Ek mitra ka apne mitra ko patra in Hindi Letter by Vikas Verma books and stories PDF | एक मित्र का अपने मित्र को पत्र

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एक मित्र का अपने मित्र को पत्र

Vikas Verma

9453657798

vikver2809@gmail.com

अनन्य मित्र अभय,

आज तुम्हें पत्र लिखने बैठा हूँ| जाहिर है, भावुक हो रहा हूँ| काश प्लेसमेंट सेशन के दौरान मेरा और तुम्हारा सिलेक्शन एक ही कंपनी में हो जाता, तो आज कॉलेज के चार वर्षों के साथ के बाद तुमसे दूर न होना पड़ता| लेकिन जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं होता| और मुझे तो लगता है मित्र कि ईश्वर हमारे आत्मीय जनों को हमसे दूर इसीलिए करता है कि हम एक-दूसरे के प्रति हमारी भावनाएं और प्रगाढ़ हों| तुम्हारा पत्र पिछले सप्ताह ही मिला था; बड़ी भावुकता में लिखा गया लगता है| मैं एक सप्ताह से प्रत्युत्तर इसीलिए नहीं दे सका कि जब लिखने बैठता था, भावनाओं का ज्वार मुझे बहा ले जाता था और समझ ही नहीं आता था क्या लिखूं! कॉलेज के अंतिम दिनों में तुमने मुझे अपनी डायरी भी दी थी कि मैं तुम्हारे साथ अपने संस्मरणों को तुम्हारी डायरी में लिख दूँ| लेकिन तब भी मैं इसीलिए नहीं लिख सका था कि समझ ही नहीं आता था क्या-क्या लिखूं और आखिर कितना लिखूं! अब किसी प्रकार स्वयं को संयत कर लिखने बैठा हूँ| यह तुम्हारे पत्र का उत्तर तो है ही और इसे, तुम्हारी डायरी जो नहीं लिख सका था, उसके पन्ने भी मान लो, क्योंकि शायद बार-बार इन भावुक कर देने वाली यादों को लिखना नहीं हो सकेगा|

मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूँ कि कॉलेज के पहले दिन ही मैं तुमसे मिला| हॉस्टल में जो रूम मुझे मिला था वह तुम्हारे रूम के बिलकुल बगल था; और इससे भी बढ़कर यह कि दोनों की बालकनी साझा थी| मेरे भैया मुझे हॉस्टल में छोड़ कर वापस जा चुके थे; मैं पहली बार घर से बाहर अकेला रहने जा रहा था, बड़ा परेशान और अनमना सा था| उस पर रैगिंग के ऐसे-ऐसे किस्से सुन रखे थे कि डरा हुआ भी था| तुम खुद ही मेरे रूम में आये और कुछ हल्की-फुल्की बातें की| तुम मेरी तरह से परेशान और डरे हुए नहीं थे| तुमसे बातें कर पता नहीं क्यों मैंने रिलैक्स फील किया| और पिछले चार सालों में मैंने अनुभव किया है कि तुमसे मिलने वाले हर व्यक्ति को तुमसे मिलकर प्रसन्नता होती है| वजह शायद यही है कि तुम्हारी बातों में एक ईमानदारी है, जो ह्रदय को छू जाती है|

तुमने मुझसे कहा है कि मैं स्पष्ट शब्दों में लिखूं कि चार वर्षों तक तुम्हारे साथ रहने के बाद मैं तुम्हे कैसे व्यक्ति के रूप में देखता हूँ| तुम मेरे घनिष्ठ मित्र हो इसलिए न चाहते हुए भी कहीं मेरे मन में कोई पक्षपात हो सकता है, लेकिन यथासंभव भावनाओं के ज्वार को परे धकेल कर कहता हूँ- ‘तुम एक सहृदय व्यक्ति हो|’ तुम्हारे जैसी सहृदयता संसार में कम लोगों में पाई जाती है| मुझे प्रसन्नता है कि ऐसे दुर्लभ मनुष्यों में से कम-से-कम एक मेरा भी मित्र है| यह न समझना कि यह मात्र शब्द-कौशल है; मैं तुम्हारे जैसे मित्र के समक्ष असत्य नहीं कह सकता, मैंने चार वर्षों में जो अनुभव किया है वही लिख रहा हूँ| ऐसा केवल मैं नहीं अनुभव करता, कितने ही लोगों का यही कहना है| मेरे लिए तो तुम घनिष्ठतम मित्र हो ही लेकिन और भी बहुतों से मैंने सुना है- Abhay is my best friend! तुम्हारे व्यवहार में लोगों को एक नैसर्गिक मित्र भावना दिखाई देती है|

