संसार में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ एक से एक महामानव उत्पन्न हुए जिन्होंने संसार को शान्ति का संदेश दिया। अतृप्त व्याकुल मानव को सही मार्ग दिखाया। पथभ्रष्ट लोगों के जीवन में क्रान्ति उत्पन्न की बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, गोरखनाथ, चैतन्य महाप्रभु, कबीर, रैदास जैसे रत्न यहीं पैदा हुए इन लोगों ने तलवार के बल पर अपना संदेश नहीं फैलाया न जुल्म ढाये और न कोई प्रलोभन दिया। फलतः ज्ञान पिपासु और शान्ति की खोज में भटकने वाले लोग इन संतों की शरण में आकर तृप्त हो गये। आधुनिक युग में रामकृष्ण परमहंस के अनन्य शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने पश्चिम को अपना संदेश सुनाया। वह धर्म परिवर्तन का निमंत्रण या आकर्षण मंत्र नहीं था। वे लाखों-करोड़ों लोगों के अशान्त हृदय को ठंडक पहुँचाने तथा दिक भ्रमितों को अध्यात्म का मार्ग बताने गये थे। यही वजह है कि महर्षि रोम्या रोलॉ से लेकर सिस्टर निवेदिता तक सभी प्रभावित हुए। बाद में स्वामी रामतीर्थ, स्वामी अभेदानन्द आदि पश्चिम को पूर्व के अध्यात्म-चिन्तन का संदेश देने गये। इन लोगों की भावधारा से प्रभावित होकर वहाँ के लोगों ने आश्रम स्थापित किये और इन संतों के उपदेशों का प्रचार किया। इसी उद्देश्य से संपूर्ण पश्चिमी देशों को कृष्ण नाम की महिमा बताने के लिए अभय चरणारविन्द वेदान्त स्वामी (स्वामी प्रभुपाद) गये थे।
स्वामी प्रभुपाद
अभय चरणारविन्द वेदान्त (स्वामी प्रभुुुुपाद, भक्तिवेदान्त स्वामी) संसार में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ एक से एक उत्पन्न हुए जिन्होंने संसार को शान्ति का संदेश दिया। अतृप्त व्याकुल मानव को सही मार्ग दिखाया। पथभ्रष्ट लोगों के जीवन में क्रान्ति उत्पन्न की बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, गोरखनाथ, चैतन्य महाप्रभु, कबीर, रैदास जैसे रत्न यहीं पैदा हुए इन लोगों ने तलवार के बल पर अपना संदेश नहीं फैलाया न जुल्म ढाये और न कोई प्रलोभन दिया। फलतः ज्ञान पिपासु और शान्ति की खोज में भटकने वाले लोग इन संतों की शरण में आकर तृप्त हो गये।आधुनिक युग में रामकृष्ण परमहंस ...Read More
गोरा कुम्हार
भक्त गोरा कुम्हारसंत श्रीज्ञानेश्वर के समकालीन भक्तो में उम्र में सबसे बड़े गोरा जी कुम्हार थे। इनका जन्म तेरढोकी मे संवत् 1324 में हुआ था। इन्हें सब लोग 'चाचा' कहा करते थे। ये बड़े विरक्त, दृढनिश्चय, ज्ञानी तथा प्रेमी भक्त थे। भगवन्नाम में तल्लीन होना इनका ऐसा होता था कि एक बार इनका एक नन्हा बच्चा इनके उन्मत्त नृत्य मे पैरों तले कुचल कर मर गया, पर इन्हें उसकी कुछ भी सुध न थी। इससे चिड़कर इनकी सहधर्मिणी पत्नी ने इनसे कहा कि अब आज से आप मुझे स्पर्श न करें। तब से इन्होंने उन्हें स्पर्श करना सदा के ...Read More
आचार्य रामानंद
आचार्य रामानंद स्वामीआचार्य श्रीरामानन्द जी एक उच्चकोटि के आध्यात्मिक महापुरुष थे। आचार्य रामानन्दजी का जन्म कान्यकुब्ज ब्राह्मणकुल मे माघ सप्तमी, शुक्रवार, संवत् 1324 को प्रयाग में त्रिवेणी तट पर हुआ था। पिता का नाम पुण्यसदन था और माता का नाम श्रीमती सुशीला था। कुल पुरोहित श्रीवाराणसी अवस्थी ने शिशु के माता-पिता को यह उपदेश दिया था कि “तीन वर्ष तक बालक को घर से बाहर न निकालना। उसकी प्रत्येक रुचि का पालन करना। उसको दूध ही पान कराना और कभी दर्पण न दिखाना।”चौथे वर्ष मे अन्नप्राशन संस्कार हुआ। बालक के सामने सब प्रकार के व्यञ्जन रखे गये, पर बालक ...Read More
साईं बाबा
संत साईं बाबाआपा-पर सब दूरि करि, रामनाम रस लागि।दादू औसर जात है, जागि सके तो जागि॥ —दादू सन्तसन्त चरित्र चिंतन और स्मरण की अलौकिकता दिव्यता भवसागर से पार उतरने की तरणी है। सन्त चरण की एक धूलि कणिका कोटि-कोटि गंगा से भी नही तौली जा सकती है। जिस प्राणी पर सन्त की कृपा-दृष्टि अनायास पड़ जाती है। उसके जन्मजन्मान्तर के पापो का क्षय हो जाता है, पुण्य की समृद्धि बड़ जाती है। साईं बाबा एक ऐसे ही सन्त थे जिन्होने अभी कुछ ही समय पहले पृथ्वी पर उतरकर अपनी अलौकिक चरित्रलीला, विमल चरणधूलि कणिका और दिव्य कृपा से असंख्य ...Read More
