Aaghaat - 39 in Hindi Women Focused by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | आघात - 39

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आघात - 39

आघात

डॉ. कविता त्यागी

39

रणवीर के विरुद्ध खडे़ होने पर पूजा को ज्ञात हुआ कि वाणी के अतिरिक्त रणवीर ने कई अन्य स्त्रियों के साथ अवैध-अनैतिक सम्बन्ध बनाये हुए हैं । किन्तु,आज भी रणवीर पर वाणी का नियन्त्रण अपेक्षाकृत दृढ़ है और वाणी ही वह कटार है, जिसने पूजा और रणवीर के पवित्र-वैवाहिक-बन्धन को मूलतः काटने का प्रयास किया है । वाणी के लिए रणवीर अपनी कमाई का एक बड़ा भाग खर्च करता रहा है और उसके साथ इतनी घनिष्ठता रखता है कि उसके कष्टों को कम करने के लिए सदैव तत्पर रहता है, इसलिए वाणी उस पर पूर्ण अधिकार करने के लिए लालायित है ।

वाणी की ओर आकर्षित होने पर भी रणवीर अपना सम्पूर्ण जीवन उसके साथ व्यतीत करने के लिए अपनी पत्नी और अपने बच्चों को पूर्णरुपेण छोड़ने के लिए तत्पर न था। शायद इसीलिए वह पूजा के निर्णय से विचलित हो गया था और अपने प्रति पूजा के नकारात्मक भावों को देखते हुए उसने पुनः घर जाना आरम्भ कर दिया था ।

रणवीर अब अपनी पत्नी और दोनों बेटों के हृदय में अपने प्रति पुनः विश्वास जाग्रत करना चाहता था । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उसने प्रतिदिन समय पर घर आना-जाना और बच्चों की इच्छाओं-आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन-व्यय करना भी आरम्भ कर दिया था। वह जानता था कि पूजा को विश्वास में लेने का सर्वसुलभ मार्ग उसके दोनों बच्चों से होकर जाता है। अर्थात सबसे पहले उसके बच्चों को प्रसन्न करना है। उसने घर में भी पुराने वाशिंग मशीन, टी.वी., रेप्रफीजरेटर आदि को बदलकर नये लाकर रख दिये, ताकि पूजा उस पर विश्वास कर सके। कुछ ही समय में उसने देखा कि पूजा की ओर से अनुकूल प्रतिक्रिया मिलने लगी है।

अपने उद्देश्य में मिलती हुई सफलता से उत्साहित होकर रणवीर ने अतिरिक्त सावधनी बरतना आरम्भ कर दिया। अब वह पूजा के हृदय में अपने प्रति अविश्वास नहीं चाहता था। अपने बेटों और पत्नी के हृदय में विश्वास को दृढ़ करने के लिए उसने एक दिन प्रियांश को उपहारस्वरुप लैपटाॅप लाकर दिया और प्रसन्नता के वातावरण में उसी दिन अनुकूल अवसर पाकर प्रियांश के समक्ष अपना प्रस्ताव रखते हुए कहा कि वह अपनी मम्मी से आग्रह करके पिता के विरुद्ध डाले गये केस को बन्द करा दे। किन्तु, प्रियांश ने उस विषय में अपनी रुचि न दिखाते हुए नकारात्मक संकेत ही दिया।

रणवीर को लगता था कि प्रियांश अभी अबोध है, बच्चा है, थोड़ा-सा स्नेह और उपहार पाकर वह पिता का आज्ञाकारी पुत्र बनकर अपनी माँ पर दबाव बनायेगा कि वह अपने अधिकिरों की माँग करना छोड़ कर पिता के समक्ष समर्पण कर दे और पूर्व की भाँति घुट-घुट कर अपना जीवन जिए ! परन्तु, ऐसा नहीं हो सका ।

अपने उद्देश्य में शीघ्र सफलता न मिलने के परिणामस्वरुप रणवीर का बेटों से और घर से फिर मोह भंग होने लगा। वह चेतावनी देने लगा था कि यदि उन्होंने आज्ञा का पालन नहीं किया, तो वह पुनः घर छोड़कर चला जाएगा ! रणवीर के इस व्यवहार से पूजा और प्रियांश यह नहीं समझ पा रहे थे कि रणवीर का घर लौटकर आना उसकी हार्दिक भावना थी अथवा उसके अभिनय का एक अंश ? पूजा के ऐसा सोचने का कारण रणवीर द्वारा गुजारे-भत्ते का केस वापिस लेने के लिए दबाव बनाना था ।

