मेरे मन में विदेश घूमने की चाह दशकों से रही है, लेकिन समयाभाव, आर्थिक तंगी और अत्यधिक जिम्मेदारियों के कारण उम्र के 50 बसंत पार कर गया, पर कहीं घर से बाहर निकल ही नही पाया।अचानक से अमूल्या हर्ब्स से जुड़ने के बाद हमारे पर निकल आये और हम जा पहुँचे,बौद्ध हिन्दू सांस्कृतिक धरोहरों से आच्छादित राम,विष्णु की नगरी और परियों के देश 'श्याम', जो आज का आधुनिक थाईलैंड है। थाईलैंड जाने के लिए वायुयान द्वारा पटना वाया कोलकाता थाईलैंड पहुंचे।
थाईलैंड के पास पहुंचने पर पता चला कि जो मेरे पिताजी ने श्याम का वर्णन किया था ,उसके उलट तस्वीर थी।गरीब देश आज पर्यटन के जरिये आर्थिक रूप से बहुत ही धनी, अनुशाशित और आधुनिक हो चला है।
आज 10 फरवरी 2019 को हम थाइलैंड के दूसरे बड़े शहर पटाया में है। आज हम अपनी अमूल्या हर्ब्स टीम के साथ कोरल आइसलैंड घूमने गए,जँहा सी वाक,पैरा ग्लाइडिंग का लुफ़्त लिया।
सच मे कहा जाए तो थाइलैंड वैश्विक पर्यटन का रूप ले चुका है। थाईलैंड विदेशी पर्यटन से पैसा कमाने के मामले में इस साल फ़्रांस को भी पीछे छोड़ते हुए दुनिया का तीसरा देश बन गया है. .
2017 में थाईलैंड को पर्यटन से 58 अरब डॉलर का राजस्व हासिल हुआ था। 2017 में 3.5 करोड़ पर्यटक थाईलैंड आए थे. यही गति रही तो पाँच सालों के भीतर थाईलैंड स्पेन को पीछे छोड़ दूसरा स्थान हासिल कर सकता है और फिर अमरीका ही उससे आगे रह जाएगा. पर्यटन उद्योग थाईलैंड के लिए सबसे लाभकारी साबित हो रहा है।
थाईलैंड में पर्यटन के विस्तार के पीछे भारत का बहुत योगदान है। भारत के बाद चीन का भी इसमें योगदान है. चीन के कई ऐसे एयरपोर्ट हैं जहां से थाईलैंड जाने में तीन से चार घंटे के वक़्त लगते हैं।आख़िर भारतीयों को थाईलैंड इतना क्यों भा रहा है?
नई दिल्ली से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक जाने में चार से पाँच घंटे का वक़्त लगता है. जो भारतीय अपने देश में फ्लाइट से सफर करते हैं उनके लिए बैंकॉक का किराया भी बहुत ज़्यादा नहीं है। आज की तारीख़ में आठ से दस हज़ार के किराए में फ्लाइट से बैंकॉक पहुंचा जा सकता है।
थाईलैंड अपने ख़ूबसूरत बीच के लिए जाना जाता है। थाईलैंड के बीच की ख़ूबसूरती भी दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती है. भारतीयों के लिए थाईलैंड से ख़ूबसूरत कोई बीच पास में नहीं है।
नजदीक और सस्ता होने के कारण भी भारतीय थाईलैंड को ख़ूब पसंद करते हैं। भारत का निम्न मध्य वर्ग यूरोप का खर्च वहन नहीं कर सकता है ऐसे में थाईलैंड एक मजबूत
विकल्प के रूप में सामने आता है।
थाईलैंड जा रहे हैं तो इन बातों का ख़्याल रखें
भारत के साथ थाईलैंड का एक सांस्कृतिक रिश्ता भी है. थाईलैंड के लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। ऐसे में भारत थाईलैंड के लिए कोई अजनबी देश नहीं है।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में इंटर करने के लिए थाईलैंड प्रमुख देश है।थाईलैंड के ज़रिए पूरे उपद्वीप को सस्ते में घूमा जा सकता है। थाईलैंड में भारतीय दिसंबर से जुलाई महीने के बीच ख़ूब जाते हैं।भारतीयों में नीले पानी और समुद्र तट की सफ़ेद रेत को लेकर काफ़ी मोह रहता है। भारतीयों के लिए थाईलैंड का वीज़ा पाना बहुत आसान है। यहां तक कि ऑनलाइन भी थाईलैंड के वीज़ा के लिए आवेदन किया जा सकता है।
भारत की गर्मी तड़पाने वाली होती है जबकि थाईलैंड का मौसम बिल्कुल अनुकूल होता है। अधिकतम तापमान 33 तक जाता है।भारतीयों को थाईलैंड का स्पाइसी स्ट्रीट फूड भी ख़ूब रास आता है। भारतीय यहां आईस्क्रीम और सीफूड जमकर खाते हैं। बैंकॉक में कई बड़े बुद्ध मंदिर हैं।भारतीय और अरब के पुरुषों की छवि थाईलैंड में बहुत ठीक नहीं है।वैसे थाईलैंड में ज़्यादातर भारतीय पुरुषों की छवि ये भी है की ये ग़रीब मुल्क से हैं इसलिए ज़्यादा पैसे लेकर नहीं आते हैं।
आज हम 12 फरवरी को हम थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में है।मूलतः बैंकाक एक धार्मिक देश है।थाइलैंड का नामांतरण कई बार हो चुका है। प्राचीन समय मे इसे "अयुत्थया" कहते थे बाद में 17 वीं शताब्दी में इसे श्याम भी कहा गया। थाइलैंड के एयरपोर्ट का नाम स्वर्णभूमि एयरपोर्ट है,एयरपोर्ट पर समुन्द्र मंथन की प्रतिकीर्ति मौजूद है जहाँ मंदराचल पर्वत की मथनी,वाशुकी नाग की रस्सी द्वारा देव,और दानव समुन्द्र मंथन कर रहे है। गरुण उनका राष्ट्रीय राज्य चिन्ह है।
