Kahan gai tum naina - 12 in Hindi Moral Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | कहाँ गईं तुम नैना - 12

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कहाँ गईं तुम नैना - 12


          कहाँ गईं तुम नैना (12)


इंस्पेक्टर नासिर अहमद ने नैना के कॉल रिकॉर्ड को अच्छी तरह से खंगाल कर देखा। एक नंबर था जिससे नैना के गायब होने के चार महीनों के भीतर सबसे अधिक संपर्क रहा था। आरंभ के दिनों में दोनों तरफ से बराबर कॉल्स की गई थीं। लेकिन नैना के गायब होने के एक महीने पहले से उस नंबर से नैना को इनकमिंग कॉल्स ही आए थे। यह जाँच करने पर की यह नंबर किसका था की यह एक प्राईवेट नंबर है। यह नंबर किसी संजय घोषाल के नाम पर था।
इंस्पेक्टर नासिर अहमद ने आदित्य को मिलने के लिए बुलाया। उन्होंने उसे कॉल डीटेल से सामने आए नाम संजय घोषाल के बारे में बताया।  आदित्य ने कहा कि वह चित्रा से बात कर देखता है। शायद वह इस संजय घोषाल को जानती हो। 
आदित्य ने भी उसे विपासना सेंटर में जो भी जानकारी मिली उसके बारे में बताया। वह चाहता था कि इंस्पेक्टर नासिर विपासना सेंटर की संचालिका से बात कर वह उन नामों की लिस्ट निकलवाए जिन्होंने नैना के साथ रजिस्ट्रेशन कराया था। इंस्पेक्टर नासिर ने आदित्य से श्रीमती चेतना प्रकाश का नंबर ले लिया।
आदित्य चित्रा की राह देख रहा था। उसने संजय घोषाल के बारे में पता करने के लिए उसे उसी रेस्टोरेंट में बुलाया था जहाँ दोनों पहले मिले थे। थोड़ी ही देर में चित्रा आ गई।
"सॉरी वो जाम की वजह से देर हो गई। नैना के केस के बारे में कुछ नई बात पता चली ?"
आदित्य ने अब तक जो पता चला था वह बता दिया।
"चित्रा क्या तुम इस संजय घोषाल को जानती हो ?"
नाम सुन कर चित्रा सोंच में पड़ गई। कुछ ही देर में उसे कुछ याद आया।
"ओह...बकुल। हाँ उसने हमारे साथ ही जर्नलिज्म किया था।"
"बकुल ??"
चित्रा आदित्य का असमंजस समझ गई। उसने बात स्पष्ट की।
"दरअसल यह संजय का घरेलू नाम है। कॉलेज में नैना के साथ मैं, संजय, मुकुल राय और मानसी गुहा थे। मुझे छोड़ सब बंगाली थे। हम संजय को उसके घरेलू नाम बकुल से पुकारते थे।"
चित्रा ने आदित्य को संजय के बारे में बताया।
नैना और संजय की आपस में अच्छी बनती थी। इसका कारण था कि संजय बहुत अच्छा रवींद्र संगीत का गायक था। नैना को भी रवींद्र संगीत पसंद था। एक बार कॉलेज में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में नैना ने संजय के साथ एक बंगाली डुएट गाया था। सबने खूब तारीफ की थी। 
संजय और नैना अक्सर पत्रकारिता में आ गए भ्रष्टाचार की बातें करते थे। संजय कहता था कि वह कभी भी पत्रकारिता के आदर्श से समझौता नहीं करेगा। उसकी ऐसी बातें नैना को बहुत पसंद आती थीं। दोनों बहुत देर तक आपस में बातें किया करते थे। कॉलेज के बाद उससे कोई संपर्क नहीं रहा।
चित्रा रुकी फिर कुछ सोंच कर बोली।
"कुछ महीनों पहले नैना ने मुझे बताया था कि वह संजय से मिली थी। पर उन दोनों के बीच दोबारा बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया इसका मुझे पता नहीं था। दरअसल जब से मैं अपने ब्वायफ्रेंड के साथ रहने चली गई थी हमारे बीच बात कम ही हो पाती थी। ऑफिस में तो बिल्कुल भी समय नहीं मिलता है।"
आदित्य ध्यान से उसकी बात सुन रहा था। उसके मन में एक बात आई। 
"चित्रा तुम्हें यह संजय घोषाल कैसा आदमी लगता है ? क्या नैना के गायब होने में उसका हाथ हो सकता है ?"
