The Author Sarvesh Saxena Follow Current Read मोह By Sarvesh Saxena Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books स्वयंवधू - 27 सुहासिनी चुपके से नीचे चली गई। हवा की तरह चलने का गुण विरासत... ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share मोह (78) 3.5k 10.6k 11 सुबह के 9:00 बज गए थे और आदित्य बहुत जल्दी कर रहा था अपने कॉलेज जाने की क्योंकि आज उसे एडमिशन लेना था l आदित्य का कॉलेज मनाली से लगभग 30 या 35 किलोमीटर दूर था , मनाली की सुंदर हरी-भरी वादियों और हरे जंगलों के बीच था कॉलेज l आज वहां बहुत भीड़ थी , लाइन पर लाइन लगी हुई थी पर आदित्य बड़ी चैन की सांस लेते हुए बाहर आया क्योंकि उसका एडमिशन हो गया था फिर उसने सारा कॉलेज घुमा l सब कुछ आदित्य को बड़ा अच्छा लग रहा था सिवाय एक चीज के, कॉलेज के पीछे एक विशालकाय अजीबो गरीब पेड़ के फिर उसने इसे अनदेखा किया और घर चला गया l एक हफ्ते बाद से उसकी बी एस सी की क्लास शुरू होने वाली थी, आदित्य मनाली में अकेला रहता था, वो कुछ सामान अनपैक कर ही रहा था कि डोर बेल बजी, "जी आप कौन? " आदित्य ने दरवाजा खोलते हुए कहा, "मेरा नाम हिम है और ये आशी है हम तुम्हारे क्लास मे ही पढ़ते हैं, इधर से गुज़र रहे थे तो सोचा तुमसे मिलते चलें " तीनों ने काफी सारी बातें की तो आदित्य ने दोनों से उस पेड़ के बारे मे पूछा , पेड़ का नाम सुनते ही हिम और आशी एक दूसरे को देखने लगे और उनके चेहरे पे डर ऊभर आया वो आदित्य को घबराते हुए समझाने लगे कि वो कभी भी उसके पास ना जाए वो एक शापित पेड़ है l धीरे धीरे वो दोनों आदित्य के काफी अच्छे दोस्त बन चुके थे l आदित्य रोज अपनी क्लास मे बैठता और ध्यान से उस पेड़ को देखता पर पास जाने की हिम्मत नहीं होती क्योंकि वह बड़ा विचित्र और भयावह लगता था और वैसे भी हिम और गाँव वालों से वो काफी बातें सुन चुका था कि इस पर किसी औरत की आत्मा रहती है, आदित्य वैसे तो बहुत मॉडर्न था पर भूत प्रेत में उसका यकीन था l वो जानना चाहता था कि आखिर इसमें राज़ क्या है l कुछ दिनों बाद एक शाम वह उस पेड़ के पास गया और उसके चारों ओर देखने लगा, कुछ देर तक जब वहां कोई नहीं दिखाई तो उसने वहां कई आवाजें लगाई, "कौन यहां रहता है?, इस पेड़ पर अगर कोई रहता है तो वह सामने क्यों नहीं आता" फिर वह चुप हो गया और बोला, "अरे कोई नहीं है सब ऐसे ही कहानियां बनाई गईं हैं", ये कहकर वो पेड़ के पास बैठ गया, बैठे-बैठे न जाने कब उसकी आंख लग गई, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके पास आ रहा हो, धीरे-धीरे बहुत धीरे और फिर अचानक एक औरत सामने आ गई उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कोई आदिवासी हो और उसकी वो खौफनाक और प्यासी आँखे ऐसी थीं जैसे सदियों से किसी की राह देख रही हो l आदित्य उसे देखकर बिल्कुल पत्थर की तरह हो गया जिसकी सारी