Safar se pahle hi - 1 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | सफर से पहले ही - 1

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सफर से पहले ही - 1

सूरज कब का दूर क्षितिज में ढल चुका था।शाम अपनी अंतिम अवस्था मे थी।आसमान से उतर रही अंधेरे की परतों ने धरती को अपने आगोश में समेटना शुरू कर दिया था।प्लेटफॉर्म नम्बर पांच के अंतिम छोर पर लगी बेंच पर राम लाल बैठा था।उसे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वह गहरे सोच विचार में डूबा हो।
उसी समय सरला प्लेटफार्म पर आई।काफी दूर से पैदल चलकर आने के कारण वह थक गई थी।बेंच पर राम लाल को अकेले देखकर सरला बोली,"यहाँ कोई और भी बैठा है?'
"नही,"राम लाल ने सरला की तरफ देखे बिना जवाब दिया था।
"मैं बैठ जाऊ?
"हा"
राम लाल बेंच के एक चोर पर बैठा था।दूसरे छोर पर सरला बैठ गयी।उस प्लेटफार्म पर गिनी चुनी ट्रेनें ही आती थी।ट्रेन के आने से पहले इस प्लेटफार्म पर यात्री आने लगते और सुनसान पड़े प्लेटफ़ॉर्म पर अच्छी खासी चहल पहल हो जाती।ट्रेन के जाने के कुछ देर बाद फिर से सन्नाटा पसर जाता।सरला को प्यास लग रही थी।उसका गला सुख रहा था।बेंच से कुछ दूरी पर नल था।सरला उठी और नल खोल कर पानी पिया।पानी पीने के बाद वह वापस आई।तब भी रामलाल गर्दन झुकाए उसी तरह बैठा था।न हिलना न डुलना।
वातावरण पूरी तरह शांत खामोश था।सरला काफी देर तक उसे देखती रही।आखिर मैं हिम्मत कर के वह बोली,"आपको कहा जाना है?"
"'पता नही।"उसी मुद्रा में बैठे बैठे राम लाल ने सरला को जवाब दिया था।"
"राम लाल की बात सुनकर विस्मय से सरला बोली,"स्टेशन पर आने वाले हर आदमी को पता होता है।उसे कहा जाना है?"
"तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो,"सरला की बात सुनकर राम लाल बोला,"स्टेशन पर आने वाले हर आदमी को अपना गन्तव्य मालूम होता है लेकिन मुझे अपनी मंजिल मालूम नही।स्टेशन तो चला आया पर पता नही की कहा जाऊ?"
"तो घर से बिना सोचे समझे ही चले आये हो/"सरला ने पूछा था।
"आना पड़ा।नही आता तो मैं क्या करता?"
"ऐसी क्या मजबूरी थी जो बिना मंजिल के तुम्हे आना पड़ा।"सरला ने फिर राम लाल से प्रश्न किया था।
"बहु ने मुझे घर से निकाल दिया।"घर से निकाले जाने का दर्द राम लाल के चेहरे पर उभर आया था।
"बेटे ने कुछ नही कहा?"सरला ने फिर पूछा था।
"जोरू के गुलाम में इतनी हिम्मत नही होती कि बीबी की आंख से आंख मिला सके"।"
"लेकिन बहु ने तुम्हे घर से निकाल क्यो दिया?"
"क्या करोगी जानकर "राम लाल ने प्रश्नसूचक नजरो से सरला की तरफ देखा था।
"सुना है दर्द बांटने से हल्का हो जाता है।"सरला बोली थी
"हा।है तो सही।पर अपना दुखड़ा दुसरो के सामने रोने से कोई लाभ नही है।जो दुख दर्द है उसे स्वंय ही झेलना पड़ता है।लेकिन तुम कहती हो तो--और राम लाल की आंखों के सामने उसके अतीत के पन्ने खुलने लगे--
राम लाल की शादी वीणा से हुई थी।उनकी शादी के पांच साल बाद भी कोई संतान नही हुई। तब एक दिन वीणा पति से बोली,"हमारी शादी को पांच साल हो गए लेकिन मैं अभी तक माँ नही बनी।डॉक्टर को दिखा लेते है।"
और पत्नी की सलाह पर राम लाल डॉक्टर के पास गए थे।डॉक्टर ने पति पत्नी दोनों के ही टेस्ट कराए थे।रिपोर्ट देख कर डॉक्टर बोला,"आपकी पत्नी के गर्भवती होने के फिफ्टी परसेंट चांस है।"