vo kon thi - 24 in Hindi Horror Stories by SABIRKHAN books and stories PDF | वो कौन थी - 24

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वो कौन थी - 24

 जिया के चेहरे पर उड़ने वाली हवाईयां नापते ही सुल्तान चीखा था!
"तुमको मना किया था मैंने कि अपनी मनहूस शक्ल मुझे मत दिखाना? फिर तुम मेरे घर पर क्यों आई हो..?"
सुल्तान के बदले तेवर देखकर खलिल और उसकी मां बुरी तरह चौके !
"गेट आउट.. अभी की अभी मेरे घर से निकल जाओ..! फूटो यहां से..!!"
सुल्तान जब फिर से दहाड़ा तो खलिल के भंवे सिकुड़ गए..!
बात कुछ हजम नहीं हो रही! अब्बा बेवजह जिया को डांटे ये मुमकिन ही नहीं है! जिस तरह से जिया अब्बा को देख कर चौक गई थी, जाहिर था की उसने कुछ ऐसा देखा जो हरगिज ही सबके लिए हितावह नहीं था!
"फिलहाल जिया हमारी मेहमान है अब्बू..! उसके साथ ऐसा सलूक ठीक नहीं है! अगर उसकी मौजूदगी आपको पसंद नहीं आई तो मैं उसे घर छोड़ आता हूं!"
लेकिन खलिल की बात का सुल्तान के पास कोई भी जवाब नही था!
उसके  झुके हुए कंधों पर भारी दबाव बढ़ गया था! उसने खुदा की शान में अपने हाथ ऊपर उठाएं!
"अय मेरे परवरदिगार तेरी रजा के बगैर कोई पत्ता भी नहीं हिलता.. तेरी जात के ऊपर कुछ नहीं है! तूने जिंदगी दी है उसका रक्षक भी तू है,और संहारक भी तू..!  मेरे परिवार की हिफाज़त करना..!"
इतना कहकर सुल्तान ने कुरान शरीफ का दिल कहलाने वाली आयते (मंत्र) 'यासीन शरीफ' को पढ़ना आरंभ कर दिया!
तब तक जिया का हाथ थाम कर खलिल बाहर निकल चुका था!
"अंकल जी  ने जो किया बिलकुल सही किया हैं  खलिल..!  बल्कि मुझे उन पर गर्व है की वो मेरी जद्दोजहद को ताड गए!"
"सिर्फ एक पल मेरी समझने में देरी हुई पर आखिरकार मैं सारा माजरा ताड गया ! अब्बू को देखकर तुम्हारा सेहम जाना , बार-बार अब्बू के पिछे देखना., कुछ तो गड़बड़ थी ! मेरे भेजे में ये बात उतरते ही तुमको मैं वहां से भगाकर बाहर ले आया!
"ऐसा करते है सामने महादेव का पुराना मंदिर है वहां चलते है..!"
"ठीक है..! " जिया सहमत हो गई!
एक बहुत ही घना पीपल का वृक्ष लहरा रहा था! हवा के बहाव से पीपल के पन्नों की सरसराहट काफी तेज थी! भागते हुए दोनों  मंदिर मे पहुंचे! भारी तादात में पक्षी उसकी शाखाओं में छिप कर शोर मचा रहे थे!
मंदिर की चौखट पर आकर दोनों बैठे!
मंदिर के प्रांगन मे एक छोटी सी झील थी! उस झील में बहुत सारे कमल खिले थे!  दूध जैसे हंस अपनी लंबी गर्दन मरोड कर आपस में मस्ती कर रहे थे! बड़ा ही अनोखा आंखों को ठंडक पहुंचाने वाला नजारा था!
कुछ पल तक एकटूक देख कर जिया ने अपनी आंखें मूंद ली! उसकी मन:स्थिती खलिल समझ रहा था! पर क्या करता किस्मत जो उसके साथ खेल रही थी!
जिया की बंद आंखों के पार देखते हुए खलिल ने पूछा!
"तुम ठीक हो जिया..?"
"हां मैं ठीक हूं ! तुमने अच्छा किया जो मेरे साथ आ गए खलिल.. वो सारी बुरी शक्तियां मेरे पीछे लग गई है..! गुलशन की आत्मा को किसी ने बरगलाया है! तुम मानोगे मैंने क्या देखा था..?"
"क्या..?" खलिल काफी उत्तेजित नजर आया!
अंकल के कंधे पर बैठ कर गुलशन घर में आई थी!
"ओह माय गोड..!!"
खलिल का ह्रदय धक से रह गया!
