Niyati - 5 in Hindi Fiction Stories by Seema Jain books and stories PDF | नियति - 5

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नियति - 5

नियति

सीमा जैन

अध्याय - 5

डॉक्टर की बात सुनकर दीपा सन्न रह गई, उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। यह होना और शेष रह गया था। अब आगे क्या होगा, कैसे होगा, उसकी समझ में नहीं आ रहा था‌। वह अगर फोन करके रोहन को सूचना दे तो उसका परिणाम क्या होगा, ज्ञात नहीं । रोहन सुनकर आता है कि नहीं और आता है तो क्या प्रतिक्रिया होती है उसकी। सबसे बड़ी बात कुछ दिनों में ही उसकी शादी होने वाली है । हे भगवान! शालिनी आंटी और शिखा को जब यह बात पता चलेगी तो कितना क्रोध आएगा । वे यहां इतनी परेशान है और उनकी परेशानी का कारण रोहन वहां शादी करने जा रहा है। दीपा का दिल बैठा जा रहा था, कहीं ना कहीं इन सब बातों का कसूरवार वह स्वयं को मान रही थी । न उसने अपनी सखी से चलने की जिद्द की होती ना यह सब होता। उस घड़ी को वह कोस रही थी जब उसने हठ करके शिखा को चलने के लिए मजबूर किया था । शिखा की परेशानी का कारण वह और उसका भाई ही तो थे । उसे लगता वह जब भी किसी कारण से खुश होगी, उसकी आंखों के सामने शिखा का मायूस चेहरा घूम जाएगा। उम्र भर उसके दिल पर बोझ रहेगा और वह प्रसन्न होना भी पाप समझेगी। कैसे रहेगी इस बोझ के साथ यह सोचकर ही उसका दिल रोता था।

शिखा उसकी बचपन की सहेली थी उसके लिए उसके मन में हमेशा स्नेह था। बचपन से उसका अकेलापन महसूस करती थी, हर त्यौहार पर वह शिखा को खींच कर अपने घर ले जाती थी । जब भी उसके घर चाची का परिवार आता वह शिखा को भी अवश्य बुलाती। शिखा भी बहुत घुल मिल गई थी दीपा के घर वालों से। घर के सदस्यों की तरह वह घर के समारोह में हिस्सा लेती। दीपा यही सोच सोच कर पागल हो रही थी कि जब रोहन को यह बात मालूम होगी तब क्या होगा। उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी, उसे बस सुषमा मासी पर भरोसा था। वही बात संभाल सकती थी, इस मसले को उचित तरीके से सुलझा सकती थी। उसका मन कर रहा था मां पिताजी को ऑटो में बैठे-बैठे ही फोन कर दे, लेकिन शालिनी के सामने हिम्मत नहीं हुई । अगर उसने रोहन को भी बिना शालिनी से पूछे फोन किया तो वो गुस्सा हो सकती है। उसका घर में आना जाना बंद कर सकती हैं, वह हर हाल में शिखा से जुड़ी रहना चाहती थी। जितनी सहायता संभव है करना चाहती थी। डॉक्टर की बात सुनकर दोनों मां बेटी को जैसे सांप सूंघ गया। रास्ते पर खामोशी से आटो के फर्श पर आंखें गड़ाए बैठी रही। दीपों कनखियों से बार-बार दोनों की ओर देख लेती, शायद कोई प्रतिक्रिया नजर आए । लेकिन दोनों बुत बनी बैठी रही। घर आया दीपा ने शालिनी को हल्का सा स्पर्श किया तब उसकी चेतना लौटी। वह चुपचाप ऑटो से उतरी पैसे दिए और घर की तरफ चली गई। उसके पीछे पीछे शिखा भी अपने ही विचारों में खोई चली गई। दीपा ने विदा लेना ही उचित समझा, इन दोनों को अकेला ही छोड़ देना चाहिए। धीरे से "अच्छा आंटी में चलती हूं "कह कर अपनी स्कूटी उठा कर चली गई।

