Moumas marriage - Pyar ki Umang - 3 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 3

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माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 3

माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग

अध्याय - 3

यह वही काजल थी जो कभी राजेश से बहुत चिढ़ा करती थी। गंगाराम जब जीवित थे तब उनके गांव में प्रत्येक बारह वर्ष में मनाया जाने वाला गांव गैर पुजा त्यौहार की प्रसिद्धी को करीब से अवलोकन करने मनोज अपने साथ राजेश को भी चोरल ले गये थे। वहीं दोपहर के समय पहली बार काजल ने रवि को देखा था। मनोज की आगवानी करने में गंगाराम व्यस्त हो गये। बड़े से आंगन में बहुत से महिला- पुरूष जमा थे। एक कोने में लड़कीयां फिल्मी गीतों पर नृत्य कर रही थी। गांव के ही किसी एक युवक ने जमीन पर खड़े हुये राजेश को बैठने के लिए कुर्सी दी।

राजेश लड़कियों का नृत्य देखने बैठा ही था कि काजल की सखीयों ने काजल को नृत्य करने का दबाव बनाया। काजल ने राजेश को ठीक अपने सामने बैठा हुआ देखा। उसने नांक-मुंह सिकुड़ोते हुये कहा- "काजल हर किसी के भी सामने नाचने वाली कोई नचनियां नहीं है।" ऐसा कहकर वह अपनी सहेलीयों की टोली में जा बैठी। राजेश झेप गया। वह समझ गया कि काजल ने ये शब्द उसी के लिए कहे है क्योंकि उसके अलावा वहां अन्य कोई अपरिचित व्यक्ति नहीं था। राजेश ने वहां से उठने में जरा भी देर नहीं लगाई। मनोज भी यह दृश्य देख चूका था। उसने राजेश को अपने पास बुलाकर गांव की पुरूष टोली में सम्मिलित करवा दिया। राजेश ने जल्द ही गांव के लड़को से घुल मिल गया। गांव की कुछ लड़कीयां राजेश को रिझाने का प्रयास कर रही थी जो काजल को तनिक भी अच्छा नहीं लगता रहा था। राजेश ये सब जानकर भी अनजान बनने का स्वांग रच रहा था। काजल उसे पहली नज़र में पसंद आ गई थी। स्वयं के आनंद लिए वह उसकी सहेलीयों से हंसी- ठिठोली कर काजल को चिढ़ाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहा था।

चोरल के हर गाँव में आज उत्सव का नजारा था। ग्रामीणों के कच्चे-पक्के मकानों पर की गई रंगाई-पुताई दुर से अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। नाते-रिश्तेदारों से घर-मकानों के आँगन गुलजार थे। ढोल-मांजरे की ताल पर ग्रामीण मस्ती में थिरक रहे थे। ताड़ी (एक प्रकार की शराब) के नशे में धुत्त होकर क्या महिला और क्या पुरूष सभी सुध-बुध खोकर नृत्य कर रहे थे। गांव गैर पुजा पर पशु बलि की परम्परा थी। गांव की चौपाल के पास ही पीपल के पेड़ के चारों ओर मुंडेर पर सफेद-भूरे रंग के पत्थर जिन्हें शीतला माता कहा गया, की मुंडेर पर ग्रामीणों द्वारा पशु बलि हेतू लाये जा रहे बकरे के कान काटकर चढ़ावे के रूप में रख कर शेष बकरे को ग्रामीण अपने-अपने घर ले जा रहे थे। गांव के प्रत्येक घर आंगन से लगे झाड़ीदार परिधि क्षेत्र में पेड़ पर पुर्व से बलि देकर लटकाये गये बकरे की खाल उतारने के दृश्य दिखाई पड़ रहे थे। एक ओर सागोन की लकड़ी से भभक रहे चूल्हे की तेज आंच में इसी बकरे का गोश्त काट पिटकर ग्रामीण न-न प्रकार के देशी मिर्च मसालों से सब्जी का (बघार) तड़का लगा रहे थे। उसी चूल्हे के पास एक अन्य चूल्हे पर बड़ी सी कढ़ाई उल्टी रखी गई थी जिस पर कूछ बाहर से आये हलवाई मांडे (लम्बी चौड़ी गेंहू मेदे की मिक्स रोटी) सेंक रहे थे। जिन ग्रामीणों ने बाहर से हलवाई नहीं मंगवाये थे वे आटे की बाटी उपलें (कंडे) जलाकर उसकी आग में सेंक रहे थे। बीच-बीच में महिला-पुरुष लकड़ी की सहायता से बाटी को उलट-पलट कर रहे थे। ताकी बाटी ठीक से पके और जल न जाये।

