Yatna - 3 in Hindi Women Focused by Bindu books and stories PDF | यातना - भाग 3

The Author
Featured Books
  • સીમાંકન - 6

    ડૉરબેલનાં રણકારે ત્રિજ્યા વિચારોમાંથી બહાર આવી, ઉભી થઇ દરવાજ...

  • અગ્નિસંસ્કાર - 89

    અંશે પિસ્તોલ આર્યન પર નહિ પરંતુ થોડેક દૂર દીવાલ પર ચલાવી હતી...

  • લાશ નું રહસ્ય - 6

    લાશ નું રહસ્ય પ્રકરણ_૬આખા રૂમમાં અનિલની જિસ ગુંજી અને પડઘા પ...

  • શ્રાપિત પ્રેમ - 9

    તે જેલ ખૂબ મોટી હતી એટલે રાધા ને તેની બાકીની ચાર સખીઓ સાથે મ...

  • વિષ રમત - 25

    વાચક મિત્રો , CHALLANGE ..!!!CHALLANGE ..!!!CHALLANGE ..!!!મ...

Categories
Share

यातना - भाग 3

कभी-कभी तो रंभा सोचती थी कि दो-तीन साल में ही यह सब बंद हो जाएगा और शायद ज्यादातर काम की वजह से और व्यस्त रहने की वजह से दिनेश उस पर जो अत्याचार करता है उस पर सहज रूकावट आ जाएगी लेकिन दिन-ब-दिन दिनेश की हरकतें और हैवानी हो गई कभी-कभी तो रंभा इतना थक जाती थी कि उठने की कोशिश के बावजूद भी वह उठ नहीं पाती थी सारा बदन मानो दर्द से कांप रहा हो और कभी-कभी तो वह बुखार से तपती रहती थी और जहां जैसे पड़ी होती थी सुबह तक वहीं वैसे ही पड़ी रहती थी फिर कितनी हिम्मत जुटाकर सुबह अपने काम के लिए वह खड़ी होती थी वह कभी-कभी तो ईश्वर से भी गुहार लगाती थी कि सब कहते हैं कि कर्म का फल मिलता है तो क्या मैं इतना बुरा कर्म किया होगा पिछले जन्म जो उसकी सजा मुझे इस जन्म में इतनी बुरी मिल रही है बचपन से ही मैंने अपनी मां को खो दिया पिता ने कभी वात्सल्य नहीं जताया और नई मां ने तो जैसे मानो मैं उसकी पुरानी दुश्मन हूं ऐसा ही बर्ताव किया इस जन्म में तो मैंने किसी का कभी सोच कर भी बुरा नहीं किया शायद पिछले जन्म की मुझे सजा मिल रही है चुपचाप सब सह रही हूं और कभी-कभी तो वह और ज्यादा सोचती थी कि हे ईश्वर जो भी दंड है इसी जन्म में तुम मुझे दंडित कर देना पर अगले जन्म में मुझे इस हैवान से कोसों दूर रखना मैं इसके इर्द-गिर्द भी ना आ पाऊं इसकी तूं तकेदारी रखना मैं नहीं चाहती कि यह हैवान मेरे आस-पास भी कहीं रहे....


फिर भी रंभा ईश्वर स्मरण में अपने दुखों को भूलने की कोशिश करती थी रोज दिनेश की हैवानियत को यह शायद आखरी जुल्म होगा यह सहकर भूल जाती थी


इस तरफ मान्या आज ही जिला पुस्तकालय से लाई हुई शहादत मंटो की किताब पढ़ रही थी उसने कुछ उसमें ऐसी बातें पड़ी थी उसे रंभा की याद आ गई शहादत मंटो ने लिखा था कि अच्छा है वेश्यालय है वरना कई हैवान निर्दोष बच्चियों और महिलाओं को कभी नहीं बख्शते और यह पढ़कर मान्या को रंभा के लिए और ज्यादा गहरी सहानुभूति महसूस होती थी और वह उस बिचारी के लिए कुछ कर भी नहीं सकती थी...
एक दिन फुर्सत के समय पर वह मान्या के पास जाती है और अपनी पीड़ा को जताती है मान्या भी उसकी बातें सुनकर रोने लगती है वह कहती है कि अब तो मैं भी ईश्वर से प्रार्थना करती हूं रंभा की तुझे उस दरिंदे से बचाए ईश्वर कुछ ऐसा करें कि तु उसकी चुंगल से बच भी जाए और समाज में कोई और तुझे उसके लिए दोसी भी ना ठहराया या तेरा जीना बेहाल न कर दे


दिनेश तो अब बाहर घूमने जाने के बाद और भी ज्यादा दरिंदगी की सीमा को पार कर गया था अब वह रंभा के लिए कुछ ऐसे भड़कीले कपड़े लाता था और अपनी ताकत को जिताने के लिए कई सारी मेडिसिन स्प्रे और दवाइयां लाता था ताकि और ज्यादा वह उसकी दरिंदगी पे ध्यान दे सकें रंभा उसके लिए वह सब करती थी जो वह कहता था अगर वह ना करती तो दिनेश उसे कहां छोड़ने वाला था लेकिन दिन-ब-दिन बढ़ती जाती दिनेश की हैवानियत अब रंभा को और ज्यादा कमजोर बनाने लगी थी
वह बिचारी ईश्वर से प्रार्थना करती थी कि कुछ ऐसा कर कि मैं इसकी चुंगाल से बच पाऊं
और रंभा कहती थी कि हां बस देर लगेगी लेकिन ईश्वर हमारी सुनेगा जरूर...
क्रमशः