प्रकृति मैम

(69)
  • 154.3k
  • 21
  • 48.8k

अरे सर, रुटना रुटना ...अविनाश दौड़ता-चिल्लाता आया। -क्या हुआ? मैं पीछे देख कर चौंका। -सर, टन्सेसन मिलेडा। -अरे कन्सेशन ऐसे नहीं मिलता। मैंने लापरवाही से कहा। -तो टेसे मिलटा है? -उसके लिए प्रिंसिपल को सिगनेचर करने पड़ते हैं। मैंने समझाया। -तो टर दो, आप ही तो हो। -अरे बेटा, उस पर स्कूल की सील लगानी पड़ती है। मैं बोला। -तो लडाडो न सर। -सील यहाँ नहीं लाये। मैंने बताया। -ट्यों नहीं लाये? -चुप ! अब मुझे गुस्सा आ गया था।

Full Novel

1

प्रकृति मैम

अरे सर, रुटना रुटना ...अविनाश दौड़ता-चिल्लाता आया। -क्या हुआ? मैं पीछे देख कर चौंका। -सर, टन्सेसन मिलेडा। -अरे कन्सेशन ऐसे नहीं मिलता। लापरवाही से कहा। -तो टेसे मिलटा है? -उसके लिए प्रिंसिपल को सिगनेचर करने पड़ते हैं। मैंने समझाया। -तो टर दो, आप ही तो हो। -अरे बेटा, उस पर स्कूल की सील लगानी पड़ती है। मैं बोला। -तो लडाडो न सर। -सील यहाँ नहीं लाये। मैंने बताया। -ट्यों नहीं लाये? -चुप ! अब मुझे गुस्सा आ गया था। ...Read More

2

प्रकृति मैम - 2

प्रकृति मैम [ कहानी ] -प्रबोध कुमार गोविलअरे सर, रुटना रुटना ...अविनाश दौड़ता-चिल्लाता आया। -क्या हुआ? मैं पीछे देख कर चौंका। -सर, टन्सेसन मिलेडा।-अरे कन्सेशन ऐसे नहीं मिलता। मैंने लापरवाही से कहा। -तो टेसे मिलटा है?-उसके लिए प्रिंसिपल को सिगनेचर करने पड़ते हैं। मैंने समझाया।-तो टर दो, आप ही तो हो। -अरे बेटा, उस पर स्कूल की सील लगानी ...Read More

3

प्रकृति मैम - आलाप

आलापइसी गांव में एक वैद्य जी थे। छोटी जगह होने से उनसे जल्दी ही परिचय मित्रता में बदल गया। बार शाम के समय पोस्टमास्टर साहब के आवास के बाहर जमी बैठक में उनसे मुलाक़ात भी होती और बात भी। वे कहते थे कि उन्नीस- बीस साल का होते- होते लड़कों की शादी हो जानी चाहिए नहीं तो उन्हें चरित्र हनन या राजरोग के लिए तैयार रहना चाहिए।वह गांव के प्रायः हर अविवाहित लड़के या पुरुष पर कोई न कोई कटाक्ष करते हुए चटपटे किस्से सुनाते रहते थे। गांव का एकमात्र चिकित्सक होने के नाते उनकी अंदरुनी जानकारी पर किसी ...Read More

4

प्रकृति मैम - बदन राग

बदन रागमैं जो परीक्षा जयपुर में देकर आया था, उसका परिणाम आ गया। लिखित परीक्षा में मेरा चयन हो था। अब दिल्ली में साक्षात्कार देना था।छोटे से गांव के सिकुड़े माहौल में इसी सफ़लता को ऊंचे स्वर में गाया गया। गांव में आसानी से पहले कोई ऐसा देखा नहीं गया था जो किसी बड़े ओहदे की सरकारी परीक्षा में बैठे और पास हो जाए।बैंक में होने वाली सी ए आई आई बी परीक्षा का परिणाम भी आ गया। इसमें कुल ग्यारह पेपर्स होते थे, जिनमें पांच पहले भाग में और छह दूसरे भाग में। उन दिनों मैं इस परीक्षा का ...Read More

