A Secret Letter - 5 in Hindi Short Stories by Hardik Chande books and stories PDF | A Secret Letter - 5

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A Secret Letter - 5

पुलिस स्टेशन पहुँचते ही राजवंश महेश्वर के परिवार को फोन करके पुलिस स्टेशन बुला लेता है।
15-20 मिनीट में ही जैसे तैसे जीवा और उसकी मम्मी पुलिस स्टेशन पहुँच जाते है, जब उनको इंस्पेक्टर फोन पे कहता है कि,'बाहर जो खून हुआ था वो आपके पति ने किया था !'
"पापा, आपने ये क्या किया? आपने उस नीरव को मार डाला? क्यों?"
जीवा अपने पापा को रोते रोते पूछती है।
महेश्वर जेल में बैठे बैठे रोते हुए बोलता है," बेटा मुझे ये मजबूरी में करना पड़ा। अगर में उसको ना मारता तो वो तुम्हे मार देता।"
राजवंश ये सुन के महेश्वर को एक थप्पड़ लगा देता है और कहता है,“खुद की बेटी को बचाने के लिए आपने किसी के बेटे को मार डाला? कैसे बाप हो तुम?"
"लेकिन मेरा बेटा तुम्हारी बेटी को क्यों मारना चाहेगा? और तुम जीवा, मेरे बेटे को जानती हो? कब से?"
“सर, मैंने उसको कभी सामने से नहीं बुलाया है, हमारी किचन की खिड़की के बाहर ही वो मुझ से मिलने आता था। बाकी में उसको कभी सामने से नही मिली और रही बात हमारे मिलने की तो में उसको मेरे घर के बाहर ही मिली थी, 1 महीने पहले।"
“क्या?" जीवा की मम्मी चौंक गयी।
"देखिए, इतना चौंकने की ज़रूरत नही है, में जानता हूं इनके रिलेशन के बारे में, दोनों अच्छे दोस्त है, नीरव ने बताया था। लेकिन बात वही पे आके अटकी है ! मेरा बेटा आपकी बेटी को क्यों मारना चाहेगा? " इंस्पेक्टर कहता है।
"मतलब आप सब कुछ जानते थे। पर में नहीं जानता था की उसके पिता पुलिस में है, और पता होता तो उससे मारने की नोबत ही ना आती।"
"सीधे सीधे बता दीजिए अब क्यों मारा मेरे बेटे को?" इंस्पेक्टर गुस्से से आग-बबूला हो जाता है।
महेश्वर की आँखों में डर के साथ अफसोस दिख रहा था। उसकी हालत कुंए में फंसे मेढ़क जैसी हो गयी थी, जो बाहर निकलने की कोशिश भी करेगा लेकिन गिरना फिरसे उसी कुँए में है।
अपने आप को कछुए की पीठ की तरह कड़क रखके महेश्वर एक लंबी सांस लेके बोल पड़ते है,“सर, मैंने जो भी किया उसका मुझे अफसोस है, और मुझे पता भी है कि में इस ज़ंज़ीर से आज़ाद नहीं होनेवाला।"
"बहनजी, जीवा आप लोग बाहर जाइये। आपको सब कुछ बता दिया जाएगा। बेहतर है कि आप बाहर जाके इंतज़ार कीजिए।" इंस्पेक्टर जीवा और उसकी मम्मी को शांत रहकर कहता है।
जीवा और उसकी मम्मी कुछ बोले बिना बाहर चली जाती है।
"अब बोलेंगे भी या एक और दूँ कान के नीचे ?" कहके इंस्पेक्टर रूम में रखा कैमरा ऑन करते है।
"सुनिए इंस्पेक्टर साहब, 1 महीने पहले जब जीवा आपके बेटे से मिली थी, बस मुझे लगता था कि वो एक सिरफिरा है, लेकिन जीवा उसके और पास आती गयी। एक बार उसको मना भी किया तो उसने ये बात टाल दी। मुझे पसंद नहीं था कि मेरी बेटी अपने पसंद से कोई लड़के को अपना दोस्त बनाये। शायद जीवा मेरी बात समज गयी थी, जीवा ने उसके साथ बात करना बंद किया था।"
“जीवा ने तो नहीं बताया कि वो किस तरह एकदूसरे से मिले थे? लेकिन आपको पता होगा। बताइये !”
