Aaghaat - 47 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 47

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

आघात - 47

आघात

डॉ. कविता त्यागी

47

पूजा से अपनी आशा के विपरीत उत्तर पाने के बाद रणवीर घर से निकलकर सड़क पर आ गया और धीमी गति से चलने लगा । अपनी असफलता से वह अभी पूरी तरह निराश नहीं हुआ था, इसलिए ऐसी किसी नयी युक्ति के विषय में सोचता जा रहा था, जिससे पूजा और अविनाश के बीच बढ़ती हुई घनिष्ठता में कम हो जाए ! रणवीर को पूर्ण विश्वास हो गया था कि अविनाश ही वह व्यक्ति है, जो पूजा को उसके पति से अलग रहकर जीने की शक्ति प्रदान कर रहा है । यदि अनिवाश पूजा से दूर चला जाए, तो उसके दाम्पत्य-जीवन में कोई अवरोध शेष नही रह जाएगा । अपने इन्हीं विचारों में खोया-सा रणवीर चलते-चलते अभी अधिक दूर नहीं गया था, तभी एक मारूति कार उसके निकट आकर रुक गयी और उसमें बैठे हुए व्यक्ति के द्वारा कार का शीशा खुलने का उपक्रम होने लगा । रणवीर, जो अभी तक अपने में ही कहीं खोया हुआ था, ठिठककर रुक गया और गाड़ी का शीशा खोलकर बाहर झाँंकते हुए चेहरे की ओर देखने लगा

शीशा खोलकर बाहर झाँकने वाला चेहरा रणवीर के लिए अपरिचित नहीं था ! वह वाणी थी और रणवीर को गाड़ी में बैठने का संकेत कर रही थी । वाणी का संकेत पाकर वह सम्मोहन की-सी अवस्था में गाड़ी की खिड़की खोलने लगा । सम्मोहित-सा वह कार में बैठ गया। वाणी ने उसको कार का दरवाजा ठीक प्रकार बन्द करने के लिए कहा, तो उसने दरवाजा खोलकर पुनः ठीक प्रकार बन्द कर दिया और चुपचाप बैठ गया ।

दरवाजा बन्द होते ही वाणी का संकेत पाकर ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी । गाड़ी चलने के पश्चात् कुछ क्षणों तक वाणी और रणवीर मौन बैठे रहे। इस समयान्तराल में वाणी एकटक रणवीर की और देखती हुई यह सोच रही थी कि परस्पर-संवाद की पहल रणवीर करे। अपने इसी विचार को पुष्ट करने के लिए वह रणवीर की ओर से संवाद की प्रतीक्षा करने लगी। कुछ ही क्षणों की प्रतीक्षा ने वाणी के ध्ैर्य को पराजित कर दिया। अब वह और अध्कि प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। उसने अपनी प्रतीक्षा को विराम देते हुए रणवीर के साथ संवाद की पहल करते हुए कहाµ

‘‘यह नहीं पूछोगे, तुम्हें लिफ्ट देने के लिए मैं यहाँ अचानक कैसे पहुँच गयी ?’’

रणवीर ने वाणी के प्रश्न का उत्तर नहीं दिया । अपनी दृष्टि ऊपर उठाकर एक बार वाणी की ओर देखने के बाद वह पुनः अपनी पूर्वावस्था में बैठ गया । रणवीर से अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिलने पर वाणी ने पुनः कहा -

‘‘इस समय तुम्हें मेरी आवश्यकता थी, इसीलिए मैं यहाँ आयी थी !’’

रणवीर ने इस बार भी वाणी की बात का कोई उत्तर नहीं दिया। इस बार भी उसने दृष्टि ऊपर उठाकर वाणी को देखा - सद्यः पूर्व की भाँति बिल्कुल मौन रहकर । परन्तु इस दृष्टि में एक प्रश्न था । एक मौन-संवाद था, जो उसके हृदय और मस्तिष्क से एक साथ आविर्भूत हुआ था । रणवीर की दृष्टि को अपने संवाद की प्रतिक्रिया के रूप में अनुभव करके वाणी प्रफुल्लित हो उठी । उसने रणवीर की प्रश्नात्मक दृष्टि को द्विगुणित करने की मुद्रा में पुनः कहा -

‘‘मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती हूँ, यथा - इस समय तुम कहाँ से आ रहे हो ? कहाँ जा रहे हो ? इतने बेचैन और निराश क्यों हो ? और यह भी कि तुम अब क्या सोच रहे हो ?

