Daughter (True Treasure of Happiness) in Hindi Women Focused by दिनेश कुमार कीर books and stories PDF | बेटी (सचमुच खुशियों का खजाना)

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बेटी (सचमुच खुशियों का खजाना)

बेटी (सचमुच खुशियों का खजाना)
घर में बहुत ही खुशियों भरा दिन था। शोर उठने बाद चारों ओर बधाई गीत सुनाई दे रहे थे। घर के आँगन में पडोस की औरतें बच्ची के जन्म पर गारी और गीत ढोलक की छाप पर नृत्य करते हुए गा रही थीं। सभी घर के लोग बहुत व्यस्त और प्रसन्न थे। नाई, लोहार, बढ़ई, ढीमर तथा वंशफार मनमाना इनाम ओर कपड़े पाकर बहुत खुश होकर बच्ची और उसके माता - पिता, दादा - दादी और अन्य परिजनों को ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ और आशीर्वाद दे रहे थे। गाने के लिए पडोस में रोज बुलावा लगवाया जाता है ताकि सभी लोग आयें और नृत्य - गान करें। सभी को शाम को जाते समय मिठाई और पताशे दिए जाते थे।
एक दिवस किन्नरों को जब पता चला कि केवट परिवार में बहुत मिन्नतों और याचना के बाद कन्या जन्म हुआ है तो वे बच्ची को आशीर्वाद देते आ पहुँचे तथा बधाई गीत गाकर ढ़ुलक बजाकर नाचने लगे। जाते समय दादा - दादी ने उन्हें मुँहमाँगी दक्षिणा और वस्त्र प्रदान किए। उन्होंने बच्ची को उसके माता - पिता सहित बुलवाकर अगणित आशीर्वाद देते हुए कहा कि - "इस बच्ची के आगमन पर आपका घर धन्य हुआ या बच्ची यहाँ जन्म पाकर धन्य हुई, ये तो हम लोग नहीं जानते, लेकिन ये जरुर जानते हैं कि ऐसे घर में कभी भी कोई भी किसी तरह की परेशानी कभी नहीं आ सकती।"
ऐसा कहकर वे पुत्र - प्राप्ति का आशीर्वाद देकर और चावल - हल्दी लेकर चले गये। 'ऐसा घर खुशियों से भरा रहे, इस घर में सभी की उन्नति हो और सबकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हों' ऐसा कहते हुए वे आपस में हर्षित हो जा रहे थे। घर के दादा - दादी और सभी सदस्य कह रहे थे कि - जीवन में सब कोई सभी कुछ खरीद सकता हैं, लेकिन आशीर्वाद कोई नहीं खरीद सकता है।"
पडोस की औरतें पुनः अपना गाना - बजाना शुरू करके नृत्य करने लगीं।
धीरे - धीरे बच्ची बड़ी हुई और सभी उसे गुड़िया के नाम से बुलाते लगे, क्योंकि पण्डितजी ने उसका यही नामकरण किया था। जन्म प्रमाण - पत्र, आँगनबाड़ी में भी उसका यही नाम दर्ज करवाया गया। गुड़िया अपनी मधुर मुस्कान और अनुरागमय किलोलों से सभी का मन नित्य हर्षित कर रही थी। अब वह सात - आठ महीने में ही हाथ और पैरों के द्वारा सभी जगह जाने लगी और इधर - उधर रखी चीजों को उठाने और फटकने लगी। सभी उसके इन कृत्यों पर बहुत खुश होते। घर के सदस्यों में उसे खिलाने और घुमाने ले जाने के लिए होड़ लगी रहती।
एक साल होने पर वह आँगन में ठुमक - ठुमक कर चलने लगी। अब सभी ने चीजों को उसकी पहुँच से दूर रखना शुरू कर दिया। फिर भी अगर कहीं अनाज या दालें धूप में सूखने के लिए पड़ी देखती तो उसे फैलाने लगती। अब दादी ने अनाज और दालों को छत पर सुखाना प्रारम्भ कर दिया। घर में उसके चारों ओर खिलोने ही खिलौने दिखाई देते थे। उसकी हर माँग खाने - पीने और ओढ़ने - पहनने की तत्क्षण पूरी की जाती। उसके बीमार होने या सर्दी - जुकाम होने पर सभी लोग चिन्तित हो जाते।
समय धीरे - धीरे गुजरता गया। पता नहीं, तीन साल कैसे गुजर गये? गुड़िया की माँ, पति के साथ जाने की बार - बार हठ करती, लेकिन अब अधिक टालना संभव नहीं था, इसलिए गुड़िया, माँ और पापा साथ चली गयी।
गुड़िया के जाने के बाद घर में सभी फुरसत से हो गये थे, जैसे किसी को कोई काम न रह गया है। सभी उदास और बैचेन रहने लगे। बीते दिनों की यादें और गुड़िया की बचपन की लीलाएँ किसी को भूले नहीं भूल रही थीं। सभी घर के लोग और पडोसी तथा स्कूल के बच्चे नित्य उसकी चर्चा करते और उसकी कमी महसूस करते थे।

संस्कार सन्देश :- बेटी सचमुच खुशियों का खजाना लेकर आती हैं। उसकी अनुपस्थिति घर को खालीपन से भर देती है।