पूजा ने रणवीर से अनेक बार शान्तिपूर्वक यह बात कही थी कि यदि वह घर में रहना चाहता है और अपने दायित्वों को वहन करने के लिए तैयार है, तो केस वापिस लेने या न लेने से कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए । क्योंकि यदि रणवीर अपने वचन का पालन करेगा, तो वह कोर्ट के माध्यम से मिला हुआ धन वापिस उसी को सौंप दिया करेगी। रणवीर इस तर्क से सहमत नहीं था। उसका तर्क था कि कोर्ट के माध्यम से पत्नी और बच्चों का खर्च वहन करने में उसका अपमान है । यदि वह पति को घर वापिस बुलाना चाहती है, तो गुजारा-भत्ता लेने का दावा छोड़ना ही पड़ेगा । पूजा रणवीर के इस तर्क से सन्तुष्ट नहीं थी ।

दूसरी ओर, वाणी भी रणवीर के कार्य-व्यवहार से सन्तुष्ट नहीं थी । वह एक बार धोखा खा चुकी थी, जब उसके पति ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपनी सारी सम्पत्ति अपनी पूर्व पत्नी के नाम पर रजिस्टर्ड कर दी थी। इस बार वह अपने साथ कोई धोखा नहीं चाहती थी, इसलिए वह रणवीर के हर कार्य-व्यवहार पर क्षणे-क्षणे अपनी पैनी दृष्टि रखती थी । उसकी दृष्टि इतनी पैनी थी कि रणवीर का अपनी पत्नी पूजा के पास आना-जाना और उसके लिए तथा बच्चों के लिए खर्च करना भी उसकी दृष्टि से बच नहीं सकता था । रणवीर द्वारा अपनी पत्नी के साथ पुनः सम्बन्ध स्थापित करने की प्रथम सूचना से ही वाणी विचलित हो गयी थी। यह उसको असह्य था । इस सम्बन्ध में उसने रणवीर के साथ चर्चा भी की थी कि वह ऐसा नहीं कर सकता। अपने प्रथम प्रेम को वह धोखा नहीं दे सकता, न ही उसे ऐसे कभी करना चाहिए ! इस विषय पर रणवीर के साथ चर्चा करते-करते वह भावावेश में आकर अत्यन्त क्रोधित होकर रणवीर पर स्वयं को बर्बाद करने का आरोप लगा चुकी थी । वाणी ने आरोप लगाते हुए कहा था कि रणवीर ने अपने प्यार में फँसाकर उसको उसके पति से विमुख कर दिया था। यही कारण था कि उसके पति का उसके प्रति विश्वास कम और क्रमशः कम होता चला गया और अन्त में उसके पति का प्रेम-विश्वास पूर्णतः अविश्वास में परिवर्तित हो गया था, जिसका जिम्मेदार केवल रणवीर हैं। यदि रणवीर ने उसे अपने प्रेम में फँसाकर गुमराह न किया होता, तो आज वह अपनी छोटी-सी दुनिया में अपने पति के साथ सुखी सम्पन्न और अपनी पति की सम्पूर्ण सम्पत्ति की स्वामिनी होती !

क्रोध करते-करते वह कुछ सोचकर क्षण-भर चुप रही । तत्पश्चात् अत्यन्त दयनीय मुद्रा में रणवीर के समक्ष गिड़गिडा़ने लगी कि यदि रणवीर उसे छोड़कर अपनी पत्नी के पास चला जाएगा, तो वह नितान्त अकेली और आश्रयहीन हो जायेगी ! वाणी के इस व्यवहार से रणवीर भावुक हो उठा था । उसने आगे बढ़कर वाणी को सीने से लगाकर सांत्वना दी और आश्वस्त किया कि वह उसको पहले भी प्रेम करता था, आज भी करता है और भविष्य में भी करता रहेगा ! वह उसको कभी भी अकेला और आश्रयहीन नहीं छोडेगा ! किन्तु, रणवीर ने उस समय भी, अपने भावुकतापूर्ण क्षणों में भी वाणी को यह सांत्वना नहीं दी कि वह अपनी पत्नी और बेटों के साथ नहीें रहेगा या उनके प्रति अपने किसी दायित्व का निर्वाह नहीं करेगा ! फिर भी, वाणी ने उसके प्रेम-प्रलाप और सांत्वना का नितान्त अपने पक्ष में आशय लिया ।