"आदित्य जब तुमने नैना के कॉल रिकॉर्ड के बारे में बताया और संजय के बारे में पूँछताछ करने लगे तभी से मैं भी इस बारे में सोंच रही हूँ। कॉलेज के दिनों में मैंने जितना उसे जाना वह एक भावुक और अंतर्मुखी व्यक्ति था। नैना के अलावा वह किसी से भी अधिक बात नहीं करता था। मुझे वह बहुत कोमल दिल का इंसान लगता था। इसलिए मैं तो इस बारे में कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं हूँ कि उसने नैना के साथ ऐसा किया होगा। पर वक्त के साथ उसमें कुछ बदलाव आए हों तो कह नहीं सकती।" 
चित्रा ने संजय घोषाल के बारे में बहुत सी जानकारी दी थी। लेकिन वह इस बात से सहमत नहीं हो पा रही थी कि उसने नैना के साथ कुछ गलत करने की हिम्मत की होगी। आदित्य रेस्टोरेंट से निकल ही रहा था कि इंस्पेक्टर नासिर का फोन आ गया। श्रीमती चेतना प्रकाश ने लिस्ट फैक्स कर दी थी। 
आदित्य रेस्टोरेंट से सीधा पुलिस स्टेशन पहुँचा। इंस्पेक्टर नासिर ने लिस्ट उसके सामने रख दी। वह एक एक नाम पढ़ने लगा। एक नाम पर आकर उसका ध्यान अटक गया। उसने इंस्पेक्टर नासिर को वह नाम दिखाया।
"बकुल मित्रा....मि. आदित्य आप इसको जानते हैं ?"
"संजय घोषाल है ये।"
इंस्पेक्टर नासिर को आश्चर्य हुआ।
"आप कैसे कह सकते हैं कि यह संजय घोषाल ही है ?"
"मैं नैना की सहेली चित्रा से मिल कर आ रहा हूँ। संजय घोषाल उन लोगों के कॉलेज में ही था। उसके ग्रुप के साथी उसे उसके घरेलू नाम बकुल से पुकारते थे।"
"हम्म...अपने घरेलू नाम में मित्रा जोड़ कर उसने अपनी पहचान छिपाने की कोशिश की। तो ठीक है। मैं इन बकुल उर्फ संजय मोशाय की जन्म कुंडली निकलवाता हूँ।"

इंस्पेक्टर नासिर अहमद ने संजय घोषाल के बारे में पता किया। कॉलेज से निकल कर वह कोलकाता चला गया। वहाँ उसने एक बंगाली न्यूज़ चैनल आनंद बांग्ला न्यूज़ में काम करना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में उसने बंगाली समाचार जगत में अपनी अच्छी पहचान बना ली। न्यूज़ चैनल की टीआरपी दिन पर दिन बढ़ने लगी। 
पत्रकारिता जगत के प्रतिष्ठित सम्मान के समारोह में उसकी मुलाकात नैना से हुई। संजय को उसके डिबेट शो के लिए बेस्ट एंकर इन बांग्ला का अवार्ड मिला था। वहीं नैना को पोल खोल के लिए सम्मानित किया गया था। 
दोनों कई सालों बाद मिले थे। कॉलेज के दिनों की कई यादें ताज़ा हो गईं। संजय ने बताया कि जल्द ही आनंद ग्रुप हिंदी न्यूज़ चैनल लांच करने जा रहा है। उसे हिंदी चैनल का मैनेजिंग एडिटर बनाए जाने का प्रस्ताव मिला है। उसने इसे स्वीकार कर लिया है। अतः जल्द ही वह दिल्ली आने वाला है। नैना और संजय दोनों ने एक दूसरे के साथ अपने नंबर साझा किए। कॉलेज के बाद पीछे छूट गई दोस्ती फिर शुरू हो गई। 
कुछ ही दिनों में संजय दिल्ली आ गया। उसने हिंदी चैनल का कार्यभार संभाल लिया। नैना के कॉल रिकॉर्ड इस बात का संकेत दे रहे थे कि उनके बीच बात होती थी। शायद मुलाकात भी होती हो।
सच्चाई जानने के लिए इंस्पेक्टर नासिर ने संजय घोषाल से बात करने का फैसला लिया। संजय से समय लेकर वह उससे मिलने पहुँचे।
"मि. घोषाल आप नैना को जानते हैं ?"
