दर्द से जीत तक

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नवंबर का महीना था। आसमान से हल्की-हल्की बारिश गिर रही थी। बूंदों की नमी में ठंड और भी तेज़ लग रही थी। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी, जैसे धरती ने हरे रंग की चादर ओढ़ ली हो। फूल खिले थे और पेड़ों की पत्तियों से पानी की बूँदें ऐसे झर रही थीं जैसे शबनम के मोती बरस रहे हों। सर्दियों की छुट्टियों के कारण स्कूल भी बंद थे। ठंडी हवाएँ चेहरे को छूते ही मन को अजीब-सी शांति और उदासी दोनों का एहसास करातीं। यही वो मौसम था जब मेरी ज़िंदगी बदल चुकी थी। क्योंकि मेरे माँ-बाप अब इस दुनिया में नहीं थे।

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दर्द से जीत तक - भाग 1

नवंबर का महीना था।आसमान से हल्की-हल्की बारिश गिर रही थी। बूंदों की नमी में ठंड और भी तेज़ लग थी।चारों ओर हरियाली छाई हुई थी, जैसे धरती ने हरे रंग की चादर ओढ़ ली हो।फूल खिले थे और पेड़ों की पत्तियों से पानी की बूँदें ऐसे झर रही थीं जैसे शबनम के मोती बरस रहे हों।सर्दियों की छुट्टियों के कारण स्कूल भी बंद थे।ठंडी हवाएँ चेहरे को छूते ही मन को अजीब-सी शांति और उदासी दोनों का एहसास करातीं।यही वो मौसम था जब मेरी ज़िंदगी बदल चुकी थी।क्योंकि मेरे माँ-बाप अब इस दुनिया में नहीं थे।उस हादसे के बाद ...Read More