bhojpuri matti in Hindi Poems by Radheshyam Kesari books and stories PDF | भोजपुरी माटी

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भोजपुरी माटी

आइल गरमी
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सूरज खड़ा कपारे आइल,
गर्मी में मनवा अकुलाइल।

दुपहरिया में छाता तनले,
बबूर खड़े सीवान।
टहनी,टहनी बया चिरईया,
डल्ले रहे मचान।
उ बबूर के तरवां मनई,
बैईठ ,बैईठ सुस्ताइल।

गइल पताले पानी तरवां,
गड़ही,पोखर सुखल इनरवां।
जल-कल पर सब दउरे लागल,
जिउवा बा बौराइल।

छानी छप्पर के तरकारी,
सुख के खरई भइल मुआरी।
तिनका तिनका चटक गइल बा,
हरियर डार पात मुरझाइल।

खर, खर बाटे छान मड़ैया,
अंगना में चिरई लड़वइया।
छन से गिरल बूंद माटी में,
पड़ते पड़त सुखाईल ।

गली गली में बिच्छी कीरा,
डंक से मुअलें मगरू मीरा।
मच्छर काटे ,जीव पिरावे,
बहुत तेज इ गरमी आइल।

ई गरमी में कुकुर पागल,
काट के उ बसवारी भागल।
सात इनारा झाँकत बाड़न,
सातो सुईया पेट कोचाइल।

छांहों खोजे छांह मड़ईया,
बढ़लन गगरी के किनवइया,
पानी खातिर चलल पनसरा,
मुहवां रहल सुखाईल ।

खनी खनी में आग लगेला,
सगरो बाटे इहे झमेला।
सब जरला के बाद बूताला
लोगवां रहे डेराइल।

झन झन बाते रात अँजोरिया,
लोगवा सुते, चढ़े मुड़ेरिया।
पुरवइया में उमस बाटे,
बा लोगवां घबराइल।

छोड़ के पुड़ी, सतुवा चटनी,
रोज खिवावे हमके रतनी।
पन्ना रोज बनेला घरवां
जिउवा में जिउवा अब आइल।

****





बा चुनाव क डंका बाजल,

बा चुनाव क डंका बाजल, अब नेता अकुलाई।
हाथ जोड़ के सबका दुआरा, दउर-दउर उ जाई।

हमरा के उ आपन संगी, सबके उ समझाई।
सबका हित क बात करी ऊ, वादा में अँझुराइ ।

चट्टी- चट्टी लगा के मजमा, आपन बात बताई।
लाइन लेंथ लगाई आपन, आपन जीत बताई।

पार्टी से ना टिकट मिली त, दूसरा दल में जाई।
ओइजा जाके, उ पाटी क, खामी खूबे गिनाई।

न जीती,न जीते देही,उहो टांग अड़ाई।
अंदर-अंदर,सांठ-गांठ के, ठिका पर हो जाई।

नौजवान के नोकरी बांटी, अपना के आदर्श बताई।
अपने करी प्रशंशा आपन, दूसरा के गरियाइ ।

किसिम किसिम क वादा बांटी, जीते खातिर जोर लगाई।
गांव नगर में घूम घूम के, जात-पात क करी दुहाई।

चुपके-चुपके बांटी साड़ी, आपन रोब देखाई।
सगरो आपन भासन झाड़ी, अपने गीत बजाई।

थाक हार के जन्हवा बैठी, आपन गोल जमाई।
आगे क उ करी योजना, दारू मुर्गा खाई।

नोट बांट के उहो आपन, वोटन के सरियाई।
कुल्ही बात ताखा पर राखी, जब संसद में जाई।

कहीं करी उ बुथो कब्ज़ा, केहू के धमकाई।
ओट अगर उ जीत गइल त, अपना के चमकाई।

तोहरा के उ झांसा देई, नीक-नीक बतियाई।
सबका से बा इहे निहोरा, केहू न पतिआई।

राष्ट्र बचावे वाला नेता, तोहके रह देखाई।
उ नेता हक़दार बानी जे, देसवा मोर बचाई।

भ्रस्ट आचरन खत्म करी जे, इहवां पांव जमाई।
जेकर नेक नीयत अच्छा बा, उहे ओटवा पाई।

***


"आइल गरीबी जिनिगी आफत"

