बनारस… सिर्फ़ एक शहर नहीं है, ये तो जैसे समय की गोद में बैठा हुआ एक सपना है—जिसके हर घाट पर कहानियाँ बहती हैं, और हर गली में कोई याद रुकी हुई मिलती है। ठीक वैसे ही, राजेन्द्र प्रसाद घाट के एक कोने में, हर शाम एक लड़की बैठा करती थी। नाम उसका अवनि था। उम्र कोई 26–27 की होगी। लंबे, सीधे बाल जिन्हें वो अक्सर ढीली चोटी में बाँध लेती थी। चेहरे पर कोई खास साज-श्रृंगार नहीं, पर आँखों में कुछ ऐसा था जो हर आते-जाते को कुछ देर के लिए रोक ले। वो चुप रहती थी, मगर उसकी मौनता में भी एक किस्सा पलता था। उसके पास हमेशा एक पुरानी, भूरे रंग की डायरी होती थी—कवर थोड़ा घिसा हुआ, कोनों पर हल्की सिलवटें। वो डायरी ही उसका संसार थी, उसकी हमराज़, उसकी आवाज़।
बनारस का घाट और वो लड़की - भाग 1
बनारस… सिर्फ़ एक शहर नहीं है, ये तो जैसे समय की गोद में बैठा हुआ एक सपना है—जिसके हर पर कहानियाँ बहती हैं, और हर गली में कोई याद रुकी हुई मिलती है। ठीक वैसे ही, राजेन्द्र प्रसाद घाट के एक कोने में, हर शाम एक लड़की बैठा करती थी। नाम उसका अवनि था। उम्र कोई 26–27 की होगी। लंबे, सीधे बाल जिन्हें वो अक्सर ढीली चोटी में बाँध लेती थी। चेहरे पर कोई खास साज-श्रृंगार नहीं, पर आँखों में कुछ ऐसा था जो हर आते-जाते को कुछ देर के लिए रोक ले। वो चुप रहती थी, मगर उसकी ...Read More