Nilkanth ki avishmarniya yatra in Hindi Travel stories by Nirpendra Kumar Sharma books and stories PDF | नीलकण्ठ की अविस्मरणीय यात्रा

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नीलकण्ठ की अविस्मरणीय यात्रा

अगस्त, 2007 बरसात अपने पूरे यौवन पर थी बादल कई बार दिन को ही रात बनाकर खेल रहे थे।
सावन का पावन महीना था भक्त भीगते झूमते बाबा(भोलेनाथ)" को मनाने कांवर उठाये हरिद्वार से जल भरकर अपने अपने श्रद्धा धाम की और दौड़ रहे थे।
चारों और वातावरण भोले की बम  से गूँज रहा था।

"सावन की शिवरात्री को क्यों ना नीलकण्ठ में जाकर जल चढ़या जाए",मैंने अपने मित्र नरेंद्र सिंह आरोलिया से कहा।
बहुत अच्छा विचार है यार चलो प्रोग्राम बनाते हैं, "कल तय करते हैं कैसे चलना है और बाकी लोगों से भी पूछ लेते हैं नरेंद्र ने कहा।

अगले दिन मैं नरेंद्र, के.के.सिंह के साथ हमारे तीन और मित्रों
का जाने का तय हुआ कि रविवार को सुबह बस पकड़ेंगे पूरा दिन हरिद्वार घूमेंगे उसके बाद शाम को निकल जाएंगे ऋषिकेश के लिए।
रात को गीता भवन में रुकेंगे वे सुबह चार बजे से नीलकण्ठ की चढ़ाई,,,

कई दिन से मौसम अमूमन साफ ही था, हमारी तैयारी पूरी थी शनिवार की शाम को ही हमने अपने बैग सही कर लिए माता जी ने पूरियां और सुखी सब्जी की सारी तैयारी कर दी , सुबह जब तक तुम नहाकर तैयार होंगे पूरी बन जाएगी माँ ने कहा।
भोलेनाथ की जय बोल कर प्रसन्न मन से शनिवार की रात को मैं सो गया।

रात कोई दो बजे बदल गड़गड़ाने की जोर की आवाजें आने लगी देखते ही देखते मूसलाधार बारिश होने लगी सुबह के पांच बजे तक चारों ओर पानी ही पानी हो गया, बारिश के रूप में जैसे भोले नाथ हमारी परीक्षा ले रहे थे हम हाथ जोड़े प्रार्थना कर रहे थे लेकिन बारिश के रूप में बाबा का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था।

"क्या किया जाय" ?? मैंने नरेंद्र को फ़ोन किया।
नरेंद्र ओर कृष्णकुमार एक ही साथ एक मकान में किराए से रहते थे और मैं कोई दस मिनट के रास्ते पर दूसरे मकान में हम सभी किराये से रहते थे।
करना क्या है चलेंगे , सारी तैयारी पूरी है अब हम किसी भी परीक्षा के लिए तैयार हैं।

ठीक है फिर तुम सामने देखो क्या कोई बस मिलेगी काशीपुर जाने के लिए?
हमारे बाकी तीन मित्र काशीपुर(उधमसिंह नगर उत्तराखण्ड) में रहते थे और हरिद्वार की बस हमें वहीं से मिलनी थी।

कोई बस नहीं है यार चारो तरफ घुटनो तक पानी भरा हुआ है और बारिश भी रुकने का नाम नहीं ले रही, नरेंद्र ने मुझे फ़ोन करके बताया।
फिर?? मैंने पूछा।
किसी तरह काशीपुर पहुंच जाएं फिर तो रोडवेज की बस मिल जाएगी नरेंद्र ने कहा।
ठीक है मैं बाइक लेकर आता हूँ तुम लोग निकलो मैंने अपना बैग लिया और बाइक उठा कर भोले की जय बोल कर निकल गया।

हम तीन लोग बाइक से भरी बारिश में किसी तरह काशीपुर पहुंचे कई बार तो मार्ग में इतना पानी भरा था कि बाइक का बस हैन्डल ही दिख रहा था,कितनी ही बार पानी में तैरते सांप हमारा रास्ता काट रहे थे।
हम लगातार जय भोले की बोल रहे थे।