आइल गरीबी जिनिगी आफत,
उनकर खाली लमहर बात।
सात समुन्दर,उनके घरवा
घी क अदहन रोज दियात।

हमरा घर में कीच-कांच बा,
नइखे घर में भूंसा-भात।
उनका घरवा उगेला सूरज,
हमरा घरे अन्हरिया रात।

देहिया पर बा फटल निगोटी
अपने हिस्सा भागम-भाग।
चौकी,चउकठ टूट गईल बा,
उनकर सउसे बा अफरात।

दाना दाना रोज बटोरी,
लम्मा नियरा रोज छीटांत।
उनकर चर्बी चढ़ल तोंद पर,
एन्नी मिलल सुखाईल आँत।

खोरी खोरी बदबू मारे,
धुरे गर्दा सनल बा हाथ।
कस्तूरी क चर्चा होला,
उनकर चन्दन वाली बात।

नूने तेल भुलाईल लकड़ी,
दिनवा नाही कटे कटात ।
उपरा निचवाँ लगीं नुमाईस,
असरा वादा खूबे दियात ।

बोअल बिया फेड़ भईल बा,
कांटा वाली बड़की खान।
हल्ला कइके भीड़ जुटवलस
आइल वोट निपोरी दाँत।

मलीकरवा त जान गइल बा,
दूलहा ख़ातिर बनल बरात।
यही कारन पूछ बढ़ल बा,
दिन होखे या होखे रात।

उ खाली अपना फेरा में,
कइले हमसे घातम घात।
बोली उनकर चढ़ल कपारे,
हरदम उ सबसे छ्तीयात ।

अइसन देख तमाशा अब त,
आपन जीउआ बा खिसियात।
मनवा त एतना घबराईल,
दुनिया कइसे बा फेफियात।
****

"माई"
हमरे से खनदान पटल बा,
जिनिगी से जज्बात जुड़ल बा
हम हमार,घर दुअरा खातिर
सबसे पहिले तोहरा खातिर
उठ खटिया से रोज सबेरे
जिनगी तोड़ी तोहरा खातिर।

तोहरे खातिर ज़बह होखी
तू जबरा के लात सहीं
सर्दी गरमी कुछ न जनलीं
खाँच पाँक बरसात सहीं
ना बुझात तब्बो ए बचवा
सब कुछ सहलीं तोहरा ख़ातिर।

आपन हिस्सा बाँट बाँट के
नीक खियवली नून चाट के
रतिया में हम जाग जाग के
लुग्गा आपन गीला कइलीं
अधिका खटिया तोहके देके
जरलीं मरलीं तोहरा खातिर।

बड़की क जब बांह धरवलीं
कर्जा ले, बेपर्दा भइली
चार परानी पाल पोस के
एमें कइलीं, ओमें कईलीं
जस जस ऊपर तोहूँ गइलऽ
नीचे भइलीं तोहरा खातिर।

जांगर देके मर मर गइलीं
कब्बो ओकर मोल न मंगलीं
गिरते परते, धरम करम से
नाता रिश्ता जोड़त गइलीं
जियते जियरा पोस न माने
का ना कइलीं तोहरा खातिर।

माई पललस छोप छाप के
सबके चहलस साट साट के
अलग अलग एक तरफ़ा भइलऽ
माई के जनल बाँट बाँट के
अइसन करनी काहे कइले
सब पुछेला हमरा खातिर।

एक एक एग्यारह कइलीं
अब लागी फुटबॉल सरीखा
एने से ओने टारे लऽ
इ कइसन अब तौर तरीका
फुटलों आँखि तू ना तकलऽ
हम तकलीं सब तोहरा ख़ातिर।

