Train wali bachchi in Hindi Motivational Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | ट्रेन वाली बच्ची

Featured Books
  • અપેક્ષા

       જીવન મળતા ની સાથે આપણે અનેક સબંધ ના સંપર્ક માં આવીએ છીએ....

  • આયનો - 2

    ​️ કેદ થયા પછીની સ્થિતિ: ધૂંધળી દુનિયા​આયનાની અંદરનો કારાવાસ...

  • ટેલિપોર્ટેશન - 3

    ટેલિપોર્ટેશન: વિલંબનું હથિયાર​અધ્યાય ૭: વિલંબનો અભ્યાસ અને ન...

  • The Madness Towards Greatness - 5

    Part 5 :" મારી વિદ્યા માં ઊણપ ના બતાવ , તારા કાળા કર્મો યાદ...

  • અંધારાની ગલીઓમાં લાગણીઓ - 4

    શીર્ષક : અંધારા ની ગલીઓમાં લાગણીઓ - 4- હિરેન પરમાર ગુપ્ત મુલ...

Categories
Share

ट्रेन वाली बच्ची

जैसे तैसे मैं धीरे धीरे चलती ट्रेन मे भागते भागते एक सज्जन की मदद से चढ़ गया लेकिन ट्रेन मे घुसते ही ये एहसास हुआ कि एक जंग अभी और बाकी है जो सीट के लिए करनी है, जी हां पहली जंग तो टिकट ले कर जीत ही ली थी वरना आज कल ट्रेन की टिकट लेना आसान नहीं, बहुत भीड़ थी ट्रैन मे, लोकल डिब्बे मे अक्सर होती है, जैसे तैसे मै खड़ा तो हो गया पर नज़र चारों ओर सीट तलाश रही थी, भीड़ इतनी की मोबाइल निकालने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता l

हमेशा की तरह मैं अपने आप को कोसने लगा कि एक सीट तक नहीं मिलती मुझे ट्रेन में, कैसी जिंदगी है ये l मैं अक्सर जिंदगी से तमाम शिकायतें करता रहता था, आज ये नहीं, आज वो नहीं और ना जाने क्या क्या, दूसरों की जिंदगी देखो कितने मज़े में काट रही है, मेरे दिमाग में कुछ पुरानी परेशानियां याद आती इस से पहले ही मैंने देखा मेरे सामने ही एक सुंदर युवती बैठी थी एक बच्ची को गोद मे लिये थी l सुंदर फ्राक और साफ सुथरा शरीर और नट्खत शैतानिया, वो बच्ची मुझे देख मुस्कराती और माँ की गोद मे उछलने लगती l

वो बार बार यही दोहराती, मुझे लगता मानो सीट ना मिलने का मज़ाक उड़ा रही हो, माथे से पसीना पोछते हुए मैंने खुद से ही कहा, देखो कितनी अच्छी किस्मत है बच्ची की और मुझे देखो "l मैं भी उसे देख कई तरह के मुंह बनाने लगा l ट्रेन पूरी तरह से भरी थी और हर जगह सामान फैला पड़ा था l तभी ट्रेन आने वाले स्टेशन के लिए रुकने लगी और डिब्बे मे अफरा-तफरी मचने लगी मैंने बड़ी कोशिश की पर सीट ना मिल पाई, तभी एक आदमी ने अपनी सीट के नीचे से एक बड़ा बाग निकाला और भीड़ को हटाते हुए गाड़ी से नीचे उतर गया, लेकिन ये क्य़ा? उस बैग के पीछे ....

मैं अक्स्मात ही उस सुंदर बच्ची को देखने लगा जो पास मे ही बैठी थी और फिर नज़र उस सीट के नीचे चली गई l
दुनिया जहां के लोग बैठे थे ट्रैन मे पर इस बच्ची के लिये कोइ जगह नही, इसके मां बाप कितने बुरे हैं, बिचारी कितनी गरीब है, कितने गंदे बाल और कपड़े हैं, पचास बातें मन मे आ गई l

वो जागी मुझे देखने लगी, वो कितनी आत्मनिर्भर थी, उसके चहरे पर उदासी की कोई लकीर नहीं थी, मै उन दोनो बच्चियों को बार बार देखता, जैसे अमीरी गरीबी का फर्क़ देखता, भीड़ कुछ कम हुई तो मैं उसी सीट के पास खड़ा हो गया, वो बार बार मुझे छू रही थी, मन ही मन जैसे बात कर रही हो, उसके मां बाप दूसरी तरफ सो रहे थे, जैसे उन्हे अपनी बच्ची का कोई होश ही नहीं, और उस अमीर बच्ची को उसकी मां गोद से उतार ही नहीं रही थी,एकएक मै माओं के प्यार मे फर्क़ ढूढ्ने लगा, वो खिड़की से बाहर देख रही थी, मानो अपने आने वाले कल या फिर आने वाले संघर्श की रणनीति तैयार कर रही हो, तभी बगल वाले भाई साहब ने सीट खाली की और मै बैठ गया, बच्ची मेरे पैरों के पास आकर बैठ गई, वो ना जाने क्यूँ मेरे पैरों से सट्कर सो गयी जैसे मेरे मन मे उसे देख कर जो सवालों की बरसात हो रही थी उसे उसने भांप लिया हो, वो नन्हे हाथों से मेरी पैंट पकड़े हुये सो गई, मैंने एक ठंडी आह भरी और खिड़की के बाहर देखने लगा l

रात गहरी हो चली थी, वो सुन्दर बच्ची अपनी माँ की गोद मे सो रही थी, तभी मैंने अपना बैग खोला और अपना लंच बॉक्स निकाला और उस बच्ची के हाथ मे थमा दिया, बच्ची आंख खोलकर मुझे देखने लगी और हंसने लगी, मैंने ना चाहते हुए भी बच्ची के गंदे सिर पे हाथ फेरा और कहा, "खा लो", कभी कभी कुछ चीज़ें अमीरी गरीबी, साफ मैला, ऊँच निच से ऊपर होती हैं l
बच्ची उठ कर खाना खाने लगी मैं उसे देखता रहा, बिना कुछ खाए भूख को कैसे शांत करते हैं ये मैंने उस दिन जाना, ट्रेन अपनी रफ्तार से चलती जा रही थी, मुझे पता नहीं चला कब मेरी आँख लग गई, सुबह हो चुकी थी मैंने अपने इधर उधर देखा तो पता चला कि वो लड़की जा चुकी थी l मैं ट्रेन से निकल कर बाहर आया, आज मुझे अपने जीवन से बहुत खुशी हो रही थी और सारी शिकायतें बहुत छोटी लग रही हैं l

? समाप्त ?

कहानी पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का आभार l
कृपया अपनी राय जरूर दें, आप चाहें तो मुझे मेसेज बॉक्स मे मैसेज कर सकते हैं l

?धन्यवाद् ?

? सर्वेश कुमार सक्सेना