शारीरिक क्रियाएं बंद हो गई थी, वो चाह कर भी आंखें नहीं खोल पा रहा था l उस औरत ने आदित्य का हाथ पकड़ा और पेड़ के अंदर चली गई, आदित्य को कुछ समझ आता इस से पहले उसने देखा कि चारों तरफ उसी तरह के खौफनाक पेड़ थे और उन सभी पर कंकाल लटक रहे थे, तेज तेज से रोने की आवाजें आ रही थीं और दूर तक कोई नहीं था, वह बहुत तेज चिल्लाया और यहां वहां भागने लगा, पर वो कितना भी भागता वापिस उसी जगह आजाता जहां से भागना शुरू करता, वो जोर जोर से चिल्लाने लगा बचाओ, बचाओ, बचाओ तभी आदित्य की आँख खुल गई तो उसने देखा वो अभी उसी पेड़ के नीचे लेटा है, उसने एक पल भी बिना गंवाए वो वहां से तेज़ी से भागता हुआ सीधा घर आ गया l तभी हिम और आशी उसके यहाँ आते हैं और बताते हैं, कॉलेज में दिवाली फंक्शन है रात मे l आदित्य को परेशान देख दोनों उसका कारण पूछते हैं पर आदित्य टाल जाता है l रात मे सब मिलकर पार्टी में देर रात तक डांस करते रहे और पार्टी खत्म हुई रात के 1:00 बजे, सब चले गए तीनो घर जा ही थे कि तभी आदित्य ने अचानक वही पेड़ कुछ दूर पर देखा जिसके पास वह औरत भी खड़ी थी आदित्य चौंका और घबरा कर बोला, "अरे ये पेड़ तो वहां था, ये यहां क्या कर रहा है? यह कैसे?", फिर वह बोल ना सका l हिम और आशी घबरा गए और बोले, "क्या हुआ? कहाँ है पेड़, कौन सा पेड़?" आदित्य ने फिर उधर देखा तो भौंचक्का रह गया वह बोला, "अरे वो पेड़ कहां गया? आदित्य का सिर चकरा गया और बेहोश हो गया l होश आने पे देखा तो रात के 3 बज चुके थे और हिम उसी के पास सो रहा था l आदित्य ने हिम को उठाया और सारी बात बताई l हिम ने उसे समझाया कि यार वह पेड़ बहुत खतरनाक है उसके बारे में मत सोच और सो जा, मैंने गांव वालों से बहुत डरावनी कहानियां सुनी है, उसके बारे में, चल मैं यही हूं तेरे पास सो रहा हूं फिर दोनों सो गए, लेकिन सपने में तो फिर वही.. आदित्य पेड़ के पास पहुंच गया जहां वह औरत गहनों से लदी हुई खुशी से नाच रही थी उसके चारो ओर खून ही खून था जिसे वो बार बार अपने जिस्म पे लगाती l जैसे ही वह वहां पहुंचा वो औरत बोली, "चला जा यहां से और जिंदगी से प्यार करता है तो इस पेड़ के पास मत आया कर और इसका राज राज ही रहने दे वरना हा हा हा हा हा हा" और फिर वह गायब हो गई फिर आदित्य की आंख खुल गई उसने देखा कि हिम उसके पास नहीं है तो वह और डरा उसने सब जगह हिम को ढूंढा और आवाज भी दी पर हिम का कोई जवाब नहीं मिला, अब वो समझ गया था वो औरत उसे नहीं छोड़ेगी, वह बहुत डर गया और उसने तेजी से दरवाजा बंद किया तो देखा उसका हाथ किसी के हाथ के ऊपर रखा था उसने पीछे देखा तो हिम सो रहा था, उसने कहा, "तुम कहां चले गए थे?," मै तो यहीं था, तुम सो जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है" कहकर हिम सो गया पर आदित्य को लग रहा था वो पागल हो जाएगा l दो दिन से आदित्य घर मे बंद था उस औरत के डर से जिसे वो जानता