"हाँ, सर ! मुझे पता है। जीवा अपने कॉलेज से चलते चलते आ रही थी में उसकी राह देख रहा था। क्योंकि में घर की चाबी घर के अंदर ही भूल गया था और जीवा की मम्मी घर पे नहीं थी। पता नहीं वो कहा गयी होगी उस टाइम !? राह देखते देखते में सिक्योरिटी केबिन पहुँचा। सिक्योरिटी केबिन में बैठे गार्ड से उसका हाल-चाल पूछने लगा। तभी मैने अपनी बेटी को आते हुए देखा और बिल्कुल उसी समय आपका बेटा, मुझे उस वक्त पता नहीं था कि वो आपका बेटा है।
तभी आपका बेटा बाइक लेके फ़ोन पे बात करते करते आया और बाइक को साइड में खड़ा किया और पता नहीं कैसे अचानक उसको चक्कर जैसा आया और गिरने ही वाला था कि मेरी बेटी ने उसको गिरने से बचा लिया। वो उससे देखकर थोड़ा चौंक सी गयी। में उसके पास जानेवाला था लेकिन मेरे पैर की स्नायुओं में खिंचाव आ गया और में वहीँ पे बैठ पड़ा।
मुझे नहीं पता कि उन दोनों के बीच उसके बाद क्या बात हुई की वो दोनों दोस्त बन गए ?
“आपने ये कहानी सच बोली या झूठ अभी पता चल जाएगा। कॉन्सटेबल जीवा को लेके आओ।
थोड़ी देर में जीवा आती है।
“तुम और नीरव कैसे मिले थे?"
“में कॉलेज से आ रही थी और अचानक में जब उसके पास से गुज़री तो वो चक्कर खाके गिरने वाला था। मैने उसको बचाया और जब उसको देखा तो वो नीरव था। मेरा कॉलेज का सिनियर ! वो हमारी पहली मुलाकात थी। दोस्ती की शुरुआत तो तभी से शुरू हो गयी थी।
उससे पहले मेंने कभी उसको कॉलेज में नहीं देखा था और दुसरे दिन उसको कॉलेज में देखा और हम तब दोस्त बन गए।” जीवा नीरव से हुई दोस्ती की बात रखती है।
“अब तुम जा सकती हो।" राजवंश जीवा से कहता है।
“आप बताइये आपने खून क्यों करवाया?” राजवंश महेश्वर को गुस्से से कहता है।
“आपका बेटा सच में एक सिरफिरा बन गया है, वो जैसा दिखता है वैसा बिल्कुल नहीं है। वो आज मेरी बेटी को जान से मारने वाला था। कल सुबह जीवा के मोबाइल में मैंने उसका मेसेज पढ़ा था।
लिखा था - में तुझको कल जान से मार दूंगा। फिर में सरेंडर करूँगा और में भी जल्दी से जल्दी मर जाऊंगा। "
“लेकिन पापा, आपने उसके बाद कुछ पढ़ा था?” पीछे से जीवा आके बोलती है और राजवंश को उसका फोन दे देती है।
“सिर्फ एक अधूरी बात पापा, आपने आपका परिवार खो दिया, किसीने अपना बेटा तो किसी ने अपना दोस्त ! क्यों ? काश आपने पूरी बात पढ़ ली होती, तो आज ऐसा कुछ ना होता। आपका जुर्म आपने कुबूल किया।”
“इंस्पेक्टर सर ये सब जानते थे आज सुबह से, पर आपका जुर्म कुबूल करवाना ज़रूरी था। अगर आपको पहले से बता देते तो आप अपना जुर्म कुबूल नहीं करते।”
“आपके काले स्कार्फ वाली मुंह बोली भांजी, उसको भी आपने कातिल बना दिया। आपने एक साथ कितनी जान बर्बाद कर दी। आपको इसकी सजा तो मिलेगी। एक अधूरी बात ने आपका, हमारा सुख छीन लिया।” राजवंश महेश्वर से कहता है।