थाईलैंड के सबसे प्रतिष्ठित बौद्धमंदिर के चारों ओर बनी दीवार पर चित्रों के माध्यम से कही गई रामायण इस देश के सांस्कृतिक पुनर्गठन की कथा है।थाईलैंड की रामायण में वानर सेना द्वारा समुद्र में पुल बनाने का दृश्य ‘हरित बुद्ध मंदिर’ थाईलैंड में बौद्ध धर्मावलंबियों का सबसे प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान है। राजधानी बैंकाक के केंद्र में बने इस मंदिर के पास ही शाही महल है. मंदिर के परिसर में सौ से ज्यादा इमारतें हैं. गौतम बुद्ध की हरे पत्थर से बनी मूर्ति के कारण ही यह मंदिर हरित बुद्ध मंदिर के नाम से पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. थाईलैंडवासियों के लिए ये हरित बुद्ध उनके देश के रक्षक हैं।
इस मंदिर परिसर को तकरीबन दो किमी लंबी दीवार से घेरा गया है।
हमारे समाज में ईश्वर अवतार के रूप में बुद्ध की प्रतिष्ठा है, हम में से कइयों के लिए यह मंदिर आस्था का विषय हो सकता है. लेकिन परिसर को घेरने वाली बाहर की दीवार आस्था के साथ-साथ किसी भी भारतीय के लिए हैरानी का विषय बन सकती है. इस पूरी दीवार पर रामायण का चित्रांकन है.
थाईलैंड बौद्ध बहुल देश है जहां राजा सहित तकरीबन पूरी आबादी रामाकीन (रामायण) के अठाहरवीं शताब्दी में अस्तित्व में आए संस्करण को राष्ट्रीय ग्रंथ की तरह मानती है ।
यह चित्रांकन कला और रंगों की गुणवत्ता के लिहाज से बहुत ऊंचे दर्जे का है. इसके माध्यम से थाईलैंड में प्रचलित रामायण रामाकीन के नायक "फ्रा राम "की कहानी दिखाई गई है. ये चित्र दीवार के कुल 178 हिस्सों (पैनलों) पर बने हैं और कुछ दशकों के अंतराल पर इनका ‘रेस्टोरेशन’ किया जाता रहता है. पिछली बार 2004 में ऐसा हुआ था.
थाई भाषा में रामाकीन का अर्थ है राम की गौरव गाथा. यह कहानी भी तकरीबन वाल्मीकि रामायण जैसी है। बस कुछ जगहों के विवरण और चरित्र थोड़े अलग हैं। भारत में रामायण एक धर्मग्रंथ है वहीं थाईलैंड के लिए यह उसकी संस्कृति का प्रतिनिधि महाग्रंथ है जिसकी कहानी उसी देश के किरदारों को आधार बनाकर बुनी गई है।अब सवाल पैदा होता है कि हिंदुओं के इस धर्मग्रंथ को बौद्ध धार्मिक स्थल की दीवारों पर जगह क्यों दी गई है?
इस सवाल का जवाब भारतीय और दक्षिणपूर्व एशियायी देशों की संस्कृतियों के बीच मेल में खोजा जा सकता है. माना जाता है दक्षिण भारतीय व्यापारी आज से तकरीबन तेरह सौ साल पहले इन क्षेत्रों में पहुंचे थे। इनके साथ दक्षिण-पूर्व एशिया में रामायण भी पहुंची और हिंदू धर्म की कई परंपराएं भी।ये इलाके कुछ समय तक हिंदू राजाओं के अधीन भी रहे और इससे हिंदू धर्म की जड़ें यहां और गहरी हो गईं। लेकिन जब ये राजवंश खत्म हुए तो धीरे-धीरे हिंदू धर्म भी हाशिये पर चला गया।
इन क्षेत्रों की संस्कृति में हिंदू धर्म के घुले-मिले अंश आज भी देखे जा सकते थाईलैंड में एक समय रामायण के कई संस्करण प्रचलित थे लेकिन अब इनमें से गिने-चुने संस्करण ही बचे हैं। 18वीं शताब्दी के मध्य में श्याम (आज का थाईलैंड) के शहर अयुत्थया (अयोध्या का अपभ्रंश), जो तब देश की राजधानी था, को बर्मा की सेना ने तबाह कर दिया था।फिर बाद में जब चीनी सेना बर्मा में घुस आई तो उन्हें सियाम छोड़कर जाना पड़ा और यहां एक नए राजवंश व देश का उदय हुआ।
चक्री वंश के पहले राजा की उपाधि ही राम प्रथम थी। थाईलैंड में आज भी यही राजवंश है।जब बर्मी सेना यहां से चली गई तो देश में अपनी सांस्कृतिक जड़ों को खोजने की एक पूरी मुहिम चली और इसी दौरान रामायण को यहां दोबारा प्रतिष्ठा मिलनी शुरू हुई। रामायण का जो संस्करण आज यहां प्रचलित है वो राम प्रथम के संरक्षण में रामलीला के रूप में 1797 से 1807 के बीच विकसित हुआ था। राम प्रथम ने इसके कुछ अंशों को दोबारा लिखा भी है. इन्हीं वर्षों में थाईलैंड के इस सबसे प्रतिष्ठित बौद्ध मंदिर के चारों ओर बनी दीवार पर रामायण को चित्रित किया गया था।
लेखक :-डॉ राधेश्याम केसरी
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