vo kon thi - 25 in Hindi Horror Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | वो कौन थी - 25

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वो कौन थी - 25

सुब्हा का वक्त..! 
लोबान के धुंप से ढका मजार का माहौल.. 
गुलाब के फूलो की महक..! 
तरह-तरह के ईत्र की मिली-झुली खुशबू का लुभावना आलम..! ढोलक के ताल कव्वालियां की रौनक.. 
धुएं  के गुब्बारो में से अलप-झलप दिखने वाले डरावने चहरे..! 
कुछ भी बेअसर नही था! 
जिया खलिल का हाथ थामे खडी थी! 
कोई लंबी घनी डाढी वाला शख्श मिर्गी के मरीज की तरह छटपटा रहा था ,तो कोई बड़ी बड़ी आंखों से उसे घूर रहा था! कोई अपना सर पीट रहा था तो कोई चिल्ला रहा था! 
"मत जलाओ मुझे..! छोड़ दो ! जाने दो यहां से!"
जिया लोबान के धूप में गुम हुए उस शख्स  की ओर देख रही थी जो जंझीरों से बंधा हुआ था! वो चिल्लाकर बार-बार एक ही बात बोले जा रहा था! 
"भाग जा यहां से! अपनी मनहुस शक्ल लेकर चली जा..!!
की तभी..!  उसने अचानक जिया की गरदन पकडली..! 
खलिल का दिमाग घूमा!  वो गुस्से से आगे बढा पर पीछे से किसी ने उसकी बाजु पकड कर उसे रोक लिया! 
"तु फिर से बच गई..! क्या खुब किस्मत पाई है तूने..!" कहकर उसने जिया को पिछे घक्का दे दिया!
वो अपने दांतो तले उंगलीया दबाकर हंस रहा था! उसकी वो हंसी ईतनी भयानक थी की कई औरते अपना चेहरा उससे छूपाने लगी थी!
उसकी इस हरकत से खलिल कसमसा कर रह गया! 
लोबान में शामिल हुए लोग जब दुआ के वक्त हाथ उठाए खड़े थे! तब जिया और खलिल भी दुआ में शामिल हो गए!
जिया की नजरें आसपास खड़े लोगों को परखने में लगी थी! 
हर एक इंसान उसे भूत प्रेत और जिन्नात जैसा लग रहा था!
कुछ देर पहले जो लोग उसे भगाने की रट लगाए हुए थे उन्हें चुप देख कर कुछ हद तक जिया को राहत मिली!
खलिल ने भी दिल से दुआ की! 
"अय जलाली बाबा! गर तेरा रुत्बा चारो तरफ है! तु दुखियां का बेली है! तेरे नाम का सिक्का है..!  तेरे नाम मे करामात है तो खुदा के सदके हमारा इन्साफ कर..! 
अगर तेरा हूक्म है तो हम खाली हाथ नही लौटेगें..!"
 दुआ खत्म होते ही खलिल और जिया को कुछ लोगों ने चारों तरफ से फिर घेर लिया!
 "जाओ.. बाबा के खादिम से मिलो!"
पिछे से कोई आवाज उठी! 
"तुम्हे हुक्म हुआ है..! हा..हा..हा..!  जाओ.. तुम्हें हुक्म हुआ है!"
वो जंजीरो में झकडा हुआ शख्स फिरसे चिल्ला कर लोहे की बेडियो को अपने दांतो से काटने की कोशिश में लग गया!
खलिल और जिया जरा आगे बढे!
हाथमे लोबानदानी लेकर एक शक्श बाहर आया! जिसकी श्वेत दाढी 
उसे देखते ही जिया चौक गई..!
खलिल भी आंखे फाड-फाड कर उस शख्स को देख रहा था जो किसी अजूबे की तरह दोनों के सामने प्रकट हुआ था!
"बाबा जी.. आप यहां..?"
जिया को अपनी आंखो पर यकिन न हुआ!
खलिल भी ये जानने उत्सुक था कि बाबा जी यहां पर क्या कर रहे है..?"
"वक्त की नजाकत है बच्चो तुम्हारी हर मुश्किल में परछाई की तरह खडा हुं ये बात मैने युंही नही कही थी! तूम्हे यहां भेजने के पिछे एक मकसद था! "
"वो क्या बाबा..?" खलिल भी हैरान था! 