‘‘मैं कहाँ से आ रहा हूँ ? यह प्रश्न बहुत जटिल नहीं है ! अपने घर के इतने निकट हूँ, तो कोई भी बता सकता है कि मैं अपने घर से आ रहा हूँ !’’ रणवीर ने अपने हृदयस्थ भावों को छिपाते हुए कहा ।

‘‘अपना घर ? रणवीर, तुम उस घर को अपना कैसे कह सकते हो, जिस घर की स्त्री और बच्चों को तुम फूटी आँख भी नहीं सुहाते हो ?’’

‘‘वाणी, बकवास बन्द करो ! मेरी खोपड़ी मत खाओ ! तुम जैसा सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं है !’’

‘‘रणवीर ! तुम चाहकर भी मुझसे कुछ नहीं छिपा सकते हो ! मैं जानती हूँ, आजकल पूजा और उसके दोनों बेटे तुम्हारा स्थान अविनाश को देने की तैयारी कर रहे हैं ! तुमने अपनी जगह को वापिस पाने के लिए पूजा की बुआ को भी बुलाया था, पर सफलता नहीं मिली ! च-च-च-च बेचारा... !’’

‘‘तुम्हें यह सब कुछ कैसे ? कहाँ से ज्ञात हुआ ?’’

‘‘मुझे तो और भी बहुत-कुछ ज्ञात है ! तुमसे प्यार करती हूँ न !’’

वाणी की बातें सुनकर वह आश्चर्यचकित हो रहा था । वह अनुमान करने का प्रयास कर रहा था कि वाणी को उसके प्रत्येक क्रियाकलाप के विषय में कैसे ज्ञात हो जाता है ? क्या मेरे पीछे वाणी के जासूस लगे हैं, जो उसको हर पल की सूचना देते हैं ? अथवा वाणी किसी अन्य माध्यम से उसके क्रियाकलापों की सूचना प्राप्त करती है ! रणवीर के अन्तर्द्वन्द्व को भाँपकर वाणी ने उपहास की मुद्रा में कहा -

‘‘रणवीर ! इस विषय को लेकर अपने मस्तिष्क पर इतना बोझ डालने की आवश्यकता नहीं है ! यह सोचो, अब आगे तुम्हें क्या करना है ?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि पूजा और उसके बेटे तुमसे प्रेम नहीं करते है ! मैं तुमसे प्रेम करती हूँ ! सच पूछो, तो मुझे डर लगता है कि पूजा और अविनाश मिलकर दोनों किसी दिन तुम्हें अपने रास्ते से हटाने के लिए ... ! इसीलिए मैं तुम्हारे आस-पास......!’’

‘‘वाणी ! जुबान संभालकर बोलो ! तुम जानती भी हो, क्या कह रही हौ ? पूजा...!’’ रणवीर ने क्रोधवेश में कहा । वाणी ने उसका वाक्य बीच में ही काटकर कहा -

‘‘जानती हूँ, पूजा तुम्हारी पत्नी है ! ऐसी पत्नी, जो तुम्हें - अपने पति को घास नहीं डालती है और एक पराये पुरुष-अविनाश को नित्यप्रति कभी चाय पर, तो कभी डिनर पर अपने घर बुलाती रहती है ! फिर भी तुम उसके लिए मरते हो ! मुझ-सी प्रेम करने वाली का तिरस्कार करते हो !’’

अपने शब्दों का रणवीर पर प्रभाव देखने के लिए वाणी क्षण-भर के लिए वाणी चुप हुई । एक क्षणोपरान्त वाणी ने पुनः कहा -

‘‘रणवीर ! मैं तुमसे प्रेम करती हंँ ! मैं जानती हूँ, तुम भी मुझसे उतना ही प्रेम करते हो, जितना मैं तुमसे करती हूँ ! मैं तुम्हारा प्रथम-प्रेम हूँ और तुम मेरा प्रथम-प्रेम हो ! मुझे तुम्हारी आवश्यकता है ! प्लीज, लौट आओ, मेरे पास, प्लीज ! प्लीज ! प्लीज रणवीर !’’