5

प्रकृति मैम - गाकर देखो

1.गाकर देेेे...मेरी नई - नई नौकरी वाला ये शहर भी सुन्दर था और वक़्त भी।ज्वाइन करने के लिए थोड़े सामान के साथ यहां आया तो मैं पहले दो सप्ताह दूर के रिश्ते के एक भाई के घर में रहा। वे विवाहित थे, लेकिन उनकी पत्नी डिलीवरी के लिए ही अपने पीहर गई हुई थीं। वे एक सरकारी विभाग में कार्यरत थे।मुझसे बोले- अभी मैं भी अकेला हूं, घर ख़ाली पड़ा है, आराम से यहीं रहो। धीरे- धीरे तुम्हारे लिए कमरा ढूंढ़ देंगे।एक बार फिर छात्रावास जैसी ज़िन्दगी शुरू हो गई।वे सुबह जल्दी घर से निकल जाते,और रात को बहुत ...Read More

6

प्रकृति मैम - एक लड़की को देखा तो कैसा लगा

4.एक लड़की को देखा तो कैसा लगामैं जब भी छुट्टी में घर जाता तो उस लड़की से मिलना होता। स्कूल के दिनों में, कॉलेज के दिनों में भी हम मिलते रहे थे। हम किसी भी विषय पर बात कर लेते। हम साथ में फ़िल्म भी देख लेते। मैं कभी भी उसके घर चला जाता। वो कभी भी मेरे घर चली आती। हम दोनों साथ मिल कर सड़क पर घूमने चले जाते।मैं जब उसके घर जाता तो अभिवादन, नमस्ते सबसे होती। घर परिवार और दुनियादारी की बातें सबसे होती थीं। लेकिन फ़िर बात स्कूल,कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कैरियर, नौकरी, शहर पर खिसकती जाती ...Read More

7

प्रकृति मैम - इसी दरख़्त की एक और डाली

5.इसी दरख़्त की एक और डालीबचपन से ही चित्रकला से लगाव होने के चलते मैं विख्यात चित्रकार देवकीनंदन शर्मा आवास पर कभी - कभी जाता था। मुझे उनको चित्र बनाते देखना अच्छा लगता था। उनका बारीक ब्रश किसी भी काग़ज़ के नक्षत्र बदल देता था।उनका सबसे बड़ा पुत्र भी नामी चित्रकार था। दूसरा पुत्र डॉक्टर बनने की राह पर था,जो क्षेत्र कभी मेरे आकर्षण का भी केंद्र रहा था। उनका तीसरा पुत्र मेरा हमउम्र होने से मेरा आत्मीय मित्र था।वह स्वभाव से बहुत सरल तथा लगाव रखने वाला लड़का था। उनका चौथा पुत्र भी मुझसे बहुत लगाव रखता था। ...Read More

8

प्रकृति मैम- उजड़ा घोंसला

उजड़ा घोंसलाघर में किसी के बीमार होने की सूचना इतनी खतरनाक नहीं होती कि हौसला खो दिया जाए। पर बात चिंताजनक थी कि उदयपुर से रोज़ सुबह बस में गांव आने वाले बैंक मैनेजर उस दिन मोटर साइकिल से आएं ताकि तुरंत मुझे अपने साथ बाइक पर बैठा कर वापस तत्काल उदयपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचा सकें। इतना ही नहीं, बल्कि आने से पहले ही अपने किसी साथी को स्टेशन भेज कर मेरे टिकिट की व्यवस्था भी करवाते हुए आएं।मेरा माथा ठनका। मैंने सोचा, ज़रूर इनके पास पूरी सूचना है कि मेरे घर में क्या हुआ है और मुझे इस ...Read More

