Amyra Tripathi in Hindi Women Focused by Shiv Divyansh Pathak books and stories PDF | अमाइरा त्रिपाठी

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अमाइरा त्रिपाठी

मैं अमाइरा त्रिपाठी। नाम थोड़ा अनयुज्युअल है ना। मेरी कहानी भी अनयुज्युअल है। मेरी ज़िंदगी भी थोड़ी अजीब है। मैं इस समय वाइब्स - जो कि एक ott प्लेटफॉरर्म है- कि क्रिएटिव हेड हूँ। एंड मेरी सैलरी पैकेज 1 करोड़ पर एनम है। नहीं मैं किसी धनी-मनी बैकग्राउंड से नही हूँ। मेरे में कुछ विशेष है भी या नहीं मुझको नहीं पता। पर जो मेरे लिए समस्या और सुविधा दोनों है, वो है मेरा लड़की होना। समस्या इस लिए कि समाज- रिश्तेदार सारे लोग मेरे बाप को, थोड़े मीठे लहजे में ताना देते हैं। कि वो अपनी बेटी की कमाई खा रहे हैं। यहाँ तक मेरे बाप भी मुझको ताना देते है, "बिटिया शादी कर लो,कितने जन्म का कर्जा चढ़ा रही हो मेरे ऊपर"। पर मुझको शादी नहीं करना है। क्यो? क्योकि मेरे बाद मेरे माँ बाप का क्या होगा।


एक भाई है, वो लेकिन भाभी के साथ शिफ्ट हो गया, आता है घर बस होली दीवाली में। वो भी दो तीन साल में। कभी किसी फंक्शन में भी। पैसा उसको खुद नहीं पूरा पड़ता है, तो पापा मम्मी को क्या देगा? इस लिए मैं शादी नहीं करना चाहती । यहाँ लड़की होना एक समस्या है।


तो सुविधा क्या है? मैं इस समय जिस पोजिशन पर हूँ। उसमें मेरा पढ़ाई, मेहनत तो है ही, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो मेरा लड़की होना भी एक फैक्टर है। ये मेरे कलीग्स को भी पता है । इस लिए वो मुझसे जलते भी है। अरुण जो कि कई प्रोग्राम का प्रोजेक्ट मैनेजर है। उसकी सैलरी मुझसे आधी है। औदा भी। क्यों? क्योंकि मैं अपने पुराने बॉस की रखैल थी। हर रात घर के बजाए,वो मेरे फ्लैट पर रहता था। नहीं मेरा कोई अफेयर नहीं था। ना उससे चक्कर था। हाँ, वो मेरे चक्कर मे जरूर फस गया था। उसकी बीवी भी थी, शुद्ध शाकाहारी, तीज का व्रत करने वाली। लेकिन मेरे बॉस थे नान- वेजिटेरियन। सच बताऊँ तो वो मेरा एक प्रोफेशनल स्टंट था। उसके साथ मेरी नज़दीकी ने मेरे रपुटेशन, मेरे पद और सैलरी में चार चांद लगा दिए। मैं अपना हंड्रेड परसेंट देती थी। हमेशा। दिन में ऑफिस के में, रात में अपने फ्लैट पर। लेकिन फ्लैट में मेरा बॉस मेरा हंड्रेड परसेंट ले नही पाता था। कितने बार मुझको हांफते वो छोड़ दिया है, बेड पर। पांच छह बार और फिर... धड़ाम। खैर किसी के गुप्त रोग का ऐसा सार्वजनिक चर्चा नही करना चाहिए। ये रहा मेरे लड़की होने का सुविधा।


तो क्या मैं बहुत एमबीसीयस हूँ? नही मैं बहुत मजबूर लड़की हूँ । मैं जबसे टवेल्थ पास हुई तबसे, मुझे अपने घर मे घुटन होने लगी थी। मेरे बाबा बहुत बड़े आदमी थे,पद में भी और कद में भी। गाँव पर उनकी बड़ी इज्जत थी, यहाँ तक कि गाँव की इज्जत उनके वजह से थी। आज भी पूरे गाँव मे मेरे घर की जमीन सबसे बड़ी है। वो मेरे बाबा बनवाएं थे। किन्तु उन्होंने ज्यादातर, इज्जत कमाया पैसा नहीं। लेकिन इज्जत कब तक चल सकता है? तब भी एमपी मेरे गाँव पर आते थे। लेकिन बस लिहाज वस। उनका कोई हित-अहित नहीं था पापा से। पापा भी मेरे बैंक में थे। पर वो बैंक मर्ज हो गया,और अब बैंक वालो को पापा का कोई काम नही। जो थोड़ा बहुत सेविंग था, वो मम्मी के इलाज में खत्म हो गया। और अपने अतीत के प्रतिष्ठा के भ्रम को बनाए रखने में चला गया। आखिर हाल यह हुआ कि हमारे पास ना एक भी कार बची ना मोटरसाइकिल। हम लोग गांव भी अब सभी के तरह ऑटो में धक्के खाते जाते। बस की लाइनों में खड़े रहते। पहले पहल पापा का पेट दिन भर में दो चार लोगो के "बाबू परनाम " से भर जाता। फिर जब गांव वालों को पता चल गया। कि अब हममें और उनमें कोई फर्क नही । तो प्रणाम आशीर्वाद भी छोड़ दिये। पिता जी बाहर बैठ कर आते जाते हुए लोगो को आस से निहारते कि अभी प्रणाम करेगा। लेकिन अब कोई नही करता। कुछ दिन में उनके दिल की उम्मीद बुझ गयी।


यह सब वही समय था। जब मैं ट्वेल्थ में थी। उसी बीच एक और घटना हुई। हम ब्राह्मण थे, जिसका गर्व आज भी हमारे परिवार और पटीदार वालो को है। एक दिन होली में एक दलित लड़का, जो की प्रधान के घर का था। मेरे ऊपर रंग डाल दिया। मेरे पिता जी तन्मना गए। सोचे उसको मिटा देंगे। मिले सबसे, जिला के एस पी और सबसे। लेकिन क्या होता। कुछ नहीं। वो रोज घर के सामने से जाता था। मेरे बाप से इज्जत पर थूक के।


इस लिए मैं... जब कॉलेज पहुची बस वहाँ से एक दिन चली गयी मुम्बई। गाँव पर हल्ला हुआ, "और तो सब मिटी गया, एक ठु थोड़ा सा इज्जत था। वो भी डुबो दी। एक दो महीने में मैं जॉब करने लगी। पिता जी से बताई, कि मुझको जॉब मिल गयी। पहले वो गुस्सा हुए, फोन रख दिये। पर बाद में। मान गए। अब मैं महीने महीने उनको पैसा भेजने लगी । हर तीसरे महीने यह दो गुणा हो जाता। और अब आज तो हिसाब ही नहीं। घर पर एक स्कार्पियो, एक टी यू वी। खड़ा है। पूरे घर मे इटालियन टाइल्स है। वेस्टर्न बाथरूम है। सब है अब मेरे घर मे। और मजे की बात यह है। की अब इज्जत भी है। क्यो? क्योकि मेरी लोकप्रिय मम्मी गांव की प्रधान है। और गांव का सेवा कर रही है। और इसी बहाने परिवार फिर से गांव की सेवा पा गया है।


- दिव्यांश पाठक



*उपरोक्त कहानी एक लड़की की है,जिसने अपने आत्महत्या करने से पहले मुझे अपने बारे में बताया था।