Muje Nyay Chahiye - 3 in Hindi Women Focused by Pallavi Saxena books and stories PDF | मुझे न्याय चाहिए - भाग 3

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मुझे न्याय चाहिए - भाग 3

तभी एक महिला ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए उससे पूछा, क्या हुआ तुम रो क्यों रही हो ? रेणु ने अश्रु भरी आँखों से उसकी ओर देखा वह हाथ में बहुत से फल लिए खड़ी थी. रेणु ने बिना कुछ मुंह से कहे सुबकते हुए अपने हाथों से फल की तरफ इशारा किया. तो उस औरत ने उसका इशारा समझते हुए उससे पूछा ओह...! तुम्हें भूख लगी है शायद, लो यह फल लेलो. उसने दो तीन केले रेणु की तरफ बढ़ा दिये. रेणु उसे जन्मो से भूखे इंसान की तरह खाने लगी दो -तीन केले खाने के बाद जब उसका मन शांत हुआ तो उसने फिर एक बार उस औरत की तरफ देखा, उस औरत ने उसे और फल देते हुए कहा और लेलों यह लो ...रेणु ने मन ही मन सोचा कल का भी पता नहीं कि उसे काम मिलेगा भी या नहीं, कौन जाने यह सोचते हुए उसने कल के भोजन हेतु थोड़े और फल ले लिए।

ईश्वर और उस औरत का धन्यवाद किया और उठने लगी तो उस औरत ने पूछा क्या नाम है तुम्हारा ? जी रेणु. क्या करती हो ? कुछ नहीं, काम की तलाश में हूँ. पढ़ी लिखी हो ? हाँ थोड़ा बहुत...अच्छा और क्या क्या काम कर लेती हो ? जी सब खाना बनाने से लेकर, साफ सफाई, बर्तन कपड़े सभी कुछ, रेणु को अब उस औरत में एक उम्मीद की किरण दिखायी देने लगी थी. उस औरत ने रेणु को अपना परिचय देती हुए कहा मेरा नाम काशी है. मैं यही पास के महिला घर में रहती हूँ. तुम चाहो तो तुमको काम दिलवा सकती हूँ .जी बहुत मेहरबानी होगी. काशी उसे अपने साथ ले गयी और वार्डन से बात कर के उसके रहने के लिए व्यवस्था कर वादी. रेणु ने उसका बहुत धन्यवाद किया. अगली सुबह वहाँ रहने वाली सभी लड़कियों को काम सीखने के लिए एक उद्योग संस्थान में ले जाया गया, जहां बहुत सी महिलाएं सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, अचार, पापड़, आदि बनाना सीखा करती थी और सभी को जो आता है उनकी रुचि के अनुसार वह काम करने के लिए दिया जाता था. रेणु ने अचार  बनाने को चुना. लेकिन अभी रेणु को आचार बनाना सीखना था इसलिए अभी उसकी आमदनी नहीं होनी थी .रेणु को यह बात जानकार निराशा हुई क्यूंकि उसे जल्द से जल्द अपनी माँ बाबा को पैसे भेजने थे कि उनकी चिंता भी दूर हो सके. उसने कहा भी कि उसे आचार बनाना आता है .

लेकिन कंपनी के नियमों के मुताबिक जो एक निश्चित विधि थी जिसके आधार पर ही सभी को आचार बनाना था ताकि, सभी का स्वाद एक जैसा रहे. अर्थात यदि आम का आचार बनाना है तो सारे आमों के आचार का स्वाद एक सा ही रहना चाहिए .रेणु ने काशी से बात करनी चाहिए पर काम के दौरान बात करना माना था तो चाहकर भी रेणु काशी बात ना कर सकी. फिलहाल रेणु का काम ,अन्य कर्मचारियों की सहायता करना था. शाम को जब वापस लौटने का समय हुआ, तब रेणु ने काशी को अपने मन की बात कही तो काशी ने कहा 'दो रास्ते हैं तुम्हारे पास, या तो एडवांस ले लो, या फिर कहीं और काम कर के पैसा वहाँ भेज दो, रेणु ने अगला सवाल किया एडवांस किस आधार पर देंगे यह लोग मुझे, यह तो मुझे जानते नहीं पहचानते नहीं ? हाँ यह बात तो हैं. तो उसने कहा तुम मैनेजर से बात करो. रेणु ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए कहा कल बात करूंगी. कहते हुए सभी अपने -अपने स्थान पर जाकर सो गए.

