Tumpar ki kavitae in Hindi Poems by Ravi books and stories PDF | तुमपर की कविताएँ

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तुमपर की कविताएँ

प्यार मुझपर तुम्हे, मेरे बाद आएगा,

फिर नहीं गीत तुमपर लिखा जायेगा।

उड़ानों का मेरी, हो तुम आसमान,

जाने फिर ये परिंदा कहाँ जायेगा।

- -

आज रूठे हो तुम, ये सुनलो मगर,

मैं रूठा तो तुमको मनायेगा कौन।

हर घड़ी साथ मैंने, तुम्हारा दिया,

मेरी तरह वादा, निभायेगा कौन

देह में रुह अटकी हुई जिस तरह,

तुमको मेरा हमेशा कहा जायेगा।

- -

उस आकाश सी, तुम समंदर बनो,

तुमको छुआ हुआ मैं किनारा बनु।

जनम चाहे अपना हो जिस रूप में,

तुम बनो मेरी और मैं तुम्हारा बनु।

तुम जहां भी रहो, कहो ना कहो,

मन उसी ओर मेरा बहा जायेगा।


  • देखकर इन नयन,रूप,श्रृंगार को,

    रात अमावस भरी, पूर्णिमा हो गई।

    पास हो तुम मेरे, दूर भी हो मगर,

    मैं धरा, और तुम आसमां हो गई।

    पूछना तुम ज़रा आईने से कभी,

    रूप कैसा लगा ये तुम्हारा उसे।

    तुम्हारे ही पहलू में रहता है जो,

    बिंदियों का है बस सहारा उसे।

    सामने हो मगर हो नहीं भाग्य में,

    आईना कृष्ण, तुम राधिका हो गई


  • तुम्हारे माथे की लकीरों में

    जो लाल रंग बैठा है।

    यह हमारा जीवन भर

    मुस्कराने का संकेत है

    ये चूड़ियां हर दिन

    घर बुला लाती है,

    बाहर की छल-कपट से।

    ये बिंदी और मुस्कान

    ज़िंदा रखती है,

    मेरे मरने को।

    मेहंदी वाले हाथ

    हमेशा मेरे पीछे खड़े है,

    कि मुझे कोई दुख ना हो,

    दुख को रोक लेते है।


  • एक शब्द में समाई वो कहानी लगती हैं,

    नदियों का वो ठहरा चमकता पानी लगती हैं,

    छत पर जब वो आती हैं चांदनी लगती हैं,

    जैसे धरती पर आई एक परी सी हुबहू लगे,

    कोमल हांथों में रचाई मेहंदी की खुशबु लगे,

    उड़ती हँवा और गिरता पानी,पंछी का आकाश लगे,

    शायर की सुन्दर रचना तो जीने का आभास लगे,

    बाग़ में कलियाँ और फूलों की रानी लगती हैं,

    छत पर जब वो आती हैं चांदनी लगती हैं।

    अम्बर में जो बिना डोर के उड़ती उन पतंगों सी,

    दिवाली की रौनक सी और होली के उन रंगों सी,

    दिखे जिसमे प्यार का चेहरा अपनों की उन नज़रो सी,

    कवि की पहली पंक्ति जैसी, गीतों सी उन गज़लों सी,

    मीर और ग़ालिब की वो भी दीवानी लगती हैं,

    छत पर जब वो आती हैं चांदनी लगती हैं।


  • कभी बनारस की सुबह बन जाती हो।

    तो भोपाल की शाम हो जाती हो।

    तुम रास्तें के दृश्य हो या,

    दोनों पर एक आसमां।

    तुम चेतन की किताब का किरदार

    तो नहीं हो, तुम जो हो

    हमेशा हो। चार कोनो में नहीं

    होती तुम, तुमने ही तुम्हें रचा हैं।

    अब प्रेम का क्या वर्णन करूँ,

    मेरा प्रेम तो तुम्हारा हँसना हैं।

    और तुम्हारी भीगी कोर

    मेरा मर जाना हैं।

    शुरू हुआ प्रेम और अमरता का

    प्रेम, दोनों के बीच का

    तुम प्रश्न हो। उत्तर भी तुम।


  • प्यार भरी हैं नज़र तुम्हारी, रातें आंखों में समाई,

    माथे पर जैसे पृथ्वी, इतनी सोच में गहराई,

    देखो सबकी काया-काया दर्पण हैं,

    प्रेम नहीं हैं तो कहो क्या जीवन हैं।

    रुप, कि आगे पानी-पानी हो जाए जवानी,

    बालपन कि पुस्तक में परियों जैसी रानी।

    जिनपे चलते जाएं, वो राहें पावन हो जाए,

    पत्थर-पत्थर मांगे पानी,मिट्टी पागल हो जाएं।

    दिल जिसकी पगधूलियों पर अर्पण हैं,

    प्रेम नहीं हैं तो कहो क्या जीवन हैं।


  • रुप वर्णन का आधार मिल जाएगा,

    दिल सच्चा हैं तो प्यार मिल जाएगा!

    चाँद-चेहरा सपन में मिलने लगे

    कोंपले चाह की खिलने लगे

    कोई पावन सा श्रंगार मिल जाएगा,

    दिल सच्चा हैं तो प्यार मिल जाएगा!

    प्रेम कि बारिशो में झुमकर देखना

    प्रेम पत्रो के शब्द चुमकर देखना

    छूंअन का अधिकार मिल जाएगा,

    दिल सच्चा हैं तो प्यार मिल जाएगा!


