Kisi ne Nahi Suna - 4 in Hindi Moral Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | किसी ने नहीं सुना - 4

Featured Books
  • રેડહેટ-સ્ટોરી એક હેકરની - 24

            રેડ હેટ:સ્ટોરી એક હેકરની        પ્રકરણ: 24      એક આ...

  • એકાંત - 25

    છ મહિના રેખાબેન અને નિસર્ગ સિવિલમાં રહીને બહાર નીકળ્યાં ત્યા...

  • મેઘાર્યન - 9

    મેઘાની વાત પૂરી થઈ ત્યાં જ અમારી આસપાસનું દ્રશ્ય બદલાઈ ગયું....

  • The Glory of Life - 4

    પ્રકરણ 4 :મનુષ્ય નું જીવન પૃથ્વી પરના  દરેક જીવો પૈકી નું એક...

  • નિલક્રિષ્ના - ભાગ 26

    અવનિલ : "તારી આવી બધી વાતોથી એક વાત યાદ આવી રહી છે. જો તું ખ...

Categories
Share

किसी ने नहीं सुना - 4

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 4

डेढ़-दो महीने में ही हम दोनों के संबंध अंतरंगता की सारी सीमा तोड़ने को मचल उठे। दीपावली की छुट्टी के बाद जब वह ऑफ़िस आई तो बहुत ही तड़क-भड़क के साथ। सरसों के फूल सी पीली साड़ी जिस पर आसमानी रंग के चौड़े बार्डर और बीच में सिल्वर कलर की बुंदियां थीं। अल्ट्राडीप नेक, बैक ब्लाउज के साथ उसने अल्ट्रा लो वेस्ट साड़ी पहन रखी थी। अन्य लोग जहां उसकी इस अदा को फूहड़ता बता रहे थे वहीं वह मुझे न जाने क्यों सेक्स बम लग रही थी। मिलते ही मैंने उससे कहा भी यही, ‘जानेमन इस ड्रेस में तो एटम बम लग रही हो। कहां गिरेगा यह बम।’

इस पर उसने बेहद उत्तेजक हावभाव बनाते हुए कहा

‘घबराते क्यों हो राजा जी तुम्हीं पर गिरेगा।’

फिर मैंने उसकी क्लीविज और उसके खुले पेट पर तीखी नज़र डालते हुए भेदभरी आवाज़ में कहा,

‘थोड़ा और डीप नहीं जा सकती थी क्या ?’

मेरा यह कहना था कि वह कामुकता भरी नजरों से देखते हुए अपने चेहरे को मेरे बहुत करीब लाकर बोली।

‘और डीप जाती राजा जी तो एल.ओ.सी. क्रॉस हो जाती और तुम सारे मर्द मधुमक्ख्यिों की तरह चिपक जाते मुझसे।’

मुझे वह मिक्सअप होने के डेढ दो हफ्ते बाद से ही बड़े मादक अंदाज में राजाजी बोलने लगी थी। उसकी बात पर मैंने पूछा ‘जानेमन यह एल.ओ.सी. क्या है?’

‘हद हो गई लाइन ऑफ कंट्रोल नहीं जानते। साड़ी और डीप ले जाती तो एल.ओ.सी. का अतिक्रमण हो जाता।’

मैंने कहा

‘जब एल.ओ.सी. का अतिक्रमण हो यह नहीं चाहती तो इतना भी डीप जाने की क्या ज़रुरत थी। साड़ी और ऊपर से बांधती।’

‘मैंने ये कब कहा राजाजी की मैं एल.ओ.सी. का अतिक्रमण नहीं चाहती। मगर इसका अधिकार सबको थोडे़ ही है।’

‘तो वह लकी पर्सन कौन है जिसको तुमने अपनी एल.ओ.सी. के अतिक्रमण का अधिकार दे रखा है।’

‘कमाल है, तुम्हारे सिवा किसी और को यहां यह अधिकार दे सकती हूं क्या ?’

उसकी इस बात ने मुझमें अजीब सी सनसनी पैदा कर दी। पलभर चुप रहकर मैंने कहा-

‘नहीं कमाल तो ये है कि मुझे तुम ने अपनी एल.ओ.सी. के अतिक्रमण का अधिकार दिया है। वो भी अपने पति के रहते। और ये अधिकार दिया कब यह पहले कभी बताया ही नहीं।’

मेरी इस बात पर वह अचानक ही एकदम उदास हो उठी। आंखें भर आईं। कुछ इस कदर कि आंसू बस बह ही चलेंगे। उसकी अचानक बदली इस स्थिति को देखकर मैं सकपका गया कि अभी कुछ देर पहले तक कितना हंस बोल रही थी। रोमांटिक हुई जा रही थी यह अचानक क्या हो गया है। मेरी बात से नाराज या दुखी हो गई है क्या? मैं परेशान इसलिए भी हो उठा कि कहीं इसके आंसूओं को किसी ने देख लिया तो आफ़त हो जाएगी। न जाने लोग क्या सोच बैठेंगे। दिमाग में यह बातें आते ही मैं एकदम घबरा उठा, डर गया मैं। तुरंत मैंने उससे माफी मांगते हुए कहा,

‘संजना जी सॉरी मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ कीजिएगा। आप को दुखी करने का मेरा कोई इरादा नहीं था।’

