Gagan - 6 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 6

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 6

लेकिन हमारे समय मे न टेलीफोन थे,न ही मोबाइल और सामाजिक प्रतिबंध भी तब ज्यादा थे।कई बार मन मे आता कि रिश्ता हो गया है तो अब एक बार मंगेतर को देखा जाए पर कैसे?
ऐसे अवसर आये भी
एक बार मे गांव गया।आगरा से बांदीकुई ट्रेन करीब एक बजे पहुच जाती थी।फिर वहा से बसवा के लिए ट्रेन साढ़े तीन बजे चलती थी।जैसा मैं पहले कह चुका हूँ।मेरी कजन का क्वाटर वही था।मैं उतरकर वहां चला जाता था।मैं जब सिस्टर के पास पहुंचा वह बोली,"आज तो तुम्हारी मंगेतर आयी है।"
असल मे खान भांकरी तो बहुत छोटा स्टेशन था।वहां तो बस रेलवे का गिना चुना स्टाफ था।जिनके क्वाटर थे।दैनिक उपयोग का या अन्य सामान के लिए दौसा या बांदीकुई जाना पड़ता था।बांदीकुई में गार्ड थे उनके यहाँ भी जाना था।
उस समय मेरे बहनोई टी सी थे।रिश्ता होने के बाद मेरे भावी श्वसुर जब बांदीकुई आते तो उनकी मुलाकात बहनोई से हो जाती थी।बहनोई की सुबह की ड्यूटी थी।वह ऑफ होकर आए तो बताया था।स्टेशन मास्टर साहब और उनकी बेटी आये है।मैं बोला ,"कहा है?"
और मैं बहनोई के साथ स्टेशन गया था।पर मुलाकात हो नही पाई।ट्रेन जा चुकी थी।
मेरे मन की मन मे ही रह गयी और एक बार फिर मैं उसे देख नही पाया।
फिर अवसर आया 1972 फरवरी मे मेरे होने वाले बड़े साले की शादी तय हो गयी थी।शादी बांदीकुई से तय हुई थी।रिश्ता हो चुका था।लिहाजा शादी का कार्ड गया था।सामाजिक नियम तो आज भी है,लेकिन आजकल मानता कौन है?
कहा जाता है जी कुंवारे मांड मंगेतर के घर नही जा सकते।तो यह तय हुआ कि बारात की विदा के दिन सीधे बांदीकुई जाऊंगा।महावीर भाई साहब ने भी कहा था कि बारात में लड़के की बहन भी आएगी।उस समय लड़कियों को प्रायः बारात में ले जाने का चलन नही था।
(महावीर मेरी मंगेतर के कजिन थे।वह बांदीकुई में रेलवे में ड्राइवर थे।मेरे बड़े ताऊजी भी बांदीकुई में ड्राइवर थे।इसलिए उनसे जान पहचान थी।यह पहचान उस समय और ज्यादा मजबूत हुई जब पिताजी की अजमेर में पोस्टिंग थी।पिताजी आर पी एफ में थे और महावीर का छोटा भाई कैलाश भी आर पी एफ में था।कैलास को और मेरे पिताजी का क्वाटर अगल बगल में था और मेरी कैलाश से भी दोस्ती हो गयी।और ये ही महावीर भाईअब मेर भावी साले भी थे। बरात मे विदा के दिन जाने के लिये मेने कपदे सिल्वाआये थे।और विदआ वाले दिन मैं बंदीकुई गया था। महावीर भाईने मेरा सब से परिचय कराया था ः।उन्होंने ही पता किया तब पता चला लड़के की बहन शआदि में नही आई थी।दसरी बार भी निराश होने के अलावा कोई चारा नहीं था।
आखिर मैं शादी से पहले एक बार और कयो देखना चाहता था?
मैं जिस दिन भाई के साथ लड़की देखने गया।उस दिन सोचकर गया था कि मैं आकर रिश्ते से ना कर दूंगा।इसलिय लड़की हमारे सामने ही कमरे में घूम रही थी।उसे देख भी रहा था लेकिन देखकर भी उसकी छवि ध्यान नही आ रही थी।हालांकि एक दिन पहले भी हमारा। आमना सामना हो चुका था।न उसे पता था कि हम उसे देखने आए है।इसलिए वह भी बिना किसी मेकअप या साज श्रंगार के थी।