काशीपुर पहुंच कर पाता लगा कि बाकी तीनों लोगों का प्रोग्राम कैंसिल है इतनी बारिश में उनकी हिम्मत नहीं हुई चलने की।
हमने बाइक उनके रूम पर खड़ी की ओर कभी घुटनों कभी कमर तक पानी में होकर आ गये बस अड्डे पर।

हमारे कपड़े पूरी तरह भीगे हुए थे बारिश थमने के कपि आसार नहीं थे कहीं ना कहीं मन मे ख्याल था कि कहीं हमने कोई गलती तो नहीं कि ऐसे खराब मौसम में चलने का निर्णय करके।
लेकिन मन मे एक ही भाव था कि बाबा का बुलाबा है तो सब ठीक होगा।

आधे घण्टे बाद एक बस आयी जो हरिद्वार जा रही थी उसमें आठ दस लोग बैठे हुए थे उन्हें देखकर हमे लगा कि हम अकेले नहीं है इस बरसात में सफर करने बाले।
बस में बैठकर सबसे पहले हमने कपड़े बदले, कपड़े क्या बस लुंगी और बनियान,, बाकी गीले कपड़े निचोड़ कर बस की खिड़की  के सामने डाल लिए और नीलकण्ठ बाबा को याद करते उनकी जय बोलते रहे।

ठीक दस बजे हम लोग हरिद्वार पहुंच गए अब बारिश बहुत हल्की हो गयी थी हमलोग ने खुशी खुशी हर की पैड़ी पर स्नान किया गंगा मैया के मंदिर में दर्शन करके जल भरकर हम आगे चल दिये।
आगे हमने वैष्णोदेवी मन्दिर, भारतमाता मन्दिर और अन्य कई मंदिरों में दर्शन किया जो सारे एक ही रास्ते पर है हरिद्वार ऋषिकेश मार्ग पर उसके आगे शांतिकुंज है।

शाम चार बजे हम लोग ऋषिकेश पहुंच गए, रामझूला पार करके हमने वेदांतनिकेन में रहने की व्यवस्था की ओर समान रखकर घूमने निकल गए, बारिश अभी भी माध्यम गति से हो रही थी।
हमने रामझूला के पास शाम को फिर गंगास्नान किया और गंगा आरती में शामिल हुए, गङ्गा आरती बहुत भव्य तरीके से होती है बहुत मोहक दर्शय होता है।
मन आत्मा भक्ति से  भर गए, मार्ग के सारे कष्ट सारी थकान मिट गई।
उसके बाद हमने चोटी बाला भोजनालय में खाना खाया और धर्मशाला आकर आराम किया।
हमारे पास पहनने के लिए एक भी सूखा कपड़ा नहीं था तो वही, लुंगी ओर कुर्ता,,,

सुबह तीन बजे उठ कर हम नित्यकर्मों से निपट कर फिर गंगा मैया के पास पहुंचे हमने गङ्गा स्नान करके सुबह ठीक चार बजे पैदल मार्ग से नीलकण्ठ की यात्रा नीलकण्ठ की जय के साथ प्रारम्भ की।

नीलकण्ठ धाम ऋषिकेश रामझूला से पैदल 16 किलोमीटर ओर मोटरमार्ग से 25 किलोमीटर की दूरी पर है।
ये स्थान "मुनि की रेती", में आता है।
मोटर मार्ग से लगातार टैक्सियाँ मिलती रहती हैं।
हमने पैदल मार्ग चुना और पूरे जोश से चलने लगे नीलकण्ठ की जय बोलते हुए।
मार्ग बहुत सँकरा और ऊबड़खाबड़ था ऊपर से लगातार होती बारिश से फिसलन भी बहुत हो रही थी फिर भी नीलकण्ठ की जय बाबा की बम के नारे और लोगों की बढ़ती भीड़ हमारे पैरों में पंख लगा रही थी।

