फाल्गुन की सुबह जब सूर्य निकलने वाला हो और उसकी तरुण रतनारी क्षितिज के वक्ष पर बिखरी-सी नज़र आए। और साथ में फूलों की सुगंध। मंगल प्रदा और शीशम की मंजरि को छू कर आने वाले वो स्वछन्द महकते झोंके मानों हमें अपने बाहुपाश में बांध से रहे हों। प्रभाती गाते पक्षियों का कलरव और खेतों की ठंडी, महकती उन्मुक्त हवा जिसके जादू में हम बंध से जाते हैं। सप्त रंग से रंजित वसुधा दुल्हन-सी सज रही होती हैं। चंग की ताल पर नृत्य करता मोर, बंसी की धुन से मोहित मृग, अपने स्नेह की मधु धारा बरसातें मेघ और हल्की सर्दी जो केवल सुबह महसूस होती है। मनभावन धूप और रोहिड़े के हृदय हारी फूलों में छुपी मधु रस-सी ठंडी ओस की बूंदे! वृक्ष की टहनियों पर हवा के साथ रमती तरुण कोंपलें और मधुगंध से महकती फ़िज़ा जो हृदय को आत्मविभोर कर दे।
प्रेम के दो फूल - भाग 1
भाग- १फाल्गुन की सुबह जब सूर्य निकलने वाला हो और उसकी तरुण रतनारी क्षितिज के वक्ष पर बिखरी-सी नज़र और साथ में फूलों की सुगंध। मंगल प्रदा और शीशम की मंजरि को छू कर आने वाले वो स्वछन्द महकते झोंके मानों हमें अपने बाहुपाश में बांध से रहे हों। प्रभाती गाते पक्षियों का कलरव और खेतों की ठंडी, महकती उन्मुक्त हवा जिसके जादू में हम बंध से जाते हैं।सप्त रंग से रंजित वसुधा दुल्हन-सी सज रही होती हैं। चंग की ताल पर नृत्य करता मोर, बंसी की धुन से मोहित मृग, अपने स्नेह की मधु धारा बरसातें मेघ और ...Read More