ही नहीं लेकिन आज फिर आदित्य कॉलेज गया और छुट्टी के बाद गुस्से से लाल, चला गया उस पेड़ के पास, वो गुस्से मे पेड़ को हाथ और लात मारने लगा कि तभी एक लकड़ी का तख्ता सा खिसका और गड्ढा बन गया, उसने बड़ी आश्चर्य से गड्ढे में देखा तो एक लाल पोटली पड़ी हुई थी उसने तुरंत उठाई बहुत भारी होने के कारण उसे बाहर निकाल नहीं पाया तो वहीं बैठे-बैठे खोलने लगा और जैसे ही पोटली खुली वह बिल्कुल हक्का-बक्का रह गया, उसमें सोने चांदी के बहुत पुराने गहने रखे थे जो आज भी उतने ही चमक रहे थे कि जितने कि मैं होने पर चमकते होंगे उनसे उन गहनों को घर ले जाने के लिए जैसे ही हाथ लगाया तुरंत वह आग की तरह लाल हो गए, आसमान काला हो गया और तेज़ आंधी से आने लगी, वो पेड़ जो बिल्कुल सूखा था उसमे से खून की धारा बहने लगी और फिर वहां पर वही औरत को गहनों से लदी हुई थी आ गई, उसने आदित्य से कहा, "मैंने तुझे मना किया था ना पर तू नहीं माना आखिर मुझे वही करना पड़ेगा जो मैंने पहले कई लोगों के साथ किया l तू जानना चाहता है कि मैंने क्या किया है लोगों के साथ, चल मेरे साथ"l औरत ने उसका हाथ पकड़ा और उस गड्ढे में ले गई वहां आदित्य ने देखा कि हर तरह कंकाल खून और मांस के लोथड़े पड़े हैं, इधर-उधर लाशें बिखरी पड़ी हैं जिनके ऊपर सांप कीड़े मकोड़े रेंग रहे थे l वो हंसने लगी और बोली," यह सब तेरी तरह थे जो मेरा भेद जानना चाहते थे पर मैंने इन्हे मारा नहीं मैंने इन सबके साथ सुहाग रात मनाई इस से मेरा सौंदर्य निखरता है और फिर बस सबका खून पिया जिस से मै और ताकतवर होती हूँ और फिर मै इनके खून मे नहाती हूँ जिससे मेरे ये गहने और भी चमकदार हो जाते हैं, हाहाहा हाहाहा " l उस औरत की बातें और ये राक्षसी हंसी सुनके आदित्य ठंडा पड़ गया उसे नहीं समझ आ रहा था कि वो क्या करे, उसने यहां से भागने के लिए जैसे ही कदम बढ़ाया तो वो औरत फिर बोल पड़ी," कहाँ जा रहा है? देख मैंने हमारी सुहागरात के लिए कितनी अच्छी सेज़ सजाई है " आदित्य ने उधर देखा तो बदबूदार मांस के लोथड़ों का एक बिस्तर सा लगा हुया था जिसपे जाकर वो औरत कामुक अवस्था मे लेट गई और बोली, "अब तुम्हें भी मैं यही सुला दूंगी पर एक प्यारी चीज दिखाने के बाद, देखना चाहोगे? उधर देखो" आदित्य ने उधर देखा तो वह खड़ा न रह सका और जमीन पर गिर पड़ा क्योंकि दीवार पर आशी की लाश लटकी हुई थी उसे बार-बार आशी का चेहरा और उसकी हंसी याद आ रही थी फिर उस औरत ने उसे एक और चीज दिखाई जो की थी हिम की लाश l उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब असलियत में हो रहा है या सपने में l आदित्य गुस्से में आकर बोला, "मैं तुम्हें मार डालूंगा, तुमने मेरे दोस्त को मारा, क्यों? बोल तूने ऐसा क्यों किया?" वो औरत ज़ोर ज़ोर हंसते हुए बोली, "बेचारा इतना भी नहीं जानता कि तेरी आशी और तेरा दोस्त जिंदा कब था, हा हा हा हा अरे बेवकूफ उसे तो मैंने