कई जगह चढ़ाई इतनी अधिक थी कि हमारी सांस फूल जाती, ऊपर से पूरे मार्ग में पीने का पानी उपलब्ध नहीं था (पानी की बोतल साथ ले कर जाएँ)हर जगह बस जलजीरा शिकंजी कोल्डड्रिंक ही बिक रही थी।

कोई आठ बजे हम लोग मंदिर के सामने लगी आधा किलोमीटर लंबी लाइन में जा लगे मन मे बहुत प्रसन्नता थी कि अब हमें हमारे इष्ट के दर्शन होने बाले हैं।
लगातार जयकार करते भजन गाते लोग और धीरे धीरे सरकती लाइन,,,
11 बजे तक हम लोग नीलकण्ठ बाबा पर जल चढ़ा कर बाहर आ गए नीलकण्ठ धाम एक गहरी घाटी में स्थित है चारो ओर ऊंची पहाड़ियां और बीच में रख गोल घाटी बहुत सुंदर लगती है।
सावन में तो वहां इतनी भीड़ हो जाती है कि दर्शन करना मुश्किल होता है।
हमारे पूरे मार्ग में बारिश एक पल भी नहीं रुकी थी, नीलकण्ठ घाटी में ऐसे भी ज्यादा बारिश होती है।

वहाँ से हमलोग ऊपर सिद्धबाबा के दर्शन करने पहुंचे जो स्थान हनुमान जी को समर्पित है, वहाँ की चढ़ाई बिल्कुल खड़ी है, सांस फूल जाती है पहुंचते पहुंचते।

वहाँ दर्शन करके हमलोगों ने माता पार्वती के दर्शन के लिए पार्वती धाम का मार्ग लिया , पार्वती मन्दिर नीलकण्ठ से कोई चार किलोमीटर ऊपर है रास्ता ऊबड़खाबड़ ओर सँकरा था ऊपर से चढ़ाई भी अधिक थी(अब पार्वती मंदिर के दो किलोमीटर पास तक मोटर मार्ग बन गया है)
कोई दो घण्टे में हम लोग माता पार्वती के सामने थे, माता का रूप बहुत सौम्य वात्सलय है मन्दिर भी काफी बड़ा है और वहाँ पर्वत के दर्शय भी बहुत रमणीक हैं।

वहां मीठे नीम(कड़ी पत्ता) की पकोड़ी बहुत प्रसिद्ध हैं जो आपको पूरे नीलकण्ठ मार्ग में मिलेगी।
वहां से कोई दो कोलोमिटर ऊपर झिलमिल गुफा है और झिलमिल से कोई आधा किलोमीटर गणेश गुफा।
गणेश गुफा तो लगता है सीधे खड़े पर्वत में ही बनी है ।

बापसी में हमने मोटर मार्ग लिया और छः बजे तक बापस हरिद्वार पहुंच गए।
हमारी इस पूरी यात्रा में कभी भी बरसात बन्द नहीं हुई और मौसम की भयावहता ने एक पल के लिए भी हमारा ध्यान हमारे इष्ट के चरणों से हटने नहीं दिया।
रात कोई दो बजे तक हम लोग अपने घर पहुंच गए थे।

उसी बर्ष हमलोगों ने अपने खुद के मकान बनाने प्रारम्भ कर दिए थे ये हमारी उस परीक्षा का फल था।
अगली शिवरात्रि(फरवरी) हमने अपने खुद के घर में मनाई।
हम तीनों लोग अब अपने खुद के मकानों में रहते हैं।
और प्रयास रहता है कि बर्ष में एक बार बाबा नीलकण्ठ का धन्यवाद करने उनके धाम पर सर अवश्य झुका आएं।
इस यात्रा को हम कभी नहीं भूलेंगे बहुत अविस्मरणीय यात्रा थी वह।

बहुत शक्ति है नीलकण्ठ बाबा की , जो मांगो मिलता है बस भक्ति अच्छी और श्रद्धा सच्ची होनी चाहिए।
बोलिये नीलकण्ठ बाबा की जय।
नृपेन्द्र शर्मा