राजेश यह सब आश्चर्य से देख रहा था। उसे प्रसन्नता थी कि वह इस गांव में आया यह सब देखने। अनाथ आश्रम में रहकर वही पढ़ाई लिखाई पुरी करने और फिर वही से नौकरी लग जाने के कारण वह ज्यादा बाहर घूम फिर नहीं सका था। चोरल गांव में आधुनिकता बहुत पहले ही प्रवेश कर चुकी थी। ग्रामीण नये जमाने के कपड़े पहनने के शौकीन थे। जींस और टी-शर्ट गांव के युवाओं के बलिष्ठ शरीर पर सुशोभित थी। गांव के पुराने लोग ही सिर पर पगड़ी बांधे हुए थे। युवतियां आधुनिकता लिए सलवार-कुर्ती पहनकर घमण्ड में थी। गांव की विवाहित महिलाएं रंग-बिरंगी साड़ियों में घुघंट रखना नहीं भूलती। कुछ मेहमान सफारी सूट पहने थे तो कुछ अतिथि कसावट लिए कुर्ता-पायजामा धारण किये थे।

गंगाराम ने मनोज और राजेश को भोजन के आमंत्रित किया। राजेश असहज था। मनोज रवि के चेहरे के भाव समझ गया। उसने गंगाराम के कान में कुछ कहा।

"बस इतनी सी सात। अरे भाई हमने मांसाहारी और शाकाहारी दोनो तरह का खाना बनवाया है। आप लोग हाथ मुँह धोकर बेठ जाइये।" गंगाराम ने बताया।

गंगाराम की बातें सुनकर रवि प्रसन्न था। क्योंकि वह शाकाहारी है। पंगत जमीन पर बैठ चूकी थी। बड़े से खेत पर आसपास टेन्ट कनाद और ऊपर पर्दे की छांव के नीचे गंगाराम ने भोजन जीमने की व्यवस्था थी। एक ओर महिलाएं भोजन जीम रही थी दूसरी ओर पुरूष। गंगाराम भोजन जीमाने में व्यस्त हो गये। राजेश जैसे शाकाहारी मेहमानों को एक ओर विशेष स्थान पर भोजन करवाया जा रहा था। जिसकी परोसदारी काजल और उसकी सहेलियां कर रही थी। काजल जानबूझकर राजेश के सामने से होकर भोजन सामग्री लेकर बार-बार गुजरती। राजेश के आसपास बैठे व्यक्तियों को तो वह परोस देती किन्तु राजेश को नहीं परोसती। रवि सकमकाकर उसकी सहेलीयों को बुलाकर अपनी पसंद की भोजन सामग्री मांग लेता जिससे काजल चिड़ जाती।

यही छोटी-छोटी नोंक-झोंक कब प्यार में बदल गई दोनों को पता ही नहीं चला। काजल जब अपने पिछले बचकानी हरकतों के बारे विचार करती है जो उसने राजेश को परेशान करने के लिए की थी, उन्हें सोच कर वह शर्मिंदा भी जाती। गंगाराम ने राजेश की सादगी और जिम्मेदाराना रवैया देखकर स्वयं काजल के सामने राजेश से शादी करने के विषय में बात की थी।