रणवीर ने उस समय वाणी की आशा-अपेक्षानुसार अपने मुख से जो शब्द निसृत किये, वाणी ने उन शब्दों का आशय अपने पक्ष में लेते हुए उन शब्दों की विस्तृत व्याख्या कर ली । किन्तु, रणवीर उसके बाद अपनी परिस्थिति और आवश्यकता के अनुसार कार्य-व्यवहार करने लगा था ।

रणवीर पूजा के पास जाने की आवश्यकता का अनुभव भी कर रहा था। या यह कहा जा सकता था कि कई विषम परिस्थितियाँ उसके समक्ष आ खड़ी हुई थी, जिन्होंने रणवीर को पूजा के पास लौटने के लिए विवश कर दिया था। उनमें से एक वाणी का व्यवहार था, दूसरा पूजा के साथ उसका कोर्ट में झगड़ा तथा तीसरा सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आना था। रणवीर भली-भाँति जानता था कि इनमें भी पहली और तीसरी परिस्थितियों को उत्पन्न करने का श्रेय उसका पूजा के साथ झगडा होना था । वह पिछले काफी दिनों से वाणी के व्यवहार में बहुत रूखापन अनुभव कर रहा था । वाणी का यह रूखा व्यवहार उस समय से होना आरम्भ हुआ था, जबसे उसने पूजा के पास जाना बन्द कर दिया था। जब वह पूजा के साथ रहता था, तब वाणी उसके साथ मधुर व्यवहार करके अपने भिन्न-भिन्न क्रिया-कलापों से उसे अपनी ओर आकर्षित करती थी । परन्तु, जब रणवीर ने पूजा के साथ रहना बन्द कर दिया और पूजा भी रणवीर को वापिस बुलाने के प्रयास बन्द करके कोर्ट में उसके विरुद्ध खड़ी हो गयी, तब वाणी पूजा की ओर से निश्चित हो गयी और उसने रणवीर को अपनी ओर खींचने-आकर्षित करने वाले कार्य-व्यवहार बन्द कर दिये थे । इससे रणवीर को अपनी उपेक्षा का अनुभव होने लगा था कि 'धोबी का कुत्ता न घर का रहा, न घाट का' उक्ति के अनुरूप वह न तो घर का रहा है, न बाहर का ! रणवीर की इस स्थिति से उसके सभी मित्र परिचित थे, इसलिए समाज में उसकी मान-प्रतिष्ठा को भी चोट पहुँच रही थी ।

रणवीर चतुर था। वह अपनी परिस्थितियों की विषमता का कारण-परिणाम और उसके उपाय जानता था, इसलिए उसने पूजा के साथ रहकर एक तीर से अनेक लक्ष्य साधने का निश्चय किया। पत्नी के पास लौटकर उसके साथ रहते हुए, अपने दायित्वों का निर्वाह करके वह समाज में पुनः उसी प्रतिष्ठा को प्राप्त कर सकता था, जो उसने अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार में पायी थी और जिसमें श्रीवृद्धि करना उसका कर्तव्य था तथा अपने विवाह के प्रांरभिक समय में जिसे वह प्राप्त कर चुका था ।

रणवीर को यह विश्वास था कि साथ रहकर वह अपने विरुद्ध खड़ी हुई पत्नी को अपने पक्ष में कर सकता है । इसके साथ ही वह वाणी को एक भी अप्रिय शब्द बोले बिना भी अपने समय तथा प्रेम का महत्त्व समझा सकता था । इन सभी बातों के विषय में सोचकर रणवीर ने वही किया, जो उसको अपने पक्ष में हितकर लगा । अर्थात् वह पूजा और अपने बेटों के साथ आकर रहने लगा और अपने दायित्वों का निर्वाह करके उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करने लगा। अपने इस प्रयास से उसके दो निशाने तो लक्ष्य पर लगे थे - वाणी को उसका महत्त्व समझ में आ गया था और समाज भी स्वीकारने लगा था कि पति-पत्नी का सम्बन्ध ऐसी छोटी-मोटी गलतियों से या छोटे-छोटे मतभेद उत्पन्न होने से नहीं टूटता है ।

