Me Papan aesi jali - 13 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | मैं पापन ऐसी जली!--भाग(१३)

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मैं पापन ऐसी जली!--भाग(१३)

खाना खाते खाते सिमकी ने सरगम से पूछा....
"दीदी!तुम भी पढ़ती होगी ना!"
"हाँ!मैं भी पढ़ती हूँ",सरगम बोली...
"किताबें पढ़कर बहुत अच्छा लगता होगा ना!"सिमकी ने पूछा...
"हाँ!अच्छा लगता है",सरगम मुस्कुराते हुए बोली...
"हम भी बचपन से पढ़ना चाहते थे लेकिन हमारे बाबा ने हमें पढ़ाया ही नहीं",सिमकी बोली...
"क्यों नहीं पढ़ाया तुम्हारे बाबा ने",सरगम ने पूछा...
तब सिमकी बोली...
"हम घर में सबसे बड़े थे ,हमारे और भी छोटे भाई-बहन थे,अम्मा-बाबा खेतों में काम करते थे और हम अपने भाई -बहनों को सम्भालते थे,इसलिए पढ़ नहीं पाएं,लेकिन हमने अपने भाई बहनों का बाबा से कहके जबरदस्ती स्कूल में नाम लिखवाया,ताकि वें सब हमारी तरह अनपढ़ ना रह जाएं",सिमकी बोली...
"तुम पढ़ना चाहती हो",सरगम ने पूछा...
"हाँ!लेकिन अब तो स्कूल जाने की उमर ही निकल गई है हमारी",सिमकी बोली...
"अगर तुम्हें मैं पढ़ा दूँ तो",सरगम बोली...
"सच!दीदी जी!तुम पढ़ाओगी हमें",सिमकी ने खुश होकर पूछा...
"अगर तुम पढ़ना चाहती हो तो जरूर पढ़ाऊँगी तुम्हें",सरगम बोली...
"तो फिर हम भी किताब बाँच पाया करेगें,रंग-बिरंगी कलमों से लिख पाया करेगें",सिमकी बोली...
"हाँ!फिर तुम पढ़ भी पाओगी और लिख भी पाओगी",सरगम बोली...
"और जब हम गाँव जाया करेगें तो अपने इनको भी चिट्ठी लिख पाया करेगें है ना!"सिमकी बोली...
"हाँ!फिर तुम गनपत भइया को भी चिट्ठी लिख पाया करोगी",सरगम बोली...
"तो कब से पढ़ाओगी हमें"?,सिमकी ने पूछा...
"कल से,मैं पहले तुम्हारी पढ़ाई का सामान ले लाऊँ,फिर पढाना शुरू कर दूँगी तुम्हें",सरगम बोली...
"ठीक है दीदी!"सिमकी बोली...
और फिर सरगम दो रोटियाँ खाकर ही उठ गई तो सिमकी बोली...
"दीदी!और कुछ नहीं लोगी"?
"बस!मेरा पेट भर गया",सरगम बोली...
"तुम्हारी खुराक तो बहुत कम है दीदी!",सिमकी बोली....
"मैं कौन सा खेतों में जाकर मेहनत मजदूरी करती हूँ,जो मेरी खुराक ज्यादा होगी,घर पर ही तो पड़ी रहती हूँ, खुराक तो उनकी ज्यादा होती है जो दिनभर धूप में पसीना बहाते हैं,मेहनत मजदूरी करते हैं",सरगम बोली...
"सही कहा दीदी तुमने",सिमकी बोली...
"तो चलो फिर मैं चलती हूँ,कल शाम को पढ़ने के लिए तैयार रहना,",
"ठीक है दीदी!",सिमकी बोली....
और फिर सरगम अपने कमरें आ गई और फिर से वही सब सोचने लगी और फिर कुछ देर में भानू भी काँलेज से आ गई और वो सीधे सरगम के कमरें में पहुँची और उससे बोली...
