Aehivaat - 1 in Hindi Women Focused by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | एहिवात - भाग 1

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एहिवात - भाग 1

एहिवात

जीवन बड़ा कठिन है एक एक सांस के लिए संघर्ष कभी जंगली जानवरों का भय कभी मौसम कि मार कभी कुदरत का कहर कभी भूख भय पल प्रहर हांफती कांपती जिंदगी माई तू तो कहती है कि अपने कबीले के देवता बड़े दयावान है जीवन एव वन की खुशहाली और हिफाज़त के लिए आशीर्वाद देते है यह कैसे भगवान है कैसा इनका आशीर्वाद है ?

भक्तों पर की भक्त जिंदगी के लिए ही लड़ता है वह भी जानवरो कि तरह कुदरत ने हर जानवर को जीने के लिए कोई न कोई हुनर दे रखा है जिससे वह अपनी हिफाज़त करता है हम इंसानों के लिए कहने के लिए उसने सब कुछ दिया है फिर भी हम जनवरों से बदतर है ।
बेटी सौभाग्य कि बातों को लगभग प्रतिदिन माई तीखा और बापू जुझारू सुनते और उसे समझाने की कोशिश करते बिटिया हम लोग की जिंदगी वन में शुरू होती है वन में ही समाप्त हो जाती है हम लोगो को वन देवता और वन देवी ने सिर्फ संघर्ष के लिए ही सक्षम बनाया है जिससे कि हम लोग अपनी धड़कन साँसों को जारी रख सके लेकिन बिटिया सौभाग्य कभी भी माई बापू की बातों से सहमत नही होती वह सदैव यही कहती बापू वन जीवन से भी कभी बाहर निकल कर देखो शायद कोई नई किरण जीवन को मिल जाय ।

बापू जुझारू यही कहते और समझाने की कोशिश करते बिटिया सौभाग्य को कहते बिटिया वनवासी हम लोग सीधे साधे आदमी है जो वन प्रदेश के बाहर के लोंगो कि तरह प्रपंच छल धोखा फरेब लालच कि होड़ में अंधे नही है हम लोग सिर्फ अपना पेट भरते है और और सो जाते है बीमार हुये तो मर जाते है नही बीमार हुये तो जंगली जनवरों के शिकार हो जाते है और कुछ भी नही हुआ तो कबीले आपस मे लड़ कर मर जाते है यही हमारी किस्मत है ।

माई तीखा बोली रोज रोज बकर बकर करती रहती है पता नही हमरे देवता एकरे नसीब में का लिखे हन सुन सौभाग्य आज त लागत है लकड़ी बीने जंगल मे ना जाबे ।
सौभाग्य बोली माई जाबे जरूर मगर हमार मन ई सब कार में नही लगत जाइत है खाली माई बापू के मन रखे खातिर ।
तीखा बोली कौनो लरिका त हमरे कोख से ना जनम लिहेस हमरी इहे आंखे के पुतरी है एकर लक्षण कुछ ठीक नही है पता नही ई का करे संवारु के बापू कहत रहे कि उनकर बेटवा पूरा पंद्रह वारिस के होई गवा है त सुन सौभाग्य के बापू अपनो सौभाग्य तेरह वारिस के होई गइल है दुनो के वियाह हो जाय त हमरो कुनबा तीन से सात हो जाय और उमर बढ़े दुनो परिवार बेटी बेटा नात नतकुर के साथे रहियन ।

जुझारू बोले बात त पते की कही रही हौ तीखा मगर सौभाग्य मानी एपर हमें विश्वास नाही है तीखा और जुझारू में बतकही चल ही रही थी कि सौभाग्य दौड़ती हुई आयी बोली माई हम जात हई वन में लकड़ी बीने सौभाग्य कि खुशी और खुदे वन में लकड़ी बीने जायके जिद देख कर तीखा बोली देखत है सौभाग्य के बापू रोज त एकर लकड़ी बीने वन में जाय खातिर निहोरा करे के पड़त है आज का बात है ई खुदे वन में लकड़ी बिने जाय बदे खुदे चुहुलगुल करत बा।
जुझारू बोला शायद तीखा वनदेवता जे सबकर भाग लिखे है एहु के भाग लिखे होईहे तीखा बोली जा सौभाग्य सांझ से पहले लौट आये सौभाग्य कांवन कान्हे पर लेकर चल दी गुनगुनाती -

