होती है और वह वह उसके आकर्षण में बंध जाती है। अतृप्त कामिनी फंतासी में किसी को अनुभव करती है लेकिन अंत में हताश होती है। शालिनी अपने अधूरे सपनों से उदास हो जाती है। कामिनी की सासु माँ उसे समझाने की कोशिश करती हैं लेकिन समस्या उलटी है जान हैरान हो जाती हैं। नीलम के ऑपरेशन की खबर से राकेश चिंता में आ जाता है वह अपने जीवन में नीलम की उपस्थिति शिद्दत से महसूस करता है।

अब आगे

सुयोग और शालिनी की एक आम सी मुलाकात जो खास थी उसने बालकनी के परे किसी को देख कर मुस्कुराने का बहाना दे दिया था। कभी सुबह तो कभी देर रात जब दोनों फ्लैट में अकेलापन उन्हें डसने लगता वे बाहर बालकनी में आ जाते और किसी की मुस्कान को इस अकेलेपन से लड़ने और उसे दूर भगाने का हथियार बना लेते। दोनों ब्लॉक के बीच 40 फीट की दूरी उनके शब्दों को एक-दूसरे तक नहीं पहुंचने देती लेकिन चेहरे और दिल के भाव साथ होने का एहसास देते। उस दिन सुयोग ने इशारे से शालिनी का मोबाइल नंबर मांगा और शालिनी ने भी उंगलियों के इशारे से अपना नंबर दिया, जिसे मोबाइल में नोट कर सुयोग ने तुरंत ही फोन लगा दिया। फोन लेते ही दोनों तरफ से खुशी हँसी रूप में फूट पड़ी, "कमाल है ना आज डिजिटल इंडिया के दौर में हम उंगलियों के इशारे से फोन नंबर ले रहे हैं" सुयोग हंस दिया।

"डिजिटल इंडिया तक पहुँचने का सफर उंगलियों पर सवार होकर ही तय किया जाता है" शालिनी ने भी परिहास को आगे बढ़ाया। शाम देर तक दोनों एक दूसरे से बात करते रहे एक दूसरे की जॉब और जिंदगी के बारे में, अपने यहाँ अकेले रहने के बारे में। सुयोग ने सहज ही बता दिया कि उसकी वाइफ दूसरे शहर में नौकरी करती है लेकिन अभय के बारे में बताने में शालिनी को संकोच हुआ उसने यही कहा कि बस यूँ समझो अभी तक कोई मिस्टर राइट नहीं मिला है। देखते हैं कब कहाँ मिलता है और तब जिंदगी कहाँ ले जाती है?

आज प्रिया ने फोन लगाया तो बार-बार बिजी आता रहा। शायद घर पर मम्मी से बात कर रहा होगा सोच कर वह टीवी ऑन करके बैठ गई। वहाँ सुयोग को शालिनी से बातें करके मजा आ रहा था। आज वह फोन पर रूटीन बातों से अलग कुछ बातें कर रहा था। हर रोज बेबी क्या खाया, जिम गए थे, ऑफिस कैसा रहा, कुक आया था जैसी बातें उसमें उकताहट पैदा करती थीं लेकिन वह प्रिया का प्यार है यह भी वह समझता था। आज उसे मानसिक खुराक मिल रही थी।

देर रात प्रिया को फोन लगाया वह इंतजार ही कर रही थी। "आज बड़ी देर कर दी बेबी कहां बिजी थे मम्मी से बात हो रही थी क्या सब ठीक तो है?" प्रिया ने चिंतित स्वर में पूछा।

" हां सब ठीक है वह एक पुराना कॉलेज फ्रेंड मिल गया था उसी से बात हो रही थी" अनायास ही सुयोग झूठ बोल गया।