कॉलेज के पहले वर्ष में ही मैंने और तुमने एक-दूसरे से पढना-पढ़ाना शुरू कर दिया था| कैसा संयोग था कि न्यूमेरिकल सब्जेक्ट्स के तुम मास्टर थे, तो थ्योरी सब्जेक्ट्स मेरा ‘एरिया ऑफ़ इंटरेस्ट’ थे| तुमने मुझे SOM, स्ट्रक्चरल एनालिसिस जैसे विषय पढाये तो मैंने तुम्हे एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग और हाइड्रोलिक्स| कुछ ऐसे भी नामुराद सब्जेक्ट्स थे जो हम दोनों महारथी मिलकर भी समझ पाने में असफल रहे| फर्स्ट इयर के बाद अगले तीन वर्षों में हमने अपने इंजीनियरिंग कोर्स से परे जाकर एक-दूसरे की सहायता से अर्थव्यवस्था, राजनीति, इतिहास, संस्कृति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध आदि जैसे विषयों की आधारभूत समझ पैदा की| रोज शाम को बैठ कर कुछ-न-कुछ विचार-विमर्श करना हमारी दिनचर्या का अंग हो गया था| धीरे-धीरे हम हर विषय पर दार्शनिक दृष्टि से विचार करने लगे और शाम की वैचारिक बहसें देर रात तक चलने लगीं| मैंने तुम्हारे साथ ही किसी भी विषय को समग्रता में देखना, उस पर विभिन्न कोणों से विचार करना या कह सकते हो कि गहन चिंतन करना सीखा| मुद्रा स्फीति की गणना के तरीके से लेकर ईश्वर की विभिन्न अवधारणाओं तक हर विषय पर हमने साथ-साथ चिंतन और बहस की है| जीवन, मित्रता, प्रेम, मानवीय दुर्बलताएं और सामर्थ्य, महत्त्वाकांक्षा, संतोष, आत्मा, ईश्वर जैसे विषयों पर कितनी ही बार देर रात हम बैठे रहे| तुम्हारे साथ की गयी विचारोत्तेजक बहसों ने मुझे और जानने को और पढने को प्रेरित किया| पढने की भूख मुझे वहीँ से जगी और मैंने कॉलेज की लाइब्रेरी का सदुपयोग करना सीखा| परस्पर बौद्धिक वार्तालाप में हमने विरोधी विचारों का सम्मान करना भी सीखा| तुम अक्सर रोमांटिक बुद्धिवादियों की तरह वाल्टेयर की उक्ति दोहराया करते थे- I disapprove of what you say but I will defend to the death your right to say it.

तीसरे वर्ष के अंत तक आकर हमें लगने लगा कि हम परस्पर विचार-विमर्श से, पुस्तकें पढ़ने से जो कुछ सीख रहे हैं उसे हमें कहीं न कहीं प्रयोग में लाकर अपने विचारों की धार को परखना चाहिए| फिर क्या था, तुम कॉलेज की भाषण और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में जमकर हिस्सा लेने लगे| मैं शर्मीला था, स्टेज से दूर भागता था; इसलिए मैंने अपने लिए कॉलेज के पाक्षिक पत्र को चुना जिसमें नियमित रूप से मेरे लेख प्रकाशित होने लगे| तुमने मुझे बहुत कहा था कि मुझे मंच से बोलने का अभ्यास करना चाहिए लेकिन मैं पीछे हटता रहा| लेकिन अब लगता है कि मुझे अपनी वक्तृत्व कला को विकसित करने का इस जीवन में फिर ऐसा अवसर नहीं मिलेगा| खैर छोडो मित्र, जीवन में शायद सब कुछ नहीं मिलता; मुझे तुम्हारी मित्रता मिली इससे बेहतर और क्या मिल सकता था!