तेरे यहां आने के बीस साल पहले ही मार दिया था पर उनकी आत्माओं को मै मार नहीं पाई क्योंकि उन्होंने शादी कर के सुहागरात भी मना ली थी और मै सिर्फ कुंवारे लड़कों को अपना शिकार बनाती हूँ जो मेरी प्यास बुझाते हैं, तेरे दोस्तों ने इस पेड़ के पास आने के लिए मना किया था ना वो उनकी आत्माएं थीं, लेकिन मै तुझे कैसे जाने देती... हाहाहा "l यह सुनकर आदित्य को याद आता है कि पहले दिन वो दोनों कैसे जाने की मै यही रहता हूँ, उन्हे कैसे पता चला कि मै पेड़ के पास जाना चाहता हूं, जब मै आशी से पेड़ के पास जाने को कहता तो आशी गुस्सा हो जाती थी और उस दिन हिम रात को कहां गायब हो गया था l आदित्य वो सारे पल याद करके फूट फूट कर रोने लगा l उधर वो औरत जोर जोर से नाचने लगी l आदित्य की आंखों मे बदले की आग थी उसने चिल्लाकर पूछा, " आखिर तू है कौन? क्या चाहती है? और इन सब को क्यों तूने मारा? बोल बोलती क्यों नहीं? तब उस औरत ने बताया कि," मेरा नाम शारपी है, यहां दो सौ साल पहले एक घना जंगल था जिसमें हम आदिवासी अपना कबीला बनाकर रहते थे हम बहुत खुश थे हमारी छोटी सी दुनिया थी, मैं चाहती थी कि मैं बहुत अमीर बन जाऊं, कबीले के सरदार के बेटे से मेरी शादी हो जाए और मै सारे कबीले की मालकिन बन जाऊं लेकिन एक दिन सरदार की नजर मुझ पर पड़ी और उसकी नियत खराब हो गई उसने मेरे बाबू से कहा तुम मुझे अपनी बेटी दे दो और मैं तुम्हें मालामाल कर दूँगा, लेकिन बाबू ने उनकी बात नहीं मानी और बादल से मेरी उसी दिन शादी करा दी जो मुझे बचपन से प्यार करता था, सब खुश थे सिवाय मेरे क्यूंकि मेरा सपना टूट रहा था, उस रात मै फूलों की सेज़ पे लेटी बादल का इंतज़ार कर रही थी, बादल ने आकर मुझे अपनी बाहों मे भर लिया, मेरे बदन मे बिजली सी कौंधने लगी मैंने अपनी आंखे बंद कर ली, मुझे अजीब सा लगने लगा तो आँखे खोलीं तो चिल्ला पड़ी बादल मेरे ऊपर तो लेटा था मगर बिना सिर के, उसके खून से मेरा जिस्म लाल हो चुका था, मैंने उसकी लाश को ज़ोर से फेंका और सामने खड़े सरदार से बोली की उसने धोखा क्यूँ दिया शर्त ये थी कि वो बादल को सुहागरात के बाद मरेगा, लेकिन सरदार ने उसे पहले ही मार दिया और बोला तू सिर्फ मेरी है और सबसे पहली सुहागरात तुझसे मै मनाउंगा, मैंने शर्त के अनुसार अपने गहने मांगे तो लेकर सरदार ने गहनों की पोटली बादल के खून मे फेंक दी और जाकर बिस्तर पे लेट गया, जैसे ही मैंने गहने देखें मेरी आंखें चमक गई और मुझे लगा कि मेरी जिंदगी मिल गई, मैं खून मे रंगे गहने उठा कर बड़े प्यार से पहेनने लगी और पहनकर राजा की बाहों मे सो गई लेकिन इस बार भी मेरी सुहागरात नहीं हो पाई और मेरा बाबा आकर सरदार को मार देता है, मै वहां से सीधा भाग कर सरदार के बेटे के पास आई और उसको अपनी कामुकता से रिझाने लगा, खून मे डूबे गहनों से लदा मेरा जिस्म कुंदन सा चमक रहा था, और सरदार के बेटे ने मेरी मांग भरी