कबीरदास (कबीर)
संत कबीरसंत कबीर मध्यकालीन संतमत के प्रवर्तकों में एक स्वीकार किये जा सकते है। उन्होंने परमात्मा राम को घट-घट व्यापी बताकर लोककल्याण की साधना की, वे परम निरपेक्ष और निर्मल मति से सम्पन्न संत थे। कबीर ने समस्त चराचर को राम से परिपूर्ण देखा, आत्मरूप अथवा चेतनस्वरूप पाया। वे संत थे। संत वे होते है जिनके जीवन मे सदा सत्य रहता है। उन्हें पहाड़ से नीचे गिराया जाता है, समुद्र में छोड़ दिया जाता है, हाथी के पैर तले डाल दिया जाता है, विषपान कराया जाता है पर वे सत्य के लिये हँसते हँसते प्राण पर खेल जाते है। ...Read More
श्रीपद्मनाभ
राम नाम के प्रेमीभक्त श्रीपद्मनाभ जीनाम महानिधि मंत्र, नाम ही सेवा-पूजा।जप तप तीरथ नाम, नाम बिन और न दूजा॥नाम नाम वैर नाम कहि नामी बोलें।नाम अजामिल साखि नाम बंधन ते खोलें॥नाम अधिक रघुनाथ ते राम निकट हनुमत कह्यो।कबीर कृपा ते परम तत्त्व पद्मनाभ परचो लह्यो॥श्री पद्मनाभजी के मत मे श्रीराम नाम की महानिधि ही सबसे बड़ा मंत्र है। नाम जप को ही पद्मनाभ जी भगवान की सच्ची सेवा-पूजा मानते थे। इनके लिए राम का नाम ही जप, तप और सब तीर्थों का तीर्थ था। नाम के अतिरिक्त अन्य किसी तत्व या साधन को स्वीकार करना इन्हें नहीं रुचता था। ...Read More
रैदास (रविदास)
संत रैदास (रविदास)प्रभु की भक्ति में जाति-पाँति का भेदभाव न कभी था और न कभी हो सकता हैं। रैदास स्वयं कहा हैं:जाति भी ओछी, करम भी ओछा।ओछा कि सब हमारा।।नीचे से प्रभु ऊच कियो है।कह रेदास चमारा।।भगवान को अपना सर्वस्व मानने और जानने वाले व्यक्ति के सौभाग्य का वर्णन नही हो सकता। भगवान के भक्त अच्युत गौत्रीय होते हैं, उनकी चरण-रजवन्दना के लिए ऋद्धि-सिद्धि प्रतीक्षा किया करती है। संत रैदास भगवान के परम भक्त थे, उनकी वाणी ने भागवती मर्यादा का संरक्षण कर मानवता में आध्यात्मिक समता-एकता की भावना स्थापित की। वे सन्त कबीर के अग्रज थे, भगवान की ...Read More
धन्ना जाट
भक्त धन्ना जाटधन्ना जाट शालग्राम जी के बचपन से ही भक्त थे। इनका जन्म 1415 ईस्वी में दियोली शहर नज़दीक गाँव धुआं में हुआ था। यह गाँव राजस्थान के टौंक जिले में है। उनके गुरु रामानन्द जी थे। शुरू में वह मूर्ति-पूजक थे, परन्तु बाद में वह निर्गुण ब्रह्म की आराधना में लग गए। बचपन में जैसे ब्राह्मण को उन्होंने शालग्राम जी की पूजा करते देखा था, अपनी समझ से वैसी ही पूजा करने का आयोजन वे करने लगे। धन्ना भगवान को रोटियों का भोग लगाते थे और भगवान प्रकट होकर उनका भोग ग्रहण करते थें।धन्ना जाट के पिता ...Read More
नचिकेता
बाल ऋषि नचिकेताभारत की पावन धरा पर अनेक ऋषि मुनि, साधक व संन्यासी अवतरित हुए हैं जिन्होंने अपने तप, व आध्यात्मिक बल पर समाज का मार्गदर्शन किया व लोगों में सांस्कृतिक मूल्य एवं आदर्श गुण रोपित किए।इन ऋषियों का जीवन अत्यंत पवित्र था। उनका जीवन ध्येय था— 'सर्वे सुखिना भवंतु' (सब की भलाई हो, सब सुखी हो)। वेदों का अध्ययन-अध्यापन करना, यज्ञ-तप करना, दान दक्षिणा और चिंतन-मनन करना ही इनकी दिनचर्या थी। इनका निवास तपोवन में था। घास व पत्तों की झोपड़ियाँ ही इनका घर कहलाती थीं।ऐसे ही एक तपोवन में उद्दालक नाम के ऋषि अपनी पत्नी विश्ववरा के ...Read More
नाभादास जी
श्री नाभादासजीजाको जो स्वरूप सो अनूप लै दिखाय दियो,कियो यों कवित्त पटमिहो मध्य लाल है।गुण पै अपार साधु कहै चार हो मैं।अर्थ विस्तार कविराज टकसाल है।।सुनि सन्तसभा झूमि रही अलि श्रेणीमानो धूमि रही कहै यह कहा धौ रसाल है।सुने हे अगर अब जाने मैं अगर सही,चोवा भये नाभा सो सुगन्ध भक्तभाल है। —प्रियादासमहात्मा नाभादास भगवान्, भक्त और सन्त के लीलाचरित्र, भक्ति और साधना के बहुत बड़े मध्यकालीन साहित्यकार थे। उन्होने अपने परम प्रसिद्ध भक्तमाल ग्रन्थ में सत्युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के भक्तो, सन्तो और महात्माओ का बडी श्रद्धा से, बढी भक्ति और अनुरक्ति से चित्रांकन किया। वे सन्त ...Read More