फाटल लुग्गा साट पहिन के
ऊँच अटारी रोज बनवलीं
बनल राज तू पा गइलऽ त
घर कोना क मूरत भइलीं
माई खातिर कुछ ना कइलऽ
सब कुछ कइलीं तोहरा ख़ातिर।

बचवा हम तोहके समझाई
‘माई’ ना तोहके बिलगाई
माई क मान बड़ाई ह
न इंहवां कवनो लड़ाई ह
माई क मान मनव्वल ह
जब माई मानी तोहरा ख़ातिर।

माई ममता क मूरत ह
दुनिया एकरे से जुड़त ह
आदर अंगना में तुलसी क
इ गऊशाला क गाई ह
एकर नांव अमर हरदम बा
नहियो करबऽ तू एकरा ख़ातिर।

***

"केतना बदल गइल संसार"

केतना बदल गइल संसार,
कतहुँ नइखे अब त प्यार।
खाली लाभ के खातिर,
झूठे बनल बनवटी प्यार।

बचवन के फुटपाथे असरा,
बाप छोड़ जिमवारी भागल,
छोड़ परानी भाग गइल बा,
मर्दा मुई मतलबी यार।

माई कटलस मुड़ी बेटी के,
अँधियारा सगरो चोटी के।
अपना जमला के इज्जत से,
रोजे होत हवस खेलवाड़।

आँखे गुर्दा काढ़ ल जेकर,
खून पसीना बेच ल जेकर।
कांड निठारी आज भी जहवाँ,
देह बनल खुनी व्यपार।

मंदिर में घण्टा गायब त,
कब्बो गायब ई भगवान।
खबरन से ई भरल परल बा,
रोजे निकलत बा अख़बार।

अपराधो आबाद हो गइल ,
कांटे नियर बाग़ हो गइल।
मीठ बतकही कतहुँ नइखे,
सगरी बढ़ल जात तकरार।

केहू साफ त बोलते नइखे,
अंखिया तनल मरकते नइखे।
चेहरा पर चेहरा चिपकल बा,
ओकचत बोकला बारम्बार।

अपराधी नेता हो गइले,
अपने हित क बात उ कइले।
मुद्दन वाली बात भुला के,
संसद में कर जाले मार।

कथनी करनी बदल गइल बा,
साँच गवाही,संभल गइल बा।
अब त हमरो ओठ खुलल बा,
गोड़ क गरमी, चढ़ल कपार।
***

"आदमी"
धूप सहल मुश्किल हो जाला।
हर सवाल पर उ घबराला।
सत्ता में आबाद उहे बा,
शासन क बुनियाद आदमी।

दुधारी जे बात हो गइल।
ओकरे इन्हवा राज हो गइल।
कइसन बाटे लोकतंत्र इ,
जेलो में आजाद आदमी।

हर मोरचा पर फेल बा शाशन।
न बिजली न बाटे राशन।
देशी ठर्रा, अउरी रम में,
बा इन्हवा बरबाद आदमी।

महंगाई के चरम बुझाइल।
चुल्ही में क आग बुताइल।
बंजारा बन घूम रहल बा,
बिन बोले,बिन स्वाद आदमी।

बंधुआ आउर बेगार इँहा बा।
भूखे क त्यौहार इँहा बा।
दुनिया क सुन्दर रचना में,
अक्लमंद मरजाद आदमी।

राजमहल क सुख सोझा बा।
हमरे सर पर दुःख बोझा बा।
बा अंजोर जेकरा जिनगी में,
ओकरे बा सज्जाद आदमी।

धरम करम में रमता योगी,
पीठ में छुरा उहे धँसा दे।
जे दुनिया के राह दिखावे ,
ओकरे बा ओलाद आदमी।

कुछ लोगन के हैपी हो -ली।
मन गदगद बा भरल ठीठोली
हवस हमारे सिर पर नाचे,
काहे बा जल्लाद आदमी?