घर पहुंच कर दीपा ने रोहन को फोन किया । रोहन सुषमा के साथ बैठा शादी के खर्चे का हिसाब देख रहा था। फोन पर बात करते हुए उसके चेहरे के भाव देखकर सुषमा को चिंता हुई। सुषमा ने तुरंत रोहन से पूछा, " किसका फोन है?" रोहन ने फोन उसकी ओर बढ़ा दिया, दीपा की बात सुनकर सुषमा को बहुत दुख हुआ । उसे रोहन पर क्रोधित भी आया। तनिक भी धैर्य नहीं है रोहन में, वैसे तो दो साल से शादी टाल रहा था और अब तीन महीने में ही शादी करने की जिद पकड़ ली। थोड़ा सब्र दिखाता एक दो बार शालिनी से मिलता, सुषमा को भी मिलने देता तो शायद स्थिति कुछ और होती है । जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो अपनी चलाने लगते हैं।

घर पहुंच कर शालिनी सीधे पूजा घर में जाकर बैठ गई। शिखा चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गई। उसे समझ नहीं आ रहा था यह सब क्या हो रहा है‌ कितनी खुश थी वह, भविष्य के सुनहरे सपने उसकी आंखों में थे । हर वक्त हंसना बोलना चहकना उसे अच्छा लगता था। लेकिन इन तीन महीनों में किस्मत उसके साथ क्या खेल खेल रही थी उसे समझ नहीं आ रहा था। उसने सामान्य होने की भरसक कोशिश की, फिर से जीवन के बारे में सोचना प्रारंभ कर दिया था ‌। लेकिन डॉक्टर ने जब यह बताया उसे विश्वास ही नहीं हुआ भाग्य क्या मजाक कर रहा है उसके साथ। एक के बाद एक परेशानियां कैसे बिताएगी आगे की जिंदगी । एक ना एक दिन आस पड़ोस के लोगों को पता चल ही जाएगा, कैसे झेलेगी उनके कटाक्ष भरी नजरें, ताने, अपनी बदनामी । लोग बच्चे आने की खुशी में दीवाने हो जाते हैं। वह स्वयं बच्चों को इतना पसंद करती है ऐसे बच्चे को क्या भविष्य दे पाएगी। समाज से अकेले कैसे मुकाबला करेगी। किस किस को समझाएगी उसकी गलती नहीं है । मां के बारे में सोचती तो सारा शरीर पसीने पसीने हो जाता। सारी उम्र हो गई है मां को अकेले संघर्ष करते हुए। मां कुछ बोलती भी तो नहीं है पता नहीं उन पर क्या बीत रही है। वो कहीं टूट गई तो वह क्या करेगी कैसे जीएगी। और वह स्वयं अपनी जिंदगी समाप्त कर ले तो कैसा रहेगा, कई बार उसके मन में विचार आया। लेकिन सोचते ही अंदर तक कांप जाती । मां तो जीते जी मर जाएगी उनका इस संसार में उसके अलावा कोई नहीं था। कैसे जिंदगी काटेंगी उसके बिना और उसके साथ इस कलंक को लेकर । सोच सोच कर उसके सिर में दर्द हो रहा था, दिल रो रहा था। आसपास कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। इन तीन महीनों में उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी। कमजोरी महसूस हो रही थी चक्कर आ रहे थे। ठीक से कुछ खाया नहीं जाता था, उबकाई आने लगती।

