नारद भक्ति सूत्र - 7.भक्ति का स्वादिष्ट फल

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7.भक्ति का स्वादिष्ट फलराजगृहभोजनादिषु तथैव दृष्टत्वात्॥ ३१ ॥ न तेन राजपरितोषः क्षुधाशांतिर्वा ||३२||अर्थ : राजगृहों में भोजन के समय ऐसा ही देखा जाता है ।।३१।। (भूख दूर करने की इच्छा कोई नहीं करता, भोजन करने की इच्छा करता है) उससे (केवल ज्ञान से) न तो राजा को प्रसन्नता होगी, न (आत्मा की) भूख शान्त होगी।। ३२।।प्रस्तुत दो सूत्रों में नारद जी ने भक्ति को समझाने के लिए स्वादिष्ट भोजन का उदाहरण लिया है। अपने उदाहरण में उन्होंने राजमहल की बात की है किंतु आज की तारीख में हम ऐसे घरों के उदाहरण देख सकते हैं जो संपन्न हैं, धन-धान्य से भरपूर