  • कुछ कहना

    चाहती है ये आँखे,

    बहुत कुछ

    देखना चाहती है,

    तुमने मुस्कान के पीछे

    कई ग़म तो छिपा लिये

    पर आँखे सारे दर्द

    बयां करती है।

    मुझे पता है तुम नही

    मानोगी की तुम्हे

    कोई ग़म है,

    पर तुम्हारे दिल को

    पता है।

    इन आँखो में मुझे कई

    ख़्वाईशे नज़र आती है,

    ख़्वाईशे एक हाथ में

    सितारो की, एक हाथ में

    चांद की,

    और तुम दोनो हाथो से

    चांद-सितारो को

    उछालना चाहती हो

    की एक नया आसमां

    बन जाएं, जो सिर्फ

    तुम्हारा होगा, तुम्हारे

    ख़्वाब उस आसमां में

    उड़ना चाहते है।

    वो उंचाई तुम्हारी होगी,

    सिर्फ तुम्हारी.,

    आँखो को एक बार

    गोर से आईने में देखना,

    इन्हे सिर्फ तुम

    पहचानती हो,

    ये दुनिया नही।


  • जैसे.....!!

    रंग तुम,

    मंच हमारा

    मिलना,

    बाते संवाद,

    रुठना-मनाना

    अभिनय,

    मौसम दर्शक,

    नेपथ्य जीवन,

    तुम्हारी हंसी

    लगातार तालियां,

    मुस्कान दर्शको

    का हाथ मिलाना,

    और अंत

    वाक़िफ सभी!!!


  • किरणे

    टपक रही है

    तुमसे।

    भिगकर

    आई हो तुम

    सोने की चमकदार

    रोशनी में।

    बालो को बंधे

    रहने दो उस क्लिप से,

    जुड़े में, गोल लिपटे,

    खुलने पर हो जाते है

    लोहा-हड्डी भस्म

    करने वाला

    “सुरज” मुख़ी..।


  • गीत भले बीन सावन के गाऊ मैं

    संग तेरे पहली प्रीत गुनगुनाऊ मैं

    पृथ्वी चक्र सा प्रेम कहा से लाऊ मैं

    नौ लखा तुझपर हो जाऊ मैं,

    संजीवनी रस सा तेरे बालो पर

    हो जाऊ घागर कमर पर,

    भाग्य रंग, सा लगु तेरे गालो पर

    बीन ईच्छा का देह कहा से लाऊ मैं

    पृथ्वी चक्र सा प्रेम कहा से लाऊ मैं

    मैं हथेली समझ के दरीयां में

    योवन कंठ पे तु बुंदो की माला,

    बावली,दिवानी, तु इक मीरा

    मन नगर की तु बनी बृजबाला,

    छोड़ हठ, वृंदावन कहा से लाऊ मैं

    पृथ्वी चक्र सा प्रेम कहा से लाऊ मैं


  • भीगे बालो से

    गीरी बुंद के आखरी

    हिस्से मे एक अदृश्य

    सीलब्बट्टे मे चाँद

    पीसकर,चुपके से

    गुलाब पर सो जाता है,

    दबे कदम आकर सुरज

    उसी गुलाब पर लाली

    घोलकर दुर खड़ा हो जाता है,

    फिर वो ही भीगे बालो वाली

    उस गुलाब पर हाथ फैर कर

    गुज़रती है, और उसके हाथो

    पर इक मेहंदी बेताब हो जाती है,

    दुर तक महक जाने के लिए,

    किसी को करीब खिच लाने को....,


  • प्रेम नयन की घोर अज्ञा

    तुझ से लेकर तुम तक है

    देह की उत्कर्ष धराहर,

    मुझ से लेकर तुम तक है!

    कल कोई दीवाना तुम्हे

    प्रेम शूल चुभो देगा,

    मदमस्त महकी हंवा में

    वो तुम्हे भीगो देगा!

    हाँ मगर प्रेम-पुल अल्हड़,

    तुम से लेकर मुझतक है!

    देह की उत्कर्ष धराहर,

    मुझ से लेकर तुम तक है!


  • खुदमें तेरा शर्माना,वो खुदमें तेरा शर्माना,

    जिस्म मेरी दुआ से ये सारा ढक जाए,

    तुम्हारी तुम्ही को नज़र ना लग जाए।

    ये तेरा नज़र को चुराना, वो खुदमें तेरा शर्माना।

    तुम अपनी अम्मी की आबरू हो,

    फिर भी मंदिर से रूबरू हो।

    वो टिका तेरा लगाना, वो खुदमें तेरा शर्माना।

    पाने का तुम्हे सपना बता दूँ,

    सभी के सामने अपना बता दूँ।

    फिर तेरा आँखे दिखाना, वो खुदमें तेरा शर्माना।


  • प्यार कि भाषा निरंतर,

    उपनिषद् रचती रही!

    इस धरा पर भी हमीं है,

    आसमां में भी हमीं है!

    हर कहानी जब हमीं पर,

    शुन्य से युँ अंक बनती!

    तब समर्पण में हमीं है,

    झुठी ज़ीद में भी हमीं है!

    देह की नज़रे मचलकर,

    रुह को बे-होश करदे!

    रुह फिर होके मदमस्त,

    देह को बा-होश करदे!

    बाग़ कि खुशबु हमीं है,

    हमीं हुए है घोर पवन!

    फूल पर भँवरें भी हम है,

    फूल के रस में भी हम है!

    प्यार कि भाषा निरंतर,

    उपनिषद् रचती रही!

    इस धरा पर भी हमीं है,

    आसमां में भी हमीं है!

    ***