‘‘ठीक है !’’

रणवीर ने वाणी के प्रस्ताव को स्वीकार करने की मुद्रा में कहा । अपनी अपेक्षानुरूप रणवीर की स्वीकृति पाकर वाणी की बाँछे खिल गयी । अब तक उनकी गाड़ी भी गंतव्य स्थान - वाणी के घर के निकट पहुँच चुकी थी । वाणी ने ड्राइवर से कहकर अपने घर के द्वार से कुछ दूर गाड़ी रुकवा दी और गाड़ी रुकते ही वह रणवीर को उतरने का संकेत करती हुई स्वयं भी उतर गयी । वाणी का संकेत पाकर रणवीर यह पूछे बिना कि गाड़ी़ घर से कुछ दूरी पर ही क्यों रुकवा दी गयी ? गाड़ी से उतर गया ! गाड़ी से उतरकर वाणी अपने घर की ओर चल दी और सम्मोहित-सा रणवीर भी उसके पीछे-पीछे चल दिया । कुछ कदम चलते ही वाणी ठिठककर रुक गयी और पीछे मुड़कर रणवीर से बोली -

‘‘रणवीर ! तुम्हें मेरे साथ हमारे घर चलने से पहले आज निश्चय करना होगा कि तुम किसके साथ रहोगे ? वाणी के साथ या पूजा के साथ ? तुम्हें हम दोनों में से किसी एक को चुनना होगा !’’

‘‘वाणी, तुम आज ये कैसी बातें कर रही हो ? मैं हूँ न तुम्हारे साथ !’’

‘‘नहीं, रणवीर ! ऐसे नहीं ! तुम्हारे प्रेम पर मैं ऐसे ही विश्वास नहीं कर सकती ! तुम यह जानते हो, मैं एक बार धोखा खा चुकी हूँ !’’

‘‘तुम्हें विश्वास दिलाने के लिए मुझे क्या करना होगा ?’’

‘‘अपनी सम्पत्ति मेरे नाम पर लिखनी होगी ! यह नहीं कर सकते, तो कम-से-कम तुम्हें अपनी सम्पत्ति की मेरे नाम पर वसियत अवश्य ही लिखनी होगी ! तभी तुम्हारे प्रति मेरा विश्वास दृढ़ हो सकता है और हम दोनों एक साथ हमारे घर में रह सकते है !’’

‘‘वाणी ! यह ज्ञात है तुम्हें कि अब समय कितना हुआ है ? शाम हो चुकी है ! अब जो कुछ भी कराना है, कल कराना !’’ रणवीर ने कृत्रिम मुस्कुराहट के साथ प्रेमपूर्वक कहा । वाणी ने रणवीर की सहमति में इस प्रकार गर्दन हिला दी, जैसेकि सहमत होने के लिए वह विवश थी । रणवीर से सहमत होने के पश्चात् उसको अपने घर पर ले जाने के अतिरिक्त वाणी के पास कोई विकल्प नहीं था । अतः उसने रणवीर को अपने साथ घर आने का संकेत दिया और घर की ओर चल पड़ी । घर पहुँचकर वाणी ने भोजन बनाया, मेज पर सजाया, तत्पश्चात् दोनो ने एक साथ बैठकर खाया। भोजन करने के पश्चात् रणवीर वहीं पर वाणी के घर में ही सो गया। प्रातः शीघ्र ही उठकर वह वहाँ से चला गया और रात में पुनः वाणी के घर लौट आया । उसी रात वाणी ने कागज का एक टुकड़ा रणवीर के हाथ में देते हुए कहा -

‘‘अपने प्रेम की पैंग बढ़ाने के लिए पूजा और अनिवाश कल एक रेस्टोरेंट में मिलने का कार्यक्रम बना रहे है ! लो, यह उस रेस्टोरेंट का एड्रेस है !’’

‘‘तुम यह कैसे जानती हो कि वे दोनो....?’’

