Moumas marriage - Pyar ki Umang - 14 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 14

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माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 14

माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग

अध्याय - 14

"मुझे भी अपनी बेटीयों को तनु और बबिता जैसा भविष्य देना था। सीमा की मनोज जी से शादी हो रही थी। मनोज जी की अमीरी ने तनु और बबिता के दिन बदल दिये थे। मैं भी चाहती थी की अपनी दोनों बेटियों को अच्छी जिन्दगी दूं। अपने पति के इलाज में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। बेटियों को छोटी-छोटी चीजों के लिए तरसते हुये देखा है मैंने। मैंने निश्चय किया कि मेरी भी बेटियां तनु और बबिता की तरह ऐश्वर्य से जीयेंगी। इसके लिए चाहे मुझे कुछ करना पड़े, मैं करूंगी। मैं पढ़ी-पढ़ी हूं। सो जाॅब की तलाश कर रही थी। एक दिन किसी ऑफिस में शंशाक से मुलाकात हो गई। उसने मुझे अपनी ऑफिस में पर्सनल सेकेट्री का प्रस्ताव दिया। मैंने स्वीकार कर लिया। शंशाक ने कुछ ही दिनों में यह जान लिया कि मैं जल्द से जल्द अमीर बनना चाहती हूं। मैंने भी अपनी महत्वाकांक्षा उसे बता दी। शंशाक ने भरोसा दिलाया कि वह उसे बहुत से रूपयो वाला काम जल्दी ही देगा।" राधा के आंसु निकल रहे थे।

"इन्सपेक्टर साहब! हम बाकी की बातें पुलिस स्टेशनों कर सकते है क्या? यहां मेरी दोनों बेटियां के सामने मैं इससे आगे कुछ बोल नहीं पाऊंगी।" राधा ने रोते-रोते कहा। इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह ने उसे पुलिस स्टेशन ले चलने का महिला कॉन्स्टेबल को इशारा किया।

राधा ने सीमा से अपनी बेटीयों का ध्यान रखने का मन वचन लिया। सीमा ने सपना और संगीता को अपनी छाती से लगाकर राधा को विदा किया।

राधा ने पुलिस स्टेशन में यह भी बताया की शंशाक ने उसे एक बड़े नेता के साथ रात गुजारने के दो लाख रुपए दिये। उसके बाद राधा नहीं रूकी। कुछ ही दिनों में उसने बहुत से रूपये कमा लिये।

उसके पास अच्छा-खासा बैंक बैलेंस जमा होने लगा।

शंशाक ने मुझे मेरी बेटीयों के साथ एक दिनमाँल में शापिंग करते हुये देख लिया। एक दिन उसने मुझसे वह बात कह दी जिससे मैं आग बबुला हो गई। शंशाक ने बड़ी बेटी संगीता को एक रात के बदले दस लाख रूपये देने की घिनौनी पेशकश कर दी। मैंने गुस्से में उसे थप्पड़ जड़ दिया और वहां से चली आई। शंशाक मुझे ब्लैकमेल करने लगा। उसके पास मेरे कुछ अश्लील वीडियो थे जिसे वायरल करने की वो धमकी देने लगा। उसकी धमकियों से परेशान होकर मैंने उसे जान से मारने का मन बनाया। असावा हाउस में जब पार्टी चल रही थी। शंशाक को मैंने वहां मिलने बुलाया। शंशाक को शराब पिलाकर उसकी मनमर्जी की बात मानने का उसे आश्वासन दे दिया। जब वह नशे में चूर होकर गिरने-पड़ने लगा तब मैंने उसके मुंह में रूमाल ठूंसकर दस्ताने पहने हाथों से उसका नाक और मुंह दबा दिया। कुछ ही मिनटों में वह मर गया। उसे वही छोड़कर मैं वहां चली गई।"

राधा ने विस्तार से बताया।

इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी जब शंशाक की मौत गार्डन के अन्दर एक कोने पर आम के पेड़ के बगल में स्टोर रूम के पास हो चूकी थी तब उसकी लाश गार्डन के ठीक सामने स्वागत द्वार तक कैसे पहूची? इसका अर्थ यह हो सकता है या तो शंशाक मरा न हो और स्वयं चलकर स्वागत द्वार तक चलकर गया हो? फिर वहां उसने श्वास छोड़ दी हो? या फिर किसी अन्य व्यक्ति ने वहां स्वागत द्वार पर उसे मारा हो? लेकिन फिर वहां शंशाक को जान से मारते हुये या उसे घसीटकर लाते हुये किसी ने देखा क्यों नही?

