ज़िन्दगी की धूप-छाँव - 7

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ज़िन्दगी की धूप-छाँव हरीशं कुमार ’अमित' स्थितियाँ स्टेशन पर दस मिनट रूककर गाड़ी आगे चल चुकी थी, मगर मेरे दिमाग़ में अब भी पन्द्रह-बीस मिनट पहले का घटनाचक्रम घूम रहा था. कुछ देर पहले एक परिवार के मुखिया की ट्रेन से उतरने की घबराहट की बात सोचते ही अपनी मुस्कराहट को रोकना मेरे लिए मुश्किल हो जाता था. उस पुरूष की बातें थी ही ऐसी हास्यापद. इस बात के बावजूद कि ट्रेन ने उसे स्टेशन पर दस मिनट तक रूकना था, वे महानुभाव इसी चिंता में डूबे थे कि प्लेटफार्म किस तरफ आएगा और अगर उस तरफ का दरवाज़ा बंद