9

प्रकृति मैम- बढ़ रही थी उम्र

7. बढ़ रही थी उम्र, छोटा हो रहा था मैंैैंैंैैमैं मुंबई आ गया।पहले भी आता रहा था, मगर अब तरह आया कि मुंबई को अपना शहर कह सकूं।मेरा ऑफिस कालबादेवी इलाक़े के पास भीड़भरे प्रिंसेस स्ट्रीट पर था। वी टी स्टेशन पर उतर कर टाइम्स ऑफ इंडिया और जे जे इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स के सामने से डी एन रोड पर होते हुए जाना होता था।हमने रहने के लिए किराए का घर नई बंबई के वाशी इलाक़े में लिया, क्योंकि मेरी पत्नी का ऑफिस यहां से काफ़ी नज़दीक होता था।घर से निकल कर भीड़ भरे मछली बाज़ार के बीच से ...Read More

10

प्रकृति मैम- उगा नहीं चंद्रमा

8. उगा नहीं चंद्रमाजो हुआ, उसका कसूरवार मैं ही रहा।प्रसव के दौरान रक्तचाप बेतहाशा बढ़ गया। आनन- फानन में डिलीवरी का निर्णय लिया गया। किन्तु कुदरत अपना क्रोध हमारे नसीबों पर छिड़क चुकी थी।डॉक्टरों के दल द्वारा मुझसे पूछा गया कि मां और संतान में से किसी एक को ही बचाया जा सकेगा, मेरी रज़ा क्या है ???संतानें दो थीं। मेरा जवाब सुनने के बाद वो दोनों इस धरा पर किसी एलियन की तरह जिस जहां से आए थे, उसी में लौट गए।तीन दिन के बाद ढेर सारी हिदायतों के साथ मेरी पत्नी को हस्पताल से छुट्टी दे दी ...Read More

11

प्रकृति मैम - हरा भरा वन

9. हरा भरा वनमुंबई में अलग - अलग कारणों से हमने कई मकान बदले। नई मुंबई या अणुशक्ति नगर में बड़े अफ़सर लोग घर खरीद तो लेते थे किन्तु उन्हें बाद में सरकारी मकान मिल जाता तो वो अपने मकान को लीज पर दे देते। एक बार हम जिस फ्लैट में रहे वो तेरहवीं मंजिल पर था। एक छुट्टी के दिन मैं और मेरी पत्नी फ़िल्म देख कर लौटे तो रात के साढ़े बारह बजे थे। मुंबई में अमूमन लाइट जाती नहीं थी किन्तु उस दिन किसी कारण से थोड़ी देर के लिए बिजली गुल थी। लाइट जाने का मतलब ...Read More

12

प्रकृति मैम - आई हवा

10. आई हवागर्मी की छुट्टियां आई ही थीं कि घर से वो खबर भी आई कि मेरी मां, छोटा और बहन कुछ दिन के लिए घूमने मुंबई आ रहे हैं।ऐसा लगा कि बंद कमरे में हम जैसे कोई घुटन महसूस कर रहे थे, पर अब कोई खिड़की खुली और ताज़ा हवा आई।इसी बीच मेरी पत्नी के छोटे भाई का चयन मुंबई आई आई टी में हो गया। वो भी मुंबई आ गया। कुछ दिन वो हमारे साथ घर पर रहा, फ़िर हॉस्टल में चला गया। वो छुट्टी के दिन हम लोगों से मिलने आता रहता था और मेरे लेखन ...Read More

13

प्रकृति मैम - मिलके बिछड़ गए दिन

मिलके बिछड़ गए दिन !दादर में एक दिन एक कार्यक्रम था। किशन कुमार केन मुझसे बोले- आपको साथ में चलूंगा।किशन कुमार केन उन दिनों मुंबई में एक प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे और अरविंद जी के पास कथाबिंब के ऑफिस में कभी - कभी आया करते थे। वहीं उनसे मुलाक़ात होती पर वो किसी न किसी साहित्यिक बहस में उलझा कर मुझे नज़दीक के एक बीयर बार में ले जाते। और फ़िर हमारी बहस का फ़ैसला इस बात से होता कि बिल कौन देगा। मैं दूं,तो बात मेरे पक्ष में जाती और यदि वो दें,तो फ़िर वो अपनी कह कर ...Read More

