भूमिका: यह पुस्तक आत्म-अन्वेषण, आध्यात्मिक जागरण और गूढ़ रहस्यों की खोज पर आधारित है। इसमें एक ऐसे पात्र की यात्रा को दर्शाया गया है, जो अपनी आंतरिक शक्ति और आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने के लिए एक असाधारण सफर पर निकलता है। और उसको ध्यान की वह पद्दती मिलती है प्राचीन काल मे सिद्धार्थ को मिली थी जिसने उन्हे भगवान बुद्ध बनाया । अध्याय एक: खोया हुआ जीवन अध्याय दो: अजनबी से मुलाकात अध्याय तीन: ब्रह्मांड का रहस्य अध्याय चार: अवचेतन मन की शक्ति अध्याय पाँच: ध्यान की ओर पहला कदम अध्याय छ: विपासना की पहली अनुभूति अध्याय सा: मौन के दस दिन अध्याय आठ: शुद्धि की पीड़ा अध्याय नो: नई दृष्टि, नया जीवन अध्याय दस: आत्मा की खोज पूर्ण नहीं, प्रारंभ है
आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 1
भूमिका: यह पुस्तक आत्म-अन्वेषण, आध्यात्मिक जागरण और गूढ़ रहस्यों की खोज पर आधारित है। इसमें एक ऐसे पात्र की को दर्शाया गया है, जो अपनी आंतरिक शक्ति और आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने के लिए एक असाधारण सफर पर निकलता है। और उसको ध्यान की वह पद्दती मिलती है प्राचीन काल मे सिद्धार्थ को मिली थी जिसने उन्हे भगवान बुद्ध बनाया । अध्याय एक: खोया हुआ जीवन अध्याय दो: अजनबी से मुलाकात अध्याय तीन: ब्रह्मांड का रहस्य अध्याय चार: अवचेतन मन की शक्ति अध्याय पाँच: ध्यान की ओर पहला कदम अध्याय छ: विपासना की पहली अनुभूति अध्याय ...Read More
आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 2
अध्याय दो: अजनबी से मुलाक़ात बर्फ़ की चादर ओढ़े वह वीरान घाटी जैसे समय से परे किसी दूसरी ही दुनिया में थी। हवा इतनी ठंडी थी कि साँसें भी जमने लगतीं। शरीर थक चुका था, पर मन अभी भी संघर्ष कर रहा था—शायद जीने की उम्मीद अब भी बाकी थी। आरव उस चट्टान के सहारे बैठा रहा, कभी आकाश की ओर देखता, कभी अपनी कंपकंपाती उंगलियाँ सहलाता। उसके भीतर चल रहा था—धड़कनों और सोच का एक तूफान पर भावशून्य जिसमे विचार ...Read More
आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 3
अध्याय तीन: ब्रह्मांड का रहस्य अगली सुबह की पहली किरणें जब हिमालय की बर्फीली चोटियों पर धीरे-धीरे उतर थीं, गुफा के भीतर एक सौम्य उजाला फैलने लगा था। गुफा के बाहर, एक चट्टान पर बैठा आरव, अपने भीतर उठते प्रश्नों से घिरा हुआ था। रात भर उसकी चेतना गुरुदेव की एक बात पर अटकी रही थी: “मैं अकेला नहीं हूँ, आरव। मेरे साथ है यह प्रकृति… यह शून्य… और वह चेतना जो सबमें विद्यमान है।” उसकी आँखों में जिज्ञासा थी, और मन में एक बेचैनी—एक अदृश्य उत्तर की तलाश। वह उठकर धीरे-धीरे गुफा के भीतर पहुँचा। गुरुदेव उस ...Read More
आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 4
अध्याय चार: अवचेतन मन की शक्ति सुबह की शांति में गूंजती गुरुदेव की आवाज, किसी गहरे पर गिरती बूँद जैसी थी—धीरे, पर प्रभावशाली। गुफा में आग की धीमी आँच और बाहर की सफेद दुनिया के बीच बैठा आरव, अब एक साधक बन चुका था—जिसका हृदय जानना चाहता था, और आत्मा बदलने को तत्पर थी। गुरुदेव ने उसकी ओर देखा और बोले, "आज हम बात करेंगे उस शक्ति की, जो तुम्हारे भीतर है, पर तुमने उसे पहचाना नहीं—अवचेतन मन की शक्ति।" आरव ने ध्यानपूर्वक सिर झुकाया। गुरुदेव बोले, "तुम्हारा मन दो भागों में कार्य करता है—चेतन ...Read More