‘‘मैं क्या, कैसे जानती हूँ, यह छोड़ो ! जो सूचना तुम्हें दी गयी है, वह शत-प्रतिशत सत्य है ! तुम वहाँ जाकर उन दोनों को प्रेम-प्रलाप करते हुए स्वयं देख सकते हो !’’

‘‘वाणी, तुम मुझे वहाँ भेजकर क्या सिद्ध करना चाहती हो ? और क्यों ?’’

‘‘मैं चाहती हूँ कि तुम्हारी आँखों पर बंधी हुई तुम्हारे अंधे विश्वास की पट्टी हट जाए ! तुम सत्य को स्वीकार कर लो और पूजा को छोड़कर मेरे साथ रहो ! अब यह मत कहना कि तुम अब भी मेरे साथ ही हो !’’

वाणी ने अन्तिम शब्द अपने प्रेम-माधुर्य का जाल फैलाते हुए मुस्कुराकर परिहासपूर्ण शैली में कहे थे । रणवीर ने भी मुस्कुराकर उसका उत्तर दे दिया ।

अगले दिन रणवीर निश्चित समय पर उस रेस्टोरेंट में पहुँच गया, जिसका पता वाणी ने उसको दिया था और बताया था कि वहाँ पर पूजा और अविनाश एक-दूसरे से मिलने के लिए आएँगे । वहाँ पहुँचकर रणवीर आराम से बैठ गया और लगभग आधा घंटा तक अवनीश और पूजा की प्रतीक्षा करता रहा । आधे घंटे पश्चात वह विश्वास और अविश्वास के बीच झूलने लगा कि पूजा और अविनाश वहाँ पर आएँगे भी या नहीं ? आएँगे, तो कब तक आएँगे ? आखिर कब तक उनकी प्रतीक्षा करनी पडे़गी ?

रणवीर अभी तक अपने अविश्वास से उत्पन्न प्रश्नों में उलझ ही रहा था, तभी उसकी दृष्टि रेस्टोरेंट में प्रवेश करते हुए अविनाश, पूजा, प्रियांश और सुधांशु पर पड़ी । उन्हें देखते ही रणवीर की आँखों में क्रोध उतर आया । अपनी पत्नी के साथ एक पर-पुरुष अविनाश को सहन कर पाना उसके लिए असहज हो रहा था । कुछ क्षणों तक वह अपने स्थान पर बैठा हुआ एकटक पूजा की ओर ताकता रहा । इस समय उसका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था । शीघ्र ही उसका क्रोध चरम पर पहुँच गया । वह क्रोधावेश में उठा और पूजा की ओर लपका । अब तक पूजा रेस्टोरेंट के उस स्थान पर पहुँच चुकी थी, जहाँ पर बैठकर अनेक युगल और अनेक एकाकी परिवार चाय-नाश्ते के साथ-साथ अपनों के सान्निघ्य का आनन्द उठा रहे थे। पूजा के निकट पहुँचकर रणवीर ने देखा कि निकट ही एक मेज के इर्द गिर्द उनका पड़ोसी भी अपने पूरे परिवार के साथ जीवन का आनन्द ले रहा था । अपने पड़ोसी को देखकर एक क्षण के लिए रणवीर ठिठक गया किन्तु अपने क्रोध पर नियन्त्रण नहीं रखने के कारण वह स्वयं को अधिक समय तक रोक पाने में पूर्णतः असमर्थ था ।

उस समय क्रोध में भी रणवीर को अपनी चेतना से एक अस्पष्ट-सा प्रकाश मिल रहा था कि उस सार्वजनिक स्थान पर, जहाँ पर उसका अपना पड़ोसी भी उपस्थित है, उसे अपना क्रोध प्रकट नहीं करना चाहिए । परन्तु, चेतना की उस आवाज पर उसका क्रोध भारी पड़ा । वह क्रोध में आगे बढ़ा और पूजा को जोर का थप्पड मारकर उसके चरित्र पर लांछन लगाने लगा । रणवीर के अभद्र व्यवहार को देखकर अविनाश स्तब्ध् था। उसने रणवीर के अनपेक्षित व्यवहार पर प्रश्न चिह्न लगाते हुए कहा -

‘‘भाई साहब, आप यह सब ठीक नहीं कर रहे हैं ?"

