उस रात वो सिर्फ़ मेरी थी

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रात का वक़्त था। खिड़की के उस पार हल्की बारिश धीमी थपकियों में भीग रही थी और कमरा एक सर्द नमी से भरा हुआ था। हर चीज़ जैसे अपनी साँस रोककर किसी आने वाले पल का इंतज़ार कर रही थी। दीवारों पर टंगी तस्वीरें, जो अब तक मौन थीं, अब आँखें फाड़े उस एक पल को देख रही थीं जो धीरे-धीरे पास आ रहा था – और उस पल का नाम था नेहा। वो सामने खड़ी थी। हल्के काले रंग की साड़ी में, बाल खुले, और आँखों में एक अजीब सी चुप्पी। जैसे कुछ कहने को थी, मगर शब्दों से भरोसा उठ चुका हो। मैं वहीं खड़ा उसे देखता रहा। कुछ सेकंड के लिए वक़्त जैसे फिसल गया था — या शायद थम गया था। "क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?" नेहा ने धीमे स्वर में पूछा।

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उस रात वो सिर्फ़ मेरी थी - 1

"उस रात वो सिर्फ़ मेरी थी"(भाग 1)️ रचना: Abhay Panditरात का वक़्त था। खिड़की के उस पार हल्की बारिश थपकियों में भीग रही थी और कमरा एक सर्द नमी से भरा हुआ था। हर चीज़ जैसे अपनी साँस रोककर किसी आने वाले पल का इंतज़ार कर रही थी। दीवारों पर टंगी तस्वीरें, जो अब तक मौन थीं, अब आँखें फाड़े उस एक पल को देख रही थीं जो धीरे-धीरे पास आ रहा था – और उस पल का नाम था नेहा।वो सामने खड़ी थी। हल्के काले रंग की साड़ी में, बाल खुले, और आँखों में एक अजीब सी चुप्पी। ...Read More