कभी-कभी हम कॉलेज के पीछे गोमती के तट पर भी देर तक बैठा करते थे| और फिर वह भी शुभ दिन आया, जब अंतिम वर्ष के शुरू में हमने अपने मित्रों के साथ सीनियर्स के सहयोग से वहीँ गोमती के तट पर आस-पास की गरीब बस्ती के बच्चों के लिए सांध्यकालीन कक्षाएं शुरू की| इस कार्य में मुझे जिस संतोष का अनुभव हुआ, वैसा मुझे इससे पहले कभी नहीं अनुभव हुआ था| एक शाम को जब हम ऐसी ही किसी कक्षा से पढ़ाकर लौट रहे थे, तब तुमने मुझसे कहा था- “हमने आज तक जो भी वैचारिक बहसें की हैं, दर्शन बघारा है; शायद सब व्यर्थ था| अब मुझे लगता है जीवन का आनंद सेवा में ही है|” तुम्हारे स्वर की गहराई से लगा था कि तुमने जीवन के किसी बड़े सत्य की खोज कर ली है| दूसरों की निःस्वार्थ सेवा का भाव तुम्हारे अन्दर पहले से ही था, लेकिन कॉलेज के अंतिम वर्ष में आकर यह भाव बहुत अधिक जाग्रत हुआ है और इसके साथ ही मैंने तुम्हें मानसिक रूप से बहुत दृढ़ होते हुए देखा है| मुझे स्वामी विवेकानंद के शब्द याद आते हैं, जो मेरे कमरे की दीवार पर तुम्हारे द्वारा लगाये गए एक पोस्टर में लिखे थे- “Even the least work done for others awakens the power within, even thinking the least good of others gradually instills into the heart the strength of a lion.”

तुम अपने करियर के सम्बन्ध में आजकल कुछ भ्रमित से हो| मैं तो यही कहूँगा, जैसी कि इच्छा तुम स्वयं कभी-कभी प्रकट कर चुके हो, तुम्हें प्रशासनिक सेवाओं में जाने का लक्ष्य रखना चाहिए जहाँ आज देश को तुम्हारे जैसे सेवा-भावी युवाओं की जरूरत है| शेष तो तुम्हारी समझ मुझसे बेहतर है, इसलिए तुम स्वयं ही वह मार्ग तय कर सकते हो जिस पर तुम अपने ज्ञान और योग्यताओं का पूरी तरह उपयोग कर सको|

नहीं जानता कि जीवन की आपा-धापी में कौन कहाँ रहे, लेकिन तुम्हारी यादें मेरी यादों के खजाने का अनमोल हिस्सा रहेंगी| जब भी कहीं सहृदयता, करुणा और संवेदना देखूंगा, मुझे तुम याद आओगे| कितना कुछ आ रहा है भीगे-भीगे से मन में, लेकिन समझ नहीं आता कैसे लिखूं; भावों के समक्ष भाषा हार रही है| आशा करता हूँ तुम मेरी स्थिति समझते हुए क्षमा करोगे| मन में विवशता भरी व्याकुलता के साथ बात ख़त्म करता हूँ-

पत्ता टूटा डार से, ले गई पवन उड़ाय|

अब के बिछड़े कब मिलें. दूरि परेंगे जाय||

सदैव तुम्हारा शुभाकांक्षी,

विकास

पुनश्च- हम लोगों ने गोमती के तट पर बच्चों को पढ़ाने की जो पहल शुरू की थी, कुछ अख़बारों ने उस स्टोरी को कवर किया है| जूनियर छात्रों से अख़बारों की कतरनें मुझे प्राप्त हुई हैं, पत्र के साथ भेज रहा हूँ|

सदैव तुम्हारा शुभेच्छु,

विकास