इन सवालों में पुलिस फिर से उलझ चूकी थी। फिलहाल राधा को शंशाक की हत्या का अपराधी मानकर उसे जेल भेज दिया गया। अपनी मां राधा को गिरफ्तार हुआ देखकर राधा की दोनों बेटीयों ने पुलिस स्टेशन जाकर एक बहुत बड़ा खुलासा किया। सपना ने इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह को बताया कि शंशाक की असली कातिल वो दोनों बहनें है। पार्टी वाली रात को हम दोनों मां के पीछे-पीछे असावा हाउस आ गये थे। मां के सिर पर खुन संवार था। इसलिए हमसे रहा नहीं गया। हमने चुपके से देखा की मां शंशाक अंकल का मुहं दबा रही थी। कुछ मिनटों बाद मां वहां से चली गई। हमने देखा कि शंशाक की सांसे फिर से लौट आई थी और वह पुनः जिन्दा हो गया था। यानी कि शंशाक मरा ही नहीं था। राधा मां उन्हें मरा हुआ समझकर वहां से चली गई थी। हम दोनों बहनों ने निश्चित किया की मां का अधूरा काम वो दोनों पुरा करेगीं। दोनों ने अपने-अपने हाथों में प्लास्टिक की पॉलीथीन पहनी और बेहोश पड़े शंशाक का पुनः मुंह जोर के दबाव के साथ दबा दिया। और तब तक शंशाक का मुंह दबाये रखा जब तक कि उसका छटपटाना बंद नहीं नहीं हो गया। शंशाक को मारने के बाद हमने पार्टी की लाइट्स का मेन स्वीच बंद कर दिया। उसके बाद शंशाक को खींचकर पार्टी के स्वागत द्वार पर पटक कर घर लौट गयीं।

"लेकिन तुमने शंशाक को क्यों मारा?" सहायक इन्सपेक्टर विनोद जाट ने दोनों बेटियों से प्रश्न किया।

"शंशाक हम दोनों बहनों पर बुरी नज़र रखता था। मां से जब भी हमे कुछ काम होता था हम सीधे उनके ऑफिस चले जाया करते थी। जहां शंशाक भूखे भेड़िये की तरह हम दोनों बहनों को देखकर लार टपकाता था। वह हमें यहां-वहां गंदी नियत से बेड टच किया करता था। हमने मां से कहा था कि वह इस गंदे आदमी के यहां काम करना छोड़ दे। मां ने हमें भरोसा दिलाया था कि उसके जैसे ही बहुत सारे रूपये जमा हो जायेगें वैसे ही वह शंशाक के यहां से काम करना छोड़ देगी।" सपना बोली।

"एक दिन जब हम मां से अपने स्कूल की फीस मांगने उसके ऑफिस आये तब शंशाक ने मेरा हाथ पकड़ लिया। और नोटों की गड्डी मेरे गालों पर तो कभी होठो पर घुमाने लगा। वह हमें रूपये देना चाहता था। मैंने गुस्से में उसे एक थप्पड़ जड़ दिया। मां ने भी शंशाक को बहुत भला-बुरा कहा।" संगीता बोली।

"इस पर भी शर्मिन्दा होने के बजाये उसने हम दोनों बहनों को इज्ज़त खराब करने की धमकी दे दी। बस उसी दिन से मां और शंशाक के बीच तनाव बढ़ता गया। मां शंशाक से किसी तरह अपनी एमएमएस की सीडी हथियाना चाहती थी। शंशाक को मारकर हमने उसने घर जाकर चुपके से उसके लेपटॉप से वह एमएमएस डिलीट कर दिया। आपके पुलिस स्टेशन में मनोज जी और शंशाक की पत्नी महिमा की सीडी हमने ही पहूंचाई थी ताकी कोई हमारी मां राधा पर शक न करे।" सपना ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया।

इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह ने दोनों बेटियों को नाबालिग होने के कारण बाल सुधार गृह गौरी नगर जेल भिजवा दिया। राधा पर मुकदमा दर्ज कर अदालत कार्यवाही के सुपुर्द कर दिया गया।

पुलिस की आवाजाही से परेशान राजाराम असावा और शेष सभी मित्र परिवार को कुछ सांत्वना अवश्य मिली। सीमा ने सपना और संगीता को अपनी ही बेटीयों के समान लाड-प्यार दिया था। उनके शंशाक की हत्या करने के विषय में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। प्रकरण सुलझ गया था। मनोज भट्ट परिवार सामान्य अवस्था में धीरे-धीरे आ रहा था।

सीमा और मनोज बहुत दिनों बाद अकेले पार्क में मिल रहे थे। एक पेड़ के नीचे सीमा की गोद में नि:संकोची मनोज लेटा हुआ था। सीमा मनोज के बालों में उंगलियां घुमा रही थी। आसपास प्रेमी जोड़ो की भरमार थी। ये दोनों जिस पेड़ के नीचे बैठे थे उसी पेड़ के पीछे की तरफ तनु और रवि प्रेमालाप में मग्न थे। जब जानी-पहचानी आवाज सीमा के कानों में सुनाई दी तब सीमा ने कुछ झांक कर पेड़ के पीछे देखना चाहा। सीमा और रवि की नज़र टकरा गई। दोनों असहज होकर उठ खड़े हुये और अपने-अपने साथी से तुरंत वहां से चलने का दबाव बनाने लगे।

चारों एक-दूसरे से छिपने का प्रयास करने लगे। लेकिन आखिरकार सामना हो ही गया।

मनोज ने रवि को देखकर कहा- "क्यों भई! शहर में क्या यही पार्क है? जहां हम जायेंगे वही तुम लोगों भी आना है?"

"अरे वाह! उल्टा चोर कोतवाल को डांटे! हम यहां आपसे पहले आये है समझे।" तनु ने चिढ़ते हुये कहा।

"तनु! ऐसे बात नहीं करते।" सीमा ने समझाया।

"तो पहले आये हो तो पहले निकल भी जाओ यहां से।" मनोज बोला।

"हम क्यों जाये? आप लोग जायेंगे यहा से!" अब रवि भी तेश में आ गया था।

"अरे वाह! चींटियों के भी अब पर निकलने लगे।" सीमा ने कहा।

"क्या आपने मेरे रवि को चिं टी कहा! तो आपके मनोज जी हिप्पोपोटोमस।" तनु भड़क कर बोली।

इनका मस्ती-मजाक चल ही रहा था की बबीता और आर्यन भी वहां आ पहूंचे।

इन दोनों को देखकर मनोज ने कहा- "आज बाकी सारे पार्क बंद है क्या ? सभी प्रेमी-प्रेमिका इसी पार्क में चले आ रहे है?"

सभी की हँसी छुट पड़ी।

मनोज ने फोन कर राजेश और काजल को भी बुलवा लिया। सौम्या,नवीन और सुगंधा, सुमित भी आ गये। इन आठों लोगो ने वह शाम साथ में गुजारने का निश्चय किया। सायाजी होटल में केन्डल लाइट डीनर की तैयारी कर वे अपने लोग अपने-अपने जोड़े से अलग-थलग केबिन में बैठ गये।

मनोज ने जो स्वप्न कुछ महिनों पहले देखा था आज वह सच साबित हो रहा था। सीमा उसके साथ नृत्य कर रही थी। मनोज का हाथ सीमा की कमर पर था। सीमा , मनोज के कन्धे पर अपना एक हाथ रखे हुये थी। मनोज ने सीमा की ओर आगे बढ़ते हुए उसके कानों में धीरे से कहा- "सीमा! आई लव यू।"