14

प्रकृति मैम - राजपथ

12. राजपथकुछ दिन बाद डाक के लिफाफे में बंद मेरी उस परीक्षा का परिणाम आया जो मैंने पिछले दिनों थी। मुझे साक्षात्कार के लिए चुन लिया गया था।ये पहला ऐसा साक्षात्कार था जिसमें वे सवाल नहीं पूछ रहे थे, बल्कि जिज्ञासा प्रकट कर रहे थे कि मैंने ये कैसे किया? वो कैसे किया? और मैं किसी परीक्षा के तनाव में नहीं, बल्कि अपने संचित आत्म विश्वास में डूबा उन्हें ऐसे संबोधित कर रहा था मानो वो मेरी किसी उपलब्धि पर मेरी "बाइट" लेने आया हुआ मीडिया हो!अन्तिम रूप से मेरा चयन बैंक राजभाषा अधिकारी के इस पद पर हो गया। ...Read More

15

प्रकृति मैम - दिल्ली

.दिल्ली दिल हिंदुस्तान कालोधी रोड वाला मकान काफ़ी छोटा था। लेकिन जल्दी ही हमें साकेत में बड़ा मकान मिल का ऑफिस आर के पुरम में था और मेरा अब करोलबाग में। दोनों ही चार्टेड बस से ऑफिस जाते।अब लिखने के लिए ज़्यादा समय तो नहीं मिलता था पर फ़िर भी मौक़ा मिलते ही कुछ न कुछ कहीं छपता रहता।ये उन दिनों की बात है, उधर मुंबई में जब बहुत सारी बड़ी अभिनेत्रियां शादी के बाद अपने घर परिवार या फ़िर गर्भवती होने के कारण फ़िल्मों को तिलांजलि देकर बैठी थीं। कई बड़ी फ़िल्में रुक गई थीं या उनमें फेर ...Read More

16

प्रकृति मैम - ठिकाने, ज़ायके, पोशाक

ठिकाने ज़ायके पोशाकजब हम घर से कहीं बाहर जाने के लिए निकलते हैं तो एक उलझन मन ही मन बेचैन करती रहती है। हम सोचते हैं कि दुनिया इतनी बड़ी, फैली बिखरी है, और फ़िर हमारा ये घर, हम किस किस बात का ख़्याल रखें!लेकिन जब हम बाहर दूर कहीं निकल आते हैं तो हमारी ये अकुलाहट धीरे धीरे स्वतः कहीं तिरोहित होती जाती है। अब हमारा ध्यान केंद्र धरती का वही कोण बन जाता है, जहां हम हैं!कोल्हापुर शहर एक शांत, सुसंस्कृत मध्यम आकार का शहर था। शुरू की दो - तीन रातें एक होटल में काटने के ...Read More

17

प्रकृति मैम - विकल्पों की मौजूदगी

15. विकल्पों की मौजूदगीमेरे घर से थोड़ी ही दूर पर एक मकान में तीन लड़के रहते थे, जो कोल्हापुर एम बी ए करने आए हुए थे।मेरे सभी मित्र अब उनके कॉलेज में तीन महीने की छुट्टियां हो जाने के कारण अपने - अपने घर जा चुके थे। मैं एक शाम खाना खाने के बाद अपनी कॉलोनी में अकेला ही टहल रहा था कि उन्हीं एम बी ए छात्रों में से एक लड़का मेरे पास आया। उसने अभिवादन करके अपना परिचय दिया। वो अपनी इंटर्नशिप के बारे में कुछ बात करना चाहता था जो उसे अपना फर्स्ट ईयर पूरा होने पर ...Read More

