Ek Naya Rasta - 2 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | एक नया रास्ता - 2

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एक नया रास्ता - 2

कल्पना बोली,"मैं जानती हूँ तुम मुझे नही मिलोगे।पर मैं गर्भपात नही करूंगी"
"फिर क्या करोगी?"
"मैं गर्भपात कराने से बेहतर कुंवारी माँ बनना पसन्द करूंगी।"कल्पना अपनी बात कहकर चली गयी थी।
सुनीता गुमसुम खामोश पलँग पर चित लेटी छत को निहार रही थी।राजन उसकी बगल में लेटते हुए बोला,"लगता है हमारी प्रियतमा किसी गहरे सोच में डूबी है?"
"राजन मुझे बेहद अफसोस है मैं तुम्हारे बच्चे की माँ कभी नही बन सकती।"
"सुनीता इसमें तुम्हारा क्या दोष है।ईश्वर ने तुम्हे माँ बनने की क्षमता प्रदान नही की है।"
"इसमें भगवान का कोई दोष नही है।दोषी तो मैं हूँ।"
"तुम दोषी हो?"
"हां।मैं।"
"तुम कैसे दोषी हो?"
"राजन मैं शादी के बाद से ही इस राज को छिपाए हुए हूँ।पर अब नही।"
"कौनसी बात।कौनसा राज।मैं कुछ नही समझा।"
"राजन मैं आज अपने अतीत का राज।मैं आज कुछ नही छिपाउंगी।सब बता दूंगी।"और सुनीता अपने अतीत को याद करने लगी।
सुनीता का जन्म एक मध्यम वर्ग के परिवार में हुआ था।उसके पिता श्याम एक कम्पनी में जॉब करते थे।तीन भाई बहनों में सुनीता सबसे बड़ी थी।सुनीता शुरू से ही पढ़ने में तेज यानी होशियार थी।इसलिये उसके पिता ने उसे पढ़ाने में कोई कमी नही रखी थी। सीनियर हायर सेकंडरी पास करने के बाद उसका एडमिशन कालेज में करा दिया गया था।
कालेज का जीवन स्कूल से बहुत अलग होता है।यहाँ पर अक्सर लड़के लडकिया प्यार के चक्कर मे भी पड़ जाते है।लड़के लड़कियों के जोड़े भी बन जाते है।दूसरे शब्दों में लड़के लड़की प्रेमी प्रेमिका बन जाते है।
कालेज में सुनीता अनुराग के सम्पर्क में आई और उससे दोस्ती हो गयी।अनुराग अमीर बाप का बेटा था।और धीरे धीरे सुनीता अनुराग के काफी करीब आ गयी।
अनुराग सुनीता को आये दिन उपहार देने लगा।वह उसे अपने साथ घुमाने के लिए भी ले जाने लगा।कालेज की छुट्टी होने के बाद भी काफी समय दोनो का साथ गुजरता।कभी कनॉट प्लेस कभी किसी पार्क में या पिक्चर चले जाते।घर लेट पहुचने पर कभी मा पूछती तो सुनीता कोई न कोई बहाना बना देती।माँ बेचारी सीधी सादी क्या जाने?
एक बार एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए सुनीता को कानपुर जाना था।और भी लडकिया गयी थी।कुछ लड़के भी थे।अनुराग का उसमें नाम नही था पर वह भी साथ हक लिया।
"होटल में रुकेंगे।"
"क्यो?"
"सब के साथ कहा रुकोगी?"
थोड़ी सी झिझक के बाद सुनीता मान गयी थी।दिन में सुनीता व्यस्त रही। रात को वे दोनों पलँग पर लेटे थे।अचानक अनुराग ने सुनीता का हाथ पकड़कर खींचा और उसके होठ चुम लिए थे।
यह क्या करते हो?"
"डार्लिंग इसे प्यार कहते है।'
"औरत की देह से ऐसी हरकत पति ही कर सकता है।"
"पति बनने से इनकार कौन कर रहा है।"
अनुराग ने फिर से सुनीता को चूमा था।सुनीता ने उसे मना किया पर वह नही माना।और उसके हाथ सुनीता की सलवार की तरफ बढ़ गए।
"नही।यह नही।"अनुराग का आशय और इरादे को ताड़ते हुए बोली,"यह नही हो सकता।यह शादी के बाद करना।"
" तुम भी यार।आज की औरत बनो।हम इस काम को चाहे शादी से पहले करे या बाद में इससे क्या फर्क पड़ता है?"अनुराग बोला,"मियां बीबी राजी तो
सुनीता शादी से पहले समर्पण के लिए तैयार नही थी।पर अनुराग काफी देर तक उसे समझाता रहा।सुनीता ने सोचा।जब समर्पण करना ही है तो पहले करो या बाद में