मेरी आयु 80 पार हो चुकी है | मै अपनी आयु के अंतिम आयुखंड मे हूँ | मुझे नाम यश या धन मे रुचि नहीं है | ऐसे मे मेने अपने सबसे प्रिय विषय मेरे सद्गुरुदेव रमण महर्षि की जीवनी से लोगों का परिचय कराना चाहता हूँ | मै बचपन से अध्यात्म मे रुचि रखता हूँ | अतः मै एसे गुरु की तलाश मे था जो सिद्ध हो व मुझे दिव्य अनुभव करा सके | धर्म की कथा कहानिया व भजन सुनाने वाले तो लाखो लोग मिल जाएगे किन्तु परमात्मा की दिव्यअनुभूति करने वाला लाखो करोड़ों मे कोई एक महापुरुष मिलता है | धर्म की दुनिया नकली गुरुओं से भरी हुई है | जब एक दिन मैंने महर्षि रमण के विषय मे पढ़ा तो अचानक मुझे लगा मेरी अध्यात्म की खोज पूरी हुई |
न देखा, न सुना - 1
भूमिका मेरी आयु 80 पार हो चुकी है मै अपनी आयु के अंतिम आयुखंड मे हूँ मुझे नाम यश या धन मे रुचि नहीं है ऐसे मे मेने अपने सबसे प्रिय विषय मेरे सद्गुरुदेव रमण महर्षि की जीवनी से लोगों का परिचय कराना चाहता हूँ मै बचपन से अध्यात्म मे रुचि रखता हूँ अतः मै एसे गुरु की तलाश मे था जो सिद्ध हो व मुझे दिव्य अनुभव करा सके धर्म की कथा कहानिया व भजन सुनाने वाले तो लाखो लोग मिल जाएगे किन्तु परमात्मा की दिव्यअनुभूति करने वाला लाखो करोड़ों मे कोई एक ...Read More
न देखा, न सुना - 2
6- मौन दीक्षा सद्गुरु के लिए ऐक संस्कृत श्लोक है जिसका अर्थ है सच्चे सद्गुरु के समक्ष जाने पर के सभी प्रश्नों का उत्तर बिना शिष्य के पूछे व बिना गुरू के बोले ही मिल जाता है ऐसा ही कुछ महर्षि रमण के साथ था । प्रश्नकर्त्ताके प्रश्न महर्षि की ओर से बहती दिव्य शांति के प्रवाह मे प्रश्न गौण हो जाते थे । वे प्रश्न व उनके उत्तर निरर्थक लगते थे । समस्त प्रश्न मन के बनाऐ हुऐ हैं । उनके उत्तर भी मनोनिर्मित है । महर्षि की दीक्षा मौन होती थी । दक्षिणेश्वर शिव की दीक्षा मौन ...Read More