"दीदी!अब कैसीं तबियत है तुम्हारी"?
"अब थोड़ा ठीक लग रहा है",सरगम बोली...
"तो चलो डाइनिंग हाँल में चलो,सबके साथ बैठकर चाय पीते हैं,तुम्हें अच्छा लगेगा",भानू बोली...
"नहीं !भानू!मन नहीं है मेरा",सरगम बोली...
और फिर भानू सरगम के कमरें से चली गई,सच तो ये था कि सरगम आदेश का सामना नहीं करना चाहता थी,इसलिए वो चाय पीने डाइनिंग हाँँल में ना गई,लेकिन वो आदेश से दूर रहने पर भी दुखी थी क्योंकि वो उसे चाहने लगी थी और उससे दूर भी नहीं रह पा रही थी,लेकिन फिर भी उसने अपन मन को समझाया और रात का खाना भी उसने अपने कमरें में ही खाया,ऐसा करते उसे दो दिन हो गए ,इस बीच उसने सिमकी को भी पढ़ाना शुरु कर दिया जिससे उस ध्यान बँट जाएं और उसने दो-चार दिनों तक आदेश का सामना नहीं किया,अब आदेश भी समझ गया था कि सरगम यूँ आसानी से उसके हाथ आने वाली नहीं है,इसके लिए तो उसे कोई बड़ी चाल चलनी पड़ेगी,इसलिए वो सरगम को मनाने के बहाने ढूढ़ने लगा....
और फिर जब सरगम ने इतने दिनों तक आदेश से बात नहीं की तो एक रात वो सरगम के कमरें के पास पहुँचा,चूँकि सरगम का कमरा नींचे ही एकान्त में बगीचे के पास था इसलिए वहाँ की आवाज़ किसी को सुनाई नहीं पड़ती थी,आदेश ने सरगम के दरवाजे पर धीरे से दस्तक दी तो सरगम ने धीरे से पूछा...
"कौन"?
"मैं आदेश",आदेश बोला...
"आप यहाँ क्यों आए हैं",सरगम ने पूछा...
"तुमसे मिलने",आदेश बोला..
"लेकिन मैं आपसे नहीं मिलना चाहती",सरगम बोली...
"अब तक नाराज हो मुझसे",आदेश ने पूछा...
"बस,मैं आपसे नहीं मिलना चाहती",सरगम बोली...
"पहले दरवाजा तो खोलो,मुझे तुमसे बात करनी है",आदेश बोला....
"लेकिन मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी",सरगम बोली...
"सरगम!प्लीज दरवाजा खोलो,आदेश बोला...
"नहीं!मैं दरवाजा नहीं खोलूँगीं",सरगम बोली...
"लेकिन क्यों?मैनें ऐसा कौन सा जुर्म कर दिया है जो तुम मुझे ऐसी सजा दे रही हो",आदेश बोला...
"आपको नहीं पता कि आपने क्या किया है?,"सरगम बोली...
"हाँ!हो गई मुझसे गलती,मैं उस वक्त भावनाओं में बह गया था,प्लीज दरवाजा खोलो जो कहना है सामने कह देना",आदेश बोला....
फिर सरगम आदेश की मीठी मीठी बातों में आ गई और उसने दरवाजा खोल दिया,सरगम के दरवाजा खोलते ही आदेश ने कमरें का दरवाजा बंद किया और सरगम के पैरों पर गिर पड़ा फिर सरगम से बोला....
"अब तुम्हारा मुजरिम तुम्हारे सामने है,अब जो चाहे सजा दे दो",आदेश बोला...
"मैं कौन होती हूँ आपको सजा देने वाली"?,सरगम बोली...