इंकलाब फिर कहिया होई?
अब कालिख सब कहिया धोई?
काहे आपन हाथ कटाके,
बा इन्हवा आबाद आदमी?
***

"सावन सिसक गइल बा"

ढहल दलानी अब त सउँसे, पुरवइया क झांटा मारे,
सनसनात ठंढा झोका से, देहिया काँप गइल बा।

मेजुका-रेवां गली- गली में, झेंगुर छोड़े मिठकी तान,
रोब गांठ के अँगनैया में, डेरा डाल गइल बा!

बइठ मचाने देके थपरी, दादी हुलें- सिवान।
तब्बो चिरई नइखे भागत, पँखवा तोड़ गइल बा।

सन किरवा क चमक दमक त, आग- सरीखा लागे ला।
पकड़-पकड़ हाथे से ओके, हथवा लहक गइल बा।

रोज निहारीं बदरा-बदरा, चँदा कब्बो ना लउकल!
केतना देखीं ऊपर-नीचे, अँखियाँ उब गइल बा।

अरूआइल चेहरा क लेखा, दुपहरिया अब लागेला।
लाल बुझक्कड़ हमें बताके, पियवा सरक गइल बा।

मनवा त सावन में बाउर, केहू पार न पावे ला।
बन-ठन के बौराइल जियरा सगरो झेल गइल बा।

जरत पेट पर पत्थर बँधली, तब्बो साँझ सतावेला।
दहकत आग बुतावे ख़ातिर,सावन-सिसक गइल बा।
*****

"आइल बसंत फगुआसल"

सगरी टहनियां प लाली छोपाइल,
पछुआ पवनवा से अंखिया तोपाइल,
देहिया हवे अगरासल,
आइल बसन्त फगुआसल।

कोयल के बोल अब खोलेला पोल,
सैंया सेजरिया से हो जाला गोल,
मोर मर्दा हवे साधुआसल,
आइल बसंत फगुआसल।

झांकी ला हरदम खोल के केवाड़ी,
रतिया अंजोरिया बा बरछी कटारी,
जिउवा हवे भकुआसल,
आइल बसन्त फगुआसल।

पछुआ पवनवा हिला देला मनवा,
हमरो पड़ोसिन त फुंके ले कनवा,
बासी सनेहिया बा पाटल, आइल बसंत फगुआसल।

आवते फगुनवा पीटाये लागल ढोल,
ओढले ढकोसला,पहिनले बा चोल,
कूट,कूट देहिया बनावे रसातल,
आइल बसन्त फगुआसल।

चहकत चिरईन के कोरा उठावे,
पिंजरा में सुगिया के अंखिया लोरावे,
साँची सुरतिया बा पागल,
आइल बसन्त फगुआसल।
***





"आइल बसंत"

आइल बसंत, भकुआइल बसंत,
सतरंगी चुनर, सरमाइल बसंत।

रंगवा लगवले, चमेलिया क गाल,
हमके बतावे, टेंडु़राइल बसंत।

जेकरा के खोजे, पिया के पिरतिया।
अंखिया में ओकरा लुकाइल बसन्त।

अगिया लगा के , पलसवा जे भागल।
लोरिया के संगे, बूताईल बसंत।

भर-भर आँसुवन से, अंखिया लोराइल ।
मंठा अस जिनगी, मथाइल बसंत।

बोरे के बोरन, न खाये के निक बा।
आवते टिकोरा, पिटाइल बसंत।

पुवा भा पुड़ी,न कब्बो देखाइल,
सतुवा क संगे, घोराइल बसंत ।

आपन गरीबी हम, कइसे बताई?
बथुवा के संगे, खोटाइल बसंत ।

भरसक, फगुआ में दुरे रहिला।
रोटी में आपन, भुलाइल बसंत।

नेहिया, निगोड़ी करेजवा में बेथे।
रो रो के अब्बे, चुपाइल बसंत।

– डॉ राधेश्याम केसरी
ग्राम ,पोस्ट- देवरिया,
जनपद- ग़ाज़ीपुर, (उत्तरप्रदेश),
पिन – 232340
9415864534(व्हाट्सप)
rskesari1@gmail.com