काजल ने पहले तो इंकार करने का स्वांग किया। फिर धीरे-धीरे राजेश के प्यार में ऐसी गिरफ्तार हुयी की कहीं उसे खो न दे यह सोचकर उसने राजेश से शादी करने के लिए हां मी भर दी।

इधर मनोज के घर सुषमा और मनोज किसी बात पर चर्चा रत थे। रवि और काजल सांयकाल लौटे। मनोज ने सीधे राजेश से प्रश्न किया - "रवि, क्या तुम काजल से प्यार करते हो?" इस आकस्मिक प्रश्न से

राजेश सकते में आ गया। क्या कहे? क्या न कहे?

मनोज ने दोबारा वही प्रश्न किया-

"बोलो राजेश जवाब दो।"

राजेश ने निडरता का परिचय देते हुये - "जी हां ।"

मनोज- " कितना ?"

" ये कैसा प्रश्न हुआ सर? अब प्यार की मात्रा को कैसे मापा जा सकता है? रवि ने झुंझलाकर कहा।

" अरे भाई नाराज मत हो। मेरा पूछने का मतलब था कि तुम काजल के लिए क्या कर सकते हो?" मनोज बोला।

" ये प्रश्न भी मेरे समझ से परे है। सर, आपको तो पता है कि मैं एक प्रेक्टिकल आदमी हूं। मुझे ये झुठमुठ के कसमे-वादे करने नहीं आते और न ही कभी मैंने अपना काम निकालने के लिए झुठ का सहारा लिया है। काजल से मेरी शादी हो! यह अकेले मैं नहीं चाहता हूं। काजल , सुषमा जी और मनोज सर आप सब भी तो यही चाहते है न। इस रिश्ते को परस्पर आगे सुव्यवस्थित चलाना हम सभी की जिम्मेदारी है। अपनी ओर से आपकी संतुष्टी के लिए यह कथन अवश्य कहता हूं कि शादी के बाद काजल मेरी प्राथमिक जिम्मेदारी रहेगी। उसके सुख-दुःख का ध्यान रखना और जीवन में उसे वह सब उपलब्ध कराना जो एक औरत की शारीरिक, मानसिक और समाजिक आवश्यकता होती है। यहां यह भी उल्लेख करता हूं अपने द्वारा किये जाने वाले किसी भी कर्तव्य के प्रतिरूप प्राप्ति का मैं स्वयं को अधिकारी नहीं मनूगां। काजल विवाह उपरांत वो सभी कार्य करने के लिए स्वतंत्र होगी जो वह विवाह से पहले करती आई है। अपने कॅरियर के प्रति विचार करने और उसे आगे तक ले जाने के लिए काजल को मेरी जो भी सहायता चाहिए रहेगी उसमे मेरी से सहमती है। मैंने जो कुछ चल-अचल जो संपत्ति अर्जित की है एक धर्मपत्नी के रूप में काजल उसकी बराबर की अधिकारी होगी। काजल का मन-वचन और कर्म से मुझ पर एकाधिकार होगा। अन्य स्त्री मेरे लिए बहन के समान होगी। काजल की पैतृक संपत्ति काजल की और उसकी मां की होगी वे उसे जिसे चाहे उसे वैसा उपयोग करने वे दोनों स्वतंत्र होगीं। उस विषय में मेरा हस्तक्षेप नहीं होगा।" राजेश ने स्पष्ट किया।

राजेश की बातें सुनकर मनोज और सुषमा के साथ काजल भी मंत्रमुग्ध हो गयी थी। मनोज , राजेश से उसके घरजमाई बनने की बात करने की हिम्मत जुटा नहीं सका। आखिरकार कुछ समय के बाद उसने यह बात राजेश से करने का निश्चय किया।

सुषमा के हृदय में बहुत संतोष हुआ की काजल की शादी राजेश से करने में कोई परेशानी नहीं है। अपितु राजेश, काजल के लिए एक सुयोग्य वर है। सुषमा और काजल गांव लौट गये।