परन्तु तीसरा लक्ष्य - पूजा के साथ रहकर उस पर अपने प्रेम और मधुर-व्यवहार का जादू करके उस पर अपना नियन्त्रण करने और कोर्ट में चल रही अपने विरुद्ध केस-फाइल को बन्द कराने में वह सफल नहीं हो सका था। इसका अर्थ यह कदापि नहीं था कि रणवीर अपनी योजना में विफल होकर निराश हो गया था । नहीं, ऐसा होना कठिन था । उसे अपनी बुद्धि पर तथा अपनी वाक् पटुता पर उतना ही विश्वास था, जितना पूजा को ईश्वर पर था ! अपनी बुद्धि और वाक् चातुर्य के बल पर ही उसने समझाने की-सी मुद्रा में पूजा को चेतावनी दे डाली थी -

"हम भी देखेंगे कि तुम माँ-बेटे कोर्ट से कैसे गुजारा-भत्ता लोगे ! हमने सोचा था, घर की बात घर में रह जाएगी, बच्चों का भविष्य भी सँवर जाएगा और मर्यादा भी बनी रहेगी ! पर तुम्हें यह स्वीकार नहीं है ! न मान-मर्यादा की चिन्ता है, न बच्चों के और अपने भविष्य की कोई चिन्ता है ! यह है, तो यही सही ! जैसी तुम्हारी इच्छा ! जो बात आज इतना समझाने पर तुम्हें समझ में नहीं आ रही है, कल कोर्ट में धक्के खाने के बाद जब एक कौडी भी नहीं मिलेगी, तब समझ में आ जायेगी !’’

इतना कहते हुए रणवीर घर से निकल गया। शाम को पूजा ने रणवीर के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए उसके चचेरे भाई विनय से सम्पर्क किया, तो उसे ज्ञात हुआ कि रणवीर घर से जाने के पश्चात वाणी के घर नहीं गया था, बल्कि वह सीधा अपनी माँ के पास पहुँचा था।

पत्नी के साथ बढ़ती हुई रणवीर की मधुरता ने तथा परिवार के प्रति अपने दायित्वों का पूर्ण निर्वाह करने की ओर बढ़़ते हुए रणवीर के वैचारिक-दृष्टिकोण ने वाणी का सुख-चैन छीन लिया । अपनी सुख-शान्ति को लौटाने के लिए रणवीर को प्रत्यक्षतः आमंत्रित करने की अपेक्षा वाणी ने रणवीर और पूजा के मधुर सम्बन्धें में खटास उत्पन्न करना अधिक आवश्यक समझा। उसने निश्चय किया कि साम-दाम-दण्ड-भेद, प्रेम या कपट कोई भी युक्ति क्यों न अपनानी पड़े, रणवीर को अपने चंगुल से नहीं निकलने देगी। वाणी की दृष्टि में रणवीर एक ऐसा मूर्ख पुरुष था, जिसको कोई भी चतुर, वाक्पटु स्त्री अपनी रोमेंटिक अदाओं से आकर्षित करके मोटी धनराशि प्राप्त कर सकती थी । लेकिन अब वह अपने विचारों में संशोधन करने के लिए विवश हो गयी थी ।

पुरुष-मात्र की प्रकृति का अध्ययन-विश्लेषण करके धीरे-धीरे वाणी इस निष्कर्ष पर पहुँच रही थी कि प्रत्येक विवाहित पुरुष अपनी मौज-मस्ती के लिए विवाहेतर-सम्बन्ध बनाता है । पत्नी से इतर स्त्रियों पर वह पैसा तो खूब लुटाता है, लेकिन तब भी अपने दाम्पत्य-संबंध को अपेक्षाकृत अधिक महत्व देता है। जिस घर में उसकी पत्नी और बच्चे रहते हैं, उस घर में उसकी आत्मा बसती है । उसके निष्कर्ष का आधर स्वयं उसका पति तथा प्रेमी रणवीर था । अतः इस बार उसने रणवीर को अपने पास बुलाने के लिए नयी युक्ति सोची ।

अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रथम चरण में वाणी ने एक ऐसी योजना बनायी, जिसके विफल होने की बहुत कम सम्भावना थी। उसने अपने परिचित एक डाॅक्टर से मिलकर अचानक बेहोश होने का प्रपंच करके डाॅक्टर द्वारा रणवीर के मोबाइल पर सम्पर्क कराया। डाॅक्टर ने रणवीर को बताया -

‘‘हैलो ! आप मिस्टर रणवीर बोल रहे है ?’’

‘‘जी हाँ, मैं रणवीर ही बोल रहा हूँ !"

‘‘मैं कैलाश अस्पताल से बोल रहा हूँ ! आपकी पत्नी वाणी हमारे अस्पताल में भर्ती हैं ! वे बेहोश हैं, इसलिए आप शीघ्र ही यहाँ पहुँच जाएँ !’’

‘‘आपको मेरा मोबाइल नम्बर किसने दिया ?’’

रणवीर को अपने प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका , क्योंकि तब तक उधर से सम्पर्क कट चुका था । सम्पर्क कटने के पश्चात् रणवीर ने कुछ क्षणों तक वाणी के विषय में विचार किया। तत्पश्चात् वह कैलाश अस्पताल की ओर चल दिया, जिसमें वाणी भर्ती थी ।

अस्पताल में जाकर रणवीर ने देखा कि वाणी आई0सी0यू0 में बिस्तर पर लेटी हुई है। जब वह वाणी के पास पहुँचा, तब वाणी की आँखों में रणवीर को लौट आने का एक मौन निवेदन था । उसके चेहरे पर लम्बी बीमारी की-सी मलिनता थी तथा बाल बिखरे हुए थे। वाणी की इस दशा के प्रथम दर्शन से रणवीर के हृदय में उसके प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो गयी। किन्तु, एक क्षणोपरान्त ही वह सहज और सामान्य हो गया । वह उस दृश्य को स्मरण करने का प्रयास करने लगा, जो उसने वाणी के बिस्तर के पास पहुँचने के एक मिनट पूर्व बाहर से देखा था। उस दृश्य में रणवीर ने अपनी आँखों से वाणी को एक नर्स के साथ हँसकर बातें करते हुए देखा था। उस समय वह बीमार नहीं दिखाई दे रही थी, न ही उसके चेहरे पर किसी प्रकार की उदासी थी।

रणवीर कुछ समय तक ही वाणी के पास खड़ा हो सका था, तभी एक लड़का आया जो मरीजों की देखरेख के लिए नियुक्त था । उसने आकर रणवीर को बताया कि काउन्टर पर जाकर वह डाॅक्टर की फीस और जाँच आदि के लिए पैसा जमा करा दें ! अन्यथा उनकी पत्नी का इलाज आगे नहीं बढ़ सकेगा ! उस लड़के द्वारा दिये गये सन्देश को सुनकर वाणी ने आशा भरी दृष्टि से रणवीर की ओर देखा । रणवीर ने भी वाणी की ओर सान्त्वना देने की मुद्रा में देखा और गर्दन हिलाते हुए कहा -

‘‘मैं जाकर देखता हूँ !’’

यह कहकर रणवीर वहाँ से बाहर निकल गया । कुछ ही समय पश्चात् रणवीर अस्पताल से बाहर था । न तो वह डाॅक्टर से मिला और न ही काउन्टर पर गया । वहाँ जाने की उसको आवश्यकता ही अनुभव नहीं हुई । वह वाणी को अपनी किशोरावस्था से जानता था, इसलिए यह अनुमान लगाने में उसको जरा-सा भी विलम्ब नहीं हुआ कि वाणी की बीमारी उसका अभिनय है और बीमारी का अभिनय उसकी किसी योजना का एक हिस्सा है ।

डॉ. कविता त्यागी

tyagi.kavita1972@gmail.com