और बोला, "आज से तुम मेरी पत्नी और कबीले की मालकिन हो लेकिन तुम ये खून से रंगे गहने तुरंत उतारो और स्नान करो हम अपनी सुहागरात का प्रबंध करते हैं" l मैं सारे गहने उतार कर स्नान कर के वापिस आई तो मेरा पति जंगल के बीचो बीच मुझे लाया, जहां चारों तरफ खुशबू फैली थी, उस दिन मै सबसे ज्यादा खुश थी, वो मुझे जंगल के सबसे पुराने और खुशबूदार फूल वाले पेड़ के पास लाया और बोला अंदर चलो, इस विशाल पेड़ मे गुफा है उसी मे मै तुम्हें अपनो रानी बनाऊंगा, और उस रात मेरी प्यास बुझी, मै कबीले की रानी बन गई और उन गहनों की मालकिन लेकिन सुहाग रात गुज़रते ही रात के तीसरे पहर मे वो उठा और जाने लगा, मेरे पूछने पर उसने कहा कि मै जा रहा हूँ लेकिन तुम यहीं रहोगी मै कुछ समझती इस से पहले उसने उस गुफा का रास्ता बंद कर दिया और पेड़ मे आग लगा दी और बोला तू किसी को नहीं हो सकती, तूने अपनो को मारा है अब यहीं तड़प तेरी आत्मा इसी पेड़ मे क़ैद और गहनों के मोह मे पड़ी रहेगी, तुझे कभी मुक्ति नहीं मिलेगी l मै जलती रही, चीखती रही लेकिन वो चला गया, पर देख मेरी काली शक्तियों ने मुझे जीवित कर दिया अब मै बहुत शक्ति शाली बन गई हूं, उस दिन के बाद मैंने पूरे गांव को ऐसे ही तड़पा तड़पा के मार डाला, कितना मजा आता है किसी को मारने मे पर तू डर मत तुझे भी बहुत मजा आएगा लेकिन मरने में हा हा हा"l यह कहकर डायन गायब हो गई, आदित्य ने हिम और आशी की लाश को एक साथ रखा और रोने लगा उसके आंसूओं से बदले की आग निकल रही थी, अपने आंसू pochte हुए वो बोला," शुक्रिया मेरे दोस्तों, तुमने तो कोई रिश्ता ना होते हुए भी निभाया मेरा साथ दिया मुझे आगाह किया कि तुम मत जाओ उस पेड़ के पास, मुझे माफ करना मेरे दोस्तों, मुझे माफ करना तुम लोगों की कुर्बानी बेकार नहीं जाने दूंगा मैं उसको मार डालूंगा, अचानक वहां पर तेज रोशनी हुई और आशी और हिम की आत्मा आ गई, आदित्य रोते हुए बोला, "मेरे दोस्त तुम लोग कहां चले गए, मुझे अकेला छोड़ कर l" हिम और आशी ने उससे कहा कि, "ये वक्त रोने का नहीं दिमाग से काम करने का है, हम तो मर चुके हैं पर हम तुमको यहां से बाहर निकालना चाहते हैं, हम तुम्हें रास्ता दिखा देंगे और तुम यहां से निकल जाओ क्योंकि इसे मारना बहुत मुश्किल है फिर उन्होंने उसे रास्ता बता दिया और कहा कि जब तुम्हें हमारी कभी जरूरत हो तो रात के दूसरे पहर मे याद कर लेना हम आ जाएंगे क्यूंकि दूसरा पहर खत्म होते हैं हमारी शक्तियां नष्ट हो जाती हैं, फिर हिम और आशी गायब हो गए आदि तो तुरंत बाहर जाने के लिए भागा पर उस के दिल से पुकार आई जो लोग तुझे जानते भी नहीं वो तुझे बचा रहे हैं और जिन्हें तू जानता है अपना दोस्त मानता है उनकी मौत का बदला लिए बिना तू जा रहा है l वह तुरंत चिल्लाने लगा शारपी तू कहां है सामने आ डायन, शारपी तुरंत आगई और उसे जंजीरों से जकड़ दिया, उसे मारने के लिए पहले उसने