अगली सुबह रेणु सबसे पहले मैनेजर के पास पहुंची मैनेजर ने रेणु की पूरी बात सुनकर कहा तुम को कुछ ज्यादा ही जल्दी नहीं है पैसा कमाने की...? अभी तुम्हें समय ही कितना हुआ है कि मैं तुम्हें एडवांस देदूँ. ‘रेणु ने कहा हाँ है मुझे जल्दी पैसा कमाने की, मैंने जो ज़िंदगी देखी है ना साहब उसमें पैसे का जितना महत्व है शायद आपके जीवन में उतना ना हो, पर मुझे पैसे की बहुत जरूरत है.’ मैनेजर ने कहा ‘देखो तुम काशी के साथ आयी थी इसलिए तुम पर भरोसा करते हुए मैं तुम को एडवांस देने के लिए तैयार हूँ. किन्तु एक निश्चित समय अवधि के बाद तुम्हें सारा पैसा लौटाना होगा, वरना...!  तुम्हारे ऊपर कानूनी कार्यवाही की जाएगी. तब मत रोना समझी ? लो इस कागज पर साइन कर दो. इसमें क्या लिखा है ? वही जो मैंने अभी तुम से कहा. अब जब मैनेजर ने उस पर विश्वास किया है तो उसे भी मैनेजर पर भी विश्वास करना ही होगा. ऐसा सोचते हुए उसने हस्ताक्षर कर दिये. मैनेजर ने रेणु को पाँच हजार रुपये पकड़ा दिये रेणु ने इतने सारे पैसे एक साथ अपने जीवन में पहली बार देखे थे इसलिए इतने सारे पैसे अपने हाथों में एक साथ देखकर रेणु खुशी से पागल हो गयी.

वैसे तो मुंबई जैसे शहर में इतने से पैसों की कोई कीमत नहीं होती पर फिर भी रेणु को थोड़ा सबल मिला और हिम्मत भी की हाँ अब उसकी ज़िंदगी को एक राह मिल गयी है. अब वह अपने माँ बाबा का बेटा बनकर उनकी देखभाल कर सकती है. उसने ईश्वर का धन्यवाद किया और सब से पहले जाकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाया फिर काशी के साथ जाकर अपने लिए एक दो जोड़ी कपड़े खरीदे और फिर उसी के साथ बाहर 'वडा पाओ' खाया क्यूंकि जिसने मुंबई आकार वडा पाओ नहीं खाया मतलब उसने कुछ नहीं खाया. फिर करीब 2-3 हजार रूपय अपनी माँ को डाक द्वारा भेज दिये. साथ ही एक चिट्ठी भी जिसमें उसके सकुशल होने के संदेश के साथ महिला ग्रह उद्योग के विषय में सम्पूर्ण जानकारी थी.

उधर उसकी माँ पैसे पाकर खिल उठी, साथ ही आयी चिट्ठी उसने दीनदयाल जी को बतायी दीनदयाल जी की आँखों में पुनः नमी घिर आयी. उन पैसों से सब से पहले लक्ष्मी ने घर में पूरा राशन भरा और फिर कुछ पैसों से भगवान के मंदिर में प्रसाद चढ़ाया और बाकी बचे पैसों को बचाकर एक डिब्बे में डाल के रख दिये. गाँव में सब को बताया कि उनकी बिटिया को काम मिल गया है. इधर रेणु पैसे चुकाने के विषय में दिन रात सोचने लगी उद्योग से अभी उसे वेतन मिलने में समय था तो उसने फिर काशी से बात की काशी ने कहा एक काम मेरी नज़र में है यदि तुम करना चाहो तो...रेणु ने हाँ में सिर हिला दिया. घर का पूरा काम करना होगा. झाड़ू पौंछा, कपड़े, बर्तन, खाना बना इत्यादि.  हाँ मैं कर लूँगी, पर पैसा कितना मिलेगा ? उस बारे में तो तुम्हें खुद ही बात करनी होगी. अच्छा...! ठीक है चलो, रेणु काशी के साथ उस घर में पहुंची और दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजा खुला तो एक बहुत ही सुंदर, गोरवर्ण, लंबा चौड़ा, नवयुवक खड़ा था. जिसके रूप को देखकर काशी और रेणु दोनों का ही मन मोहित होने लगा था. तभी उसने दोनों के सामने चुटकी बजाते हुए पूछा हैलो ...! कहिए किस से मिलना है आपको ? तो रेणु ने अटकते हुए कहा जी वो, हम काम के सिलसिले में यहाँ आए थे. आपको घर के काम के लिए कोई चाहिए ना ?