"तुम नहीं जानती सरगम कि तुम मेरी क्या हो? तुम जब से मुझसे रूठ गई हो तो मेरा जीना मुश्किल हो गया है,तुम्हारे बिना मेरी जिन्दगी कुछ भी नहीं,मैं तुमसे प्यार करता हूँ सरगम और तुम्हारे बिन नहीं रह सकता,प्लीज मुझ से इस तरह से नाराज मत रहो,नहीं तो मैं मर जाऊँगा तुम्हारे बिना",आदेश बोला...
और ये कहते कहते आदेश ने दो चार झूठे आँसू भी बहा दिए फिर बेचारी भोली सरगम क्या करती वो आदेश की झूठी बातों में आ गई और उससे बोली....
"अगर आप मुझसे सच्चा प्यार करते होते तो ऐसी हरकत ना करते"
"कहा ना हो गई गलती,नहीं रख सका मैं खुद पर काबू,अब तुम्हारे सामने हाजिर हूँ जो भी सजा देना चाहती हो तो दे सकती हो",आदेश बोला...
"आप अच्छी तरह जानते हैं कि मैं आपको सजा नहीं दे सकती",सरगम बोली...
"वो क्यों भला?",आदेश ने पूछा...
"क्योंकि मैं आपको चाहती हूँ",सरगम बोली...
"इतना ही चाहती हो मुझे तो इतने दिनों से तुमने मुझसे बात क्यों नहीं की",आदेश ने पूछा..
"नाराजगी अपनी जगह है और प्यार अपनी जगह",सरगम बोली....
"तुम्हें उस दिन इतना बुरा लग गया मेरी उस हरकत का?",आदेश बोला....
"हाँ!मेरे लिए ये बुरा लगने वाली ही बात थी,क्योंकि मैनें आज तक किसी लड़के से दोस्ती तक नहीं की और जो आपने किया वो इस तरह मेरा पहला अनुभव था इसलिए बुरा लगना वाजिब था,मुझे कोई तरह से छुए ये मुझे पसंद नहीं है",सरगम बोली...
"लेकिन अब तो माँफ कर दिया ना तुमने मुझे कि अब भी मुझसे खफ़ा हो",आदेश ने पूछा...
"आपने काम ही ऐसा किया है कि आपको माँफ करना मेरे लिए जरा मुश्किल है",सरगम बोली...
"ऐसी भी क्या नाराजगी सरगम"?,आदेश बोला....
"मुझे बहुत बुरा लगा था,मैं उस बात से दो दिनों तक परेशान रही",सरगम बोली...
"मैं भी तो परेशान हूँ उस दिन से,मुझे भी बाद में बहुत बुरा लगा कि मैनें तुम्हारे साथ ऐसा किया ",,आदेश बोला....
तब सरगम बोली...
"आदेश जी!मैं एक साधारण घर की साधारण सी लड़की हूँ और मेरे साथ असाधारण बात हो जाती है ना तो मैं उसे दिल से लगा बैठती हूँ,मेरे पिता अब इस दुनिया में नहीं है और मेरी माँ के पास इतना पैसा नहीं कि वो मुझे पढ़ा सके इसलिए मैं चाहती हूँ कि पढ़ लिखकर मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ और मेरे दोनों छोटे भाई माधव और गोपाल को पढ़ा सकूँ और उन्हें इस काबिल बना सकूँ कि उन्हें किसी के आगें अपने हाथ ना फैलाने पड़े़, मैनें अपने जीवन में अभी तक ऐसी कोई गलती नहीं की कि जिसके कारण मुझे अपने परिवार के सामने शर्मिन्दा होना पड़े,इसलिए उस दिन मैं सारी रात यही सोचती रही कि क्या मैं यहाँ ये सब करने आई हूँ,
"मैं भी ऐसा कुछ नहीं चाहता था लेकिन अब हो गई गलती",आदेश बोला...
"कोई बात नहीं,आपको अपनी गलती का एहसास हो गया यही मेरे लिए बहुत है",सरगम बोली...
और फिर उस रात सरगम ने आदेश को माँफ कर दिया....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...