वह बाथरूम की तरफ भागी, मुंह का स्वाद बहुत खराब हो गया था खटास सी आ गई थी। बेढाल सी किसी तरह पलंग पर लेट गई। उल्टी करने की आवाज सुनकर शालिनी भागी भागी आई । जल्दी से गर्म दूध और दो डबल रोटी के टोस्ट बनाकर शिखा को दिए। खाकर शिखा की जान में जान आई, मां की तरफ देखा तो रुलाई फूट गई । मां एकदम बेचैन सी लग रही थी इन तीन महीनों में दस साल उम्र बढ़ गई थी। शालिनी ने आगे बढ़कर शिखा को सीने से लगा लिया। पलंग पर बैठी शिखा शालिनी के सीने से लगकर फूट-फूटकर बहुत देर तक रोती रही। शालिनी ने थोड़ी देर उसे रोने दिया फिर बोली, "आज रो ले जितना रोना है, फिर तेरी आंखों में आंसू नहीं देखूंगी। तू अपने आप को कभी अकेला मत समझना । जब तक मेरे शरीर में जान है तेरा साथ दूंगी। तेरी कोई गलती नहीं है इसलिए मारूंगी और डाटूंगी नहीं। जो किस्मत में लिखा है हम दोनों मिलकर मुकाबला करेंगे। आगे क्या करना है ठंडे दिमाग से सोचेंगे, अभी तू आराम कर। "

मां की बातें सुनकर शिखा के कलेजे को जैसे ठंडक मिल गई। उसके अंदर हिम्मत का संचार हुआ । धीरे से शालिनी से अलग होकर पलंग पर लेट गई । शालिनी कुछ देर तक तो बेटी को निहारती रही फिर रसोई में जाकर अपने कुछ खाने-पीने का इंतजाम किया। बैठकर सोचने लगी बेटी को तो हिम्मत रखने के लिए कह दिया, लेकिन स्वयं हिम्मत कहां से लाएं। थक गई किस्मत से लड़ते लड़ते । डर रही थी शिखा कुछ अनुचित कदम न उठा ले इसलिए उस को सांत्वना देना आवश्यक था। एक बार को तो मन में आया क्यों ना दोनों ही अपना जीवन समाप्त कर ले, सारी परेशानियों का अंत हो जाएगा। लेकिन दो नहीं अब तीन जीवन समाप्त होंगे, और कितना गलत होगा सब कुछ। फिर क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा था । समाज से कैसे लड़ेगी, किस किस को जवाब देगी। लगता है जो अकेला पन उसकी किस्मत में था वही बेटी को भी विरासत में मिल गया। मन बहुत दुखी हो रहा था, कोई ऐसा भी नहीं था अपना जिस से सलाह ले सके। पता नहीं पत्थर से बनी कितनी देर बैठी रही। घंटी की आवाज सुनकर तंद्रा भंग हुई, आंचल से आंसू पोछते हुए दरवाजा खोलने गई। कौन होगा इस वक्त, दीपा ही होगी बिचारी बहुत दुखी है, स्वयं की गलती मान कर बेकार शर्मिंदगी का बोझ ढो़ रही है।

दरवाजा खोला तो सामने रोहन एक बड़ी उम्र की औरत के साथ खड़ा था। रोहन अपनी मां के साथ आया है, समझ गई शालिनी। धीरे से दरवाजे के एक ओर हो गई । दोनों अंदर आकर ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ गए। सुषमा अभिवादन करके बोली, " जो कुछ हुआ हमें उसका बड़ा अफसोस है । आगे आप जैसा कहें हम वैसा करने को तैयार हैं। " शालिनी सिर झुकाए बैठी रही ‌|

इतने में दीपा और गुप्ता दंपति भी आ गए । दीपा ने घर पहुंच कर मां पिताजी को सब बातें बता दी थी। उन्होंने जब सुषमा से बात की तो उसने उन्हें बताया कि वह रास्ते में थी और शालिनी से मिलने जा रही थी। शालिनी को लगा उसका घर तो भर सा गया। इतने लोग एक साथ उसके घर में कभी नहीं आए । दीपा सब के लिए पानी लेकर आई। सब सामान्य होने की भरसक कोशिश कर रहे थे।

सुषमा ने ही बात शुरू की, "बहन जी अभी भी वक्त है, आप कहे तो हम रोहन की शादी शिखा से कर देते हैं। शिखा अकेले मातृत्व और बदनामी का भार कैसे सहन करेगी। यह उचित भी नहीं है, रोहन अपनी जिम्मेदारी अवश्य उठाएगा। "