"फिर तो... फिर तो अब्बू को नुकसान पहुंचायेगी..?"
"नहीं.. वो मेरे लिए आई थी! अपनी मौत के लिए आज भी वो मुझे ही कसूरवार मानती है! क्योंकि उसकी मौत की सबसे बडी गुनहगार मैं हूं..! ऐसी बात कह कर बार-बार उसके मन मे मेरे लिए नफरत का ज़हर किसी ने भरा है!
"ऐसा तुम किस बेस पर कह रही हो..?"
"खलिल.. उसकी अमन के साथ कोई दुश्मनी नहीं थी! फिर भी अमन को उसने जिस तरह बेरहमी से मारा है मैं यकिनी तौर पर कह सकती हुं उसका अगला शिकार मैं ही हूं!"
"पर मैं ऐसा नहीं होने दूंगा..!!"
"हा हा हा..!
खलिल की मासूमियत पर उसे हंसी आई!
"तुम जानना चाहते हो आखिर क्यों वो मेरी जान की दुश्मन बनी है..?"
"हां मैं जानना चाहता हूं जिया..!"
"क्योंकि मैं उसका राज जान गई हुं..! और सब को बताने से पहले मैं उस बात की तहतक जाना चाहती हूं, कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया..?"
"मैं कुछ समझा नहीं हूं! तुमने ऐसा क्या राज जान लिया है..?"
"तुम्हें जरूर बताऊंगी.. सब कुछ बताऊंगी खलिल , क्योंकि ये सब तुम्हें  जानना बहुत जरूरी है..!
"फिलहाल हमें बाबा से संपर्क करना चाहिए..! हमें कोई ना कोई रास्ता जरूर मिलेगा..!"
"ठीक है..!"
मंदिर में चहल-पहल नही थी! आरती में अभी वक्त था!  पुजारीजी आरती की तैयारी कर रहे होंगे ! मंदिर के कंपाउंड में बहुत सारे पौधे लगे थे गुलाब, मोगरा बारहमासी, चमेली, चंपा और गुच्छेदार फूलों वाली बेले नींद से जागकर जैसे तरोताजा लग रही थी!
जिया और खलिल जहां बैठे थे उसके आसपास बहुत सारे मोगरे के पौधे लगे थे! जिसके फूलो-कलियों ने समा बांध रखा था!
जिया पालथी लगा कर बैठ गई! सलीके से उसने दुपट्टा माथे पर डाला! अपने हाथों की तर्जनी पर लगी अंगुठी को पलकों पर लगाया! फिर बंद आंखों से ही वह गुरु का आह्वान करने लगी!
खलिल उसके उजले चहरे पर बिखरने वाली लटो को देख रहा था! उसके मासूम चेहरे से अठखेलियां कर रही लटे गोरे रंग के आकर्षण को मानो बढ़ावा दे रही थी!
कुछ पल ऐसे ही बीते! फिर अचानक हवा में बदलाव महसूस हुआ! मोगरे जासूस और करेन के पौधे हवा के उफान से इधर उधर झुकने लगे!
बहुत सारे फूल एक साथ बिखर कर चद्दर की तरह फैल गए!
उन फूलों पर गुरु की परछाई उभर आई! गुरु को अपने सन्मुख देख कर
प्रसन्नता से खलिल का चेहरा खिल उठा!
वही लंबी सफेद दाढ़ी और माथे पर जटाओं की तरह बिखरे हुए वैसे ही बाल..!
उनकी आंखों में धधकने वाला अद्भुत तेज.. !  जो किसी भी व्यक्ति को उनकी तरफ अभिभूत करने में सक्षम था!
"अच्छा हुआ तुम घर वापस लौट आई बच्ची..!"
बाबा की शान्त आवाज सुनकर जिया ने अपनी आंखें खोल दी!
"आपकी आज्ञा का पालन मुझे करना ही था बाबा..! पर अब भी मैं महफूज नहीं हूं.!"
"तुम्हें रात के वक्त किसी के घर में ताका-झांकी नहीं करनी चाहिए थी..!"
"पर मुझे वो राज जानना था! अपने संशय का जब तक समाधान नहीं करती मुझे नींद नहीं आने वाली थी!"
"मेरी बच्ची अपनी ही जान की दुश्मन बन बैठी हो तुम..! वो तुम्हें खत्म कर देना चाहती है!"
"वो मैं समझ गई हूं बाबा ! आज सुबह जब मैंने सब कुछ जानने के बाद खलिल को कॉल लगाई तो उस वक्त खलिल की आवाज में बात करके जिन्नात मेरे पास चला आया! एन वक्त पर आपकी ताकतो ने मुझे संभाला!"