18

प्रकृति मैम - पास भी, दूर भी

ठाणे मुंबई के पास बिल्कुल सटा हुआ जिला था। वहां लोग कहते थे कि यहां व्यस्ततम विराट महानगर मुंबई असुविधाएं अभी नहीं पहुंची हैं पर सुविधाएं पहुंच गई हैं।मुझे श्रीरंग सोसायटी में एक सुविधाजनक फ्लैट मिल गया। ऑफिस भी वागले एस्टेट में था, जिससे ट्रेन नहीं, बल्कि बस से ही जाना होता था।ये भौगोलिक दृष्टि से हमारे बैंक का बहुत बड़ा आंचलिक इलाका था जिसमें ठाणे, रायगढ़ और गुजरात की सभी शाखाएं आती थीं। जल्दी ही मैंने इस क्षेत्र का भी चप्पा - चप्पा छान लिया। अहमदाबाद सहित गुजरात के अधिकांश ज़िले देख डाले। रायगढ़ क्षेत्र के सुन्दर पर्यटन ...Read More

19

प्रकृति मैम - लहर को प्यास से क्या

लहर को प्यास से क्याकुछ पत्रिकाएं दीवाली पर साहित्य के ख़ास अंक भी निकाला करती थीं। "सबरंग" के कहानी के लिए नई कहानी ढूंढने के लिए एक दिन मैंने तय किया कि मैं एक रात मुंबई की चौपाटी पर ही रहूंगा।मैं मरीन ड्राइव से पैदल ही समुद्र के किनारे चल कर चौपाटी की ओर जाने लगा। सामने दूर मालाबार हिल्स की जगमगाती रोशनियां अठखेलियां कर रही थीं।मुझे मेरा एक मित्र भी बोला था कि वो शनिवार की रात मेरे साथ चौपाटी पर घूमने अा जाएगा।निर्धारित समय पर हम अपने कॉलेज के दिनों में मिलने का अड्डा रहे एक ज्यूस ...Read More

20

प्रकृति मैम - छू सको तो छू लो

छू सको तो छू लोजिस लड़के को मैं स्टेशन से ले आया था उसे कुछ समय बाद उसके चाचा पत्र आ जाने पर मैंने कुछ पैसे देकर, बिहार का टिकिट दिलवा कर वापस उसके गांव भेज दिया। जाते समय उसने पांव छूकर मुझसे कहा कि वो कभी घर वापसी की उम्मीद छोड़ ही चुका था। उसने घर के कामकाज के साथ मेरी बहुत सेवा भी की।इसी बीच बैंक में बड़े पैमाने पर तबादले हुए और मेरा ट्रांसफ़र भी हमारे मुंबई महानगर अंचल कार्यालय में हो गया जो फोर्ट में शेयर बाज़ार के ठीक सामने था। मैं फ़िर मुंबई के ...Read More

21

प्रकृति मैम - मुकाम ढूंढें चलो चलें ( अंतिम भाग)

मुकाम ढूंढें चलो चलेंकफ परेड के पांच सितारा प्रेसिडेंट होटल में मैं बैठा था। वहां अगली सुबह जल्दी एक होना था। तैयारी के लिए रात को वहां रुकने के लिए ऊपरी मंज़िल पर हमने एक कमरा भी बुक करवा रखा था। चर्चगेट से आखिरी ट्रेन रात दो बजे जाती थी। स्टेज पर फूलों की सज्जा के बीच हमारे पोस्टर्स और बैनर्स सेट करने वाले दोनों लड़के अभी निकल कर गए थे। मैं सोने के लिए कमरे में आ गया। अभी कपड़े उतार कर लेटा ही था कि कमरे की बैल बजी। सामने वही लड़का खड़ा था जो अभी नमस्ते कह ...Read More