“क्या ? कृतिका को भी आपने उसके खून की साजिश में साथ लिया। उस बिचारी का क्या दोष था?” जीवा की मम्मी महेश्वर से पूछती है।
“उन दोनों का ब्रेक-अप! उसी का तो फ़ायदा उठाया इन्होंने। में उनके बारे में भी जानती हूं, नीरव ने बताया था मुझे।" जीवा कहती है।
“में पूरी बात बताता हूँ अब, 2 महीनों से उसने कृतिका को नहीं देखा क्योंकि वो इसके बाद यहाँ से दूर चली गयी थी। मैं कृतिका को लेने उसके घर गया था। मेरे पास सिर्फ कुछ घंटों का समय था। 3 बजे तक मैंने कृतिका के साथ प्लानिंग बनाई, वो गुमराह करने वाली शायरी और खंज़र जो कि सिर्फ एक छलावा था लोगो को अपने घर से अंदर रखने का। पर सब लोग डरने के बजाए बाहर आ के पुलिस को बुला लिया।
मेंरे बेटे रजतने वो ओरिजिनल खंज़र कुछ दिनो पहले भेज दिया था, और वो मुझे कल सुबह मिला। लेकिन मैंने सारी बात छुपा दी। में वो खंज़र लौहार को दे आया और 15 ऐसे डुप्लीकेट खंज़र बनाने को कहे। वो भी 5 बजे से पहले क्योंकि डबल भाव दिया था। और लौहार ने बना दिए।”
“और वो गंदे कपड़े वाला लड़का? जो ये शायरी-खंज़र बांटने आया था? वो कौन था?” राजवंश पूछता है।
“एक रास्ते पे चलता रहता भिखारी था। मैंने उसको ही चुना क्योंकि उसका मुंह किसी अच्छे परिवार का हो ऐसा लगता है और कोई शक नहीं कर सकता।”
“सब लोगों के घर पे वो कवर किसने रखा? क्योंकि इतनी देर में तो वो इतना काम नहीं कर सकता।”
“कृतिका ने सब के घर पे रखवाया और मैने ओरिजिनल खंज़र के साथ शायरी खुद मेरे घर पे रखी।”
“कृतिका कहा है अब? वो उसको मार डालकर कहा चली गयी?”
“सर, में यहाँ हूँ। मेरे दिमाग में इन्होंने ऐसी नफरत डाल दी,मैंने उसको मार डाला। हे भगवान ! प्लीज उसकी आत्मा को शांति देना। क्यों मैंने इनकी बात सुनी !? वो अपनी जिंदगी में खुश था और मेरी वजह से कितने लोगों की खुशी छीन गयी। सर, मुझे भी कड़ी से कड़ी सजा देना।”
“सर, मेरा भतीजा और वो लौहार निर्दोष है। उनलोगों को इनके बारे में कुछ नहीं पता। प्लीज उनलोगों को सजा मत दीजियेगा। ”
“वो तो देखा जाएगा! । मेरी जीप से आप अपने घर चले जाइए। ड्राइवर छोड़ देगा। रात के 11 बजने आये है।”

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“कभी कभी एक अधूरी बात भी, कितना बड़ा कांड कर जाती है। कितने लोगों की खुशी छीनी जाती है।
मैंने उसको रात में रिप्लाई नहीं किया था तो वो सिर्फ मेरे साथ मजाक कर रहा था की मै तुझे मार डालूंगा और पापा ने अपने शक के चलते उस निर्दोष को मार डाला।
उनका बनाया हुआ SECRET LETTER, अरे वो शायरी-खंज़र वाला ! सच में secret ही रहा। क्योंकि उसका कोई मतलब ही ना हुआ बनाने का। चाहते थे कुछ ओर और बन गया कुछ और।
किसी के ब्रेकअप का बुरी तरीके से फायदा मत उठाना। क्योंकि उस एक के साथ कितनों की खुशी छीन जाती है।”