मनोज ने राजेश से काजल से शादी कर वहीं चोरल में सेटल हो जाने की बात कहकर राजेश को विचलित कर दिया। बहुत विचार करने पर उसने मनोज भट्ट से घरजमाई बनने का विरोध प्रकट कर दिया। चोरल गांव में मनोज ने जब यह बात सुषमा जी को फोन पर बताई तब सुषमा जी दुःखी अवश्य हुई। लेकिन राजेश के स्वाभिमान पर गर्व करने से स्वयं को रोक न सकी।

काजल को राजेश का निर्णय सुनकर बहुत दुःख हुआ। उसने राजेश से बातचीत बंद कर दी। वह राजेश के फोन का कोई उत्तर नहीं दे रही थी। राजेश ने चोरल जाने का विचार बनाया। राजेश चोरल काजल से मिलने आ रहा है यह सोचकर उसकी खुशी दोगुनी बढ गई। उसे भरोसा हो गया कि राजेश उससे बहुत प्यार करता है और हर कीमत पर काजल से शादी करने को राजी हो जायेगा।

"मां जी! मैं काजल से शादी कर घरजमाई बनने को तैयार हूं।" राजेश ने मुंह फुलाये बैठी काजल को देखकर सुषमा जी से कहा।

"ये तो बड़ी अच्छी बात है बेटा!" सुषमा जी उत्तर में सहर्ष के बजाए हैरानी अधिक थी क्योंकि मनोज ने उसे बताया था कि राजेश ने घरजमाई बनने से मना कर दिया था। यहां उसके घर आकर उसकी घरजमाई बनने की सहमती उसे आश्चर्यचकित करने के लिए काफी थी।

काजल के चेहरे पर भी खुशी झलक आई थी।

" मां जी और काजल! आप दोनों ने मुझे इस घर का दामद बनाने के लिए चुना है। जबकी काजल से शादी करने के लिए तो हजारों लड़के एक पैर पर तैयार हो जाये। और शायद आपको मुझमे कुछ न कुछ तो ऐसा विशेष दिखाई दिया होगा जो मुझे अन्य युवकों से अलग करता है। यानी कि मेरी उसी पहचान से प्रभावित होकर आप लोगों ने मुझे काजल के चुना है। यही पहचान मेरा स्वाभिमान है। आप लोग मेरी उसी पहचान को मुझसे छीनना चाहते है।"

राजेश की बातों में गहराई थी।

"काजल से शादी करने के लिए मैं कुछ कर सकता हूं। लेकिन जिस व्यक्ति का स्वाभिमान जो उसकी पहचान है वही छीन जाये तब क्या काजल ऐसे व्यक्ति के साथ जीवन गुजार सकेगी जिसका आत्मसम्मान ही न हो?" राजेश ने कम शब्दों में

बहुत कुछ कह दिया था।

सुषमा प्रसन्न थी कि उसने काजल के लिए राजेश जैसा योग्य युवक का चयन किया है। काजल अभी भी उदास थी।

सांयकाल घर की छत पर काजल राजेश के गले लगकर सुबक रही थी। उसे राजेश से भी शादी करना था और अपनी मां को भी छोड़कर शहर नहीं जाना चाहती थी। काजल को समझाने में राजेश को समय लगा। लेकिन धीरे-धीरे काजल को राजेश की काबिलियत पर भरोसा दृढ होता चला गया। राजेश ने काजल को यह वचन दिया कि शहर में रहकर भी वो चोरल गांव में अपनी सास का एक बेटे से बढ़कर ध्यान रखेगा। शनिवार-रविवार के छुट्टी वाले दिन वह और काजल चोरल में रहेंगे। ताकी सुषमा जी का भी मन लगा रहे और वे दोनों मां के साथ मिलकर समय बिताये। सुषमा भी जब चाहे शहर आकर अपनी बेटी दामाद के साथ जितने दिन रहना चाहे रह सकती है। काजल और सुषमा प्रसन्नता से खिल उठे।

***