ओह हाँ ...! मैं तो भूल ही गया था, आइये अंदर आइये न...रेणु और काशी ने एक दूसरे की शक्ल देखी और अंदर आ गयी. काशी ने पूछा आपके घर में कोई महिला हो तो उसे बुला दीजिये. हम बात कर लेते हैं. जी बात दरअसल यह हैं कि मैं यहाँ अकेला ही रहता हूँ और जैसा कि आप लोग देख ही रहे हैं ज्यादा बड़ा घर नहीं है मेरा, बस यह छोटा सा ही घर हैं. रेणु ने पूरे घर को नज़र उठाकर देखते हुए कहा जी हाँ, वो तो दिख ही रहा है. आप इतने से घर की देखभाल भी खुद नहीं कर सकते ? रेणु ने तपाक से पूछा. काशी ने उसे ज़ोर से कोहनी मारी और धीरे से कहा, ‘कह तो ऐसे रही हो जैसे तुम कहीं की महारानी हो और राजमहल में रहती हो.’ फिर काशी ने उस नवयुवक की ओर देखते हुए कहा इसकी बात का बुरा मत मानिएगा यह अभी मुंबई में नयी -नयी आयी है. ओह अच्छा तभी ...! कहते कहते नवयुवक चुप हो गया। वैसे आपका नाम ? जी मेरा नाम राहुल है ...नाम तो सुना होगा. फिर उसने कहा राहुल मेरा स्क्रीन नेम हैं. वैसे मेरा नाम आदित्य है, लोग प्यार से मुझे 'आदि' बुलाते हैं मैंने एक एक्टर, मेरा मतलब है अभिनेता हूँ. टीवी सीरियल और फिल्मों में, विज्ञापनों में, छोटी मोटी भूमिका निभा लेता हूँ. तभी ...! जी ? तभी क्या ?

नहीं वो मेरे कहने का मतलब था की तभी आप इतने अच्छे दिखते हैं. हाँ और आपको कहीं देखा है ऐसा भी लगा मुझे काशी ने उस पर लगभग रीझते हुए कहा...! ओह...! अब थोड़ा तो ध्यान रखना ही पड़ता है. आदि ने अपने सर के पीछे हाथ फेरते हुए कहा, ‘हाँ तो मैं यह कह रहा था कि इस बीच मुझे टाइम नहीं मिलता घर के कामों के लिए तो क्या आप मेरे यहाँ काम करना पसंद करेंगी ?’ रेणु ने हाँ में सर हिला दिया. उसने कहा पगार कितनी लेंगी आप...? घर की हालत देखते हुए रेणु ने कहा तीन हजार , तीन हजार हाँ मुंबई के हिसाब से तो कम ही मांगे हैं और फिर आपका तो सारा ही काम करना है। वो तो आप अकेले हो इसलिये ज्यादा नहीं बोला मैंने...! वरना हर काम का हज़ार बोलती थी मैं, अच्छा पर मेरे लिए तो यह भी ज्यादा हैं. मेरा भी काम का कोई ठिकाना नहीं है ना, ‘आज है कल नहीं है’. तो फिर आपको कामवली नहीं रखना चाहिए साहब. रेणु एकदम से गंभीर भाव में बोली क्यूंकि पैसों की जरूरत तो सभी को होती हैं. पूरा महीना मेहनत करने बाद यदि इंसान को समय पर पैसा ना मिले, तो बहुत दिक्कत हो जाती है..

आगे क्या हुआ जानने के लिए जुड़े रहिए ....