रोहन ने कुछ कहने के लिए मां की तरफ देखा, सुषमा ने आंखों से उसे खामोश कर दिया। रोहन समझ गया इस बार मां जो उचित समझेगी वही करेगी। उसकी पारूल से शादी का भविष्य अब शालिनी के उत्तर पर निर्भर करता है।

गुप्ता जी बोले, "यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था । इतने दिन आप दोनों अकेले परेशान होते रहे। शिखा जैसी सुशील लड़की जिस घर की बहू बनेगी वह घर तो धन्य हो जाएगा। "

पुष्पा ने भी अपनी राय दी, "पहले ही काफी देर हो चुकी है और देर मत करो। इससे पहले समाज में यह बात फैले और बदनामी हो हमें यह शादी सादे तरीके से कर देनी चाहिए। "

शालिनी सोच सोच कर थक चुकी थी क्या करना चाहिए और क्या नहीं । उसे लगा अगर उसने पहले ही रोहन की बात सुन ली होती तो शायद इतने दिनों की परेशानी से शिखा को बचा लेती । लेकिन उस दिन तो वह इतने गुस्से में थी उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। जो होना होता है वैसे ही होता है, घटनाएं उसी तरह से घटित होती हैं। शायद रोहन और शिखा की जोड़ी स्वर्ग में ही निश्चिंत हो गई थी, वरना यह शादी कभी मुमकिन नहीं होती । दोनों परिवार के आर्थिक स्थिति में धरती आसमान का अंतर था । अब हालात ऐसे बन गए हैं कि वर पक्ष स्वयं रिश्ता लेकर आया है । शालिनी को लगा कि वह उनकी शराफत को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती । वे लोग चाहते तो साफ इंकार कर सकते थे, कह सकते थे उनका इस घटना से कोई संबंध नहीं है। वह कहां-कहां सिर मारती कौन उसकी बात पर यकीन करता। सब लड़की की गलती बताते। रोहन के बारे में वह कुछ अधिक नहीं समझ सकी थी लेकिन सुषमा से बात करके उसे लगा वे ऐसी महिला हैं जो शिखा के साथ कभी नाइंसाफी नहीं होने देगी। वे उसे उचित मान और स्नेह देंगी। अब शिखा से कुछ पूछने का समय नहीं था। उसको सम्मान का जीवन मिले उसके लिए यही एक तरीका था। शालिनी को इतना सोच विचार में खोया देखकर गुप्ता जी बोलें, "बहनजी आपको कोई भी अंदेशा है तो आप खुलकर बोलो। उनके घर की तरफ से आप निश्चिंत रहे वहां शिखा को कोई परेशानी नहीं होगी । अगर आपको लगता है शिखा वहां खुश नहीं रहेगी तो हम एक काम करते हैं। अभी तो उन दोनों का विवाह करा देते हैं बच्चा होने के बाद शिखा को लगा वह वहां खुश नहीं है तो जैसा चाहे वैसा ही करेंगे ‌। बच्चे को कम से कम पिता का नाम तो मिल जाएगा उसके बाद रोहन शिखा अपनी जिंदगी का जो निर्णय लेना चाहेंगे ले लेंगे।

शालिनी एकदम से बोली, "नहीं नहीं भाई साहब ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो शुक्रगुजार हूं ऐसी मुश्किल घड़ी में आप सब आगे बढ़ कर स्वयं रिश्ता लेकर आए हैं। शिखा को इस से अच्छा घर कहां मिलेगा । मुझे शिखा और रोहन की शादी मंजूर है । "

दीपा यह सब दरवाजे की ओट से सुन रही थी। वह बहुत प्रसन्न थी, उसके सिर से बोझ उतर गया था । वह अंदर भागी शिखा को बताने के लिए। शालिनी रसोई घर में चली गई जलपान और मिठाई की व्यवस्था करने । पहली बार उसके घर में दामाद और उनका परिवार आया था । वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

***