सासू माँ से कह सुनकर उनके सीने से लग कर रो लेने से कामिनी के दिल में उमड़ता घुमड़ता दुख आक्रोश उपेक्षा सभी कुछ बह गए थे। अब वह कुछ अच्छा महसूस कर रही थी जो बातें शब्दों से कह देने से नहीं सुलझतीं वे आँसू के रूप में बहकर निकल जाती हैं। नीलम आज कॉलेज नहीं आई थी उससे फोन पर बात हुई काफी कमजोर लग रही थी। उसके हाल चाल पूछ कर कामिनी ने फोन रख दिया। शाम को वह रोज की तरह बालकनी में बैठकर चाय पी रही थी। सामने वाली बालकनी आज खाली थी चौंक गई कामिनी, आज अंकल आंटी बालकनी में नहीं दिख रहे सब ठीक तो है न। उसने दिमाग पर जोर डाला तो याद आया कि पिछले दो-तीन दिन से उसने उन्हें नहीं देखा है। क्या मैं अपनी ही देह में इतनी उलझ कर रह गई हूँ कि मुझे आसपास की कोई खबर नहीं है? उसे ध्यान आया कि कुछ दिनों से वे गार्डन में भी नहीं दिखे। उनकी तबीयत तो ठीक है? कामिनी चिंतित हो गई उन्हें फोन करके देखती हूँ। नहीं नहीं शाम को वॉक पर जाने के पहले उनके घर हो कर देख आऊंगी, उनके तो कोई रिश्तेदार भी यहाँ नहीं हैं। बेटी भी दूर विदेश में है सोच कर कामिनी करुणा से भर गई। एक दिन ये दोनों बच्चे भी अपने आसमान में उड़ जाएंगे रह जाएंगे मैं और मुकुल। इस दूरी और नाराजगी के साथ कैसा होगा वह जीवन सोचकर ही कामिनी सिहर उठी। अंकल आंटी एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं एक दूसरे में ही उनकी पूरी दुनिया बसती है इसलिए उन्हें किसी और की जरूरत नहीं है। कल तक दो जिस्म एक जान वह और मुकुल अब अपने दायरे अलग अलग कर दो अलग अलग दुनिया के वासी हो चुके हैं, जहाँ आजकल दोनों को ही एक दूसरे की खबर नहीं होती।

"मम्मी मम्मी मम्मी" बेटी की तेज आवाज ने कामिनी को ख्यालों की दुनिया से बाहर निकाला। किसी अनहोनी की आशंका में वह हड़बड़ा कर अंदर भागी तो चाय का खाली कब पैर की ठोकर से झनझना कर बिखर गया। ड्राइंग रूम में पहुँचते ही बेटी ने दोनों हाथों से उसे पकड़कर गोल घुमा दिया।" अरे अरे छोड़ मुझे चक्कर आ रहे हैं गिर जाऊँगी, बता तो क्या हुआ?" तब तक सासू माँ और बेटा भी कमरे से बाहर आ गए। बेटी को एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप मिल गई थी दो महीने बाद उसे तीन महीने की ट्रेनिंग पर जाना है यह सुनकर घर में खुशी की लहर दौड़ गई। बेटे ने तुरंत मुकुल को फोन करके जल्दी घर आने को कहा बड़े से केक पिज़्ज़ा और कोक का ऑर्डर कर दिया गया। बहुत दिनों बाद घर में सब साथ बैठे हँसी खुशी का माहौल बन गया। तेज आवाज में बजते म्यूजिक पर बच्चे थिरक उठे बेटे ने कामिनी को हाथ देकर उठा दिया। उसके साथ झूमते नाचते कामिनी कुछ देर के लिए सारे दुख सारी उदासी भूल गई।बेटी ने पापा को भी डांस करने उठा दिया और थोड़ी ही देर बाद बेटा और बेटी कामिनी और मुकुल को एक दूसरे के सामने करके पिज्जा खाने बैठ गये। मुकुल के हाथ में हाथ दिये अपनी कमर पर उसके हाथों का स्पर्श पाकर कामिनी के मन में फिर कुछ घुमड़ने लगा लेकिन वह मुकुल नहीं था।

आज नीलम कॉलेज आई थी बड़ी थकी थकी कमजोर सी लग रही थी। टी ब्रेक में कामिनी ने उससे पूछा तो पता चला कि अब ऑपरेशन जल्दी से जल्दी करवाना जरूरी है। आपरेशन से ज्यादा चिंता उसे थी कि पीछे से घर कौन संभालेगा, राकेश अकेले कैसे हैंडल करेंगे, ऑपरेशन के बाद उन दोनों की लाइफ कैसी होगी जैसी तमाम चिंताओं ने उसे हलकान कर रखा था। कामिनी ने उसे ढांढस बंधाया सब ठीक होगा डॉक्टर से सभी चीजों के बारे में बात करना। मैं हूँ न सब कुछ हो जाएगा बस यह ट्यूमर नॉर्मल हो और ऑपरेशन ठीक से हो जाए। हर महीने कई कई दिन की इस परेशानी से मुक्ति मिले। नीलम कक्षा में चली गई और कामिनी सोचने लगी स्त्री का शरीर ऊपरी रूप सौंदर्य के साथ कितनी कुछ पर्तें छुपाए रहता है। इन्हीं परतों के बीच दबी मन की कोई दुविधा आक्रोश कोई दबी-कुचली भावना ट्यूमर के रूप में उभर कर सामने आते हैं उन पर्तों को उसे क्षत-विक्षत कर देते हैं तब पता चलता है। तभी तो कैंसर स्त्रियों में ज्यादा होता है।