मैं अपनी यह बात पूरी भी न कर पाया था कि फिर और गड्मड् हो गया। उसने बिना किसी संकोच के अपने दोनों हाथों से मेरा दाहिना हाथ पकड़ कर कहा,

‘नहीं नीरज, ऐसा क्यों सोचते हो, तुम्हारे जैसे इंसान किसी का दिल दुखाने के लिए नहीं दुख से तड़पते दिलों को सहारा देने के लिए होते हैं। आंसू तो इसलिए आ गए कि तुम अचानक ही हसबैंड की बात छेड़ बैठे। जो मुझे लगता है कि मेरी सबसे ज़्यादा दुखती रग है। जो जरा सी छू जाने पर दिल चीर देने वाली टीस दे जाती है। और तुमने अंजाने ही इस सबसे दुखती रग को छू दिया।

तुम्हारा मेरी इस बात से शॉक्ड होना सही था कि पति के रहते मैंने एक गैर मर्द को एल.ओ.सी. क्रॉस करने का अधिकार कैसे दे दिया। लेकिन यदि मेरी बातें सुनोगे तो तुम्हें शॉक नहीं लगेगा। यह सही है कि मैंने जो तुम्हें एल.ओ.सी. क्रॉस करने का अधिकार दिए जाने की बात कही वह मजाक नहीं है। मैंने पूरे होशो-हवास में कई दिनों सोच-विचार के तुम्हें एल.ओ.सी. क्रॉस करने का अधिकार दिया है। तुम्हें इस बात का पूरा अधिकार है कि तुम जितना चाहो उतना मेरी साड़ी, ब्लाउज डीप ले जा सकते हो। उन्हें डीपेस्ट कर मुझमें जैसे चाहो वैसे समा सकते हो।’

अब तक संजना के आंसू उसकी पलकों से बाहर नहीं आए थे। वह भरी हुई थीं। मगर उसके चेहरे पर अब अवसाद से कहीं ज़्यादा दृढ़ता, कठोरता की लकीरें स्पष्ट होती जा रही थीं। और बातों का विस्तार बढ़ता जा रहा था। मैंने क्योंकि कभी ऐसी स्थिति की कल्पना ही नहीं की थी सो परेशान हो रहा था। संजना जैसी औरत जिससे मिले चंद रोज ही हुए हैं वह सीधे-सीधे शारीरिक संबंध के लिए खुद ही कह देगी। वह भी ऑफ़िस में ही सारे अधिकार दे देने की बात करेगी कि जैसे चाहो वैसे उसके तन को भोगो।

हालांकि यह सच है कि जिस दिन उसने मेरे साथ पहली बार लंच किया था। और जानबूझ कर मेरे हाथ को अपने स्तनों का स्पर्श करा दिया था तभी से मेरे मन के किसी कोने में उसके बदन के साथ एकाकार होने की इच्छा अंकुआ चुकी थी। जिसे संजना की दिन पर दिन होने वाली तमाम हरकतें बराबर पुष्पित पल्लवित करती जा रही थीं। लेकिन मैंने अपनी तरफ से ऐसी कोई कोशिश कभी नहीं की थी कि वह अपना तन मेरे तन के साथ एकाकार करे। यह मन में ही रह जाने वाली बात जैसी थी। ठीक वैसी ही जैसे न जाने कितनी बातें मन में उभर कर फिर वहीं दफन हो जाती हैं सदा के लिए। जो कभी संभव नहीं बन पाती। जैसे छात्र जीवन में एक बार मैं पड़ोसी मुल्क की एक सिंगर झुमा लैला की एक मैग्ज़ीन में बेहद बोल्ड तस्वीरें देखकर अर्सें तक एकाकार होता रहा उसके तन के संग। मगर मन की यह फैंटेसी मन के सागर में कहीं गहरे ही डूब गई थी जल्दी ही।

मगर उस दिन संजना के साथ जब एकाकार होने का मन हुआ था तब मैं छात्र जीवन की तरह अकेला नहीं था। तब मेरे साथ मेरी बीवी नीला थी। जो उस वक़्त मेरी ही बगल में लेटी सो रही थी। और उस दिन इस इच्छा के चलते उसके साथ ऐसे एकाकार हुआ था मैंने जैसे मेरे रोेम-रोम से संजना-संजना का स्वर फूट रहा हो। मेरे तन के नीचे पिस रहा था नीला का तन लेकिन मेरा तन संजना के तन को भोगने का अहसास कर रहा था। नीला के मुंह से निकलने वाली मादक आहों में मुझे संजना के स्वर सुनाई दे रहे थे। बड़ी ही जटिल स्थिति थी मेरी।

अपनी आदर्श पत्नी, मुझको टूटकर चाहने वाली पत्नी से मिलने का कोई अहसास नहीं था। यहां तक की तन का संघर्ष समाप्त हो जाने के बाद नीला सो गई मगर मैं संजना के तन की महक का अहसास कर रहा था। बराबर जाग रहा था। यह स्थिति दिन पर दिन प्रगाढ़ होती जा रही थी। जल्दी ही हालत यह हो गई थी कि नीला में मुझे हर कमी नज़र आने लगी थी।

*****