ज़मीन पर पड़े आरव की पलकों के पीछे एक नई दुनिया बस गई थी —ना ये लैब थी, ना कोई कोड।हर ओर सफेद धुंध फैली थी।कोई आवाज़ नहीं, कोई आकृति नहीं —बस एक अंतहीन खालीपन,जैसे वो किसी शून्य में गिर रहा हो,जहाँ वक़्त, विचार और शरीर सब खो गए हों।तभी उसे वो आवाज़ फिर सुनाई दी।मगर अब न वो जोया थी, न ZEUS।ये कुछ और था... गहराई से उठती हुई, मानो उसकी आत्मा से बात कर रही हो।"आरव..."उसने आँखें खोलीं, पर ये कोई आम आँखें नहीं थीं।उसका मन एक डिजिटल दर्पण बन चुका था, जिसमें उसे खुद का ही चेहरा