(जिनगी करे परेशान जियत जाए इंसान कौनो करम जतन करे साथे रहे प्राण )
सौभाग्य जब भी अकेले या वन के अन्य कुनबे के हम उम्र के साथ लकड़ी बीनने वन में जाति यही गीत गुनगुनाती गाती उसका स्वर इतना मधुर एव मीठा था कि वन के जीव हिरन आदि पक्षीय उसके गायन को सुनकर जैसे खुश हो कोलाहल करते कहते सौभाग्य गाओ गाती ही रहो लेकिन आज वह अकेली गाती जा रही थी आलम वही था चहकती चिड़िया हिरन खरगोश मोर आदि सौभाग्य के साथ साथ चल रहे थे दिन सूरज शिखर पर था ।
दिन भर लकड़ी बीनने के बाद कांवड़ के दोनों तरफ लकड़ियों को लाद कंधे पर कवन लेकर चलना उसका प्रतिदिन का काम था मासूम तेरह वर्ष कि लड़की वन में निर्भय जीवन मौत से अनजान कांधे पर अपने वजन से अधिक वजन लेकर हांफती कांपती चलती ।
इतनी हँसमुख थी कि उसकी चंचलता एव बाल मन प्रहसन से वन प्रदेश के अन्य कुनबे के परिवार कभी कभी अपनी दुश्मनी भूल जाते लेकिन सौभाग्य अपने अंदर मन कि भयंकर पीड़ा को किसी से नही बताती पैरों में धंसे कांटे कंकण कांधे पर कांवड़ के बोझ के निशान यदि कोई भी इंसान सौभाग्य को देखे तो उसका कलेजा दहल जाए लेकिन वन के कठोर जीवन कि सच्चाई भी यही थी ।

सौभाग्य रोज कि तरह कभी कांवड़ दाहिने कांधे कभी बाए पर रखती कभी उतरती कभी सुस्ताती फिर चल पड़ती।

ऐसे ही चलती जा रही थी एकाएक उंसे झाड़ियों से अजीब सी चीख कराह सुनाई दी वह सहम कर रुकी और अंदाजा लगाने लगी कि आवाज कहाँ से आ रही है उसे एहसास हो चुका था कि किसी भयानक जंगली जानवर का शिकार कोई कमजोर जंगली जानवर बन रहा है उसने कवन रख कर जंगली जानवरों के भगाने के लिए आवाज निकालनी शुरू किया कुछ ही पल में झाड़ियों से ऐसी आवाज आई जैसे कोई भयंकर जंगली जानवर झाड़ियों को चीरता भाग रहा हो सौभाग्य ने भागते शेर को देखा वह जंगली पेड़ो और झाड़ियों में छुप गई जब उसे पूरी तरह इत्मीनान हो गया कि शेर दूर निकल गया है तो बाहर निकल कर कावण उठा कर ज्यो ही चलने को हुई उसे कराहने कि आवाज सुनाई दी।

वह चौंक पड़ी जब उसे एहसास हुआ कि वन के ताल के किनारे झाड़ी से आवाज आ रही थी शाम ढलने को थी अंधेरे का साम्राज्य कायम होने वाला था अमूनमन इस समय तक सौभाग्य रोज अपने कुनबे में लौट जाती थी।

आज बहुत देर हो चुकी थी लेकिन वह चिख कराह का अनुमान लगाती कांवड़ के साथ उस तरफ बढ़ चली जिधर से चीखने एव कराह की आवाज आ रही थी एकाएक वह सहम कर रुकी उसने देखा कि एक नौजवान बुरी तरह से घायल जिंदगी और मौत की अंतिम जंग लड़ रहा था और उसके बदन से लहू कही रिस रहे थे तो कही जम चुके थे सौभाग्य ने बिना बिलंब किये कराहते नौजवान के पास पहुंची जो मौत का ऊर्ध्व स्वांस ले रहा था बाल मन कि कोमलता सौभाग्य यह भूल गयी कि भयंकर वन और बढ़ता अंधकार माई बापू परेशान होंगे ।

बढ़ते अंधेरे के साथ भयानक जंगली जानवरों से उसके जीवन को भी खतरा हो सकता है बिना किसी परवाह वह तालाब से पेड़ के पत्तो का दोना बना कर पानी ले आती और कराहते नौजवान को पिलाने की कोशिश करती घण्टो की मशक्क़त के बाद भयानक पीड़ा दर्द से कराहते जीवन के अंतिम साँसों के इंसान को सौभाग्य ने पानी पिलाया ।

कुछ देर इंतजार करने के बाद उसने अपने कांवड़ के दोनों तरफ लकड़ियों को कांवड़ के एक तरफ किया और किसी तरह से दूसरी तरफ मरणासन्न नौजवान को लाद कर कांवड़ उठाने की कोशिश करती उठाती गिरती फिर उठाती गिरती चलती इस दृश्य के मात्र कल्पना से पत्थरों का कलेजा भी पिघल गया।
लेकिन भयंकर बढ़ते अंधकार में सिर्फ नीचे पृथ्वी और ऊपर आकाश ही इस सत्य के प्रत्यक्ष दर्शी थे पृथ्वी जिस पर गिरती और उठती तेरह वर्ष कि मासूम सौभाग्य मरती सिकुड़ती जिंदगी का भाग्य बनने की कोशिश ठीक उसी प्रकार कर रही थी जैसे कोई छोटी चिड़िया अपनी चोंच के बालु से समंदर पाटने का प्रयास करती हो जो सर्वथा अकल्पनीय और असम्भव है।