संजय ने इस तरह अभिनय किया जैसे की नाम सुन कर पहचानने का प्रयास कर रहा हो कि कौन है।
"मि. घोषाल वक्त लग गया आपको पहचानने में। जबकी कॉल डीटेल रिकॉर्ड के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में आप दोनों के बीच बात होती रही है।"
कॉल रिकॉर्ड के बारे में सुन कर संजय के चेहरे का रंग उड़ गया। खुद को संभाल कर बोला।
"ओह....आप दुनिया न्यूज़ की ऐंकर नैना के बारे में बात कर रहे हैं। हाँ हम कॉलेज के दोस्त थे। एक अवार्ड फंक्शन में मिले तो दोबारा जान पहचान हो गई। वक्त तो ज्यादा मिल नहीं पाता है। इसलिए फोन पर एक दूसरे का हालचाल जान लेते थे।"
 "आपकी दोस्त नैना पिछले करीब एक महीने से लापता हैं। आपने शायद कई दिनों से हालचाल नहीं लिया उनका।"
"अच्छा..... वो वक्त ही नहीं मिल पाया इधर।"
इंस्पेक्टर नासिर की अनुभवी निगाहें ताड़ गई थीं कि नैना के लापता होने की बात सुन कर संजय के भाव बदल गए थे। वह घबराया हुआ था। इंस्पेक्टर नासिर को दाल में काला दिखाई पड़ गया था। किंतु वह बिना पुख्ता सबूत कुछ नहीं कहना चाहते थे। अगर नैना उसके कब्ज़े में थी तो वह उसे नुकसान पहुँचा सकता था। इंस्पेक्टर नासिर सामान्य भाव से बोले।
"हमें लगा शायद आप इस मामले में कुछ मदद कर सकें।"
"मैं नैना के बारे में अधिक नहीं जानता। हम बस कभी कभार एक दूसरे का हालचाल ले लेते थे। इससे अधिक कुछ नहीं।"
इंस्पेक्टर नासिर उठ कर खड़े हो गए। अपना हाथ संजय की तरफ बढ़ा कर बोले।
"चलिए कोई बात नहीं। कुछ बताने लायक लगे तो ज़रूर बताइएगा। वक्त देने के लिए शुक्रिया।"
संजय ने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा।
"ज़रूर बताऊँगा। एक नागरिक के तौर पर तो यह मेरा फर्ज़ है।"
संजय से मिलने के बाद इंस्पेक्टर नासिर ने अपने आदमी को उसके पीछे लगा दिया। उन्होंने विपासना सेंटर में जाकर संजय के बारे में जांच पड़ताल की। इस बात के सबूत मिल गए कि जिस समय नैना दस दिनों के ध्यान कोर्स के लिए गई थी तब संजय भी वहाँ था। 
इंस्पेक्टर नासिर के जासूस ने भी कई महत्वपूर्ण बातों का खुलासा किया। सबसे प्रमुख थी कि पिछले एक माह में संजय कई बार लखनऊ गया था। इंस्पेक्टर नासिर ने लखनऊ पुलिस हेड ऑफिस से संपर्क कर मदद मांगी। इंस्पेक्टर अभिनव कनौजिया को काम सौंपा गया कि वह संजय घोषाल के लखनऊ से संबंध के बारे में जानकारी हासिल करें। 
एक हफ्ते के बाद इंस्पेक्टर अभिनव ने अपनी रिपोर्ट भेजी। लखनऊ के पॉश इलाके के एक लग्ज़री अपार्टमेंट में संजय घोषाल का फ्लैट था। वह वहीं जाता था। अभिनव को खबर मिली थी कि संजय दो दिनों के बाद फिर से लखनऊ जाने वाला है।
इंस्पेक्टर नासिर ने अंदाज़ लगाया कि ज़रूर नैना संजय के उसी फ्लैट में होगी। आगे की कार्यवाही के लिए वो आदित्य के साथ लखनऊ चले गए।