रविवार की सुबह किसी दूधवाले के हार्न या लिफ्ट के जोर से बंद होने की आवाज से शालिनी की नींद खुली थी। आज हमेशा की तरह वह झुंझलाई नहीं क्योंकि नींद खुलते ही पहली बात जो उसके ध्यान में आई थी वह थी लंच। शनिवार शाम सुयोग ने उसे फोन करके लंच पर चलने को कहा था और उसने कहीं बाहर जाने के बजाय उसके घर पर लंच करने का प्रस्ताव रखा जिसे सुयोग ने मान लिया। उसने पूछा था कि क्या बना कर लाऊँ जिसे शालिनी ने हँसकर मना कर दिया था "तुम आ जाओ फिर एक दिन मैं तुम्हारे यहाँ तुम्हारे हाथ का लंच खाऊँगी। शालिनी चादर फेंक कर खड़ी हो गई। 8:00 बज गए अभी तो ढेर सारे काम हैं। फ्रेश होकर शालिनी ने अपने लिए ग्रीन टी बनाई और हाल में आ गई। पिछला हफ्ता बहुत व्यस्त रहा था ऑफिस से घर आकर सुयोग से रोज फोन पर होने वाली बातों का असर था कि उसे बिल्कुल समय नहीं मिलता था। पूरा घर अस्त-व्यस्त पड़ा था सोचा था वीकेंड के 2 दिन में सब समेट दूँगी लेकिन कल अचानक ऑफिस से बुलावा आ गया और जाना पड़ा। रात सुयोग से बात हुई और आज उसे लंच पर बुला लिया यह भी नहीं सोचा कि हफ्ते भर के काम समेटने हैं शॉपिंग भी करनी है। सब हो जाएगा शालिनी चिल यार उसने खुद को सांत्वना दी जो हो गया कर लेंगे न हुआ बाद में करेंगे यहाँ कौन है उसे कुछ कहने वाला? अभय, हाँ अभय होता तो जरूर कहता यार शालिनी थोड़ा तो व्यवस्थित रहा करो। सच तो यह है कि अभय की यादों ने उसकी बातों ने ही शालिनी को इतना व्यवस्थित बना दिया वरना वह तो हर बात को हँसी में उड़ाने वाली बेपरवाह सी लड़की थी। क्या अभय को सुयोग को लंच पर बुलाना अच्छा लगता शालिनी ने खुद से सवाल किया। इस सवाल ने उसे थोड़ी देर के लिए असमंजस में डाल दिया अभय के कहे शब्द कानों में गूंज गए 'अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना' वह मुझे कभी अकेला उदास नहीं देखना चाहता था। क्या प्रिया को इस तरह सुयोग का मेरे यहाँ लंच पर आना अच्छा लगेगा? शालिनी के पास इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर था लेकिन उसे दिए बिना वह घर समेटने के लिए उठ खड़ी हुई।

सुयोग शनिवार देर रात तक प्रिया से बात करता रहा था। शनिवार को वह भी रिलैक्स रहती है। उसकी छुट्टी तो नहीं रहती लेकिन हाफ डे होने से वह काफी फ्रेश रहती है। रात डिनर के बाद वह भी सुयोग के वीडियो कॉल पर आने का इंतजार करती है। उससे पहले नहाकर सुयोग के पसंद की लेस वाली नाइटी पहन आंखों में काजल की पतली सी रेखा खींच होठों पर लिप ग्लॉस की परत चढ़ा बालों को खुला छोड़ वह जैसे सुयोग की बाहों में समा जाने को आतुर रहती है। देर रात तक वह और सुयोग एक दूसरे में खोए रहते। सुयोग का जिम में बनाया गया मजबूत शरीर उसके तन मन में सिहरन भरता रहा। उसका मन दौड़ कर उससे लिपट जाने को करता रहा और वह इस इच्छा को होठों तक आने से रोकती। सही बात तो यह थी कि अब प्रिया से भी अकेले नहीं रहा जा रहा था। रात के अंधेरे में जवान शरीर की जरूरत है उसे बार-बार सब कुछ छोड़कर सुयोग के पास जाने के लिए उकसाती थी तो दिन के उजाले में अपना कैरियर उसमें मिली अहमियत इस भावनात्मक बेवकूफी को करने से रोकती थी।