सीमा ने भी शर्माते हुये कह दिया - "आई लव यू टू मनोज।" सीमा का सिर मनोज के ह्रदय पर जा चिपका था। मनोज का बायां हाथ सीमा के बेक लेस ब्लाउज पीठ पर इधर-उधर स्पर्श कर रहा था।

नवीन-सौम्या, सुगंधा-सुमित, बबिता-आर्यन और तनु -रवि की जोड़ी मनोज और सीमा के युगल नृत्य पर तालियां बजा रही थी। सीमा यह देखकर शरमा गई। उसने मनोज की छाती में स्वयं को छिपा लिया। इस अनोखी और खुबसूरत जोड़ी के नृत्य पर बहुत तालियां बजी।

सभी प्रेमी युगल ने केन्डल लाइट डीनर किया और देर रात घर लौट आये।

मनोज और सीमा की शादी की तारीख नजदीक आ रही थी। मनोज और सीमा के घर में शादी की तैयारीयां शुरू हो चूकी थी। सीमा के गौर वर्ण पर हल्दी का उपटन उसके सौन्दर्य को और भी अधिक निखार रहा था। हल्के गुलाबी रंग की रेशमी साड़ी में उसे देखकर प्रारंभिक अनुमान यही लगाया जाता कि ये किसी नवयुवती की ही शादी रचाई जा रही है। दोनों बेटियां अपनी मां को हल्दी लगा रही थी। संसार इस महान आश्चर्य को होता हुआ देख रहा था। सीमा ने घर पर हल्दी रस्म के आयोजन पर मनोज से विवाह होने की खुशी में 'काटें नहीं कटते ये दिन ये रात' फिल्मी गीत पर रोमांचित नृत्य प्रस्तुत कर आजकल की युवती को नाकों तले चने चबवा दिये थे। तनु और बबिता ने भी अच्छा नृत्य किया किन्तु अपनी मां के सामने उन्नीसे ही थी।

संयुक्त संगीत कार्यक्रम में मनोज और सीमा ने 'अब मुझे रात दिन तेरा ही ख्याल है' एल्बम सांग पर युगल नृत्य की प्रस्तुति देकर बहुत सराहना प्राप्त की।

तनु की आंखे नम होती देख बबीता समझ गई।

"माँम शादी कर मनोज भट्ट के घर चली जायेगीं तब हमारा क्या होगा?" तनु ने बबिता के गले लगकर कहा।

"रोते नहीं तनु। बाहर देख कितना अच्छा प्रोग्राम चल रहा है? और तु यहां अकेली बैठकर रो रही है।माँम कहीं दूर थोड़ी ही जा रही है। मनोज जी का घर यहीं पास ही में तो है। हम जब चाहे उनसे मिलने जा सकते है।" बबिता ने तनु को हिम्मत तो दे दी किन्तु सामाजिक बिदाई की इस परम्परा के बोध ने बबिता की आंखो में भी आंसु ला ही दिये।

इंदौर शहर में हो रही इस अनूठी शादी के हर ओर चर्चे थे। तनु और बबिता की सर्वाधिक प्रशंसा हो रही थी। माता-पिता तो सदैव अपने बच्चों के लिए त्याग और समर्पण दिखाते ही है। आज दोनों बेटियों ने पुरे समाज के सामने शुरू से ही शोषित होती आई सीमा को खुलकर जीवन जीने का अवसर दिया। वह भी पुरे सम्मान के साथ।

विवाह समारोह शहर के एक बड़े होटल में चल रहा था। मनोज ने चार दिनों के लिए होटल बुक किया था। सीमा और मनोज दोनों के परिवार वाले उसी हाॅल में सम्मिलित होकर शादी की रस्में निभा रहे थे।

"ये क्या कर रहे रवि कोई देख लेगा।" तनु ने रवि के चुंगल से छूटने की असफल कोशिश करते हुये कहा। रवि ने हाथों से पकड़कर तनु को पास ही एक दरवाजे के पिछे दीवार से सटा दिया। रवि ने मजबूती से तनु को अपनी बाहों में जकड रखा था। तनु जानती थी कि बिना रवि की बात माने वह यहां से नहीं जा सकती।

***