Hadsa - Part - 2 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | हादसा - भाग 2

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हादसा - भाग 2

नंदिनी से विदा लेकर प्रकाश और पूनम प्लेन में बैठ गए। आधे घंटे की हवाई यात्रा के बाद वह दोनों अपने होटल पहुँच गए। तब शाम के लगभग छः बज रहे थे।

प्रकाश ने कहा, “पूनम हमारी ज़िंदगी की नई शुरुआत हो रही है। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ मैं भी फ्रेश हो जाता हूँ, हम अपने हनीमून की शुरुआत मंदिर से देवी माँ का आशीर्वाद लेकर करेंगे। नदी के उस पार टेकरी पर माताजी का मंदिर है। हम नाव से वहां जायेंगे और दर्शन करके वापस आएंगे, तब तक रात हो जाएगी। बस फिर कल से इन वादियों में बाँहों में बाँहें डाले घूमेंगे, फिरेंगे, खाएंगे, पिएंगे, ख़ूब मौज मस्ती करेंगे। फिर रात को होटल आकर क्या करेंगे,” कहते हुए प्रकाश ने चुटकी ली।

पूनम शर्मा गई और उसने कहा, “बस फिर हम सो जाएंगे…”

“सो जाएंगे…?”

“हाँ और क्या?”

“अच्छा ठीक है देखेंगे, चलो-चलो पूनम तैयार हो जाओ।”

अपने नए जीवन की मंगलमय कामना लिए पूनम तैयार हो रही थी। मंदिर जाना था इसलिए पूनम ने एक सुर्ख लाल रंग का जोड़ा पहना था और अपने आप को विविध आभूषणों से विभूषित भी किया था। वह बहुत ही खूबसूरत परी लग रही थी जब वह नदी के किनारे आए तब चाँद आसमान में चमक रहा था। आकाश से धरती तक उसकी चाँदनी अपनी छटा बिखेर रही थी। बहुत ही सुहाना, मन को लुभाने वाला मौसम था। चाँद की चाँदनी पूनम के चेहरे पर पड़ रही थी जिससे पूनम का चेहरा और भी अधिक दमक रहा था।

ऐसे में उसने प्रकाश से कहा, “प्रकाश इतना सुंदर चाँद है पूनम का, ऊपर देखो?”

“अरे पूनम, पूनम का चमकता-दमकता चाँद तो मेरी आँखों के सामने है, मैं ऊपर कैसे देखूँ। मेरी नज़रें इस चाँद से हटने का नाम ही नहीं ले रही हैं।” 

“अच्छा ठीक है ऊपर मत देखो लेकिन पहले नाव तो देखो। चलना नहीं है मंदिर, नदी के उस पार।”

“हाँ-हाँ चलो।”  

तभी सामने से एक नाविक ने उन्हें आवाज़ लगाते हुए कहा, “आइए-आइए साहब, बस आख़िर में दो सवारी की जगह ही बची है। मेरी नाव तुरंत ही निकलने वाली है। आपको ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।” 

पूनम ने धीरे से कहा, “प्रकाश इसकी नाव तो क्षमता से अधिक भरी हुई दिख रही है। हम किसी और नाव में चले जाएंगे।”

प्रकाश ने कहा, “चलो देखते हैं।”

वह नाव के पास पहुँचे तब प्रकाश के आते ही नाविक ने कहा, “भैया 300-300 लगेंगे, आ जाओ।”

बाजू में एक दूसरी नाव खड़ी थी। प्रकाश ने उस नाव में खड़े नाविक से पूछा, “भैया तुम कितना लोगे और कब चलोगे?”

“साहब मेरी नाव छोटी है। मैं तो 500 रुपये लेता हूँ।”

“क्यों भैया ये 300 और तुम 500 लगभग डबल किराया?”

“अरे साहब समय तो उतना ही लगता है फिर मेरी नाव छोटी भी तो है।”

“अच्छा अभी कितना समय लगेगा?”

“साहब कम से कम और 10-12 लोग आ जाएं, तब चलेंगे।”

प्रकाश ने पूनम से कहा, “छोड़ो ना यार इसी के साथ चले चलते हैं। इतना इंतज़ार कौन करेगा, वैसे भी यह तो इनका रोज़ का ही काम है। वह अपनी जान खतरे में क्यों डालेंगे। उनके भी परिवार होते हैं, जो उनका इंतज़ार कर रहे होते हैं। चलो फटाफट पहुँच जाएंगे।”

तब तक नाविक ने कहा, “चलो साहब हम तो रोज़ ही यह काम करते हैं, आ जाओ।”

प्रकाश ने कहा, “चलो ना पूनम, समय भी बचेगा और पैसा भी।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः