गाँव के बीचों-बीच, पुराने मंदिर के पास, एक प्राचीन बरगद खड़ा था। उसकी जड़ें धरती के भीतर ऐसे फैली थीं, जैसे धरती की धमनियाँ हों, जो पूरे गाँव को चुपचाप थामे हुए थीं। शाखाएँ इतनी फैली थीं कि गर्मियों में चौराहे पर किसी को धूप छू भी नहीं पाती। गाँव वाले उसकी छाँव में बैठकर दिन भर बातें करते, बच्चे डालियों से झूलते, और पक्षी पत्तों में घोंसले बनाते। लेकिन बरगद के भीतर एक अनसुनी फुसफुसाहट हमेशा गूंजती रहती — “मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ।”
मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहानी - 1
.मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहानीगाँव के बीचों-बीच, पुराने मंदिर के पास, एक प्राचीन बरगद खड़ा था। उसकी धरती के भीतर ऐसे फैली थीं, जैसे धरती की धमनियाँ हों, जो पूरे गाँव को चुपचाप थामे हुए थीं। शाखाएँ इतनी फैली थीं कि गर्मियों में चौराहे पर किसी को धूप छू भी नहीं पाती।गाँव वाले उसकी छाँव में बैठकर दिन भर बातें करते, बच्चे डालियों से झूलते, और पक्षी पत्तों में घोंसले बनाते। लेकिन बरगद के भीतर एक अनसुनी फुसफुसाहट हमेशा गूंजती रहती — “मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ।”बरगद का बचपन और वह स्क्रिप्टबरगद ने यह सोच बचपन में ही ...Read More
मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहानी - 2
मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ: बरगद की कहएक शांत गाँव के बीच में एक प्राचीन बरगद का पेड़ खड़ा था। जड़ें धरती में गहरे बुन रही थीं, जैसे धरती की नसें हों। इसकी शाखाएँ झुकी हुई थीं, मानो हवा से कह रही हों, “मैं महत्वपूर्ण नहीं हूँ।” गाँव वाले इसकी छाँव में विश्राम करते, बच्चे इसकी डालियों पर झूलते, और पक्षी इसके घने पत्तों में घोंसले बनाते। फिर भी, बरगद चुपचाप सोचता, “मेरी कीमत क्या? मैं तो बस एक पेड़ हूँ।”यह सोच बरगद के मन में बचपन से ही जड़ें जमाए थी। जब वह एक छोटा सा पौधा था, तूफानों ...Read More