लेकिन सौभाग्य ने जैसे प्रण ही कर रखा हो कि वह उस मरणासन्न को हर सम्भव कोशिश करके बचाएगी उधर तीखा और जुझारू बिटिया के न लौटने से परेशान थे शाम ढल चुकी थी और अब रात हो चुकी थी जब रात्रि के एक घड़ी और प्रहर बीत गया सौभाग्य नही लौटी तब जुझारू ने तीखा से कहा कि सौभाग्य इतना देर सौभाग्य कभी नही करती थी कही कोई अपशगुन तो नही हो गया कोई जंगली खतरनाक पशु ने सौभाग्य ।
तीखा बोली का बोलत है कबो कुछ अच्छा भी बोल लिया करो जाओ लुकार लेके और सौभाग्य को खोज के लाओ अगर सौभाग्य के कुछो हो जाई त समझे तोहे हम जिंदा ना छोड़ब जुझारू के पास कौनौ रास्ता नाही बचा लुकार लेके अकेले चल पड़ा जहां जहां उनको बिटिया सौभाग्य के जाने की संभावना लगती वहां वहां जाता लगभग रात के ढाई प्रहर बीत चुके थे लेकिन सौभाग्य का कोई पता नही मिल सका जुझारू बहुत परेशान हो उंसे खोजने का प्रायास कर रहा था।

जुझारू बिटिया सौभाग्य को खोजते खोजते परेशान होकर थक कर किसी अनहोनी कि आशंका से भयाक्रांत अपने वन देवता का स्मरण करते हुए उसकी सलामती कि दुआएं मांगने लगे रात तीन प्रहर बीत चुका था जंगल मे सन्नाटा कभी कभार भयंकर जंगली निसाचर जानवरो कि आवाज सुनकर जुझारू एकाएक सचेत होते डर सिर्फ सौभाग्य के ना मिलने कि आशंका से था ।

वन प्राणियों कि चिघ्घाड़ एव वन कि रात्रि में भयंकर सन्नाटा तो उनके जीवन का हिस्सा हुआ करता जल रही लुकार भी बुझ चुकी थी जुझारू इस दुविधा में थे कि कैसे बिना सौभाग्य को लिए वापस लौटे उन्होंने निश्चय कर लिया कि सौभाग्य बिटिया का पता लगाएं बिना नही जा सकते।

जुझारू ने सोचा कि थकान कम होने पर अंधेरे में ही बिटिया कि तलाश करेंगे और बैठे बैठे अपने वन देवता का स्मरण कर ही रहे थे तभी उन्हें किसी मानव के चीखने कराहने की आवाज सुनाई पड़ी वह तेजी से उठे और उसी तरफ़ भागे भागे गए जिस तरफ से आवाज आ रही थी अंधेरे में इधर उधर भटकते वह बिटिया के कांवर से टकरा कर गिर गए सौभाग्य कावंड़ के पास अचेत थी अंधेरे में कुछ भी दिखाई नही पड़ने के वावजूद जुझारू ने अचेत पड़ी सौभाग्य को पहचान लिया और उसे होश में लाने का प्रयास करते रहे जब उसे होश नही आया तब किसी तरह पेड़ो के पत्ते का दोना बनाकर उसमें पानी लाने पास ही वन जल स्रोत तक गए और दोने में पानी लेकर भागे भागे आये अंदाजे से सौभाग्य के मुंह पर छींटा मारा लेकिन सौभाग्य को चेतना नही आई दोबारा दोने को लेकर ज्यो ही जुझारू पानी लेने के लिए उठे और वन जल स्रोत के पास से निकले कि किसी पत्थर के टुकड़े से टकराकर गिर गए और अचेत हो गए रात का अंधेरा अपने चरम पर था तभी अचानक गरज के साथ छींटे फिर तेज वारिस होने लगी।

वारिस में भीगते ही जुझारू की बेहोशी टूटी और वह उठा और पेड़ कि जड़ के पास आकर खड़ा हुआ जहां सौभाग्य पहले से ही भीगी सर्दी से कांप रही थी जुझारू ने बिटिया को छुआ और पूछा बिटिया तुम्हे लौटने में इतना देर कैसे हुआ तुम्हारी माई तीखा परेशान रो रो कर आसमान उठा लिया है सौभाग्य बोली बापू सब माई की पास पहुंच कर बताइत हई।

जुझारू बोला बरखा बन्द होए द चलित है दोनों पेड़ के जड़ के पास खड़े बरखा बन्द होने का इंतजार करने लगे वारिस बन्द होते होते सुबह होने को आई आसमान कुछ साफ हुआ और वन में चिड़ियों कि चहक शुरू हुई।