अविनाश के शब्दों से रणवीर का क्रोध और बढ़ गया । अब उसके क्रोध की दिशा बदल गयी थी । वह पूजा को छोड़कर अविनाश की ओर मुड़ गया और उसको मारने के लिए अपने हाथ के पंजे को मुक्के की शक्ल में ढाल लिया । प्रियांश को अपने पिता का यह व्यवहार स्वीकार्य नहीं था । अविनाश अब उसका भी घनिष्ट मित्र बन चुका था । पहले सार्वजनिक स्थान पर माँ की पिटाई तथा अब मित्र के साथ अभद्रता सहन करना उसके वश की बात नहीं थी । उसके हदय में पिता के प्रति क्रोध की ज्वाला भड़क उठी थी । उसने आगे बढ़कर पिता का हाथ पकड़ते हुए कहा -

‘‘बस ! बहुत हो गया ! हमने आज तक आपको जितना सम्मान दिया है, आप उसके लायक ही नहीं हैं ! न कभी थे !’’

रणवीर को अपने बेटे से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी । वह बेटे की शारीरिक क्षमता से भली-भाँति परिचित था, इसलिए अपने विरुद्ध प्रियांश को खड़ा पाकर रणवीर ने अपना उठा हुआ हाथ नीचे कर लिया और क्रोध से घूरते हुए कहा -

‘‘तेरी इतनी हिम्मत हो गयी है कि मेरा हाथ पकड़ रहा है ? मुझे बता रहा है, मैं किस लायक हूँ और किस लायक नहीं हूँ !’’

‘‘भाई ठीक कह रहा है ! यहाँ आकर हमारी माँ पर हाथ उठाकर आज आपने बहुत गलत किया है !’’ सुधांशु ने प्रियांश का समर्थन किया ।

‘‘पहले तुम दोनों को ही सिखाना पड़ेगा कि बाप के साथ कैसे व्यवहार किया जाता है ?’’

रणवीर ने अपने किसी भावी कठोर निर्णय का संकेत देते हुए कहा । उसकी चुनौती को स्वीकार करते हुए सुधांशु और प्रियांश एक साथ बोल उठे -

‘‘पापा जी, सीखने की आवश्यकता आपको है, हमें नहीं ! लगता है, यह काम भी हमें ही पूरा करना पडे़गा ! .... और शायद जल्दी ही करना पडे़गा !’’

रणवीर ने रेस्टोरेंट में जो कुछ किया और जो उसके साथ हुआ वह इतना अचानक हुआ था कि किसी को भी ऐसी आशा-अपेक्षा नहीं थी । रणवीर उसी क्षण वहाँ से लौट गया । रणवीर के पश्चात् पूजा भी वहाँ से चल दी और उसके पीछे-पीछे उसके दोनों बेटे चल दिये । अविनाश को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे ? क्या कहे ? अतः कुछ दूरी तक वह भी उनके साथ-साथ चला । कुछ दूर चलने के पश्चात् वह उनसे अलग हो गया और अपने आॅफिस चला गया ।

रेस्टोरेंट से निकलकर रणवीर बड़बड़ाता जा रहा था -

"इन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा ! इन्हें पता नहीं है, मैं कौन हूँ ? मैं इनका बाप हूँ, यह इन्हें अब बताना ही पड़ेगा !’’

‘‘परन्तु कैसे ? कैसे बताओगे उन्हें यह बात कि तुम उनके बाप हो ?’’

एक प्रश्नसूचक ध्वनि रणवीर के कानों में टकरायी । चिर परिचित स्वर में पूछे गये प्रश्न से रणवीर को थोड़ा-सा आश्चर्य हुआ और साथ ही अपने क्रोध की क्षणिक अभिव्यक्ति के लिए आश्रय भी मिला था । परन्तु, वाणी ने बड़ी ही सावधनी से रणवीर के क्रोध को पूजा के प्रति प्रतिशोध की भावना के रूप में परिवर्तित करके स्वयं को उसके प्रेम का अवलम्ब बना लिया ।

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com