"और जब तुमने सुल्तान के घर की चौखट पर कदम रखा वो सुल्तान के साथ वो घर आ गई!"
"हा..और तभी से मै काफी डरी हुई हुं! मैं मरना नहीं चाहती बाबा..! मैंने जो बच्ची गोद ले रखी है उसके लिए मुझे जीना है..!"
"पर मैं जानना चाहता हूं..!
खलिल जिया की तडप देख कर चीख पड़ा..!
"ऐसा कौन सा राज जिया ने जान लिया है, जिसकी वजह से गुलशन की आत्मा उसकी जान लेने पर तुली है.?"
"उसके बारे में अभी तुम ना ही पूछो तो बेहतर होगा, क्योंकि जो इंसान वो राज जान जाएगा उसकी मौत मुकर्रर है!"
"मुझे मेरी मौत की परवाह नहीं है मैं चाहता हूं की जिया को कुछ भी ना हो..!
"तो सुनो.. मेरी बात को ध्यान से सूनो..!  मेरी भी कुछ मर्यादाये हैं बच्चो ! उसकी ताकत बढ रही है!  गुलशन तो उसके हाथो की कठपुतली है सिर्फ..! अगर सवाल सिर्फ गुलशन की आत्मा का होता तो अब तक उसने मेरे सामने घुटने टेक दिए होते!"
"क्या वो आप के बस की बात नहीं है बाबा.?"
खलिल के चेहरे पर परेशानी साफ झलकने लगी!
"मैं उसको भगा सकता हूं ! डरा सकता हूं ! क्योंकि वो एक जिंदा इंसान है!  जिसने शैतानी ताकतों पर काबू पा रख्खा है! मगर मेरे बच्चों मुझे हुक्म हुआ है उस कमली वाले बाबा का..!"
"क्या...आ.....?"
जिया और खलिल की आंखों मे बिजली कौंधी!
"बाबा मखदूम शाह की मजार से..?!"
"हां इस उलझन का हल उन्हीं के पास है! बड़ी से बड़ी रूहानी ताकतों को फांसी लगाकर वापस भेजने में वो माहिर है! तुम दोनों इसी वक्त उनके दरबार में चले जाओ! बहुत जल्द तुम इस शैतानी ताकत से निजात पा लोगे!"
"जैसी आपकी आज्ञा बाबा..!"
खलिल और जिया ने बाबा के चरण स्पर्श किए! देखते ही देखते बाबा धुंवे का गुब्बारा बनकर हवा में विलीन हो गए!
सुबह होने वाली थी! पंछियों का कल शोर बढ गया था!
खलिल जिया के साथ वक्त जाया किए बगैर बाबा मखदूम शाह की मजार पर पहुंचा!
बाबा की मजार रंग बिरंगी लाइट से डेकोरेट थी !चकाचौंध रोशनी में लोबान की सफेदी ने माहौल को घेर रखा था!
इत्र की खुशबू से हवाएं महक उठी थी!
चरागदानी में जगह-जगह चराग जल रहे थे! वुजूखाने के हॉज पर लोग वुजु बना (हाथ पैर चहराधोना) रहे थे!
और बाबा की शान में चौखट पर कव्वालियां गाई जा रही थी! ढोलक की आवाज ने समा बांध रखा था!
दूसरी तरफ मजार के इर्द-गिर्द बनी लोहे की जाली पर बहुत सारे लोग अपना सिर पटक रहे थे!
जिया और खलिल वहां पहुंचे तो एक लंबे-लंबे बालों वाला शक्स भागकर सामने आया!
"चले जाओ यहां से..!
अपनी बड़ी बड़ी आंखों से डरा रहा था वो! सुना नहीं चले जाओ यहां से..!"
अगर वो जंजीरों में जकड़ा हुआ ना होता तो न जाने क्या कर बैठता..?"
उसके ऐसे बर्ताव से जिया काफी हद तक डर गई थी! वह खलील के पीछे छुप गई!
उसने देखा कि दोनों के आसपास बहुत सारे लोग इकट्ठे होकर नजदीक आ रहे थे! कोई सिर हिला रहा था तो कोई अपने दोनों हाथों को हवा में लहरा रहा था! कोई जोर से चिल्ला रहा था तो कोई डरावनी हंसी हस रहा था!
बारी बारी सब धीमी आवाज में बोल रहे थे !
"भाग जाओ..!भाग जाओ यहां से..!"
                  ( क्रमश:)
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