हालाँकि मम्मी कई बार दबे शब्दों में इशारा कर चुकी थी कि जवान आदमी ज्यादा दिन अकेला नहीं रह सकता इसलिए उसे कैरियर के साथ ही अपनी गृहस्थी पर भी ध्यान देना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि वक्त हाथ से निकल जाए। प्रिया सुयोग से बातें करती उसकी खुद के प्रति दीवानगी देखती तो सोचती क्या वह ऐसा कर सकता है? क्या वह उसके अलावा किसी और के साथ.... ।उसका दिल कहता नहीं और दिमाग कहता कि मम्मी का अनुभव गलत नहीं हो सकता। दिल कहता मेरा सुयोग ऐसा नहीं है वह जानता है कि सिर्फ वह नहीं मैं भी अपनी जरूरतों को जज्ब कर रही हूँ दिमाग कहता फिर भी वह है तो पुरुष। स्त्री अपनी इच्छाओं को दिमाग से काबू कर सकती है लेकिन पुरुष शरीर के आगे मजबूर हो जाता है। दिल दिमाग की इस जद्दोजहद में प्रिया बुरी तरह कंफ्यूज हो जाती वह जिस बात पर भरोसा करना चाहती वही उसे उस पर भरोसा नहीं करने देती।

सुबह जिम से आकर सुयोग ने कुछ जरूरी काम किए थोड़ा घर ठीक-ठाक किया प्रिया का फोन आने वाला है। वह घर देखेगी बातें करेगी लेकिन क्या उसे लंच की बात बताना ठीक होगा? नहीं नहीं अभी उसे कुछ बताना ठीक नहीं है।

ठीक 1:00 बजे शालिनी के दरवाजे की घंटी बजी उसने दरवाजा खोला बाहर सुयोग आइसक्रीम का पैकेट हाथ में लिए मुस्कुराता हुआ खड़ा था।

अंदर आकर सुयोग ने देखा साफ सुथरा फ्लैट बिना किसी विशेष डेकोरेशन के भी अच्छा लग रहा था। हॉल में एक बेंत का सोफा दो कुर्सी कांच की सेंटर टेबल और जमीन पर एक गद्दे पर तरतीब से रखे कुछ रंग बिरंगे कुशन। दीवार पर एक रोमन नंबर वाली घड़ी और एक फैमिली फोटो थी जिसमें शालिनी भी मौजूद थी। इस कमरे की एक झलक सुयोग वीक एंड पार्टी वाले दिन देख चुका था। वेलकम ड्रिंक के साथ शुरू हुआ बातों का सफर खाने और आइसक्रीम के बाद भी चलता रहा । 4:00 बजे सुयोग ने एक अच्छे दिन की तसल्ली के साथ विदा ली। सुयोग के जाने के बाद शालिनी वहीं हाल में गद्दे पर पसर गई। वह थक गई थी लेकिन आज का दिन वीकेंड पार्टी की मस्ती से बेहद अलग था। आज एक जुड़ाव था किसी के सामिप्य का एहसास था मौज मस्ती से अलग सुख दुख की बातें थीं। यहाँ खुद को भूलने की कोशिश नहीं थी बल्कि भूली बिसरी बातों के साथ खुद को पाने की इच्छा थी। आज शालिनी ने याद किए अपने कॉलेज के दिन, अपने भविष्य को लेकर देखे सपनों की बातें, एक घर बनाने की चाहत तो सुयोग ने भी महसूस किया कि उसकी जिंदगी कितनी अधूरी है। साथ ही यह भी जाना कि प्रिया की जिंदगी भी उतनी ही अधूरी है और वे दोनों दो अधूरी जिंदगियों को वीडियो कॉल के जरिए पूरा करने की असफल सी कोशिश में लगे हैं।

फोन की घंटी से शालिनी की आँख खुली अंधेरा घिर आया था। हेलो तरुण बोल रहा हूँ इस आवाज में शालिनी की नींद उड़ा दी। वह उठ बैठी अलसाई सी आवाज में वह देर तक तरुण से बात करती रही। आज तरुण ने उसे बाहर चलने का आमंत्रण नहीं दिया बस थोड़ी देर बात करने की इच्छा जताई। आज ही शालिनी ने जाना था कि किसी से थोड़ी देर यूँ ही बातें करना कितना जरूरी है इसलिए वह भी उसे मना नहीं कर पाई और देर तक फोन पर तरुण से बात करती रही।

क्रमशः

मानसी वर्मा

Vermamansu7@gmail.com

मानसी वर्मा

बीई, एमबीए

डायरी लेखन, रिपोर्ट बुक रिव्यू, संस्मरण छोटी कहानियाँ