यह कहानी "बस्ते का बोझ या समझ का बोझा" में बताया गया है कि बच्चों पर बस्ते का बोझ असली समस्या नहीं है, बल्कि उनका समझने का बोझ अधिक है। प्रो यशपाल की 1992 की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे लिखित पाठ को समझ नहीं पाते हैं। पढ़ाई का अर्थ केवल शब्दों को उच्चरित करना नहीं है, बल्कि उनका अर्थ समझना भी है। एनसीएफ ने कम से कम भाषा की किताबें बनाने की सिफारिश की है ताकि बच्चे पढ़ाई में दक्ष हो सकें। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने एक सरकारी स्कूल में जाकर देखा कि बच्चे गणित के सवालों को समझ नहीं पाए। इस पर उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय की स्थापना की योजना बनाई है। इसके अलावा, दिल्ली सरकार ने बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के लिए पाठ्यपुस्तकों की संख्या घटाने की सिफारिश की है। हालांकि, शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत बच्चों को फेल न करने के प्रावधान की आलोचना हो रही है। यह नीति बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि कम कर रही है, क्योंकि उन्हें पता है कि कोई फेल नहीं होगा। इससे बच्चों में मेहनत और पढ़ाई का उत्साह घट गया है। बस्ते का बोझ या समझ by kaushlendra prapanna in Hindi Human Science 9 3.2k Downloads 16.2k Views Writen by kaushlendra prapanna Category Human Science Read Full Story Download on Mobile Description बस्ते का बोझ या समझ का बोझा कौशलेंद्र प्रपन्न बच्चों पर बस्ते के बोझ से ज्यादा समझ और पढ़ने का बोझा है। समझने से अर्थ लिखे हुए टेक्स्ट को पढ़कर समझना है। प्रो यशपाल ने 1992 में अपनी रिपोर्ट में माना था कि बच्चों पर बस्ते की बोझ के स्थान पर समझने का बोझ अधिक है। दूसरे शब्दों मंे कहें तो देश और विश्व की तमाम शैक्षिक और मूल्यांकन संस्थानों की रिपोर्ट बताती है कि बच्चे पढ़ नहीं पाते। यहां पढ़ने से क्या अर्थ लिया जाए। क्या हम लिखे हुए शब्दांे, वाक्यों से मायने निकाल रहे हैं क्या पढ़ने का मतलब हमारा शब्दांे और कविता को पढ़ना है क्या महज गद्यांशों को उच्चरित करना ही पढ़ना है राष्टीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा और प्रो यशपाल की नजर में पढ़ना प्रकारांतर से समझना भी है। इसका तत्पर्य यह हुआ कि बच्चा जिस टेक्स्ट को पढ़ यानी उच्चारण कर रहा है, वर्णांे और शब्दों की पहचान कर पढ़ रहा है उसका अर्थ भी उसे समझ आ रहा है। एनसीएफ ने इसी बिंदु को ध्यान में रखते हुए कम से कम भाषा की किताबों का निर्माण करने की सिफारिश करता है। हिन्दी की रिमझिम किताब में पढ़ने और समझने के साथ ही गतिविधियों के मार्फत बच्चे कैसे पढ़ने मंे दक्ष हो सकें इस ओर ध्यान दिया गया है। कम से कम भाषा में पढ़ना और समझना दोनों युग्म की तरह आया करती हैं। यदि पढ़े हुए गद्यांश को बच्चा समझ नहीं पाता तो वह पढ़ने की श्रेणी में नहीं गिना जा सकता। पिछले दिनों इन पंक्तियों के लेखक को दिल्ली के शिक्षा मंत्री और उप मुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया के साथ बस्ते बोझ से संबंधी बातचीत का अवसर मिला। सिसोदिया का कहना था कि जब वे एक सरकारी स्कूली की कक्षा मंे गए तो पाया कि बोर्ड पर भिन्न, और घन यानी गणित की पढ़ाई हो रही थी। उत्सुकतावश उन्होंने बच्चांे से पूछ लिया भिन्न क्या है पूरी कक्षा सन्न रह गई। इसी तरह और दूसरे स्कूलों मंे भी उन्होंने पाया कि बोर्ड तो भरे हुए थे लेकिन बच्चों में उन्हें समझने की हैसियत नहीं थी। यानी वे भिन्न के सवाल कर रहे थे किन्तु उन्हें उसका अर्थ नहीं मालूम था। ठीक इसी तरह के अन्य वाकयों से भी रू ब रू कराया। शिक्षा मंत्री का कहना था कि शिक्षा मंत्रालय शिक्षक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय की स्थापना हो और शिक्षकों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण मिले, इस पर गंभीरता से सोच और कार्य कर रही है। संभव है 2016 से यह विश्वविद्यालय कार्य करना शुरू कर दे। दिल्ली सरकार ने बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने के लिए कुछ माह पूर्व भी कदम उठाया था। इसके अंतर्गत बच्चों की पाठ्यपुस्तकों को कम करने की सिफारिश की गई थी। वे किताबें किस तरह कम होंगी और किस शिक्षण दर्शन पर सरकार इस योजना को अमली जामा पहनाने वाली है यह भविष्य में आकार लेगा। वर्तमान दिल्ली सरकार शिक्षा के अधिकार अधिनियम में वर्णित बच्चों को फेल न करने के प्रावधान को खत्म करने पर गंभीरता से सोच रही है। इस नीति की आलोचना देश भर में व्यापक स्तर पर होता रहा है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि बच्चों में पढ़ने और शिक्षा के प्रति रूझान कम हुआ है। बच्चों मंे शिक्षा के प्रति और अगली कक्षा में जाने के भय खत्म हो गए। बच्चों को मालूम है कि उन्हें कोई फेल नहीं कर सकता। फेल न होने की बात ने बच्चों मंे पढ़ने के प्रति ललक और मेहनत को कम किया है। रिपोर्ट भी बताते हैं कि जब यह नो रीटेंशन पाॅलिशी लागू हुई है बच्चों मंे पढ़ने की रूचि कम हुई है। बच्चे शिक्षकों को खुलआम चुनौत देते हैं कि फेल कर के दिखाओ। मैं तो अगली कक्षा में चला ही जाउंगा आदि। More Likes This मंजिले - 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