उस पर कई वार किए फिर कहा कि रात के तीसरे पहर में मैं रानी बन जाती हूं अपने वह गहने पहनकर उसी वक्त तुझसे सुहाग रात मनाएगी और उसको खून चूसकर मार देगी, कुछ पल और इंतजार करले मौत का, हा हा हा... I उसने आदित्य के चारों ओर एक ऐसा मंत्र पढ़कर एक घेरा तैयार कर दिया जिसके अंदर कोई आत्मा प्रवेश नहीं कर सकती थी और अगर वह प्रवेश करेगी तो तुरंत नष्ट हो जाएगी l आदित्य ने तुरंत ही हिम और आशी को पुकारा, हिम और आशी तुरंत प्रकट भी हो गए और आदित्य ने उन्हें रोका कि तुम लोग इस घेरे के अंदर मत आना वरना तुम नष्ट हो जाओगे l उसने इन आत्माओं से पूछा की शारपी को कैसे खत्म किया जा सकता है तो हिम ने बताया कि सारी रात के तीसरे पहर में वह एक आम औरत की तरह हो जाती है, उसकी शक्तियां उस समय नष्ट हो जाती है और इसी समय वह अपने सारे गहने पहनती है और सुहागरात मनाती है, अगर उसी समय उसे पेड़ के साथ जला दिया जाए तो शायद उसे मारा जा सकता है पर इसके लिए तुम्हें किसी शक्ति की जरूरत होगी जो सिर्फ आशी तुम्हें दे सकती है क्योंकि वह औरत है पर इसके लिए हमे हमेशा के लिए जाना पड़ेगा l आदित्य ने तुरंत ही दोस्तों को मना कर दिया पर हिम और आशी ने कहा, "जल्दी करो, हमारा वक्त खत्म हो रहा है" l तभी वहां शारपी आ जाती है और सब पर वार करना शुरू कर देती हैं, पूरे शहर में शुरू होने में कुछ पल बाकी थे पर, आदित्य उनको मना करता रहा, तीसरा पहर शुरू हो चुका था, हिम और आशी ने जैसे ही दोनों ने घेरे के अंदर कदम रखा हो तो दोनों एक ही में मिल गये और वहां पर इतनी देर रोशनी हुई कि कुछ भी देखना मुश्किल हो गया फिर एक रोशनी की धार जैसी आकर तेजी से आदित्य के शरीर में प्रवेश कर गई और तुरंत आग बुझ गई तभी शारपी बौखला कर आदित्य के पास जाकर उसे मारने लगी, अब शारपी कुछ देर के लिए डायन से एक साधारण स्त्री बन गई उसे पता था कि अब वह कमज़ोर पड़ गई उसने जल्दी से गहने पहने और आदित्य को सेज़ पे ले जाने लगी, लेकिन अब आदित्य के अंदर हिम और आशी की शक्तियां थीं, शक्तियों के रूप में समा चुके थे, वह बहुत चिल्लाई और हाथ पैर पटकने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें तभी आदित्य बोला , "अब तेरा खेल खत्म" कहकर उसने कुछ मंत्र पढ़े और उस पेड़ में आग लग गई, शारपी बहुत चिल्लाई, देखते-देखते सब कुछ जल गया l तभी फिर से हिम और आशी की आत्मा आ गई और धन्यवाद कहकर आसमान में कहीं गायब हो गई, अब उनकी आत्माएं मुक्त हो चुकी थीं, डायन शारपी और वो भयानक पेड़ दोनों खत्म हो चुके थे l ठीक 1 महीने बाद वहां पर एक मंदिर बनाया गया जिसका नाम था हिमांशी मंदिर जो अब इस जगह की सुरक्षा करते हैं l? समाप्त ?मित्रों कहानी पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें, आप चाहें तो मेरे whatsp नंबर पे भी अपने मैसेज भेज सकते हैं,Sarvesh saxenaMob. 9555164236.धन्यवाद l Download Our App