"तूम लोग खुद ही समझ जाओगे..! यहां आओ..! "
कह कर बाबा उसी जंजीर वाले शख्श की और आगे बढे!
लोबान के धुंवे से उसके आसपास धेरा डाला..! 
जैसे ही लोबान की खुश्बु उसने महसूस की उसकी आंखो मे खून उतर आया..!
"कौन है तू..?"
अपनी नजरे उठाके गुस्से से वो बोला! 
"जिन्न हुं मै..! आज तक मुझे पूछने की हिम्मत किसी ने नही की.!"
"मै जानता हुं..फिर भी तुजसे पूछ रहा हुं..!"
क्यो कि बाबा का हुक्म है.. ओर मै जंजीरो  मे बंधा हुं..! हुक्म करो..!"
"सबकुछ जानता है तू..? मै क्यो यहां आया हुं..?"
हा..हा..हा.. हा.. हा.. हा..! 
उसने फिरसे ठहाका लगाया! 
"सात दिन का ठहराव है..! इस लडकी को सात रोज तक मगरीब के लोबान मे हाजरी देनी होगी..! कोई भी बुरी ताकत इस को छू तक नही सकती..! डरो मत..!"
"बता सकते हो क्या हुआ है..? कौन है जो मौत का तांडव खेल रहा है..?"
"उसने जिन्न को वश कर लिया है..!"
इतना बोलकर वो चुप हो गया..! 
इतना तो मै भी जानता हुं की कोई है जो बुरी ताकत को वश करके अपना हुक्म चला रहा है..! 
वो खुद आयेगी.. यहां पर..! 
सात रोज के बाद खुदको बचाने..!  वरना उसका रक्षक उसको ही खत्म कर देंगे..! 
"उसने कैसे किया है ये सब..!"
लोबान के धुंए से उसका बदन जल रहा था जैसे..! 
"मै बताता हुं..!
उसने अपने लंबे बालो को आगे कर लिया! 
"किसी ने उसे बताया था जिन्न से दोस्ती करने का अमल..!"
"अच्छा..?"
जिया और खलिल उसकी बात सुन रहे थे! पर समझ नही पाये कि कौन है इन हादसो के लिए असली जिम्मेदार..?"
"हा,  और वो अमल ये था कि मौगरे के ईत्र की एक छोटी बोतल उसे लानी थी! 
नौचंदी जुमेरात को उस बोतल को लेकर किसी मस्जिद के पिछले हिस्से मे रात के बारा बजे के बाद उसे रख देना था!"
"हं..फिर..?"
"ईत्र को रख कर उसे वहां जिन्नो का आहवान करना था कि "अय मेरे दोस्तो.. आपके लिए ये तौफा है इसे कुबूल करे और मुझसे दोस्ती करे..!" 
उसी दिन नौचंदी जुमेरात थी! ईत्र की बोतल लेकर वो रात को बारा बजे के बाद पुरानी मस्जिद के पीछे गई..!  बोतल को उसने एक पथ्थर पर रख्खा! और जितना बताया गया था उतना मन ही मन बडी हसरत से बोला! 
फिर वो वापस घर चली आई..! 
अगले रोज वो फिर रात को वहां गई.. 
वो ईत्र की बोतल वहां से गायब थी! 
क्यो कि जिन्न ने वो कुबूल कर लिया था! 
जंजीरो  मे जकडे शख्स ने फिर से अपनी बेडीयों को झटका दिया और चुप हो गया! 
"कौन थी वो..? बोलो वो कौन थी..?"
बाबा ने उंची आवाज मे पूछा! 
"सात रोज..!"
वो गुर्राया..! 
 "सात रोज तक आना है यहां..! मजार मे बाबा के सिर के पीछे लगी जाली पर रोज एक धागा बांधना है..! आठवे रोज उस औरत को यहां आना ही है ! जो अब तक पर्दे के पिछे है..! वो आयेगी अपने गुनाहो का राज खोलने.. माफी की गुहार लगाने..! अब जाओ.. तुम लोग..  मुझे अकेला छोड दो..!"
 इतना कहकर वो अपना सिर जाली पर पटकने लगा..! 
"छोड दे मुझे..! मत जला..!  जाने दे मुझे..!  कितना जलायेगा मुझे..?"
उसकी चीखे सीधी जहन मे उतरी जा रही थी!"
                          ( क्रमशः)