JANVI - राख से उठती लौ - 4

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राख से उठती लौ"जिसे सबने छोड़ा, उसने खुद को थामा। जिसे सबने रोका, उसने उड़ना सीखा।"पंकज के जाने के बाद जानवी मोतियों की माला की तरह जैसे टूट कर बिखर सी गई थी। पर बिखराव के बीच ही उसे एक अनकही चुनौती ने झकझोर दिया।उसे अब यह तय करना था कि वो पंकज की याद में रोएगी, या उसकी बेरुखी को अपनी आग बनाएगी।प्यार की राख से तपस्या की लौजानवी ने पहली बार खुद से कहा-"अब कोई मेरा ध्यान भटकाने नहीं आएगा, क्योंकि अब मेरा ध्यान ही मेरी ताकत है।"उसने अपनी भावनाओं को कागज़ पर उतार दिया- हर चोट, हर